शिलाखर्क बुग्याल ट्रैक: रहस्य और रोमांच से भरा ट्रैकिंग स्‍पॉट

कम और ना जाने, जाने वाले ट्रैंकिंग रूट – पार्ट-2

पांडव यहॉं बना रहे थे विशाल मंदिर, लेकिन…

  • जे. पी. मैठाणी

उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद चमोली की एक बेहद रोमांचक घाटी है पाताल गंगा घाटी. बायोटूरिज़्म पार्क पीपलकोटी से लगभग 11 किमी. की दूरी पर पाखी गरूड़गंगा, पनाईगाड, टंगणी और बेलाकूची के बाद एक छोटा सा 10-12 दुकानों का बाजार है जिसका नाम पातालगंगा है. संभवतः यह नाम देश की आजादी के बाद जब भारत-चीन बॉर्डर पर सड़कों का विकास हो रहा था, तब पड़ा होगा. उस दौरान 70 के दशक में अलकनन्दा घाटी की सबसे बड़ी बेलाकूची बाढ़ आई थी. उसके बाद पीपलकोटी से भंडीरपाणी के बाद सड़क का अलाइनमेन्ट बदल दिया गया और अब सड़क पाखी गरूड़ गंगा, पनाईगाड़ टंगणी से अपर बेलाकूची होते हुए एक ऐसे स्थान पर पहुँचती है जहाँ पर लॉर्ड कर्जन पास के जलागम से विभाजित होकर एक बड़ी जलधारा आती है. इस स्थान पर राष्ट्रीय राजमार्ग के बनने में एक नदी बाधक थी. यह नदी नंदा देवी और त्रिशूल चोटी की पश्चिमी ढाल से निकलती है. इस जलागम का पूर्वी हिस्सा दूसरी ओर रामगंगा का जलागम भी बनाती है.

पाताल गंगा को पूर्व में ही नहीं बल्कि आज भी राजस्व अभिलेखों में नौली ग्वाड़ के नाम से ही जाना जाता है. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने यहाँ पर जो सबसे पहले लोहे का गॉर्डर पुल बनाया उसके नीचे बहती हुई नदी को पाताल गंगा का नाम दिया. वर्तमान में यहाँ पर विशाल सीमेन्ट का पुल है जिसके एक तट पर गणेश हनुमान मंदिर है. नंदा देवी बायोस्फ़ियर की बफर जोन सीमा यहीं से शुरू होती है.

यह जलधारा पूरब से पश्चिम की ओर बहती है और बरसात में अचानक बहुत रौद्र बहाव के साथ जलधारा गाद और मलबे के साथ अलकनन्दा में मिलती है.  इसी जलधारा पर बद्रीनाथ जाने वाली सड़क को दूसरी तरफ लंगसी से जोड़ने के लिए सबसे पहले  लोक निर्माण विभाग और बाद में सीमा सड़क संगठन द्वारा पुल बनाया गया. यह जलधारा जो गणाई, दाड़मी के उत्तर पूर्व से बहती हुई बहुत गहरे पाताल में जैसे पतली जलधारा के साथ शोर मचाती हुई बहती है. संभवतः इस राजमार्ग के निर्माण के बाद ही 1954 से 1965 के मध्य इस स्थान का नाम पाताल गंगा पड़ा होगा. क्योंकि पुल से देखने पर यह जलधारा बहुत गहराई में यानी पाताल में जैसे दिखती है.

दिल्पुडी खरक
पाताल गंगा में इस प्रकार बनते रहे मोटर मार्ग के पुल. फोटो: डॉ. दिनेश सती

