अंतरावलोकन

संस्मरण : स्कूल की यादें

  • सुनीता अग्रवाल

आप चाहे उम्र के जिस पड़ाव पर खड़े हो इनसे आपका संवाद किसी न किसी रूप में चलता रहता है. आज अपने मन की भीतरी तहों तक जाकर अपने उन  संवादों को शब्द देने की कोशिश कर रही हूं जिनकी यादें आवाज़ें बनकर बड़ी ही स्पष्टता से साधिकार मेरे मनमस्तिष्क में चहल कदमी करती रही है. ईमानदारी किसी भी बात को कहने की पहली शर्त होती है अब उसका जो भी अर्थ निकले वो पढ़ने वाले की संवेदना पर निर्भर करता है. स्कूल के उस सुरम्य प्रांगण में प्रवेश करते हुए बड़ी ही सहजता से अपना बोला हुआ एक झूठ याद आ रहा है जिसकी टीस मुझे काफी वक़्त तक सालती रही थी आज उसी अहसास को आप सबसे सांझा कर रही हूँ.

किस्सा है क्लास 9वीं के लाइब्रेरी रूम का…. जहां हमको छुट्टी के बाद फिजिकल एजुकेशन की एक्स्ट्रा क्लास के लिए रुकना था. उस वक़्त फिजिकल एजुकेशन  की एक्स्ट्रा क्लास को लेकर मेरे साथ साथ कई और लड़कियों की भी रुचि नही थी ….छात्राओं की यथोचित संख्या न होने के कारण रमा मैम ने हम सभी लड़कियों को लाइब्रेरी रूम में बुलाया था. फिजिकल एजुकेशन की टीचर

मुझे कुछ और सूझा नही और अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया “मेरी माँ को कैंसर हुआ है मैम और बचने की कोई उम्मीद भी नही”….कैंसर उन दिनों इतना सुनने में नही आता था पर पड़ोस में रहने वाले एक चाचा जी की मृत्यु कैंसर की वजह से हुई थी यह पता था…पर यह नामुराद शब्द उस वक़्त मेरी जिह्वा पर कैसे आ गया था आज तक समझ नही पाई हूँ…

रमा कौल हमारे स्कूल की सबसे तेजतर्रार, लगभग शुष्क स्वभाव वाली टीचर मानी जाती थी. सभी लड़कियां इनसे बात करने में घबराती थी. खैर…उन लड़कियों की कतार में मैं भी अपने झूठ के साथ जाकर खड़ी हो गयी थी..पर दिमाग में विचारों की उथल पुथल मची थी…”क्या कहूंगी…कुछ बोल भी पाऊंगी या नही” बस इसी पशोपेश में मेरे पसीने छूट रहे थे. और जिस तरह से वो डांट डपट कर सवाल जवाब करके प्रायः सभी लड़कियों को निरुत्तर कर रही थी उसे देखकर मेरे पैर काँपने लग लगे थे तभी मेरे आगे वाली लड़की ने कहा,” मैडम,मेरी मम्मी की तबियत ठीक नही रहती है इसलिए मैं एक्स्ट्रा क्लास के लिए रुक नही पाऊंगी”……यह सुनते ही रमा मैम ने बड़े ही रूखे स्वर में कहा, “जानती हूँ तुम जैसी लड़कियों को और तुम्हारे झूठ को.. शर्म नही आती माँ की तबियत का बहाना बनाते हुए…” इतना कहते हुए उन्होंने एक्स्ट्रा क्लास के लिए जबरन ही उसका नाम लिख दिया था और फिर मेरी तरफ घूरकर देखते हुए बोली, “क्या तुम्हारी माँ भी बीमार है?”  उनके इस तरह से देखने पर मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी थी और उसी पल मेरा रोना शुरू हो गया था. चूंकि मैं पढ़ने में अच्छी थी तभी रमा मैम के बगल में बैठी हुई सुजाता मैम जो मेरी क्लास टीचर भी थी बोल उठी, “अरे सुनीता क्या हुआ… रो क्यो रही हो?”  मुझे कुछ और सूझा नही और अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया “मेरी माँ को कैंसर हुआ है मैम और बचने की कोई उम्मीद भी नही”….कैंसर उन दिनों इतना सुनने में नही आता था पर पड़ोस में रहने वाले एक चाचा जी की मृत्यु कैंसर की वजह से हुई थी यह पता था…पर यह नामुराद शब्द उस वक़्त मेरी जिह्वा पर कैसे आ गया था आज तक समझ नही पाई हूँ…..

