गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

  • डॉ. अरुण कुकसाल

प्रायः यह कहा जाता है कि जो समाज में प्रचलित और घटित हो रहा है, वह उसके समसामयिक साहित्य में स्वतः प्रकट हो जाता है. परन्तु इस धारणा के विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि जो सामाजिक प्रचलन में अप्रासंगिक हो रहा है, ठीक उसी समय उसकी अभिव्यक्ति उसके साहित्य और संगीत में प्रमुखता से होने लगती है. लोक भाषायें और संगीत सामाजिक जीवन व्यवहार से हट रही हैं, परन्तु लोकभाषा और संगीत रचने का शोर चहुंओर है. गढ़वाळि भाषा-संगीत के विकास की बात करने वाले आये दिन और मुखर हो रहे हैं, पर उसको सामाजिक व्यवहार में लाने में उनमें से अधिकांश के प्रयास बस किताबी ही हैं.

शरद

लोक साहित्यकार संदीप रावत जैसे विरले ही हैं जो गढ़वाळि भाषा को पूरे समर्पण भाव से जवान हो रही पीढ़ी की मुख्य जुबान बनाने का प्रयास कर रहे हैं. गढ़वाळि साहित्य की प्रत्येक विधा में पारंगत उनकी लेखनी में कमाल का आकर्षण है. गढ़वाळि कविता, गीत, कहानी, शोध-लेखन, व्यंग और समीक्षायें संदीप के रचना संसार के प्रमुख आधार हैं. वह गढ़वाळि साहित्य रचने से ज्यादा उसको गढ़वाळि समाज की जीवंत भाषा बनाने के लिए आम लोगों विशेषकर बच्चों को प्रेरित कर रहे हैं.

संदीप रावत

शिक्षक एवं गढ़वाळि लोक साहित्यकार संदीप रावत का जन्म 30 जून, 1972 को ग्राम अलखेतू (कसाणी), पट्टी-तलाई पौड़ी गढ़वाल में माता श्रीमती कमला रावत-पिता श्री महावीर सिंह रावत के घर हुआ. अध्यापक पिता के साथ बचपन से किशोरावस्था तक कई स्कूलों में उन्हें अध्ययन करने का अवसर मिला. अलग-अलग स्थानों की प्रकृति और समाज के नये रंग-रूपों ने उनकी मौलिक समझ को व्यापकता प्रदान की है. उन्होने प्राईमरी शिक्षा गांव से शुरू करने बाद वेदीखाल से हाईस्कूल (1986), देवप्रयाग से इंटरमीडिएट (1988) और उच्च शिक्षा यथा- बी.एस.सी, एम.एस.सी (रसायन विज्ञान), बी.एड., संगीत प्रभाकर (गायन) श्रीनगर गढ़वाल से हासिल की है. संदीप वर्ष-1999 में पौड़ी (गढ़वाल) के चौथान पट्टी के चौंडा गांव में प्राथमिक अध्यापक बने. अपनी मेहनत और लगन के बल पर वे वर्ष-2006 में लोकसेवा आयोग, उत्तराखंड से चयनित होकर प्रवक्ता (रसायन विज्ञान), राइका. बरसूड़ी (रुद्रप्रयाग) में नियुक्त हुए. इसी वर्ष उनका स्थानान्तरण प्रवक्ता (रसायन विज्ञान) राजकीय इंटर काॅलेज, घद्दी घण्डियाल, (बडियारगढ़), टिहरी गढ़वाल में हुआ. और, वर्ष-2006 से वर्तमान तक वह इसी विद्यालय में अध्यापन कार्य में तैनात हैं.

गढ़वाळि लोक

विज्ञान शिक्षक संदीप रावत बचपन से ही साहित्य-अनुरागी रहे हैं. स्वभाव से नितांत संकोची संदीप जब गीत गाते तो सारी हिचक उनके चेहरे से गुम हो जाती थी. उनका प्रयास रहता कि गांव और स्कूल के हर कार्यक्रम में वे बढ़-चढ़कर भाग लें. बचपन में रेडियो उनका परम मित्र था. आकाशवाणी के माध्यम से जीतसिंह नेगी, केशवानंद ध्यानी, महेशानंद गौड़, नरेन्द्र सिंह नेगी, गोपाल बाबू गोस्वामी, केशव अनुरागी, माधुरी बर्थवाल जैसी विभूतियों के बारे में जाना और उन्हें अपने जीवन का प्रेरणाश्रोत्र माना. कक्षा आठ में पढ़ते हुए उन्होने गढ़वाळि गीत लिखा और उसे विद्यालय और अन्य मंचों पर कई बार प्रस्तुत किया था. खबरसार, रंत-रैबार और शैलवाणी से उन्होने गढ़वाळि गद्य-लेखन और वर्ष-2009 से मंचों से कविताओं का नियमित पाठ करना प्रारम्भ किया.

