बेनीताल: प्रकृति की गोद में बसा बुग्याल
- कमलेश चंद्र जोशी
उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से विविधताओं से भरा प्रदेश है. हालाँकि पर्यटकों के बीच इसकी पहचान चार धाम यात्रा के रूप में अधिक मशहूर है लेकिन यात्रा पर्यटन के सिवाय उत्तराखंड में बहुत कुछ ऐसा है जिन तक अभी सीमित व नियमित पर्यटकों का पहुँचना बाकी है. एक गंतव्य के तौर पर उत्तराखंड के बुग्यालों को पर्यटन में अब तक
वह मुकाम हासिल नहीं हो पाया है जो पारंपरिक गंतव्यों को है. बुग्यालों को पर्यटन से जोड़ने के इतर समय-समय पर बुग्यालों में हो रहे अतिक्रमण व बैकपैकर्स द्वारा फैलाई जा रही गंदगी की खबरें सुनने को मिल जाती हैं जिसकी वजह से बुग्यालों में पर्यटन को बढ़ावा देने की जगह उन्हें संरक्षित करने के लिए यात्रियों के रात्रि विश्राम व टेंट लगाने पर रोक जैसे सख़्त कदम प्रशासन को उठाने पड़ते हैं.बुग्याल
समुद्र तल से 8-10 हजार फुट की ऊँचाई पर ट्री लाइन (वृक्ष रेखा) के खत्म होते ही जो हरे घास के मैदान नजर आते हैं उन्हें बुग्याल कहा जाता है. इन मैदानों का फैलाव स्नो लाइन (हिम रेखा)
तक होता है. कहने का मतलब यह है कि ट्री लाइन व स्नो लाइन के बीच बड़े क्षेत्र में फैले घास के मैदान को बुग्याल कहा जाता है. बुग्याल अपने खुशनुमा मौसम, मखमली घास, सुंदर फूल व प्रकृति की अनुपम छटा के लिए जाने जाते हैं. जाड़ों व गर्मियों में बहुत से प्रवासी पक्षी इन बुग्यालों को अपना आशियाना बना यहाँ लंबा वक्त गुजारते हैं. स्थानीय लोग बुग्यालों से न सिर्फ जानवरों के लिए चारा प्राप्त करते हैं बल्कि अपने मवेशियों को चराने के लिए कई-कई महीनों तक यहीं डेरा जमाए रहते हैं.बुग्याल
दयारा बुग्याल, बेदिनी बुग्याल, पंवाली काँठा बुग्याल,
औली बुग्याल, केदार काँठा बुग्याल आदि उत्तराखंड के प्रमुख बुग्यालों में से हैं. इन बुग्यालों के अलावा एक बुग्याल है बेनीताल जो आजकल अतिक्रमण व निजी संपत्ति का बोर्ड लगने के चलते सुर्ख़ियों में बना हुआ है.बुग्याल
इसी वर्ष मार्च महीने में अपनी यात्रा के दौरान मैं बेनीताल गया था. कर्णप्रयाग से आदिबद्री मार्ग के बीच एक रास्ता बेनीताल के लिए जाता है जो कि लगभग 23 किलोमीटर है. कर्णप्रयाग में जहाँ एक
ओर पारा गर्मी बढ़ा रहा होता है वही एक-डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद आप प्रकृति की गोद में उस जगह पहुँच जाते हैं जहाँ का ठंडा खुशनुमा मौसम आपको वापस लौटने से बार-बार रोकता है. बेनीताल बुग्याल में जहाँ एक ओर चारों तरफ देवदार के घने पेड़ दिखाई देते हैं तो वहीं दूसरी ओर बर्फ से ढकी हुई पर्वत श्रृंखलाएँ आपको अपनी ओर आकर्षित कर रही होती हैं. हिमालय का 360 डिग्री दृश्य देखने के लिए यह बुग्याल एक बेहतरीन जगह है.बुग्याल
बेनीताल में एक ताल है जो बरसात में पानी लिये रहता है और गर्मियों में यह ताल सूखकर दलदल में बदल जाता है. बेनीताल को देखकर लगता है कि पर्यटन विभाग ने उसके विकास से
जैसे मुँह मोड़ कर रखा है. पहली बात तो बेनीताल के बारे में बहुत कम पर्यटक जानते हैं. दूसरा जो लोग वहाँ घूमने आते भी हैं तो सिर्फ शराब पीने व गंदगी फैलाने के मकसद से आते हैं. बेनीताल बुग्याल के आसपास आपको हजारों शराब की बोतलें व प्लास्टिक का कचरा नजर आ जाएगा जो किसी भी सैलानी के अनुभव को पहली ही नजर में खराब करने वाला होता है.बुग्याल
पिछले कई वर्षों से उत्तराखंड सरकार बेनीताल को एक पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने की बात कर रही है लेकिन अब तक इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. सैलानियों के
रुकने के लिए कायदे का एक होम स्टे भी बेनीताल के आसपास नहीं है. पर्यटन स्थल में तब्दील होने से पहले ही यह बुग्याल विवादों में आ गया है. किसी ने बुग्याल के 650 एकड़ के क्षेत्र को अपनी निजी संपत्ति बता उस पर एक बोर्ड लगा दिया है.बुग्याल
हालाँकि मेरी मार्च में की गई यात्रा के दौरान ऐसा कोई भी बोर्ड बेनीताल में नहीं लगा था. इसका मतलब साफ है कि यह बोर्ड हाल फ़िलहाल में ही लगा है. कहा जा रहा है कि
इस भूमि से जुड़ा विवाद लंबे समय से कोर्ट में लंबित है. इन्हीं आशंकाओं और अतिक्रमण के मामलों के चलते उत्तराखंड में पिछले कुछ समय में भू-कानून की माँग तेज़ी से बढ़ी है.बुग्याल
उत्तराखंड सरकार को इस विषय में तुरंत संज्ञान लेना चाहिये तथा यह भूमि वन विभाग को सौंपकर इसमें नियमित व सीमित पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिये ताकि स्थानीय
लोगों के लिए होम स्टे, रेस्टोरेंट व अन्य जरूरी दुकानों के रूप में रोजगार के अवसर खुल सकें और एक गंतव्य के तौर पर बेनीताल को एक पहचान मिल सके. बेनीताल को बढ़ावा देने से राज्य के अन्य बुग्यालों के ऊपर पड़ने वाले भार को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है.(लेखक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में शोधार्थी है)