इतना सुनते ही रमा मैम का सख्त लहज़ा अचानक ही नम्र हो गया था, “रो मत बेटा वो ठीक हो जाएगी ..ईश्वर उन्हें अतिशीघ्र ही स्वस्थ करेंगे”….यह कहते हुए उन्होंने मुझे छुट्टी के बाद घर जाने की अनुमति दे दी थी. हालांकि इस झूठ को बोलने की कसक तो थी… पर अपरिपक्व उम्र और सोच के चलते अपनी झूठ से मिली इस कामयाबी पर मन ही मन खुश भी हो रही थी…और इस खुशी में अपनी सहेलियों  के साथ कैंटीन में समोसे की पार्टी कर ही रही थी तभी एक लड़की मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और मुझे एकटक देखते हुए बोली,” तुमने झूठ बोला था न?”मेरा चेहरा फक्क से सफेद पड़ गया था मुझे लगा अब तो यह लड़की मेरा झूठ मैम को बता देगी …जब मैंने धृष्टतापूर्वक मना किया तो वह लड़की बोली,” तुम्हारे चेहरे पर आये हुए डर को मैं देख सकती हूँ मैं इस स्कूल में नई आयी हूँ और ज्यादा किसी को जानती भी नही…पर हां इतना ज़रूर जानती हूँ कि बिना माँ के बचपन कैसा होता है मेरी माँ को कैंसर हुआ था भगवान न करें कभी तुम्हारी या किसी और की माँ के साथ ऐसा हो”….यह कहते हुए उसकी आंखें छलछला उठी थी और चेहरे पर ऐसी पीड़ा उभर आयी थी जिसने मेरी रूह को हिला दिया था.

“झूठ का रास्ता सरल एवं उससे मिलने वाली खुशी मात्र क्षणिक होती है पर सच बोल देने से हमारे अंतर्मन को जो संतुष्टि मिलती है वह अतुलनीय होती है जिंदगी की इमारत हमेशा घर से मिले हुए संस्कारो,परवरिश और माहौल की नींव पर टिकी होती है अगर हमारी जड़ें मजबूत है तो ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते है …और मुझे पूरा विश्वास है तुम पर..”

उसका बोला हुआ एक एक शब्द समझती हुई मैं बस जड़वत सी उसे देखे जा रही थी …चुपचाप स्थिर सी बिना कुछ बोले मैं फूट फुट कर रोने लगी थी…भूल गयी थी कहाँ खड़ी हूँ बस यह याद रहा कि क्यों रो रही हूँ उस पल उस लड़की ने मुझे मेरी माँ का महत्व बता दिया था जिन्हें कुछ समय पहले मैं कैंसर के सुपुर्द कर चुकी थी.

पलक झपकते ही मेरी आत्मा मुझे दुत्कारने लगी … सिर एक अजीब सी जकड़न में कसने लगा था और मैं पस्त कदमों से घर की तरफ बढ़ने लगी थी…माँ के सामनें मूक विमूढ़ सी आकर खड़ी हो गयी थी आंखों से गंगा जमुना बह रही थी. माँ की गहरी और खामोश आंखों से मेरा यह झूठ छिप न सका और मैं रोते रोते उनके गले से लग गयी. माँ ने मुझे काफी देर तक अपने आँचल में भीचे रखा…माँ जो हमारे जीवन की प्रथम गुरु होती है उन्होंने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,”झूठ का रास्ता सरल एवं उससे मिलने वाली खुशी मात्र क्षणिक होती है पर सच बोल देने से हमारे अंतर्मन को जो संतुष्टि मिलती है वह अतुलनीय होती है जिंदगी की इमारत हमेशा घर से मिले हुए संस्कारो,परवरिश और माहौल की नींव पर टिकी होती है अगर हमारी जड़ें मजबूत है तो ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते है …और मुझे पूरा विश्वास है तुम पर..” यह कहते हुए उन्होंने अपना विश्वास भरा हाथ मेरे सिर पर रख दिया था और मैं उनके इस विश्वास को अपने भीतर भरकर अगले ही दिन रमा मैम के सामने खड़ी थी.

रमा मैम ने मुझे देखते ही प्रश्न भरी निगाहों से पूछा,”क्या हुआ,घर पर सब ठीक है न?” इतना सुनते ही मैं आत्मग्लानि से भर उठी और किसी तरह अपने आवेग पर काबू पाते हुए मैंने उन्हें सारी सच्चाई अक्षरत: बता दी थी.