बरसूड़ी

गढ़वाली भाषा में गद्य एवं पद्य में सार्थक लेखन की दृष्टि से नयी पीढ़ी के साहित्यकारों में संदीप रावत ने एक विशिष्ट पहचान बनाई है. संदीप रावत की चर्चा उनके खबरसार पत्र में धारावाहिक लेख ‘गढ़वालि भाषा कि ऐतिहासिक विकास यात्रा’ से साहित्य बिरादरी में हुयी. उनकी रचनायें सामाजिक सरोकारों में आ रहे बदलावों की तरफ पाठकों को ले जाती हैं. लोक परम्पराओं के टूटने का दर्द उनकी कहानियों और कविताओं का एक मुख्य हिस्सा है. मानवीय संवेदनाओं से लबालब इस युवा साहित्यकार से गढ़वाली साहित्य के और समृद्ध होने की आशा मेरे मन में बलवती होती है.

जिकुड़ी

‘एक लपाग’ (गढ़वालि कविता-गीत संग्रह), ‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ और ‘लोक क बाना’ (शोधपरक गढ़़वाळि निबंध संग्रह), ‘उदरोळ’ (गढ़वाळि कथा संग्रह), ‘तू हिटदि जा’ (गढ़वाळि गीत संग्रह) तथा ‘आखर’ (दिसा-धियाण्यूं का प्रथम गढ़वाळि कविता संग्रह) कुल 6 किताबें उनकी प्रकाशित हुई हैं.

‘एक लपाग’ (गढ़वालि कविता-गीत संग्रह)-

‘एक लपाग’ (गढ़वालि कविता-गीत संग्रह) संदीप रावत की प्रथम प्रकाशित कृति है. समय साक्ष्य, देहरादून से वर्ष-2013 में प्रकाशित कुल जमा 63 रचनाओं की यह किताब पाठकों को रोचकता के साथ उत्सुकता का भरपूर भाव प्रदान करती है. प्रत्येक कार्य की शुरुआत एक लपाग (कदम) से ही तो होती है. और, संदीप ने साहित्य के क्षेत्र में एक मजबूत इरादों वाली लपाग लगा कर अपने हौसंलों को बुलन्द किया.

मुझण न दे जिकुड़ि की आग,
मार त सैहि एक लपाग (पृष्ठ-36)

अपने स्वभाव में हर समय एक मधुर मुस्कान लिए यह संकोची युवा कवि अपनी कविताओं में प्रखरता से पाठकों की ओर मुखातिब होता है. गढ़वाली भाषा के भूले-बिसरे शब्दों की जीवन्तता ने संदीप की कविताओं को बखूबी सजाया-संवारा है. इस कविता संग्रह में 37 कविताओं और 18 गीतों के मध्य 8 क्षणिकायें हैं. ये क्षणिकायें आज के जीवन की विडम्बनाओं पर खूब चटकारें लेती हैं.

केन्द्र

अजक्याल जिकुड़ी क्वी नि द्यखणू,
सब्बि मुखड़ी दयखणा छन्. (पृष्ठ-59)

….

खेति पाति- ढ़ंगार, कूड़ी हुयीं खंद्वार,
ई छ अब म्यरा गौं कि- अन्वार! (पृष्ठ-55)

‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ और ‘लोक क बाना’ (शोधपरक गढ़़वाळि निबंध संग्रह)-

‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ और ‘लोक क बाना’ (शोधपरक गढ़़वाळि निबंध संग्रह) गढ़वाळि भाषा-साहित्य के ऐतिहासिक विकास क्रम की दृष्टि से महत्वपूर्ण संदर्भ साहित्य हैं. ‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ वर्ष-2014 में विनसर पब्लिशिंग क. और ‘लोक क बाना’ वर्ष-2016 में समय साक्ष्य प्रकाशन से प्रकाशित हुई है. गढ़वाळि साहित्य के इतिहास की प्रारंम्भिक पुस्तकों में अबोधबंधु बहुगुणा की ‘गाड म्यटेकि गंगा’ और डॉ. हरिदत्त ‘शैलेश’ की ‘गढ़वाळि भाषा और उसका साहित्य’ प्रमुख हैं. डॉ. गोविंद चातक, डॉ. गुणानंद जुयाल और डॉ. जनार्दन प्रसाद काला ने इस पर शोध प्रबंध तैयार करके महत्वपूर्ण योगदान दिया है. डॉ. गोविंद चातक की ‘मध्य पहाड़ी की भाषिक परम्परा और साहित्य’ एवं ‘हिमालयी भाषाः सामर्थ्य और संवेदना’ गढ़वाळी लोकसाहित्य के मर्म को समझने के लिए अग्रणी पुस्तकें हैं. संदीप रावत ने इस परम्परा को सार्थकता और शानदार तरीके से आगे बढ़ाया है.

