- शशि मोहन रवांल्टा
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्रीराम शर्मा के गीत ‘करो राष्ट्र निर्माण बनाओ मिट्टी से सोना’ जी हां! इस गीत की पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है उत्तरकाशी जिले
के दूरस्थ गांव सौड़-सांकरी के चैन सिंह रावत ने. उन्होंने पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के काम को पर्यटन व्यवसाय से जोड़ा है. अब उनके गांव के हर नौजवान के पास ‘होम स्टे’ के रूप में स्वरोजगार है.बसंत ऋतु
उत्तरकाशी जिले के
सीमान्त विकासखण्ड मोरी के दूरस्थ गांव सांकरी में वर्ष के 10 माह तक पर्यटकों की आमद देखने को मिलती है. जनवरी और फरवरी माह में यह सम्पूर्ण घाटी बर्फ से ढक जाती है. यहां पर हरे-भरे जंगल, गोविंद पशु विहार नेशनल पार्क और सैंचुरी (Govind Pashu Vihar National Park & Sanctuary), सेब के बागान, पास में बह रही सुपीन नदी, हरकीदून बुग्याल, केदारकांठा ट्रैक, जुड़ी ताल की सैर, इसके अलावा इस घाटी में सैकड़ों रमणिक स्थल हैं जिनकी यात्रा सौड़-सांकरी गांव से आरम्भ होती है. यहीं से चैन सिंह रावत की कहानी भी शुरू होती है.बसंत ऋतु
इसी गांव में जन्में चैन सिंह रावत ने यहां की मिट्टी और पत्थर में जीविका ढूंढी. आज स्थानीय युवाओं को स्वावलम्बी बना दिया. पिछले 10 वर्षों से चैन सिंह रावत के
नेतृत्व में संपूर्ण गांव में होमस्टे, ट्रैकिंग, पर्वतारोहण का कारोबार फल-फूल रहा है. यहां पंहुचने वाला पर्यटक चिन्ता मुक्त हो जाता है. होमस्टे पर उनकी मेहमाननवाजी ही उनके सारे दुखों को हर लेती है. आगंतुकों के लिए बहुत ही अच्छी और सुलभ व्यवस्था ग्रामीण लोग करते हैं.बसंत ऋतु
उत्तरकाशी की टौंस-यमुना घाटी में बसे गांव प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात हैं. जिले का यह पहला गांव है जहां हर परिवार होमस्टे के कारोबार से जुड़ा हुआ है. यहां के वुडस्टोन के मकान लोगों के मन में ठहरने की जिज्ञासा पैदा करते हैं.
यही वजह है कि चैन सिंह रावत ने यहां पर्यटन व्यवसाय के क्षेत्र में अलग-अलग तरह के उपादान आरम्भ किये हुए हैं. वह पर्यटकों के साथ गाइड का काम करते हैं तो वहीं किचन का काम भी संभालते हैं. वह कुशल पर्वतारोही हैं, तो वहीं आपदा प्रबंधन के मुख्य प्रशिक्षक भी हैं. नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनरिंग (Nehru Institute Of Mountaineering) उत्तरकाशी से एडवेंचर्स का कोर्स प्राप्त करके चैन सिंह रावत पिछले 10 वर्षों से गांव में लोगों को होमस्टे, साहसिक पर्यटन जैसे कार्यों के लिए उत्साहित कर रहे हैं. घर-घर जाकर लोगों को होमस्टे की बारकियां बता रहे हैं.बसंत ऋतु
सुपीन नदी के तट पर बसे सौड़-सांकरी गांव के लोग बताते हैं कि चैन सिंह रावत और भगत सिंह रावत ने होमस्टे के कार्य से लोगों को जोड़ा है. चैन सिंह ही हैं जो
आगंतुकों को स्थानीय पकवानों की एक-एक रेसिपी के बारे में बताते हैं. फलस्वरूप इसके मंडुवे की रोटी, जख्या का तड़का, और नागदोण जैसी वन-औषधि होमस्टे पर मेहमानों को परोसी जाती हैं. बता दें कि चैन सिंह ने खुद के घर से होमस्टे का कार्य आरंभ किया और ट्रैकिंग, एडवेंचर आदि कामों को होमस्टे का हिस्सा बनाया.बसंत ऋतु
इस कार्य को कैसे विकसित किया, क्या कठिनाई आई, कहां से ऐसा विचार आया. बहुप्रतिभा के धनी चैन सिंह रावत ने इन विषयों पर वेबाकी से अपनी राय बताई. कहा
कि वैसे तो वह साल 2000 से इस कार्य के साथ जुड़े हैं. पर 2010 से उन्होंने अपने गांव में होमस्टे, पर्वतारोहण आदि पर्यटन का कारोबार विधिवत आरम्भ किया है. एनआईएम से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्तकर उन्होंने साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में कदम पसारे हैं. पहले पहल वे हरकीदून व दयारा बुग्याल आदि स्थानों पर आने वाले पर्यटकों के साथ गाईड का काम करते रहे, यह क्रम उनका जारी रहा और साल 2010 में हरकीदून कम्पनी की स्थापना करके खुद का कारोबार आरम्भ कर दिया.बसंत ऋतु
उन्होंने बताया कि तब गांव में कोई भी परिवार होमस्टे का काम नहीं करता था. कभी सांकरी में एक मात्र गेस्टहाउस था, जो गढवाल मण्डल विकास निगम का था जो आज भी है.
जब सौड़-सांकरी में पर्यटकों की आमाद बढती थी, इन पर्यटको को रहने-खाने की समस्याओं का सामना करना पड़ता था. सो यहीं से होमस्टे का विचार सामने आया कि क्यों न गांव के हर परिवार को इस कारोबार से जोड़ा जाए. इस कार्य के लिए उन्हें कुछ लोगों ने आर्थिक मदद भी की. जिस कारण उनके इस व्यवसाय को देश-दुनिया में एक पहचान मिली है. मौजूदा समय में सौड़-सांकरी गांव के 90 परिवार होमस्टे का कारोबार करते हैं, और लोगों का यह कारोबार आजीविका का जरिया बन चुका है.बसंत ऋतु
चैन सिंह रावत की यह कहानी
बताती है कि उत्तराखंड राज्य में पर्यटन व्यवसाय स्वाबलंबन और स्वरोजगार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है. जैसे कि चैन सिंह रावत ने सौड़-सांकरी गांव में करके दिखाया है. बस जरूरत है तो सरकार के सहयोग की.