स्कूलों को रचनात्मकता से लबरेज होना चाहिए: एस.पी.सेमवाल

Seminar on Education
  • मनोहर चमोली ‘मनु’

साहित्यकार, शिक्षाविद् एस.पी. सेमवाल ने कहा कि अभी हमारे विद्यालयों को रचनात्मकता का केन्द्र होने में समय लग रहा है. हालांकि सृजनशील शिक्षक मौलिकता, रचनात्मकता के लिए अपने रास्ते खोज लेते हैं. उन्हें बाधाओं में भी हल मिल जाते हैं. टिहरी के मुख्य शिक्षा अधिकारी एस.पी.सेमवाल ने कहा कि समाज में जो भी नया और अनोखा दिखाई देता है वह रचनात्मक विचार से ही उत्पन्न होता है.

एस.पी.सेमवाल दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र तथा अंकुर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे. ‘शिक्षा और उसकी चिंताएँ’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि रचनात्मकता ही है जो समाज को जीवंत बनाए रखती है. विद्यालयों में सृजनात्मकता की आवश्यकता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सूचना, तकनीक और कम्प्यूटरीकृत युग में भी मौलिकता, हाथ के कौशल और बौद्धिक सम्पदा का कोई विकल्प नहीं हो सकता. भावनाओं की कद्र करने वाले शिक्षकों की आवश्यकता है. लेकिन तथ्य, सत्य और कथ्य के साथ चलने वाला और चलाने वाला शिक्षक ही हो सकता है. मनुष्य के मस्तिष्क के विकास की यात्रा करोड़ों साल पुरानी है. अंकुर की टीम की सोच का विस्तार पूरे राज्य में हो. जो छात्र किताबी पढ़ाई से बाहर सहयोग करते हैं उनका नज़रिया आम नहीं रह जाता. वे छात्र समाज को संवेदनशील बनाने का काम करते हैं. बच्चों के बीच में काम करने वाले शिक्षक चाहते हैं कि बेहतर नागरिक बढ़ें. मनुष्यता बची रहे. बढ़ती रहे. इस प्रकृति को सुन्दर बनाने के लिए जो काम करते हैं उनमें शिक्षकों की भूमिका सबसे बड़ी है. वह शिक्षक खास हैं जो अपने बच्चों को सवाल करने की आदत डालते हैं. बच्चे सवाल उठा सकें उसके लिए ज़रूरी है कि बच्चों के लिए अंकुर जैसी पत्रिकाएं निकलें.

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आयोजन में बतौर विशिष्ट वक्ता व्यंग्यकार, कवि राकेश जुगरान ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी बेहतरीन योग्यता के साथ शिक्षक बन रहे हैं. लेकिन वह शिक्षक ही बनना चाहते हैं और वह जो इम्तिहान देते-देते शिक्षक भी बन गए हैं, दोनों में काफी अन्तर दिखाई देता है. यदि शिक्षा के विमर्श सही दिशा में मिलते हैं तो अकस्मात् शिक्षक बन गए युवा कर्मशील शिक्षक में तब्दील हो जाते हैं. शिक्षाविद् और जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून के पूर्व प्राचार्य राकेश जुगरान ने कहा कि सार्वजनिक विद्यालयों में भारत के नौनिहाल बसते हैं. पढ़ते हैं आगे बढ़ते हैं. आज भी हाशिए के समाज का भविष्य सार्वजनिक विद्यालयों में ही पुष्पित-पल्लवित हो रहा है.

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम सभी सार्वजनिक विद्यालयों के सम्पर्क में रहें. उन्हें बचाए-बनाए रखने के लिए सहयोग करें. उन्होंने कहा कि सार्वजनिक शिक्षा में जो समस्याएं हैं उनका समाधान भी वहीं से आएगा. आज भी कई सकारात्मक शिक्षक सार्वजनिक शिक्षा की भूमि को बचाए हुए हैं. शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए साथी हमेशा शिक्षक ही रहते हैं. समाज के लिए ही व्यक्ति पैदा होता है. वह समाज के साथ चलना और उसके सामाजिक विकास में योगदान देता है. राकेश जुगरान ने कहा कि रचनात्मकता कोई अलग चीज़ नहीं है.

शिक्षा में बदलाव समय के साथ आता है. शिक्षा ही इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना करने का साहत देती है. हम तार्किक तौर पर चीजों को समझने का अवसर भी शिक्षा देती है. समाज में चिन्तन करने वाले शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक ही समाज का समग्र विकास कर सकते हैं. समाज समग्रता से सृजनशील रहे. सकारात्मक रहे. इसके लिए बाधाएं हैं. रचनात्मकता बढ़े. इसके लिए सभी को प्रयास करने होंगे. सभी छात्र, अभिभावक, शिक्षक की समझ ही रचनाशील समाज बना सकते हैं. अभी रटन्त प्रणाली पूरी तरह से खत्म नहीं हो पा रही है. रचनात्मकता का मूल्यांकन करने वाली समझ भी ज़रूरी है. अंकुर के साथी और बढ़े तभी रचनाशील समाज बढ़ेगा.