जनजीवन का

‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ पुस्तक चार भागों में फैली है. प्रथम एवं द्वितीय भाग में गढ़वाळि भाषा की प्रकृति, व्याकरण, भाषिक स्वरूप और आणा-पखाणा, तृतीय भाग में गढ़वाळि भाषा के इतिहास को सात कालखंडों (14वीं शताब्दी से वर्तमान) में रखकर उसकी समग्रता में विवेचना की गई है. इस ऐतिहासिक विकास-जात्रा में विभिन्न विधाओं यथा- रंगमंच, समाचार पत्र-पत्रिकायें, कार्टून, चित्र, चिठ्ठी-पत्री, पोस्टर, रेडियो, फिल्में, कवि सम्मेलन और विविध संस्थाओं के योगदान की चर्चा की गई है. चतुर्थ खंड में गढ़वाळि भाषा के साहित्यकारों और उनकी प्रकाशित कृतियों का जिक्र किया गया है.

गढ़वाल के

गढ़वाळि साहित्य पर शोधपरक लेखन को जारी रखते हुए ‘लोक क बाना’ पुस्तक में लोकभाषा और लोकजीवन पर 18 लेखों का संग्रह है. ये सभी लेख संदीप रावत की लोक विरासत के मर्म को जानने और समझने की सूक्ष्म दृष्टि को बताते हैं. लोक साहित्य के जानकार एवं शोधार्थियों के लिए ‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ और ‘लोक क बाना’ पुस्तकें मार्गदर्शी की भूमिका में हैं.

गढ़वाळि लोक

‘उदरोळ’ (गढ़वाळि कथा संग्रह)-

‘उदरोळ’ (गढ़वाळि कथा संग्रह) उत्कर्ष प्रकाशन से वर्ष-2017 में प्रकाशित हुई है. इसमें आम मानवीय जीवन की 34 कहानियां हैं. इन कहानियों के पात्र हमारे आस-पास जीते-जागते हर समय जीवंत रहते हैं. उन्हें पहचानने में पाठक तनिक भी देरी नहीं करता है. संदीप रावत ने इन कहानियों के माध्यम से गढ़वाळि जन-जीवन की खूबसूरती और उसकी खामियों को बताने में कोई संकोच नहीं किया है. कहानीकार संदीप रावत के लेखन का निपट गढ़वाळि स्वरूप अलग ही आनन्द देता है.

‘तू हिटदि जा’ (गढ़वाळि गीत संग्रह)-

‘तू हिटदि जा’ (गढ़वाळि गीत संग्रह) पुस्तक रावत डिजिटल प्रकाशन, गाजियाबाद से वर्ष-2019 में प्रकाशित हुई है. चार भागों की इस किताब में 48 गढ़वाळि गीतों की गुजंन है. मूलतः संदीप गीतकार हैं. उनकी कवितायें और कहानियां गीतमय निरंतरता के प्रवाह में आगे बढ़ती हैं. बचपन से ही गायन का शौक उन्हें रहा है. वे स्वमं एक अच्छे गायक हैं.

‘आखर’ (दिसा-धियाण्यूं का प्रथम गढ़वाळि कविता संग्रह)-

‘आखर’ (दिसा-धियाण्यूं का प्रथम गढ़वाळि कविता संग्रह) पुस्तक रावत डिजिटल प्रकाशन, गाजियाबाद से वर्ष-2020 में प्रकाशित हुई है. इस कविता संग्रह के संपादन में उनके साथ साहित्यकार गीतेश सिंह नेगी शामिल हैं. गढ़वाळि में प्रथम महिला कवियत्री आदरणीया विद्यावती डोभाल (‘तीन गढ़वाळि गीतिका’ विद्यावती डोभाल प्रकाशन वर्ष-1975 से गढ़वाळि कवित्रियों का कविता लेखन प्रारंभ माना जाता है.) से लेकर आने वाली पीढ़ी की संभावनाशील कवियत्री प्रिय रवीना राणा की कविताओं की काव्ययात्रा का यह एक बेहतरीन प्रस्तुतीकरण है. आधी शताब्दी (सन् 1975 से 2020 तक) के अतंराल में 89 गढ़वाळि कवियत्रियों द्वारा रचित गढ़वाळि कविता संसार को संपादक द्वय ने बीज-बिज्वाड़, झुम्पा, हुणत्याळि डाळि, मौळ्यार शीर्षकों के तहत शामिल किया है. निःसंदेह यह एक कठिन कार्य रहा है.

