सतपुली त्रासदी की पुण्यतिथि (14 सितम्बर, 1951) पर विशेष
- डॉ. अरुण कुकसाल
द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बोगीन खास….
हे पापी नयार कमायें त्वैकू, मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू…….
मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस, सतपुली मोटर बोगीन खास.
सतपुली
(सतपुली नयार बाढ़ दुर्घटना-गढ़माता के निरपराध ये वीर पुत्र मोटर मजदूर जन यातायात की सेवार्थ 14 सितम्बर, 1951 ई. को अपनी गाड़ियों सहित सतपुली नयार नदी की प्रचन्ड बाढ़ में सदैव के
लिए विलीन हो गये. यह स्मारक उन बिछड़े हुए साथियों की यादगार के लिए यातायात के मजदूरों के पारस्परिक सहयोग से गढ़वाल 14 सितम्बर मोटर मजदूर यूनियन द्वारा स्थापित किया गया है- गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा निर्मित.)नयार
सतपुली बाजार से पूर्वी नयार नदी के दांये ओर बिजली दफ्तर परिसर में स्थापित स्मारक पर उक्त पंक्तियां लिखी हैं. आज से 69 साल पहले लिखे उक्त शब्दों की बनावट और लिखावट का अब फीका और टूटा होना स्वाभाविक ही है.
नयार
बिजली से संबधित मोटे तारों, खम्बों और भीमकाय बेकार मशीनों, कटींली झाड़ियों आदि के बीच वीराने में खड़ा यह स्मारक अतीत के प्रति हमारे नागरिक समाज के सम्मान के स्तर को बताता है.
साथ ही हमारी सामाजिक संवेदनहीनता को जग-जाहिर करता है. हो सकता है आज के दिन इस स्थल को साफ-सुथरा करके कुछ लोग फूलों के साथ श्रृद्धा-सुमन अर्पित करने यहां आ भी जायं. पर फिर आने वाले कल-परसों से इसको कटींले तारों से घिरना ही है. क्या ही अच्छा होता कि सतपुली का हर निवासी इस स्थल की पवित्रता एवं महत्वा को समझता. यह वो जगह हैं जहां पर वे सतपुली के इतिहास, भूगोल और सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक विरासत को महसूस कर उसे आज के संदर्भों में सतपुली की बेहतरी के लिए चिन्तन-मनन कर सकते हैं. पर हरदम सरपट भागती सतपुलीय जन-जीवन को इतनी फुरसत और समझ कहां है.नयार
प्रसंगवश बताते चलूं कि कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य में सतपुली (समुद्रतल से 750 मीटर ऊंचाई) नगर स्थित है. पिछली सरकार के कार्यकाल में सतपुली को नगर पंचायत का दर्जा दिया गया. सतपुली के पास ही बडख्वलु गांव के घाट में पूर्वी एवं पश्चिमी नयार नदी का संगम होता है. यहां पर झील निर्माण का प्रस्ताव दशकों से लटका पड़ा है. नयार की मछलियां ज्यादागुणकारी और स्वादिष्ट मानी जाती हैं. इसीलिए सतपुली का माछी-भात बेहद लोकप्रिय है. गढ़वाली गीतों में ‘सतपुली का सैंण’
और ‘सतपुली बाजार’ का जिक्र इस जगह की लोकप्रियता को बताता है. जनपद पौड़ी के 4 विकासखण्ड यथा- द्वारीखाल, जहरीखाल, कल्जीखाल एवं एकेश्वर की सीमायें सतपुली को स्पर्श करती हैं. स्वाभाविक है कि सतपुली का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक प्रभाव क्षेत्र व्यापक और महत्वपूर्ण है.नयार
सतपुली सड़क मार्ग से सन् 1944 में जुड़ा. सड़क से जुड़ने के 7 साल बाद ही 14 सितम्बर, 1951 को पूर्वी नयार में आयी भयंकर बाढ़ में संपूर्ण सतपुली बाजार, 30 लोग और 31 बसें कालग्रसित हो गए थे. जहां पुराना सतपुली बाजार था आज वहां पूर्वी नयार बहती है. उसके बाद नया सतपुली मल्ली गांव
के कृर्षि क्षेत्र में बसना शुरू हुआ था. आज निकटवर्ती क्षेत्रों को शामिल करते हुए लगभग 10 हजार की आबादी सतपुली की है. सुबह 9 बजे से सांय 3 बजे तक 15 से अधिक लिंक सड़कों से विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों के सैकड़ों लोगों की आवाजाही का यह केन्द्र बना रहता है.नयार
यह बात भी जान लेनी जरूरी है कि सतपुली
जैसे विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के स्थल गढ़वाल में कम ही है. इस कारण सतपुली में बसने का आर्कषण निकटवर्ती इलाकों के लोगों में तेजी से बढ़ रहा है. अतः जरूरी है कि सतपुली के लिए एक दीर्घकालिक नगर नियोजन की कार्ययोजना पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए.नयार
उत्तराखंड की वर्तमान शासन व्यवस्था में सतपुली का महत्व अपने आप में विशिष्ट है. माननीय मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत
जी के गांव खैरासैण की दूरी सतपुली से मात्र 3 किमी. है. उम्मीद थी सतपुली के समग्र विकास को उनके मुख्यमंत्री होने का लाभ मिलेगा. सतपुली निवासियों की यह उम्मीद अभी भी बरकरार है.नयार
सतपुली में 14 सितम्बर,
1951 को पूर्वी नयार में आयी बाढ़ से हुयी ञासदी की भयानकता को बताता यह गढ़वाली लोकगीत हर किसी को भाव-विभोर कर देता है.द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बोगीन खास.
औड़र आई गये कि जांच होली, पुर्जा देखणक इंजन खोली.
अपणी मोटर साथ मां लावा, भोल होली जांच अब सेई जावा.
सेई जोला भै-बन्धों बरखा ऐगे, गिड़गिड़ थर-थर सुणेंण लेगे.
भादों का मैना रुण-झुण पांणी, हे पापी नयार क्या बात ठाणीं.
सुबेर उठीक जब आयां भैर, बगीक आईन सांदन-खैर.
गाड़ी का भीतर अब ढुंगा भरा, होई जाली सांगुड़ी धीरज धरा.
गाड़ी की छत मां अब पाणी ऐगे, जिकुड़ी डमडम कांपण लेगे.
अपणा बचण पीपल पकड़े,
भग्यानूं की मोटर छाला लैगी, अभाग्यों की मोटर डूबण लेगी.
शिवानन्दी कु छयो गोवरधन दास, द्वी हजार रुप्या छै जैका पास.
डाकखानों छोड़ीक तैन गाड़ी लीने, तै पापी गाड़ीन कनो घोका दीने.
गाड़ी बगदी जब तेन देखी, रुप्यों की गड़ोली नयार फैंकी.
हे पापी नयार कमायें त्वैकू, मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू.
काखड़ी-मुंगरी बूति छाई ब्वै न,राली लगी होली नी खाई गैंन,
दगड़ा का भैबन्धों तुम घर जाला, सतपुली हालत मेरी मां मा लगाला.
मेरी मां मा बोल्यान तू मांजी मेरी, नी रयों मांजी गोदी को तेरी.
मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस, सतपुली मोटर बोगीन खास.
लेखक एवं प्रशिक्षक, चामी गांव (असवालस्यूं) पौड़ी (गढ़वाल))