प्रकाश उप्रेती
सभागार खचाखच नहीं भरा था. स्टेज पर 4 कुर्सियां और नाम की पट्टी थी. एक आयोजकनुमा जवान अंदर-बाहर और स्टेज के ऊपर नीचे चक्कर काट रहा था. गिनती तो नहीं की लेकिन सभागार में अभी सात-आठ लोग ही थे. उनमें से भी 2 लोग बैठ हुए थे बाकी सभागार की भव्यता और स्टेज की सजावट को हसरत भरी निग़ाहों से निहार रहे थे. तभी 24-25 साल का एक नौजवान गेट को पूरी ताकत से धक्का देते हुए सभागार के भीतर घुसा. उस नौजवान के ललाट पर पसीने की कुछ बूंदे थी, बाल अजय देवगन की भांति माथे से चिपके थे, पीले रंग की कमीज जिसे नाभि तक पहनी हुई पेंट के भीतर अतिरिक्त परिश्रम से खोंचा गया था, पेट तीन चौथाई निकला हुआ, कंधे पर हिमाचल में हुए सेमिनार का झोला, पाँव में चोंच वाले जूते, चेहरे पर अति गंभीरता थी. इस मुद्रा को मैंने ही नहीं बल्कि वहाँ उपस्थित उन 7-8 लोगों ने भी नोटिस किया.
भीतर घुसते ही वह दिव्य नौजवान स्टेज की तरफ बड़ा. उसने स्टेज के ठीक सामने वाली कुर्सी पर अपना झोला रखा और कभी घड़ी तो कभी नेमप्लेट को देखने लगा. तभी नौजवान की नज़र उस आयोजकनुमा व्यक्ति पर पड़ी. वह तुरंत उसके पास गया और बोला- उस नेमप्लेट को बीच में कर दीजिए. आयोजक ने कहा- क्यों?
दिव्य नौजवान बोला – मेरे गुरुजी हैं. उनके साथ पीएच-डी. कर रहा हूँ. वही कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं.
आयोजक ने तुरंत इधर का उधर कर दिया….
तब तक सभागार में कुछ और लोग आ गए थे. अभी भी सभागार खचाखच नहीं भरा था. तकरीबन 100 लोगों के बैठने वाले सभागार में बमुश्किल 30-32 लोग हो गए थे. तभी गेट से एक दिव्य आभा ने प्रवेश किया जिनके सर पर गिनती के बाल, ललाट पर कांतिमय तेज, घुटने से नीचे का कुर्ता, चेहरे पर नाटकीय गंभीरता थी. उनके साथ ही सभागार में 12-13 दिव्य नौजवानों ने भी प्रवेश किया.
यह सब देख पहले से सभागार में विराजमान नौजवान के चेहरे का तेज थोड़ा कम हो गया. वह अपने स्थान से कुछ कदम आगे बड़ा ही था कि पीछे से किसी ने आवाज दी…रवि गुरु जी का पेपर गाड़ी में ही रह गया. यह सुनते ही रवि आकाशीय बिजली की गति से बाहर की तरफ दौड़ा लेकिन उसके गेट तक पहुँचने से पहले ही एक दूसरा नौजवान जो उम्र और कक्षा के हिसाब से उससे जूनियर लग रहा था- हाथ में एक फ़ोल्डर पकड़े हुए अंदर घुस रहा था. उसे देख रवि के चेहरे का बचाकुचा तेज भी गायब हो गया था.
वापस लौटा तो देखता है कि उसकी कुर्सी जो कि ठीक गुरुजी की नेमप्लेट के सामने थी उसे भी किसी दूसरे नौजवान ने हतिया लिया है. उसका झोला वहीं नीचे रखा हुआ था. रवि ने झोला उठाया और गुरुजी की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखते हुए नीचे से उनके पाँव की तरफ लपक ही रहा था कि उतने में गुरुजी ने उसे रोक लिया और ऊपर से डेटा ट्रांसफर टाइप वाला आशीर्वाद दे दिया.
रवि के चेहरे की रौनक फिर लौट आई. उसने झोला उठाया और पीछे कुर्सी में बैठ गया….
गुरुजी ने सबसे पहले चेलों को संबोधित किया, उसके बाद सभागार में बैठे लोगों को, उसके बाद सभागार के सौंदर्य को, उसके बाद आयोजक को और अंत में गुरुजी ने कुछ विषय पर कहा. विषय पर भी वही कहा जो कहते आ रहे थे.
कुछ देर में गुरुजी भाषण उर्फ व्याख्यान देने के लिए उठे तो रवि ने तुरंत जेब से फोन निकाला और कई एंगल से उनकी फोटो लेने लगा . वह फ़ोटो खींच ही रहा था तभी उसकी नज़र उस नौजवान पर पड़ी जो उससे जूनियर और गुरुजी का फ़ोल्डर ला रहा था. उसने देखा कि वह तो DSLR से गुरु जी का फ़ोटो खींच रहा है. रवि के चेहरे पर आई क्षणिक खुशी भी जाती रही.
गुरुजी ने भाषण यहीं से शुरू किया-” इतने कम समय में यह सभागार श्रोताओं से खचाखच भर गया. कुछ कुर्सियां खाली हैं वो भी भर जाएंगी. मेरे कुछ चेले अभी रास्ते में ही हैं.” यह सुनते ही रवि के चेहरे पर फिर खुशी लौट आई. गुरुजी ने सबसे पहले चेलों को संबोधित किया, उसके बाद सभागार में बैठे लोगों को, उसके बाद सभागार के सौंदर्य को, उसके बाद आयोजक को और अंत में गुरुजी ने कुछ विषय पर कहा. विषय पर भी वही कहा जो कहते आ रहे थे.
उसकी प्लानिंग उसके दिमाग में चलने लगी. तभी उसे ध्यान आया कि उसने कमेंट तो किया नहीं. तुरंत उसने फेसबुक खोला और कमेंट सेक्शन में गया तो देखा कि 5 मिनट में ही 50 लाइक और 20 कमेंट वहाँ आ चुके थे. उसके दिमाग में चल रहे सारे विशेषणों का प्रयोग हो चुका था. उसको समझ नहीं आया कि अब क्या लिखूं… बहुत देर सोचने के बाद उसने लिखा- “मैं ही गुरु जी का सबसे पुराना चेला हूँ, अद्भुत”
रवि गुरुजी के एक शब्द को कॉपी पर उतार रहा था. भाषण खत्म होते ही रवि ने गुरूजी के सत्संग को फेसबुक पर टाइप करना शुरू कर दिया. अभी कुछ शब्द टाइप किए ही थे कि उसे एक नोटिफिकेशन दिखाई दिया. उसने उसे जैसे ही खोला- फिर उसके चेहरे की आभा गायब हो गई . वही जूनियर गुरुजी की पूरी रिपोर्ट फेसबुक पर लगा चुका था और तो और गुरुजी ने उसे लाइक भी कर दिया.
अब रवि मन ही मन अगले प्रोग्राम के बारे में सोचने लगा. उसकी प्लानिंग उसके दिमाग में चलने लगी. तभी उसे ध्यान आया कि उसने कमेंट तो किया नहीं. तुरंत उसने फेसबुक खोला और कमेंट सेक्शन में गया तो देखा कि 5 मिनट में ही 50 लाइक और 20 कमेंट वहाँ आ चुके थे. उसके दिमाग में चल रहे सारे विशेषणों का प्रयोग हो चुका था. उसको समझ नहीं आया कि अब क्या लिखूं… बहुत देर सोचने के बाद उसने लिखा- “मैं ही गुरु जी का सबसे पुराना चेला हूँ, अद्भुत”
(लेखक हिमांतर पत्रिका के संपादक एवं असिस्टेंट प्रोफेसर पीजीडीएवी कॉलेज, नई दिल्ली हैं)