महिलायें

महिलायें गढ़वाल के जनजीवन का केन्द्र हैं. उनकी जिम्मेदारियां मैदानी समाजों की अपेक्षा पहाड़ी समाज में ज्यादा दिखती और महसूस की जाती हैं. स्वाभाविक है कि गढ़वाळि कवियत्रियों की कविताओं में महिलाओं के दुःख-दर्द की अभिव्यक्ति ज्यादा सशक्त रूप में उभरेगी. यही कारण है कि अधिकांश गढ़वाळि कवियत्रियों की रचनाओं में यह भाव प्रमुखता से आया है.

पहाड़ों कि नौनी
खैरी का बीच
बिगरैली इन
सुल्ला कि टुलख्यूं मा
फूल खिल्यूं हो जन. (सरला उनियाल, पृष्ठ-77)

‘गढवाळि सरस्वती वंदना’

लोकसाहित्य के लिए समर्पित आखर के संस्थापक और अध्यक्ष संदीप प्रयोगधर्मी हैं. एक जगह ठहरना उनके स्वभाव में नहीं है. सक्रीयता उनकी आदत में शुमार है. और, जब आदतें सामाजिक दायित्यों के निर्वहन के लिए हो तो वह जीवन की सार्थकता और व्यापकता को निखारती ही हैं. संदीप अपने अघ्यापन, साहित्य और संगीत कर्म को इसी भाव से आगे बढ़ाते जा रहे हैं.

लिए संदीप ने

आखर संस्था ने प्रख्यात लोक सहित्यकार गोविंद चातक के जन्मदिन पर 19 दिसम्बर, 2019 से ‘गोविंद चातक व्याख्यानमाला’ प्रारम्भ की. अगले वर्ष से इस दिन को ‘गोविंद चातक व्याख्यानमाला’ और ‘आखर सम्मान’ के रूप में व्यापकता प्रदान की गई. 19 दिसम्बर, 2018 को प्रथम ‘आखर सम्मान’ साहित्यकार डॉ. नंदकिशोर ढ़ौंडियाल ‘अरुण’ को प्रदान किया गया.

उपस्थिति के

गढ़वाळि भाषा और साहित्य के विकास और विस्तार के दृष्टिगत संदीप रावत की पहल पर 5 दिसम्बर, 2016 को श्रीनगर गढ़वाल में ‘आखर संस्था’ का गठन किया गया. संस्था मुख्य रूप गढ़वाळि साहित्य एवं साहित्यकारों को एक व्यापक फलक देकर उन्हें सामाजिक जीवन में लोकप्रिय सम्मान देने के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रही है. ताकि, नौजवान पीढ़ी अपनी संस्कृति और मातृभाषा को अपना कर आत्मगौरव महसूस करें. अपने गठन के चार दिन बाद ही ‘आखर संस्था’ ने 9 दिसम्बर, 2016 श्रीनगर (गढ़वाल) में डांग महोत्सव में प्रतिभाग किया.

आखर संस्था ने प्रख्यात लोक सहित्यकार गोविंद चातक के जन्मदिन पर 19 दिसम्बर, 2019 से ‘गोविंद चातक व्याख्यानमाला’ प्रारम्भ की. अगले वर्ष से इस दिन को ‘गोविंद चातक व्याख्यानमाला’ और ‘आखर सम्मान’ के रूप में व्यापकता प्रदान की गई. 19 दिसम्बर, 2018 को प्रथम ‘आखर सम्मान’ साहित्यकार डॉ. नंदकिशोर ढ़ौंडियाल ‘अरुण’ को प्रदान किया गया. 19 दिसम्बर, 2019 को ‘आखर सम्मान’ साहित्यकार बचन सिंह नेगी और मोहन लाल नेगी को संयुक्त रूप में प्रदान किया. वर्ष-2020 का आखर सम्मान ललित केशवानजी को घोषित किय गया, परन्तु कोरोना काल के कारण यह आयोजन अभी प्रस्तावित अवस्था में ही है.