महान इतिहासकार एडविन थॉमस एटकिन्सन के हिमालयन गजेटियर जो फरवरी 1886 में छपा था उसके वॉल्यूम 3 में पीपलकोटी का जिक्र करते हुए एटकिन्सन लिखते हैं कि- पीपलकोटी एक गाँव और रात्रि विश्राम का स्थल है जहाँ पर धर्मशाला और अनाज की दुकानें हैं और यह स्थान अल्मोड़ा से नीति पास पर अलकनन्दा नदी के बांये तट पर पट्टी तल्ली दशोली, परगना दशोली ब्रिटिश गढ़वाल में स्थित है. जो मैठाणा नामक स्थान से 7 मील 7 फर्लांग की दूरी पर स्थित है. और मैठाणा नंदप्रयाग से डेढ़ मील की दूरी पर स्थित है. वहीं हेलंग नंदप्रयाग से 11 मील 3 फर्लांग और 34 पोल की दूरी पर स्थित है. यह ऐतिहासिक सर्वेक्षण स्थापित करता है कि पाताल गंगा नाम पूर्व में प्रचलित था ही नहीं. एटकिन्सन ने अलकनन्दा घाटी में 1869 की बाढ़ का भी जिक्र किया है. जबकि बाद में 1970 के दशक में बेलाकूची बाढ़ और गौणा ताल/ बिरही गंगा बाढ़ के बारे में हमने सुना है. जिसका जिक्र 24 जुलाई 1970 के द न्यूयॉर्क टाइम्स के पृष्ठ 8 पर वर्णित है जिसमें लिखा गया है कि- बेलाकूची में लगभग 200 बद्रीनाथ तीर्थयात्री पुलिस की चेतावनी के बावजूद बसों से बाहर नहीं निकले और बसों में सो गये. यहाँ अचानक आई बाढ़ जो पाताल गंगा और अलकनन्दा के संगम के आसपास आई उसी ने बेलाकूची बाढ़ का स्वरूप ले लिया. पाताल गंगा को पूर्व में ही नहीं बल्कि आज भी राजस्व अभिलेखों में नौली ग्वाड़ के नाम से ही जाना जाता है. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने यहाँ पर जो सबसे पहले लोहे का गॉर्डर पुल बनाया उसके नीचे बहती हुई नदी को पाताल गंगा का नाम दिया. वर्तमान में यहाँ पर विशाल सीमेन्ट का पुल है जिसके एक तट पर गणेश हनुमान मंदिर है. नंदा देवी बायोस्फ़ियर की बफर जोन सीमा यहीं से शुरू होती है.

वरिष्ठ भू—वैज्ञानिक डॉ. दिनेश सती जो पिछले दो दशकों से पाताल गंगा स्थान पर पुल और राष्ट्रीय राजमार्ग—58 का भूगर्भीय अध्ययन कर रहे हैं, का कहना है कि पुराना लोहे के गाडर वाला पुल नीचे था और पाताल गंगा नाम सीमा सड़क संगठन द्वारा ही दिया गया है. इस जल धारा को भूगर्भीय टोपोशीट में गणेश गंगा कहा जाता है. लार्ड कर्जन पास के पश्चिमी सिरे से गणेश गंगा यानी पाताल गंगा और उत्तर पूर्व ढाल से बिरही गंगा निकलती है, ये दोनों अलकनंदा की सहायक नदिया हैं.

शिलाखर्क की एक अनाम मनमोहक झील. फोटो: सुशीला कांत

पाठकों को यहाँ तक हमने अलकनन्दा घाटी की इस क्षेत्र और पातालगंगा की जानकारी दी लेकिन अब हम आपको लिए चलते हैं पातालगंगा घाटी के अनाम, शानदार, रोमांच और तिलिस्म से भरे पाताल गंगा शिलाखर्क-लाॅर्ड कर्जन पास ट्रैक पर.

कैसे जाएं शिलाखर्क ट्रैक-

ऋषिकेश, देहरादून, हरिद्वार से पीपलकोटी राष्ट्रीय राजमार्ग से चलने पर लगभग 245-265 किमी0 की दूरी पर स्थित है. पीपलकोटी बायोटूरिज़्म पार्क से टंगणी 9 किमी. और पीपलकोटी से पाताल गंगा 11 किमी0 दूर स्थित है.

अभियान अध्ययन दल के सदस्य और दिलपुड़ी खर्क का एक दृश्य.

शिलाख़र्क ट्रैक पर अगर आप पातालगंगा से दाड़मी ढाई किमी. फिर दाड़मी से दिलपुड़ी ख़र्क 5 किमी. दिलपुड़ी से शिलाख़र्क तकरीबन 3 किमी. और शिलाख़र्क से ऊपर लाॅर्डकर्जन पास तकरीबन 4 किमी ​है. लेकिन इस मार्ग से शिलाख़र्क तक घोड़े-खच्चर पर सामान लादकर ले जाने लायक ट्रैकिंग रूट नहीं है. जबकि दूसरी ओर पीपलकोटी से टंगणी 9 किमी., टंगणी से मल्ला टंगणी 2 किमी., मल्ला टंगणी से डांडा 2.5 किमी. और फिर 3 किमी. के बाद दिलपुड़ी ख़र्क आता है. दिलपुड़ी ख़र्क में चारों ओर से खर्सु, मोरू, देवदार, रूइंस, बांज, बुरांस, काफल का शानदार जंगल है. बीच में तीव्र ढाल लिए पानी के छोटे-छोटे जलकुण्ड सहित शानदार बुग्याल है. पातालगंगा और टंगणी दोनों जगह से दिलपुड़ी ख़र्क एक दिन में पहुँचा जा सकता है.

स्थानीय होम स्टे संचालक सुशील कान्त सती बताते हैं कि लाॅर्ड कर्जन पास से नीचे और दिलपुड़ी ख़र्क से ऊपर कहीं भी टूटे-फूटे पहाड़ नहीं है तो इस बुग्याल में अचानक ये बड़ी शिलाएं शायद पाण्डवों द्वारा मंदिर निर्माण के लिए एकत्रित की गयी होंगी. पाण्डव अभी पत्थर इकट्ठा कर ही रहे थे कि सूर्योदय होने लगा और मंदिर निर्माण का कार्य अधूरा रह गया.

दिलपुड़ी ख़र्क से शिलाख़र्क तक का रास्ता सुंदर जंगलों और घास के मैदानों से गुजरता है. शानदार बुग्याल के मनमोहक हिमालयी फूल आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं और अचानक आप देखते हैं इस सघन बुग्याल में विशाल शिलाएं एक स्थान पर कहाँ से आई होंगी. एक किंवदन्ती के अनुसार कुरूक्षेत्र के युद्ध के बाद जब पाण्डव स्वर्गारोहिणी की तरफ बढ़ रहे थे तो वे इस स्थान मंदिर का निर्माण करना चाहते थे. स्थानीय होम स्टे संचालक सुशील कान्त सती बताते हैं कि लाॅर्ड कर्जन पास से नीचे और दिलपुड़ी ख़र्क से ऊपर कहीं भी टूटे-फूटे पहाड़ नहीं है तो इस बुग्याल में अचानक ये बड़ी शिलाएं शायद पाण्डवों द्वारा मंदिर निर्माण के लिए एकत्रित की गयी होंगी. पाण्डव अभी पत्थर इकट्ठा कर ही रहे थे कि सूर्योदय होने लगा और मंदिर निर्माण का कार्य अधूरा रह गया. ये शिलाएं इस बुग्याल में बिखरी हुई रह गयीं और शायद इन्हीं शिलाओं के इस तरह बिखरे होने से इस मंत्रमुग्ध कर देने वाले स्थान का नामकरण हुआ शिलाख़र्क.

शिला खर्क में प्राकृतिक आसन

ख़र्क, खोला और खौऊ गढ़वाली शब्द है जिसका अर्थ आंगन, अहाता या चौक होता है. गढ़वाली भाषा के विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत बेंजवाल बताते हैं ख़र्क का आशय- तप्पड़, समतल भूमि या पालतू पशुओं का बाड़ा है.

हिमालय में ऐसे स्थान जो गाँव से ऊपर पशु भेड़-बकरी चरागाह के रूप में अप्रैल-मई से सितम्बर तक बरसात मानसून में प्रयोग किये जाते हैं. इन स्थानों को गढ़वाली भाषा में ख़र्क कहते हैं. यहाँ बनायी गयी अस्थाई झोपड़ियां/बाड़ा या छप्पर को छानी और मरोड़ा कहा जाता है.ऐसे घास के मैदान को बुग्याल कहते हैं.

शिलाख़र्क के इस बुग्याल की समुद्र तल से ऊँचाई 3000 मीटर के आसपास होगी. इस स्थान के बाद ट्री लाईन समाप्त हो जाती है. शिलाख़र्क के दक्षिण पूर्व दिशा में बंडीधुर्रा ट्रैक स्थित है और पश्चिम दिशा में नीचे अलकनन्दा बहती है. उत्तर में औली, मोल्टा और ठेठ पूर्व में लॉर्ड कर्जन पास दृष्टिगोचर होता है. यहॉं से हिमालय की अनेकों पर्वत चोटियां दिखती हैं. शिलाख़र्क में एक विशाल शिला मध्य में दृष्टिगोचर है जो आसन सदृश दिखाई देती है. हाल ही में इस ट्रैक पर गए सुशीलकान्त सती, अमर सिंह, कु. शकुन्तला पंवार (18 वर्षीय, सबसे कम उम्र की ट्रैकर), श्रीमती उमा देवी, गोपाल लाल, सच्चिदानंद सती, मुर्खुल्या सिंह, रघुबीर सिंह, बलबीर सिंह, बुद्ध प्रकाश ने जानकारी बांटते हुए मुझे बताया कि इस क्षेत्र को अनाम ट्रैक के रूप में ही जाना जाता है. जबकि पाताल गंगा और गरूड़ गंगा के बीच 4 से अधिक ट्रैक हैं जिनको विकसित किया जा सकता है.

स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में वर्णित किया गया है कि-गरूड़ गंगा नदी का पत्थर घर में रखने से सांप और बिच्छु का भय नहीं होगा. सांप और बिच्छु के दंश पर इस पत्थर को घिसकर लेप लगाने और पिलाने से विष कम हो जाएगा.  

उत्तरवाहिनी गरूड़ गंगा नदी उत्तराखंड में उत्तर दिशा हिमालय की ओर बहने वाली एकमात्र नदी है. इसी के तट पर विष्णु के वाहन गरूड़ भगवान का मंदिर है. गरूड़ खाद्य श्रृंखला में सर्प या सांप को मार देता है. उत्तराखण्ड राजकीय शिक्षक संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष एवं शिक्षक पाखी गरूड़ गंगा निवासी कमल किशोर डिमरी गरूड़ गंगा के बारे में बताते हैं कि स्कन्द पुराण के केदारखण्ड में वर्णित किया गया है कि- इस नदी का पत्थर घर में रखने से सांप और बिच्छु का भय नहीं होगा. सांप और बिच्छु के दंश पर इस पत्थर को घिसकर लेप लगाने और पिलाने से विष कम हो जाएगा. यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहते हुए विष्णु को स्नान कराती है. बद्रीनाथ धाम गरूड़ गंगा से शुरू होता है जिस प्रकार शिवालयों के आगे शिव के नंदी विराजमान होते हैं उसी प्रकार बद्रीनाथ धाम से पहले गरूड़ भगवान विराजमान हैं.

शिलाख़र्क के समानान्तर गरूड़ गंगा नदी का उद्गम स्थल गरूड़ भट्याणा है जिस शिला की आकृति गरूड़ सदृश दिखती है.

गरुड़ गंगा में प्राचीन गरुड़ मंदिर. फोटो: कमल किशोर डिमरी

कमल किशोर डिमरी मांग करते हैं कि पीपलकोटी से गरूड़ गंगा, गरूड़ गंगा नदी के समानान्तर ट्रैकिंग रूट पाखी, बौंठा, शिलाखर्क के साथ बंडीधुर्रा लॉर्ड कर्जन पास का भी ट्रैकिंग रूट विकसित किया जाना चाहिए. पाखी, टंगणी, जलग्वाड़ और धरग्वाड़ के लोगों का संयुक्त रिंगाल वन भी शिलाखर्क के नीचे स्थित है. अतः इस क्षेत्र में ट्रैकिंग की प्रबल संभावना है जिसको प्रचारित-प्रसारित किया जाना जरूरी है.

यह मान्यता प्रचलित है कि गरूड़ गंगा के काले पत्थर घर में रखने से घर के भीतर सांप नहीं आते हैं. राजस्थान से बद्रीनाथ आने वाले अधिकतर श्रद्धालु तीर्थयात्री बद्रीनाथ जाने से पहले गरूड़ गंगा में अवश्य स्नान करते हैं और गरूड़ गंगा का पत्थर गरूड़ भगवान मंदिर में टीका लगाने के उपरांत प्रसाद के रूप में अपने घरों को ले जाते हैं.


गरूड़गंगा के बारे में बताते हुए क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी संजय भण्डारी लिखते हैं कि- गरूड़गंगा का महात्म्य- इस स्थान के बारे में केदारखंड में वर्णित श्लोक में यह कहा गया है कि-
गरूड़ गंगा शिला भागो, यत्र त्रिष्टित मत प्रिय!
न तत्र सप्रजः भये, विध्यते ना तथा विषात!!
विष ग्रस्तो पियो, मतर्यो जले घष्टम पिवनतुवे!!
अर्थात्- गरूड़ गंगा का जो पत्थर है, उसके बारे में यह मत प्रचलन या प्रिय है कि इसके पत्थर (शिला) को घर में रखने पर सांप का भय नहीं रहता है. साथ ही किसी व्यक्ति को सांप ने डस लिया तो गरूड़ गंगा के पत्थर को पानी के साथ घिसकर उसका लेप करने से सर्प विष कम किया जा सकता है.


शिलाख़र्क में रोमांचक क्या है?

शिलाखर्क बुग्याल के मध्य में 6 छोटे-छोटे ताल हैं और एक ताल तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे गदा पड़ा हो. कहा जाता है कि जब पाण्डव मंदिर निर्माण के लिए पत्थर इकट्ठे कर रहे थे. तब भीम ने जिस स्थान पर गदा नीचे रख दी थी वहाँ पर ताल बन गया. बुग्याल के बीच में आसन जैसी बड़ी शिला बरबस अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती है. शिलाखर्क में चैकोर कटवा पत्थर कहाँ से आए ये भी रोमांच और रहस्य है. श्रीमती शकुन्तला देवी बताती हैं कि – जागरों में शिलाखर्क में जब पाण्डव  मंदिर निर्माण के लिए भीम की सहायता से बड़ी-बड़ी शिला एकत्र कर रहे थे तो इस खर्क में अचानक जानवरों की हड्डियां मिली तो इस स्थान को अपवित्र मानते हुए मंदिर निर्माण का कार्य रोक दिया गया. यह भी एक किंवदन्ती प्रचलित है.

भीम गदा ताल

पीपलकोटी के वरिष्ठ होटल व्यवसायी अतुल शाह ने मांग की है कि इस साल कोरोना की वजह से होटल व्यवसायिायों का करोड़ों का नुकसान हुआ है. जिसकी भरपाई अगले दो-तीन वर्षों में भी नहीं हो सकती है. ऐसे में पर्यटन एवं संस्कृति विभाग को पीपलकोटी के आसपास के कम और ना जाने जाने वाले अनाम ट्रैकिंग रूट्स को विकसित करना चाहिए.

पीपलकोटी शिलाखर्क ट्रैकिंग रूट को 2 से 5 दिन का ट्रैकिंग रूट बनाया जा सकता है. जो पीपलकोटी से ग्वाड़, पीपलकोटी से पाखी गरूड़ गंगा, बौंठा से शिलाखर्क और टंगणी से दिलपुड़ी बुग्याल और पाताल गंगा से भी दिलपुड़ी खर्क और शिलाखर्क के ट्रैकिंग रूट बनाये जा सकते हैं.

जरूरी सामग्री –

टैंट, पानी की बोतल, भोजन सामग्री, स्लीपिंग बैग, रूकसैक और अच्छे ट्रैकिंग शूज़, कुशल गाइड.

पाताल गंगा होम स्टे

होम स्टे-

  • पाताल गंगा नौली ग्वाड़ – सुशील कांत सती, क्षमता – 10-12 ट्रैकर्स
  • गणाई- सुखबीर सिंह फर्स्‍वाण, क्षमता – 8 ट्रैकर्स
  • टंगणी तल्ली- आशीष भट्ट, क्षमता- 6-8 ट्रैकर्स
  • बायोटूरिज़्म पार्क पीपलकोटी, क्षमता- 20 ट्रैकर्स

होटल-

  • अजय पैलेस/ प्रशांत होटल- अतुल शाह पीपलकोटी, क्षमता- 70 ट्रैकर्स
  • श्री गरूड़ गंगा टूरिस्ट लॉज, पाखी गरूड़ गंगा- कमल किशोर डिमरी, क्षमता- 50 ट्रैकर्स

आगाज फैडरेशन पिछले 20 वर्षों से पीपलकोटी के आस—पास के ट्रैकिंग रूट को विकसित कर स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास कर रहा है. यह जानकारी बॉयोटूरिज्म प्रभाग के अनुज नबूंदरी और त्रिलोक सिंह नेगी दी.

इंटरनेट और मोबाइल- ट्रैक में टंगणी, पाखी और पाताल गंगा तक सभी मोबाइल नेटवर्क काम करते हैं, उसके बाद दिलपुड़ी खर्क और शिलाखर्क में सिर्फ जियो मोबाइल नेटवर्क ही काम करता है.

शिलाखर्क का एक विहंगम दृश्य

इस बार की यह जानकारी हम पाताल गंगा घाटी के ग्रामीण सुशील कान्त सती, सच्चिदानंद सती, कु. शकुन्तला पंवार (18 वर्षीय, सबसे कम उम्र की ट्रैकर), श्रीमती उमा देवी, अमर सिंह, गोपाल लाल, मुर्खुल्या सिंह, रघुबीर सिंह, बलबीर सिंह, बुद्ध प्रकाश, आदि ग्रामीणों जो कि शिलाखर्क अपने पालतु पशुओं को चौमास में छोड़ने गये थे, उन्हीं की प्रेरणा से लिखा गया है. आगाज फैडरेशन पिछले 20 वर्षों से पीपलकोटी के आस—पास के ट्रैकिंग रूट को विकसित कर स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास कर रहा है. यह जानकारी बॉयोटूरिज्म प्रभाग के अनुज नबूंदरी और त्रिलोक सिंह नेगी दी.

(लेखक पहाड़ के सरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपलकोटी में ‘आगाज’ संस्था से संबंद्ध हैं)

आगाज’ के बारे में जानने के लिए click करें https://www.biotourismuk.org/

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1 Comment

  • आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस लिख को स्थान देने के लिए ! हिमानातर की टीम को बहुत बहुत धन्यवाद !

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