लधु कथा
- डॉ. कुसुम जोशी
रात को खाना खात हुऐ जब बेटी
अपरा के लिये आये रिश्ते का जिक्र भास्कर ने किया तो… अपरा बिफर उठी, तल्ख लहजे में बोली “आप को मेरी शादी के लिये लड़का ढूढ़ने की जरुरत नही.”फोन
क्यों…? मम्मी पापा
दोनों साथ ही बोल पड़े…“मैंने अपने लिये लड़का पसंद कर लिया है,
आप लोग भी ‘सोहम’ को शायद अच्छी तरह से जानते है”.फोन
बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से
भास्कर बेहद चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही.
फोन
पति पत्नी हैरान, “इतना बड़ा निर्णय”
हम बेखबर हैं! बम ही फट पड़ा हो जैसे, पर बेटा मन्द- मन्द मुस्कुरा रहा था, शायद वो बहन का राजदार हो.फोन
बेटी के प्रेम विवाह के फैसले से भास्कर बेहद
चिन्तित हो उठे, कुमाऊंनी उच्चकुलीन ब्राह्मण परिवार के संस्कार, बाहर के समाजों में दहेज, दिखावे से भास्कर बहुत डरते हैं, उनके समाज में आज भी दान दहेज ज्यादा प्रचलित नही.फोन
“अब क्या सोचना है पापा! हम लोग
इनडिपेन्डेंट है, निर्णय ले चुके हैं शादी का, हम चाहते थे आप लोग हमारे निर्णय में सहमति जताये और हमारी खुशियों में शामिल हों.
फोन
अन्तिम बार समझाने के उद्देश्य से उन्होंने कहा,
“सोहम को जानते तो हैं अपरा, पर इस रिश्ते को लेकर तुम गम्भीर हो ये नहीं पता था, तुम्हीं बताओ कि अपने और ‘सोहम’ के रिश्ते को लेकर तुमने क्या सोचा है?“अब क्या सोचना है पापा! हम लोग इनडिपेन्डेंट है,
निर्णय ले चुके हैं शादी का, हम चाहते थे आप लोग हमारे निर्णय में सहमति जताये और हमारी खुशियों में शामिल हों.फोन
“बेटा तुमने सोचा है कि भविष्य में कोई ऊंच
नीच हो जाय तो? वो हमारी जाति तो छोड़ों, सेम स्टेट के भी नही, कल्चर डिफरेंस है, उनके समाज में दहेज जैसी व्यवस्थायें हैं”.आपके जाति, कल्चर के
इस ढ़ोंग से किसी को फायदा नहीं होने वाला, मीतू बुआ और पारुल मौसी से पूछें, जो जाति के अंहकार के बोझ तले इस उम्र में भी एकाकी जीवन गुजार रही हैं.
फोन
“पापा हम उस पीढ़ी के नही हैं,
जो इतनी छोटी छोटी बातों को तूल दे, और जाति प्रान्त, कल्चर की बात करें”.फिर दहेज का तो मतलब ही नहीं,
मैं सोहम से साफ-साफ बात कर चुकी हूं कि अगर दहेज की इच्छा है तो ब्रेकअप का रास्ता ज्यादा बेहतर है.फोन
आपके जाति, कल्चर के इस ढ़ोंग से किसी को
फायदा नहीं होने वाला, मीतू बुआ और पारुल मौसी से पूछें, जो जाति के अंहकार के बोझ तले इस उम्र में भी एकाकी जीवन गुजार रही हैं.फोन
उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि
उनके प्रश्नों और चिन्ताओं का इतना असंवेदनशील उत्तर देने वाली उनकी अपनी नन्ही, मासूम सी हरदम भयभीत-सी रहने वाली सोन चिरय्या “अपरा” है!
फोन
भास्कर हदप्रभ थे,
अपरा कितनी गहराई से परिवार की गतिविधियों को वॉच करती है, क्या वह इसी भय से खुद शादी का फैसला ले रही है?उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके प्रश्नों
और चिन्ताओं का इतना असंवेदनशील उत्तर देने वाली उनकी अपनी नन्ही, मासूम सी हरदम भयभीत-सी रहने वाली सोन चिरय्या “अपरा” है!फोन
एक पल के लिये अंदर से कुछ टूटन सी महसूस हुई, पर अपरा ने कुछ भी गलत नहीं कहा.
बच्चों के मन को समझना होगा, यही सोच भास्कर ने रुढ़ीयों को दिमाग से झटक, पत्नी के और देखा.
फोन
“जो निर्णय तुमने लिया है वो सुखद हो, कह भास्कर हौले से मुस्कुराये, इस मुस्कान में सहज स्वीकृति शामिल थी”, हमेशा कि तरह अपरा भी हंस दी.
पत्नी की आंखों में मूक सहमति के
भावों को पढ़कर बोले “अपरा ये जिन्दगी का बहुत बड़ा निर्णय है, उम्मीद है इसे लेकर हमेशा गम्भीर रहोगी”.फोन
“जो निर्णय तुमने लिया है वो
सुखद हो, कह भास्कर हौले से मुस्कुराये, इस मुस्कान में सहज स्वीकृति शामिल थी”, हमेशा कि तरह अपरा भी हंस दी.फोन
(लेखिका साहित्यकार हैं एवं छ: लघुकथा संकलन और एक लघुकथा संग्रह (उसके हिस्से का चांद)
प्रकाशित. अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सक्रिय लेखन.)