गरिमामयी

संदीप रावत विज्ञान पढ़ाते हुए कोशिश करते हैं कि सारे उदाहरण स्थानीय परिवेश में विद्यमान स्वरूपों से समझाये जांय. उनका तर्क है कि इससे बच्चे विषय में अपनापन महसूस करते हैं, साथ ही उन्हें अपने परिवेशीय संसाधनों और अवसरों की समझ और सामर्थ्य का ज्ञान भी होता है. गढ़वाळि भाषा का आत्मगौरव बच्चों में विकसित हो सके इसके लिए संदीप ने विद्यालयी शिक्षा में अभिनव प्रयोग भी किये हैं. इसके तहत वे बच्चों को गढ़वाळि भाषा की विभिन्न विधाओं में लेखन और उच्चारण का अभ्यास कराते हैं.

मातृ भाषा की

स्कूली शिक्षा में मातृ भाषा की गरिमामयी उपस्थिति के लिए संदीप ने ‘गढवाळि सरस्वती वंदना’ तैयार की हैं. पहली गढवाळि सरस्वती वंदना- ‘तेरू ही शुभाशीष च, जो कुछ भि पायि मिन’, तथा दूसरी- ‘अज्ञानै अंधेरी रात मा, द्वी आखरों कू ज्ञान दे.’ इन प्रार्थनाओं की शब्द रचना, धुन, संगीत उन्हीं के द्वारा तैयार किया गया है. इसके गायन के लिए वे छात्र-छात्राओं को निरंतर प्रशिक्षित करते रहते हैं. वर्तमान में 10 विद्यालयों से अधिक में संदीप की यह दोनों सरस्वती वंदना प्रार्थना में सप्ताह में दो बार गाई जाती है. ये गढ़वाळि सरस्वती प्रार्थनायें ‘यू ट्यूब’ पर उपलब्ध हैं.

शिक्षा में

वर्तमान में संदीप रावत अपनी मातृभाषा गढ़वाळि का सम्मान करने, उसे जीवन व्यवहार में उतारने के भाव को जागृत करने की दृष्टि से सोशियल मीडिया पर ‘उत्तराखंड मातृ भाषा अभियान’ का संचालन कर रहे हैं. जिसमें हर आयु, वर्ग और पेशे के लोग मातृभाषा में अपनी-अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं.

स्कूली

संदीप रावत की स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या में गढ़वाळि भाषा को शामिल करने के लिए एससीईआरटी, उत्तराखंड के पाठ्यक्रम निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण भागेदारी रही है. सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर गोहाटी, उदयपुर, दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद आदि में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्होने अपनी प्रस्तुति प्रदान की है. उनका प्रेरणादाई गीत ‘बालिका शिक्षा अभिप्रेरणा’ के तहत ‘बेटी बचावा, बेटी पढ़ावा मेरा मुलुक्वों’ को बेहद पसंद किया गया है. सांस्कृतिक श्रोत्र एवं प्रशिक्षण केन्द्र, नई दिल्ली के प्रशिक्षक के रूप में शिक्षा को संस्कृति से जोड़ना, अपनी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान और संरक्षण के प्रयास करना, देश के विभिन्न समाजों की लोक भाषाओं की जानकारी देने के उद्देश्य से संदीप समय-समय पर अन्य विद्यालयों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कराते हैं.

लोक

संदीप आकाशवाणी के नियमित वार्ताकार हैं. आकाशवाणी से उनकी कथाओं और कविताओं का प्रसारण होता रहता है. संदीप रावत के संयोजन में 23 सितम्बर, 2018 को श्रीनगर गढ़वाल में आखर समिति ने पहला गढ़वाळि महिला कवि सम्मेलन आयोजित किया गया. वर्तमान में संदीप रावत अपनी मातृभाषा गढ़वाळि का सम्मान करने, उसे जीवन व्यवहार में उतारने के भाव को जागृत करने की दृष्टि से सोशियल मीडिया पर ‘उत्तराखंड मातृ भाषा अभियान’ का संचालन कर रहे हैं. जिसमें हर आयु, वर्ग और पेशे के लोग मातृभाषा में अपनी-अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं.

गढ़वाळि लोक

संदीप रावत की साहित्य प्रतिभा निरन्तर निखरेगी ऐसी आशा सभी साहित्य प्रेमियों को है. गढ़वाळि साहित्य संसार में पूरी तैयारी के साथ मजबूत एक लपाग में उपस्थिति दर्ज करवाने वाले इस सम्भावनाशील युवा का स्वागत एवं भविष्य की ढेरों शुभकामनाएं.

(लेखक एवं प्रशिक्षक)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *