- चन्द्र भूषण बिजल्वाण,पुरोला उत्तरकाशी
बसंत के आगमन के साथ ही उत्तरकाशी जनपद के रवांई में एक प्रखर विचारक, चिंतक, कानूनवेता, साहित्यकार, रंगकर्मी और राजनीतिक मामलों की जानकार सकलचंद रावत का जन्म नौगांव विकासखंड की सुनारा गांव में श्री नौनिहाल सिंह रावत के घर पर 2 फरवरी 1942 को हुआ. इनकी प्रारंभिक शिक्षा नौगांव के एक प्राइवेट स्कूल में हुई. कक्षा 8 की परीक्षा पुरोला से उत्तीर्ण की . इसके पश्चात हाई स्कूल एवं इंटर की पढ़ाई राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज उत्तरकाशी की. जब रावत उत्तरकाशी पढ़ते थे तो एक बार छात्रों में शर्त लगी कि गंगा नदी को जो पार करेगा उसे विद्यालय का मॉनिटर बनाया जाएगा. रावत ने यह शर्त जीत ली और उन्हें मॉनिटर बना दिया गया.
छात्र जीवन से खेलकूद में रुचि होने के कारण गोला फेंक, चक्का फेंक, कबड्डी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अग्रणी पंक्ति में रहे. इंटरमीडिएट उत्तरकाशी से करने के पश्चात बीए और एमएम की पढ़ाई के लिए देहरादून के डीबीएस कॉलेज से 1969 में डिग्री प्राप्त की. श्री रावत ने 1971 में एलएलबी देहरादून के डीबीएस से किया. यहीं से छात्र राजनीति में भाग लेकर नेतृत्व की क्षमताएं बढ़ती चली गयी. इसी समय अपने क्षेत्र नौगांव के प्रसिद्ध देवता रुद्रेश्वर महाराज की मूर्ति चोरी हुई. क्षेत्र में आक्रोश था. तभी सकल चंद रावत ने आंदोलन की कमान अपने हाथ में ली और जिला मजिस्ट्रेट का घेराव किया. विरोध मे काले झंडे दिखाएं . यहीं से सकलचंद रावत की राजनीति चमक पड़ी. धीरे-धीरे नौगांव मे हाई स्कूल के लिए क्षेत्र से श्रमदान करवाया. एक वर्ष बाद ही इंटर कॉलेज खुलवाया.
श्री रावत सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे और समय बिता चला गया . अपने ईमानदारी कर्मठता के बल पर 15 साल तक ब्लॉक प्रमुख के रूप में विकासखंड नौगांव की सेवा करते रहे. इसी समय 1984 में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पाटमा देवी साथ छोड़कर चल बसी. अब पारिवारिक स्थिति कुछ पटरी से बाहर हो गई . परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारी श्री रावत पर आ गयी. बाहर से भी नाते रिश्तेदार शादी का दबाव बनाने लगे, अच्छे रिश्ते भी आए, लेकिन रावत जी ने कहा कि मुझे अब पिता के साथ मां का दायित्व भी निभाना है और शादी करने से मना कर दिया.
लगभग 38-40 वर्षों तक पिता के साथ ही मां का दायित्व निभाते रहे. अपने सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देकर आज सभी सरकारी सेवा एवं सामाजिक सेवा के माध्यम से समाज की सेवा कर रहे हैं. बर्ष 1988 में श्री रावत उत्तरकाशी जनपद के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 8 वर्षों तक उत्तरकाशी जनपद की सेवा, जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में करते रहे. अपने कार्यकाल में जनपद को एक विकासात्मक गति प्रदान की. श्री रावत बहु प्रतिभा के धनी रहे. एक प्रखर चिंतक, कानूनवेता, रंगकर्मी, लेखक के साथ ही राजनीतिक मामलों मे गहरी जानकारी रखते थे. एक बार रवांई की सांस्कृतिक टीम श्री रावत के नेतृत्व में मुंबई गयी और वहां पर पहाड़ों के लोकगीत, लोक नृत्य, उंगली पर परात को घूमने का दृश्य बहुत ही आकर्षक एवं प्रसंशनीय रहा.
श्री रावत के सहपाठी 81 वर्षीय श्रीजोध सिंह असवाल सेवानिवृत्त सब इंस्पेक्टर बताते हैं कि श्री रावत विद्वान, कानूनवेता, समाज सेवा में सदैव अग्रणी पंक्ति में रहने वाले व्यक्ति थे. उनके अंदर नेतृत्व की क्षमता थी. श्री रुकम सिंह असवाल प्राचार्य राजकीय महा विद्यालय ब्रह्मखाल बताते हैं कि श्री रावत राजनीति के साथ ही एक कुशल वक्ता भी थे. उन्होंने राज्य आंदोलन को रवांई में गति प्रदान की. उनके नेतृत्व में पूरा क्षेत्र एकजुट होकर आंदोलन में कूद पड़ा था. कोई भी सामाजिक कार्य हो वहां पर श्री रावत सबसे आगे रहते थे.श्री
असवाल ने कहा कि तिलाड़ी सम्मान समारोह में श्री रावत सदैव बढ़-चढ़कर भाग लेते थे और समिति का उत्साहवर्धन करते थे. तिलाड़ी सम्मान समिति श्री रावत को सदैव याद करते रहेगी. श्री शूरवीर सिंह असवाल सेवानिवृत शिक्षक बताते हैं कि एक बार श्रीनगर में कांग्रेस सम्मेलन था जिसमें सभी वरिष्ठ कार्य कर्ताओं व जिला अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया गया था. सभी वक्ताओं को 5 मिनट का समय दिया गया था. लेकिन जब सकलचंद रावत बोलने लगे तो श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि श्री रावत को बोलने दो जितना बोल सकते हैं . ऐसे प्रखर वक्ता थे रावत.
