गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी 26 और 27 अक्टूबर, दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंड के उन प्रवासियों के लिए यादगार होने जा रहा है जिन्हें उत्तराखंड की राग आधारित रामलीला देखे एक अरसा हो गया है, लेकिन उनकी स्मृतियों में उसके सुर, ताल और अभिनय का नॉस्टेल्जिया तैरता रहता है. आयोजन समिति से जुड़े राकेश जोशी कहते हैं, ”इस आयोजन के ज़रिए हमारी कोशिश ख़ासकर पहाड़ की उस प्रवासी पीढ़ी को रामलीला से जुड़ी उनकी पुरानी यादों में ले चलना है जिनके लिए अब पहाड़ में जाकर रामलीला देखना संभव नहीं है.”
रामलीला के इस आयोजन का निर्देशन कर रहे संगीतज्ञ संजय जोशी कहते हैं, ”हालॉंकि बीते कुछ समय से अलग—अलग मंचों पर पहाड़ी रामलीला के आयोजन में बग़ैर गायन के भी संवाद इस्तेमाल किए जाने लगे हैं. लेकिन हमारा मक़सद है कि हम पहाड़ के प्रवासियों को रामलीला का बिल्कुल पारंपरिक स्वाद दें, इसलिए हमारे सारे संवाद राग आधारित गायन के साथ ही हैं. यही इस आयोजन की ख़ासियत भी है.”
पहाड़ी रामलीलाओं में चौपाई, दोहा, सोरठा को प्रमुख तौर पर भैरवी, मालकौंश, जयजयवंती, विहाग, पीलू और माण रागों में गाया जाता है. आम तौर पर दादरा और कहरवा तालों के साथ ही पहाड़ी होली के ठेके का भी इस्तेमाल होता है. हालांकि इस आयोजन का पहाड़ की प्रवासी बुजुर्ग पीढ़ी के लिए तो ख़ासा महत्व होने ही वाला है लेकिन नई पीढ़ी के लिए भी यह आयोजन एक अनोखा अनुभव बन रहा है, आयोजन से पहाड़ के प्रवासी युवा और बच्चे भी जुड़ रहे हैं.
समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र जोशी बताते हैं, ”इस रामलीला के आयोजन में अधिकतर अभिनय कर रहे लोग पहली बार रामलीला के मंच पर उतरने वाले हैं. अधिकतर लोग युवा हैं और पर्वतीय संस्कृति से जुड़ने का उनका उत्साह देखने लायक है.”
आयोजन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष महेश जोशी और सचिव चंद्रेश पंत ने बताया कि पारंपरिक तौर पर पहाड़ी रामलीला का आयोजन 10 दिनों का होता है लेकिन समय के अभाव में इसे 2 दिनों में समेटा गया है. वे कहते हैं, ”हमने स्क्रिप्ट पर काफी काम किया है ताकि सारे ही महत्वपूर्ण प्रसंगों का मंचन हो सके और दर्शक पारंपरिक अंदाज़ में पूरी रामकथा का आनंद ले सकें.”
रामलीला का यह मंचन दिल्ली आईटीओ में स्थित प्यारे लाल ऑडिटोरियम में होगा. उपाध्यक्ष एल. आर. पंत और कोषाध्यक्ष नीरज लोहानी ने बताया कि आयोजन को लेकर सारी तैयारीयों का कार्य अत्यधिक उत्साह से चल रहा है.
पर्वतीय रामलीला के इस आयोजन को संभव बनाने के लिए संजय जोशी (CA), पूरन तिवारी, हरीश तिवारी, निर्मल जोशी, कैलाश पांडे, योगेश ओली, यश अवस्थी, प्रकाश जोशी, भुवन जोशी, शेखर पंत, पंकज उप्रेती, नितिन जोशी, विक्की तिवारी, गिरजा जोशी, चन्द्र शेखर पाण्डेय, श्रीकृष्ण पंत, योगेश पंत सहित दिल्ली एनसीआर में पर्वतीय समाज के कई समाजसेवी एवम संस्कृतिकर्मी अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.