- प्रदीप रावत (रवांल्टा)
रवांई की समृद्ध संस्कृति को नए फलक पर ले जाने का मंच है रवांई लोक महोत्सव। इस लोक महोत्सव में रवांई की समृद्ध संस्कृति का अद्भुत समागम देखने को मिलता है। इसमें स्कूल के नन्हें कलाकारों से लेकर चोटी के कलाकारों तक हर किसी की प्रस्तुति होती है। संस्कृति के इस समागम को देखने और आत्मसात करने ना केवल रवांई घाटी के लोग बल्कि जौनसार—बावर, जौनपुर और जौनपुर से लगे टिहरी जिले के लोग भी आते हैं। इतना ही नहीं, अपने तीन साल के साफर में रवांई लोग महोत्सव ने अपनी पहचान राष्ट्रीय स्तर तक बनाई है। इस महोत्सव को देखने और जानने के लिए जहां दिल्ली और दूसरे राज्यों से पत्रकार और संस्कृति विशेषज्ञ आए थे, वहीं लोक संस्कृति पर शोध कर रहे शोधार्थी भी गुजरात से शोध के लिए पहुंचे थे।
पहला दिन : स्कूली बच्चों के नाम
28 से 30 दिसंबर तक चले तीन दिवसीय रवांई लोक महोत्सव का पहला दिन स्कूली बच्चों के नाम रहा। स्कूली बच्चे भी रवांई की लोक संस्कृति को बचाये रखने में अपने हिस्से की भागीदारी करने में पीछे नहीं रहे। बच्चों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी। वैसे तो सभी स्कूलों के बच्चों ने शानदार कार्यक्रम पेश किए, लेकिन जागृति पब्लिक स्कूल के बच्चों ने रवांई लोक संस्कृति को जीवंत करने वाली प्रस्तुति दी। स्कूल के बच्चों ने लोक देवता लुद्रेश्वर के गांव में आने पर गांव की महिलाओं की ओर से अपने लोक देवता के स्वागत, पूजा और विदाई के हर रंग को जीवंत कर दिया। स्कूल की छोटी-छोटी बालिकाएं रवांई के पारंपरिक परिधानों में खूब जच रहीं थी। उन्हें देख आखें उन्हीं पर थम जा रही थी। इसके अलावा मंच से यमुना वैली पब्लिक स्कूल के बच्चों ने पाॅलीथिन से मुक्ति पर आधारित नाटक का मंचन भी किया।
लोक कलाकारों के लिए मंच
रवांई लोक महोत्सव का उद्देश्य रवांई की समृद्ध संस्कृति को जीवंत रखना, उसका संवर्धन करना और संरक्षित करना है। इसको देखते हुए ही पहले दिन से अखिरी तीसरे दिन तक लोग गीतों और लोक नृत्यों से मंच सराबोर रहता है। एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां मच पर होती हैं। खास बात यह है कि टीम रवांई लोक महोत्सव के साथी रवांई की उभरती प्रतिभाओं को निखारने का काम तो करता ही है। साथ ही उन कलाकारों को भी बड़ा मंच उपलब्ध कराता है, जिन कलाकारों को अक्सर मंच नहीं मिल पाता है या फिर वो कलाकार बड़े कलाकारों की परछाई में कहीं छिपकर रह जाते थे। पहले दिन से लेकर तीसरे दिन तक टीम रवांई लोक महोत्सव का लक्ष्य क्षेत्र के 150 उभरते लोक कलाकारों को मंच पर लाने का था। किसी हद तक उसमें सक्षम भी रहे। इन तीन दिनों में रवांई के लोगों ने अपने उन कलाकारों को मंच पर देखा, जिनको केवल सुन पाते थे। वो कलाकार भी बेहद खुद नजर आए, जिनको आज तक मंच नहीं मिल पाया था।
संस्कृति और लोकभाषा पर खास ध्यान
लोक कलाकार जब मंच पर होता है, वो प्रयास करता है कि अपने पसंद के हर गाने को गा दे। उसमें कई बार वो अपने लोकभाषा के अलावा दूसरी बोली/भाषाओं में भी गा देता है। रवांई लोक महोत्सव में इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि कोई भी लोक कलाकार रवांई की संस्कृति और लोकभाषा के अलावा दूसरी बोली/भाषा के गाने ना गाए। रवांई लोक महोत्सव का मतलब भी लोक की संस्कृति से है। उसके लिए ये पूरा आयोजन किया जाता है। इसको लेकर टीम रवांई लोक महोत्सव कई बार कड़े निर्णय लेने में भी नहीं हिचकिचाती।
रवांई घाटी में छोड़े गायन की सबसे पुरानी विधाओं में से एक लोक विधा है। यह ऐसी लोक विधा है, जिसे केवल सत्य के करीब नहीं, बल्कि पूर्ण सत्य कहा जा सकता है। इसके जरिए लोक में घटी घटनाओं को कहा जाता है। कुछ इस तरह भी कहा जा सकता है कि यह कथा-कहानियां कहने का एक तरीका भी है, लेकिन सही मायनों में यह कथा और कहानी से एकदम अलग है। कथा और कहानियों में कथानक को बुनने के लिए कई बार अपनी तरफ से भी बातें जोड़ दी जाती हैं, लेकिन छोड़े पूर्ण सत्य पर कहे गए होते हैं। पहली बार किसी मंच पर केवल छोड़े गाने के लिए आवेदन मांगे गए। छोड़े गाने के लिए नई पीढ़ी के कलाकारों ने आगे आकर शानदार प्रस्तुतियां दी। इतना ही नहीं। कुछ कलाकारों ने गायन की एक और लोक विधा बाजुबंद भी गाए। इस विधा को लेकर 2020 में होने वाले रवांई लोक महोत्सव में बाजुबंद गायकों को आमंत्रित किया जाएगा। इस तरह से टीम रवांई लोक महोत्सव एक के बाद एक लुप्त होती लोक की विधाओं को मंच पर लाकर फिर से जीवंत करने का प्रयास करेगी।
लोक संस्कृति के नाम दूसरा दिन 29 दिसंबर
दूसरा दिन लोक संस्कृति की एक और विधा को सर्पित रहा। एक ऐसा नृत्य, जिसे लोग अब भुला चुके हैं। ऐसी नृत्य विधा, जिसके बारे में गिनती के ही लोग जानते हैं। वह नृत्य विधा है सारंगी नृत्य। सारंगी नृत्य पारंपरिक नृत्य है, लेकिन इसके बारे में बहुत कुछ लिखा और बताया नहीं गया है। इसके चलते ही इस नृत्य विधा को जाने वाले लोग कम बचे हैं। सरंगी नृत्व पांडव नृत्य से भी जुड़ा है। लेकिन, इस नृत्य को पांडव नृत्य से अलग करने की भी इसी नृत्य के दौरान गाये जाने वाला गाना है। नृत्य के दौरान जो गाना गाया जाता है, वो पूरी तरह से जुंग यानि जंग लड़ने से संबंधित है। नृत्य के दौरान भी जुंग से युद्ध करने जैसा नृत्य दिखाया जाता है। ठीक उसी तरह जिस छोलिया नृत्य है।
इसके बाद लोक गायक अनिल बेसारी, जौनसार के लोग गायक सुरेंद्र राणा, अंकित सेमवाल से लेकर 10-12 कलाकारों ने एक साथ शानदार प्रस्तुति दी। लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। यही कारण था कि कड़ाके की ठंड में भी लोग देर शाम तक तांदी नृत्य करते नजर आए। तांदी नृत्य केवल रंवाई ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड में अलग-अलग ढंग से किया जाता है।
लोक नायकों के नाम से सम्मान और कवि सम्मेलन
तीसरे दिन 30 दिसंबर रवांई लोक महोत्सव की यूएसपी कहे जाने वाले रवांल्टी कवि सम्मेलन और रवांई के लोक नायकों के नाम पर दिये जाने वाले सम्मान समारोह के नाम रहता है। रवांल्टी कवि सम्मेलन को लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। हर बार की तरह इस बार भी 12 रवांल्टी कवियों ने ख्याती लब्ध साहित्यकार, जो शोधार्थियों के लिए शोध का विषय भी बने हुए हैं, उनके नेतृत्व में शानदार कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। कवि सम्मेलन में इस बार तीन महिला कवियों ने भी पहली बार हिस्सा लिया। खास बात यह रही कि मोरी ब्लाक से पहली बार किसी महिला ने मंच पर आकर रवांल्टी कविताओं को पाठ किया। अनुरूपा की कविताओं को लोगों ने खूब सराहा। वैसे तो सभी कवियों की कविताओं ने लोगों को जमकर गुदगुदाया, लेकिन युवा कवि अनोज रावत की कविताओं ने खूब छाप छोड़ी। एक ओर खास बात यह रही कि इस बार गढ़वाली सरस्वती प्रार्थना लिखने वाले गढ़वाल के सुप्रसिद्ध कवि संदीप रावत ने भी रवांल्टी कवि सम्मेलन में शानदार कविता पाठ किया।
दूसरे पार्ट में रवांई के लोक नायकों के नाम से दिये जाने वाला सम्मान दिये गए। जोत सिंह रवांल्टा, दौलत राम रवांल्टा, राजेंद्र सिंह रावत, पति दास और रवांई गौरव सम्मान दिये गए। इसके अलावा अन्य लोगों और अतिथियों को भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन साथियों को भी सम्मानित किया गया, जो टीम रवांई लोक महोत्सव को हर साल सहयोग करते हैं। टीम रवांई लोक महोत्सव के संयोजल शशि मोहन रवांल्टा ने सभी का धन्यवाद किया।
मुख्य आकर्षण पद्मश्री प्रीतम भरतवाण
इस साल के रवांई लोक महोत्सव का मुख्य आकर्षण लोक गायक, जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण रहे। उनको टीम रवांई लोक महोत्सव ने बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था। वो आए भी, लेकिन अपने चिरपरिचित अंदाज में उन्होंने अतिथि सत्कार के बाद सीधे मंच संभाल लिया और सबसे पहले मां भगवती का जागरण गाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। पूरे दिन रवांल्टी कवि सम्मेलन को आनंद लिया और उसके बाद फिर से मंच संभाल लिया। उन्होंने सरुली मेरु जिया लगीगे और पंडौं खेल पासो जागर भी प्रस्तुत किया। उन्होंने रवांल्टी कवि सम्मेलन की जमकर सराहना की। खासकर जिस तरह से कवि सम्मलन में महिलाओं ने उत्साह से हिस्सा लिया। कवि सम्मेलन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी। प्रीतम भरतवाण अपनी भाषा के प्रति लोगों को प्यार देखकर गदगद नजर आए। उन्होंने कहा कि महाबीर रवांल्टा और टीम रवांई लोक महोत्सव ने यह शानदार पहल की है। साथ ही कहा कि अगली बार वो फिर से रवांल्टी कवि सम्मेलन सुनना चाहेंगे।
टीम रवांई लोक महोत्सव इस पूरे महोत्सव का आयोजन निस्वार्थ भाव से कर रही है। बावजूद कई लोगों को लगता है कि इसमें उनको कुछ लाभ हो रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि टीम रवांई लोक महोत्सव हर बार लाख-दो लाख के कर्ज में रहती है। कुछ लोगों को इसमें राजनीति करने का भी मन है, टीम का उन लोगों से निवेदन है कि वो अपना मन छोड़े दें। रवांई लोक महोत्सव किसी पार्टी या नेता का नहीं है। यह महोत्सव रवांई के लोगों का है। हमारा और आपका है। उन लोगों का धन्यवाद, जिन लोगों ने महोत्सव के लिए मदद की। चाहे वह आर्थिक रही हो या बौधिक रही हो या फिर जिस भी रूप में लोगों ने मदद की, उन सभी का शुक्रिया…।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पहाड़ समाचार पोर्टल के संपादक हैं)
आपनी लोक कला, संसजृति को संजोने, आगे बढ़ाने का यह एक शानदार कार्य है। टीम रंवाई लोक महोत्सव के संयोजक बधाई के पात्र हैं।