मुर्दा और कंकाल का कुंड है रूपकुंड झील
- ऋचा जोशी
आइए आज चलते है उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ों में स्थित रहस्यमय झील रूपकुंड तक. हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी-सी झील हैं.
यह झील 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊचाई पर स्थित हैं, जिसके चारो ओर ऊंचे ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर हैं. यहां तक पहुचने का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों की पसंदीदा जगह हैं.उत्तराखंड
रूपकुंड झील को मुर्दा
और कंकाल का कुंड भी कहा जाता हैं. यह कुंड ना केवल अपनी सुन्दरता बल्कि मुर्दों के कुंड जैसे रहस्यमय इतिहास के लिए भी मशहूर हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुंड की स्थापना या निर्माण संसार के रचयिता भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती (नंदा) के लिए करवाया था.
उत्तराखंड
यह झील यहां पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित हैं. यहां पर गर्मियों में बर्फ पिघलने के साथ ही कही पर भी नरकंकाल दिखाई देना आम बात हैं. यह झील बागेश्वर से सटे
चमोली जनपद में बेदनी बुग्याल के निकट स्थित है. रूपकुंड झील को मुर्दा और कंकाल का कुंड भी कहा जाता हैं. यह कुंड ना केवल अपनी सुन्दरता बल्कि मुर्दों के कुंड जैसे रहस्यमय इतिहास के लिए भी मशहूर हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुंड की स्थापना या निर्माण संसार के रचयिता भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती (नंदा) के लिए करवाया था.उत्तराखंड
कहा जाता है कि जब देवी पार्वती अपने मायके से अपने ससुराल हिमालय को जा रही थी तो तब उन्हें रास्ते में प्यास लगती है और वह भगवान शिव से पानी की प्यास बुझाने की इच्छा जाहिर करती हैं, तभी भगवान शिव माता पार्वती की प्यास बुझाने के लिए उसी जगह पर अपने त्रिशूल से एक कुंड का निर्माण कर देते हैं. जब माता गौरी (पार्वती)
कुंड से पानी पीने जाती है तो माता के पानी में पड़ते सुन्दर प्रतिबिम्ब को देखते हुए शिव जी द्वारा इस कुंड को “रूपकुंड” नाम दे दिया जाता है. आज भी स्थानीय लोग द्वारा जब भी नन्दा देवी राज जात यात्रा की जाती है तो यात्रा रूपकुंड पर अवश्य रूकती है और श्रद्धालुओं द्वारा इस कुंड के पास रुक कर माता की डोली का श्रृंगार व विश्राम किया जाता हैं.एक किवदंती के अनुसार
बार एक राजा जिसका नाम जसधावल था,
नंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला. उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी इसलिए वो देवी के दर्शन करना चाहता था. स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया. जैसा कि तय था, इस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से देवी नाराज़ हो गईं और सबको मौत के घाट उतार दिया. राजा, उसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया. मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं.उत्तराखंड
एक दूसरी किवंदती के अनुसार तिब्बत में सन 1841
के युद्ध के दौरान सैनिकों का एक समूह इस कठिन रास्ते से गुज़र रहा था, लेकिन वो रास्ता भटक गए और खो गए और वे सारे सैनिक कभी नहीं मिले, हलांकि यह एक फ़िल्मी प्लाट जैसा लगता हैं इस स्थान में मिलने वाली हड्डियों के बारे में यह किवंदती काफी प्रचलित है.उत्तराखंड
रूपकुंड में नरकंकाल की
खोज सबसे पहले वर्ष 1942 में नंदा देवी रिजर्व के गेम रेंजर हरिकृष्ण मधवाल ने की थी. मधवाल दुर्लभ पुष्पों की खोज में यहां आए थे. इसी दौरान अनजाने में वह झील के भीतर किसी चीज से टकरा गए. देखा तो वह एक कंकाल था. झील के आसपास और तलहटी में भी नरकंकालों का ढेर मिला. यह देख रेंजर मधवाल के साथियों को लगा मानो वे किसी दूसरे ही लोक में आ गए हैं.