अचानक ही मेरी सोच के विपरीत रमा मैम गंभीर स्वर में बोली,” तुम आजकल के बच्चे इतना बड़ा झूठ कैसे बोल लेते हो…अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है..आगे तो तुम्हे रिश्तों के हर रूप में बंधते हुए जिंदगी के कई इम्तिहानों को पास करना है ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जो रिश्तों के मूल्यों को ताक पर रख दे…

पूरी एकाग्रता के साथ मेरी बात सुनने के बाद उनके चेहरे पर गुस्से की रेखा उभरी और फिर विलीन हो गयी थी..अचानक ही मेरी सोच के विपरीत रमा मैम गंभीर स्वर में बोली,” तुम आजकल के बच्चे इतना बड़ा झूठ कैसे बोल लेते हो…अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है..आगे तो तुम्हे रिश्तों के हर रूप में बंधते हुए जिंदगी के कई इम्तिहानों को पास करना है ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जो रिश्तों के मूल्यों को ताक पर रख दे…..समय और परिवेश के साथ साथ तुम्हारी दृष्टि और विचारों के आकाश का निरन्तर विस्तार होता रहेगा…शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान हासिल करके किसी ओहदे को पाना ही नही अपितु  मानसिक एवम भावनात्मक स्तर पर भी सही गलत का समुचित आंकलन करते हुए दृढ़ता पूर्वक हर फैसला कर पाने में स्वयं को सक्षम बनाना भी है. साथ ही शिक्षक का दायित्व भी अपने विद्यार्थी को सुनहरे भविष्य के प्रति लक्ष्यबद्ध रखते हुए बुनियादी तौर पर पहले एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करना है. तुम्हारा मेरे पास आकर अपनी गलती मान लेना ही तुम्हारे अच्छे संस्कारों को दर्शाता है जो इतना आसान नही था….उम्मीद करती हूँ आगे तुम कभी भी झूठ का सहारा नही लोगी और मैं इस पूरे वाकये को उसकी सकारात्मकता के साथ देख रही हूँ…पर यह सबक तुम्हे उम्र भर याद रहें इसलिए सजा के तौर पर तुम्हे पूरा एक महीना एक्स्ट्रा क्लास अटेंड करनी होगी”..

स्कूल की यादें: सभी सांकेतिक फोटो गूगल से साभार.

…देखते ही देखते स्कूल के कैनवास पर उन यादों की कलाकृति को उकेरते हुए शब्दों के न जाने कितने भूले बिसरे रंग बिखर गए….और इन यादों के साथ मैं अब भी वही खड़ी हूँ उसी स्टॉफ रूम में….बस वक़्त और अनुभवों की आंच में तपकर थोड़ी नई-सी हो गयी हूँ… 

यह कहकर उठते हुए उन्होंने हल्के हाथों से मेरा गाल थपथपा दिया था और मैंने सम्पूर्ण आदर भाव के साथ नतमस्तक होकर दी गयी इस सजा को स्वीकार कर लिया था.

मित्रों …देखते ही देखते स्कूल के कैनवास पर उन यादों की कलाकृति को उकेरते हुए शब्दों के न जाने कितने भूले बिसरे रंग बिखर गए….और इन यादों के साथ मैं अब भी वही खड़ी हूँ उसी स्टॉफ रूम में….बस वक़्त और अनुभवों की आंच में तपकर थोड़ी नई सी हो गयी हूँ….लिखने की यह प्रक्रिया इतनी आसान नही थी पर हाँ हम सब की ज़िन्दगी इन्ही खट्टे मीठे अनुभवों और स्मृतियों की समग्रता का ही तो घनीभूत रूप है ….है न…?

 (लेखिका हिंदी प्रतिलिपि द्वारा आयोजित हौसलों की उड़ान कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्‍त हैं. 16वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला AM राइटर्स द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, 100.7 FM रेनबो द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में वंडर वुमन, साहित्य गौरव सम्मान, साहित्य श्री सम्मान, कमला मेमोरियल अवार्ड, पंडित रविन्द्र नाथ मिश्र सम्मान, माँ सावित्री बाई फुले अवार्ड से सम्‍मानित हैं. विभिन्न मंचों से काव्य पाठ एवं कविताओं व कहानियों का कई पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशन.)

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