डॉक्टर राधेश्याम बिजल्वाण सेवानिवृत शिक्षक बताते हैं कि जब हम रवांई जौनपुर जनजाति आंदोलन चला रहे थे. तो मैं जनजाति समिति का अध्यक्ष था. हमने रवांई जौनपुर में चक्का जाम का आह्वान कर रखा था. नौगांव चौराहे पर आक्रोशित युवाओं ने बस को घेर लिया था और बस को आग के हवाले करने वाले थे. तभी सकल चंद रावत जी ने मुझे किनारे पर बुलाकर कहा कि बिजल्वाण जी आंदोलन सही दिशा में चल रहा है. इन्हे रोको “जोश में होश नहीं खो ना चाहिए.” इससे हमारा आंदोलन गलत दिशा में चल जाएगा. इसे रोको अगर रावत जी मुझे नहीं समझाते और आगजनी हो जाती तो स्थिति बिगड़ जाती. ऐसे सूझबूझ से काम लेने वाले थे रावत जी.
उनकी बड़ी बेटी मीना असवाल बताती हैं कि मेरी शादी के बाद पिता जी मुझे समझते थे कि” ससुराल में अपने से बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार, सबके साथ मिलजुल कर रहना, नहीं तो लोग कहेंगे कि उसकी मां नहीं है कौन समझता था उसे” हमारे पिताजी ने हमें कभी भी मां की कमी नहीं महसूस होने दी. वह चाहते तो शादी कर सकते थे लेकिन उन्होंने हमारे लिए बहुत बड़ा त्याग किया. मैं अपने पिताजी के बारे में जो कुछ भी कहूं वह कम ही कम है. मैं जब युगवाणी कार्यालय में जाता था तो चारुचंद चंदोला जी मुझे सकल चंद रावत और राजेंद्र सिंह रावत जी के बारे में जरूर पूछते थे. क्या कर रहे हैं? रावत बहुत विद्वान व्यक्तित्व के धनी है. तब मुझे लगता था कि क्षेत्र में लोग सम्मान करते हैं तो उनकी योग्यता क्षमता और प्रतिभा को देख कर करते हैं लेकिन इतने बुजुर्ग भी हमारे नेताओं से इतना लगाव क्यों रखते हैं ?
चंदोला जी ने मुझे बताया कि जब यह लोग पढ़ते थे तो युगवाणी में आते-जाते रहते थे और जब यह घर जाते थे तो युगवाणी पेपर भी खूब ले जाते थे. रावत जी को पढ़ने लिखने का शौक विद्यार्थी जीवन से ही था. वह कभी भी बिना किताब पढ़ें नहीं सोते थे. रावत जी वकालत भी करते थे तो जिस केस को लेते थे उस पर जी जान से काम करते थे. जो गरीब होते थे उनका केस निशुल्क भी लड़ते थे.
वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र सिंह रावत कहते हैं की सकलचंद रावत रवांई के इनसाइकोपेडिया थे. उन्हें राजनीतिक, सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास की बारीकी से जानकारी थी. आज 5 दिसम्बर2 3को ऐसे बहु प्रतिभा के धनी समाजसेवी को रवांई ने सदैव के लिए खो दिया. इनके सांत्वना देने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, यमुनोत्री विधायक संजय डोभाल, जोध सिंह असवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण, डॉक्टर दीवान सिंह, शशि मोहन राणा पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष नौगांव,पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष पुरोला हरिमोहन नेगी, पूर्व विधायक राजकुमार, मेजर बच्चन सिंह, डॉक्टर वीरेंद्र चंद, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष नत्थीलाल शाह, श्री रुकम सिंह असवाल, रोजीसोंदाण, शेर सिंह रावत, धर्म सिंह नेगी, सेवानिवृत शिक्षक चैन सिंह, रुकम सिंह रावत, तिलक चद रमोला, विजयपाल रावत, सहित क्षेत्र के सभी वरिष्ठ कांग्रेस भाजपा के नेताओं गणमान्य लोगों के साथ हजारों नाम आंखों ने अश्रुपूर्ण विदाई दी. इनके शव यात्रा में कई किलोमीटर लंबी लाइन के बीच रंग-बिरंगे फूलों से ढके उनका पार्थिव शरीर यह बताने के लिए पर्याप्त था कि सकल चंद रावत समाज के सभी वर्गों के स्वीकार्य नेता थे. हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके पद चिन्हों पर चलकर उनकी विकासात्मक सोच को आगे बढ़ा सके.
अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गये. उनके तीन पुत्र मनोज रावत, विनोद रावत व प्रमोद रावत एवं दो पुत्रियां मीना व शशि हैं.