पंचायत व्यवस्था में महिलाओं की आत्मनिर्भरता

  • सुनीता भट्ट पैन्यूली

पंचायती राज व्यवस्था में  महिलाओं की सहभागिता और उनका प्रतिनिधित्व महिला सशक्तिकरण,स्वायत्ता और स्थानीय स्वशासन की ओर एक ओजस्वी कदम माना गया because अभी हाल ही की यूनिसेफ की एक  रिपोर्ट ने उत्तर-प्रदेश  में पंचायती चुनावों के बीच, पंचायती व्यवस्था में महिलाओं की सहभागिता  और उनके दायित्व निर्वहन की समस्या को उजागर किया है.

यह कैसी व्यवस्था और दोगलापन है स्त्री सशक्तीकरण का? जहां  स्त्री केवल महिला ग्राम प्रधान का मुखौटा पहने  हुए है यानी पद का झुनझुना तो पकड़ा दिया जाता है स्त्री को किंतु अधिकार सारे पुरुष के हाथ में  हैं

पंचायती चुनाव

ग्राम पंचायत में अपने क्षेत्र के प्रतिनिधित्व व स्व विकास हेतु महिलाओं को जो 1/3 अधिकार मिला है उसके तहत महिलाएं पारिवारिक दबदबे, रसुकता या आरक्षण की but वजह से चुन तो ली जाती हैं  किंतु उसके सभी अधिकार व दायित्व पति, पुत्र, या घर के अन्दर सदस्यों द्वारा निभाई जाते हैं  और महिला प्रधानों की भूमिका मात्र हस्ताक्षर करने और अंगूठा लगाने तक सीमित रह गयी है ऐसा जहां तक मैं समझती हूं अकसर महिला प्रधानों के अनपढ़ और अपने अधिकारों की ओर अनभिज्ञ होना ही है. कहा यह भी जा रहा है कि पंचायती व्यवस्था में महिला प्रधान so को हाशिए पर रखकर  ग्रामीण विकास और उससे संबद्ध समस्याओं के निपटारे और निर्वाह  में उसके परिवार के पुरूषों की दख़ल अंदाजी और उन्हें समर्थन देने में अफसरशाही का भी हाथ है.

आरक्षण के कारण स्त्रियां कागज़ों में तो सशक्त हो गयी हैं किंतु because आज भी पुरुष ही सत्ता पर नियंत्रण रखे हुए है शायद कारण यह है कि आज भी स्त्रियों में अज्ञानता, अनुभवहीनता और पुरूषों पर पूर्णतया निर्भरता स्त्रियों की पंचायत व्यवस्था में भागीदारी को अर्थहीन बना रही है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार नब्बे प्रतिशत महिला प्रधानों को अपने संवैधानिक अधिकार ही नहीं पता हैं

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यह कैसी व्यवस्था और दोगलापन है स्त्री सशक्तीकरण का? जहां  स्त्री केवल महिला ग्राम प्रधान का मुखौटा पहने  हुए है यानी पद का झुनझुना तो पकड़ा दिया जाता है स्त्री को किंतु अधिकार सारे पुरुष के हाथ में  हैं, यह तो एक विकसित  कहे जाने वाले देश में किसी ग्रामीण क्षेत्र और उसके विकास तथा स्त्रीयों को सशक्त बनाने हेतु निर्धारित की गयी पंचायत व्यवस्था के अंतर्गत स्त्रीयों की उपेक्षित और कमज़ोर  स्थिती  का उदाहरण है.

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हमारे अधिकांश भारतीय परिवारों में महिलाओं की  स्थिती का आंकलन करें तो यही सब तो होता आ रहा है.स्त्रियों का दायित्व घर और परिवार की ज़िम्मेदारियां  संभालना सही है because किंतु उनकी सोच को सिर्फ़ घर की चारदीवारी के एक घेरे में ही कैद कर देना न्यायसंगत नहीं है आज जब स्त्रियां उच्च शिक्षित हैं तो ज़ाहिर तौर पर सोच का दायरा भी बड़ा होगा उनके निर्णय,उनकी कार्यक्षमता,कार्यप्रणाली उनकी व्यापक सोच को अगर पुरुष अपनी सोच के बराबर वज़न दें तो निश्चित ही कोई घर सफलता की परिणति तक पहुंचेगा.

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में becauseपंचायती राज व्यवस्था को न केवल नई दिशा प्रदान की बल्कि यह महिलाओं की पंचायतों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान कर उनको सहभागिता का अवसर प्रदान किया है. संसद ने पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए हरी झंडी दी है.

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किंतु यहां बात हो रही है पंचायत राज में महिला प्रधानों की ज़मीनी स्तर पर निर्जीव छवि और शून्य प्रतिनिधित्व की, आरक्षण के कारण स्त्रियां कागज़ों में तो सशक्त हो गयी हैं किंतु because आज भी पुरुष ही सत्ता पर नियंत्रण रखे हुए है शायद कारण यह है कि आज भी स्त्रियों में अज्ञानता, अनुभवहीनता और पुरूषों पर पूर्णतया निर्भरता स्त्रियों की पंचायत व्यवस्था में भागीदारी को अर्थहीन बना रही है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार नब्बे प्रतिशत महिला प्रधानों को अपने संवैधानिक अधिकार ही नहीं पता हैं

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सभी सांकेतिक फोटो गूगल से साभार

73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में becauseपंचायती राज व्यवस्था को न केवल नई दिशा प्रदान की बल्कि यह महिलाओं की पंचायतों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान कर उनको सहभागिता का अवसर प्रदान किया है. संसद ने पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए हरी झंडी दी है.

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महात्मागांधी ने स्वतंत्र भारत में becauseग्रामीण क्षेत्रों को सशक्त करने के माध्यम से देश के विकास का जो सपना देखा था पंचायती राज उसी की अवधारणा है जिसमें शासन के कार्य की प्रथम ईकाई पंचायतें ही होंगी और इन पंचायत व्यवस्था में महिलाओं की सहभागिता उनका पूर्णतया आत्मनिर्भर,स्वायत्त एवं स्वावलंबी होना था.

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अतः यह आवश्यक है कि  ग्रामीण महिलाओं को शिक्षित कर उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाये और ग्राम-प्रधान की भूमिका निभाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जाये, उन्हे उनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में जानकारी मुहैया करायी जाये, उन्हें राजनीतिक जानकारी से अवगत कराने हेतु समाचार पत्रों और अन्य because पत्र-पत्रिकाओं की उपयोगिता समझायी जाये जिससे कि समय-समय पर सरकार द्वारा आयोजित नये कार्यक्रमों की उन्हें जानकारी मिलती रहे ताकि वह आत्मविश्वास के साथ ग्राम प्रधान के रुप में अपनी स्वायत्त, सशक्त व सक्षम भूमिका निभा सकें यदि ऐसा हो सके, यदि ज़मीनी तौर पर ऐसा हो पाया तो यक़ीनन  महिलाओं की पंचायत व्यवस्था में सहभागिता स्थानीय स्वशासन और देश के उन्नयन में रीढ की हड्डी साबित हो सकती है.

 (लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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