रिसर्च
एक और अन्य रिसर्च के अनुसार इस स्थान पर पाए जाने वाली हड्डियों पर रोशिनी पडी. रिसर्च के अनुसार ट्रेकर्स का एक समूह इस स्थान में हुयी भारी ओलावृष्टि में फस गया, जिसमें सभी
की अचानक दर्दनाक मौत हो गई और हड्डियों के x-ray और अन्य प्रयोग में पाया गया कि हड्डियों में दरारें पड़ी हुयी थी जिसमे पता चलता हैं कि कम से कम क्रिकेट की बाल के आकार के बराबर ओले रहे होंगे. वहां कम से कम 35 कि.मी. तक कोई गांव नहीं था और सर छुपाने की कोई जगह भी नहीं थी. रिसर्च के अनुसार यह माना जाता है कि यह घटना 850 ईसवी के आसपास की रही होगी.शोध कार्य में जुटे हैं देश-दुनिया के वैज्ञानिक
रूपकुंड में नरकंकाल की खोज सबसे पहले वर्ष 1942 में नंदा देवी रिजर्व के गेम रेंजर हरिकृष्ण मधवाल ने की थी. मधवाल दुर्लभ पुष्पों की खोज में यहां आए थे. इसी दौरान अनजाने में वह झील के भीतर किसी चीज से टकरा गए. देखा तो वह एक कंकाल था. झील के आसपास और तलहटी में भी नरकंकालों का ढेर मिला.
यह देख रेंजर मधवाल के साथियों को लगा मानो वे किसी दूसरे ही लोक में आ गए हैं. उनके साथ चल रहे मजदूर तो इस दृश्य को देखते ही भाग खड़े हुए. इसके बाद शुरू हुआ वैज्ञानिक अध्ययन का दौर. 1950 में कुछ अमेरिकी वैज्ञानिक नरकंकाल अपने साथ ले गए. अब तक कई जिज्ञासु-अन्वेषक दल भी इस रहस्यमय क्षेत्र की ऐतिहासिक यात्रा कर चुके हैं. भूगर्भ वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के एक दल ने भी यहां पहुंचकर अन्वेषण व परीक्षण किया.नरकंकाल
उत्तर प्रदेश वन विभाग के एक अधिकारी ने सितंबर 1955 में रूपकुंड क्षेत्र का भ्रमण किया और कुछ नरकंकाल, अस्थियां, चप्पल आदि वस्तुएं एकत्रित कर उन्हें परीक्षण के लिए प्रसिद्ध
मानव शास्त्री एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के मानव शास्त्र विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. डीएन मजूमदार को सौंप दिया. बाद में डॉ. मजूमदार स्वयं भी यहां से अस्थियां आदि सामग्री एकत्रित कर अपने साथ ले गए. उन्होंने इस सामग्री को 400 साल से कहीं अधिक पुरानी माना और बताया कि ये अस्थि अवशेष किसी तीर्थ यात्री दल के हैं. डॉ. मजूमदार ने 1957 में यहां मिले मानव हड्डियों के नमूने अमेरिकी मानव शरीर विशेषज्ञ डॉ. गिफन को भेजे. जिन्होंने रेडियो कॉर्बन विधि से परीक्षण कर इन अस्थियों को 400 से 600 साल पुरानी बताया.वस्तु
अवशेषों में खास वस्तु बड़े-बड़े दानों की हमेल है, जिसे लामा स्त्रियां पहनती थीं. वर्ष 2004 में भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने भी संयुक्त रूप से
झील का रहस्य खोलने का प्रयास किया. इसी साल नेशनल ज्योग्राफिक के शोधार्थी भी 30 से ज्यादा नरकंकालों के नमूने इंग्लैंड ले गए. बावजूद इसके रहस्य अब भी बरकरार है.
लामा
ब्रिटिश व अमेरिका के
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि अवशेषों में तिब्बती लोगों के ऊन से बने बूट, लकड़ी के बर्तनों के टुकड़े, घोड़े की साबूत रालों पर सूखा चमड़ा, रिंगाल की टूटी छतोलियां और चटाइयों के टुकड़े शामिल हैं. याक के अवशेष भी यहां मिले, जिनकी पीठ पर तिब्बती सामान लादकर यात्रा करते हैं. अवशेषों में खास वस्तु बड़े-बड़े दानों की हमेल है, जिसे लामा स्त्रियां पहनती थीं. वर्ष 2004 में भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने भी संयुक्त रूप से झील का रहस्य खोलने का प्रयास किया. इसी साल नेशनल ज्योग्राफिक के शोधार्थी भी 30 से ज्यादा नरकंकालों के नमूने इंग्लैंड ले गए. बावजूद इसके रहस्य अब भी बरकरार है.(मुंबई में निवासरत लेखिका कवि एवं कहानिकार हैं)