- प्रदीप रावत “रवांल्टा”
उत्तरकाशी: सिलक्यारा-बड़कोट टनल हादसे में पहले दिन से ही कंपनी की लापरवाही सामने आ रही है। अब एक और बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। इससे मजदूरों के परिजनों में गुस्सा है। उनका कहना है कि लापरवाही की भी हद होती है। जिला प्रशासन भी इस बात से नाराज है।
लापरवाही का अंदाजा इस बात से लागाया जा सकता है कि सुरंग में पिछले सात दिनों से कंपनी की ओर से 40 मजदूरों के फंसे होने की जानकारी लगातार दी जा रही है। लेकिन, अब कंपनी ने एक सूची जारी की, जिससे खुलासा हुआ है कि टनल के भीतर 40 नहीं, बल्कि 41 जिंदगियां फंसी हुई हैं।
41 वें श्रमिक की पहचान बिहार मुजफ्फरपुर के गिजास टोला निवासी दीपक कुमार के रूप में हुई है। जिलाधिकारी अभिषेक रुहेला ने बताया कि जब 41वें श्रमिक का नाम सूची में सामने आया। आप सोचिए कि जिस रेस्क्यू अभियान पर केवल देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की नजर लगी हुई है। उसमें इस तरह लापरवाही बरती गई।
टनल के भीतर कैद में जो 41 श्रमिक हैं, वो केवल श्रमिक नहीं। नवयुगा कंपनी के लिए टनल में फंसे लोग मजदूर हो सकते हैं। लेकिन, वो केवल मजदूर नहीं हैं, किसी के बेटे, किसी के भाई, किसी के पिता, किसी के पति भी हैं।
लेकिन, कंपनी ने जिस तरह से टनल निर्माण में लारवाही बरती है, उससे लोगों में आक्रोश है। कंपनी ने टनल निर्माण की मूल तकनीक पर ही काम नहीं किया। डीपीआर पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि कंपनी ने डीपीआर के अनुसार काम ही नहीं किया।
नतीजा सबके सामने है। 41 जिंदगियां टनल के भीतर कैद हैं। जिंदगी और मौत के बीच झूलती सांसों को आश्वान दिए जा रहे हैं कि उनको जल्द बाहर निकाल लिया जाएगा। लेकिन, सवाल यह है कि सांसों की डोर आश्वासनों के भरोसे कब तक टिकी रहेगी? उनके मनमस्तिष्क पर इसका क्या असर पड़ रहा होगा? कैसे वो अपने वहां सूरज की किरणों के बगैर और खुली हवा के बिना रह पा रहे होंगे?
कैसे अपने मन को ढांढस बंधा रहे होंगे कि आज नहीं, कल हम बाहर निकल जाएंगे? लेकिन, जिस तरह से पहले दिन से लेकर आज 7 दिन बीत चुके हैं। रेस्क्यू के सभी प्रयास फेल साबित हो रहे हैं। उससे अब लोगों को गुस्सा बढ़ रहा है। सवालों की बौछार रेस्क्यू कार्य में जुटे अधिकारियों की जा रही है।
जिस कंपनी के कारण यह सब हुआ। उसके अधिकारी अब मुंह तक नहीं खोल रहे हैं। रेस्क्यू कार्य में जुटी एजेंसियों के लिए टनल के भीतर कैद में फंसे मजदूरों के परिजनों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। 41 जिंदगियों की उम्मीद केवल पाइपों पर आकर टिक गई है। पाइप भी बात-चीत का साधन हैं। उन्हीं से खाना जा रहा है और उन्हीें पाइपों के जरिए टनल में फंसे मजदूरों की सांसें भी चल रही हैं।