इस अवसर पर अंकुर के संस्थापक सदस्य एवं शिक्षक, चित्रकार मोहन चौहान ने अंकुर की विकास यात्रा को विस्तार से प्रस्तुत किया. विद्यार्थी आंदोलन से ही शिक्षा की खूबियों और खामियों की समझ बनी. यह भी महसूस होने लगा कि शिक्षा कैसी होनी चाहिए? यह सवाल परेशान करता रहा. निजी स्कूलों में पढ़ाने का मौका मिला. वहां के अनुभव काम आए. जब सार्वजनिक शिक्षा में आए तो यह महसूस हुआ कि हर बच्चे को अच्छी और सम्पूर्ण शिक्षा हासिल हो. हम साथियों ने विभिन्न विद्यालयों में रहते हुए साझा गतिविधियों का करना चाहा. जिसमें मौलिकता हो. बच्चों को रचनात्मकता के अवसर मिले. बहुत सारी गतिविधियों के अवसर विद्यालय में ही मिलते रहे. पिछले बीस-पच्चीस सालों में जो विद्यार्थी अंकुर के सम्पर्क में आए, वह भी आगे चलकर समाज में सकारात्मक योगदान देते हैं. मोहन चौहान ने कहा कि यह यात्रा सामूहिकता से और सहयोग से हुई है. कई साथियों का कारवां बढ़ता रहा. हम आगे बढ़ते रहे.

अंकुर के सदस्य मनोहर ने कहा कि यदि देहरादून जनपद की ही बात करें सात लाख बच्चे हैं जिनकों अंकों की प्रतिस्पर्धा से इतर मौलिकता, रचनात्मकता और हाथ के कौशलों की ओर ले जाए जाने की ज़रूरत है. पूरे उत्तराखण्ड की बात करें तो तीस लाख से अधिक बच्चे हैं जिन्हें रचनाशील गतिविधियों से जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज सार्वजनिक संस्थाओं के साथ खड़े होने की ज़रूरत है. सार्वजनिक संस्थाओं को सहयोग करने की जरूरत है. उन्हें मजबूत करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि यह बानगी भर है. सैकड़ों शिक्षक हैं जो अपने-अपने स्तर पर बेहतरीन काम कर रहे हैं. साझा प्रयासों को आगे लाने की ज़रूरत है.

अंकुर के सदस्य एवं शिक्षक सतीश जोशी ने कहा कि अंकुर का प्रकाशन का अनुभव शानदार रहा. बच्चों के साथ कहानी-कविता लेखन पर काम करने के बाद अंकुर पत्रिका का प्रकाशन निजी सहयोग से हो पाया है. यह बड़ी बात है. उन्होंने कहा कि कार्यशाला से लेकर, बच्चों की रचनाओं का संकलन, संपादन और प्रकाशन की यात्रा लम्बी है. बहुत कुछ सीखने को मिला. यह सामूहिकता की ही शक्ति है कि हमें प्रकाशन के लिए सहयोग जनता से मिल जाता है.

इस अवसर पर दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोध समन्वयक चन्द्रशेखर तिवारी ने कहा कि समाज की ओर से समाज के लिए यह शिक्षा विमर्श बहुत शानदार रहा. यह सोच, दृष्टि और विचार आगे बढ़े. यह हर क्षेत्र में हो. बच्चे ही देश के संवाहक हैं. उनकी सकारात्मकता के लिए रचनाशील शिक्षक आगे आएं. उन्होंने सभी का आभार जताते हुए भविष्य में भी अंकुर टीम के साथ साझा आयोजन करने हेतु आश्वस्त किया.

इस अवसर पर संचालन करते हुए शिक्षक प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’ ने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि मनुष्यता बनी और बची रहे इसके लिए प्रयास किए जाने की ज़रूरत है. उन्होंने आयोजन के वक्ताओं का परिचय दिया. उन्होंने अंकुर की स्थापना से जुड़े साथियों का स्वागत किया. संचालन कर रहे शिक्षक एवं कवि प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’ ने कहा कि सकारात्मक सोच का दायरा बढ़ना चाहिए. यह तेजी से बढ़ रहा है लेकिन अभी रचनाशील समाज की ओर हम बढ़ रहे हैं.

उप जिलाधिकारी ऋषिकेश शैलेन्द्र नेगी ने कहा कि सकारात्मक सोच के लोग आगे आएं. शिक्षा की समझ धीरे-धीरे आती है. साथियों के अनुभवों से विस्तार मिलता है. हम सबके के लिए अभाव और संघर्ष बहुत काम आता है. मार्गदर्शन से बदलाव आता है. हमें बच्चों के साथ काम करने की ज़रूरत है.

इस अवसर पर अंकुर पत्रिका का लोकार्पण भी हुआ. दून लाइब्ररी एवं रिसर्च केन्द्र में जनकवि अतुल शर्मा, डॉ.अनीता बहुगुणा, उमा भट्ट, सुरेन्द्र आर्यन, गिरीश चन्द्र जोशी, बलवीर रावत, उमा भारद्वाज, अविरल भारद्वाज, मदन मोहन सेमवाल, सौनिया नौटियाल, विशाल भारद्वाज, निशा रावत, श्रुति डिमरी, अशर्फी ठाकुर, जयदेव भट्टाचार्य, सुरेश रावत, सुरेन्द्र सिंह सजवाण, जितेश सिंह रावत, विजय लक्ष्मी सेमल्टी, प्रदीप डबराल, सुरेन्द्र प्रसाद सेमल्टी, कमलेश रतूड़ी, नीलम डिमरी, हरिओम पाली, अम्बरीश, कमलेश खंतवाल, सतीश धौलाखण्डी, नन्दकिशोर हटवाल, मुकेश नौटियाल, सत्यानन्द बडोनी, सुनीता मोहन, कीर्ति भण्डारी, अनीता बहुगुणा, सीमा रावत, विक्रम सिंह रावत, शम्भू रावत, आर.पी. विशाल, संजीत समवेत, नरेश रावत, कुशाल रावत, अजय रावत, श्रुति जोशी सहित कई छात्र, शिक्षक, अभिभावक, साहित्यकार उपस्थित रहे.

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