अब कहां कौन किसी को पहचानता है!

Anita Maithani

अनीता मैठाणी

कुछ दिनों से बाहर एक्टिवा से आते-जाते हुए चीनी मिट्टी के चाय के कप के गुच्छों से लदी साइकिल दिख जाया कर रही थी। आज एटीएम के बाहर वैसी ही एक साइकिल खड़ी दिखी और उसके ठीक बगल में साइकिल वाला मुंह लटकाये बैठे दिख गया तो मैंने ब्रेक लगाकर एक्टिवा सड़क के दूसरी ओर रोक दी और उसके पास जाकर पूछा क्या हुआ तबियत तो ठीक है आपकी? वह एक फ़ीकी मुस्कान मुस्कुरा दिया बोला थोड़ा थक गया था और तबियत भी ठीक नहीं रहती इसलिए रूक-रूक कर चलता हूं। उम्र रही होगी यही कुछ 60-62।

मैंने कहा- चाय-वाय पी लीजिए कुछ आराम मिलेगा। तो उन्होंने बड़ी आत्मीयता से कहा नहीं-नहीं उसकी जरूरत नहीं है। वो पिछले साल स्टेंट (हृदय की शिराओं में पड़ने वाला स्टंट) पड़ा था तब से थोड़ा थक जाता हूँ साइकिल चलाते हुए बस्स।

अब मैंने पूछा आपका नाम क्या हुआ, वो बोले युनूस। मैंने कहा मैं आपको थोड़ा मदद करूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे। वो बोले- नहीं-नहीं इसकी जरूरत नहीं है। मैंने उनकी साइकिल पर लदे कप्स की तरफ देखा तो कहने लगे- आप कप खरीद सकती हो। मुझे उनका यह विचार अच्छा लगा मैं मग देखने लगी तो दो-चार आने-जाने वाले भी रूक कर कप्स देखने लगे। मैंने कुछ पसंद किया और ले लिया। कहने लगे आपने मेरी दुकानदारी चला दी यही बहुत बड़ी मदद है। संतोष से भरा युनूस का चेहरा बहुत कुछ बयां कर गया।

एक समय ये साइकिल पर लटके कप्स ही थे जो कप खरीदने की दुकान हुआ करते थे। लोग अपनी मांग और इनकी आवक के साथ अपनी जरूरत भर का कप खरीद लिया करते थे। मैंने पूछा पहले तो कुछ पुराने कपड़े, रद्दी के बदले भी कप मिलते थे, तो वो बोल पड़े अब कहां, अब तो पैसों पर ही बेचते हैं पहले तो मैं भी रद्दी के बदले बेचता था। अब तो मुझे कोई नहीं पहचानता पैसों से ही लेन-देन होता है। मैंने अपना सामान लिया और सड़क पार खड़ी एक्टिवा के पास जाकर एक बार उसे मुड़कर देखा वो अपनी दुकान समेटे साइकिल पर सवार होकर जाने की तैयारी में थे।

सच ही तो है अब कहां कौन किसी को पहचानता है पैसों को ही जानता है।

बस यूं ही शेयर करने का मन किया तो लिख लिया।

(अनीता मैठाणी, सदैव सामाजिक और समसामयिक विषयों पर अपनी कलम से- कविता, लेख और रिपोर्ताज लिखती रही है, पीछे लगभग 12 वर्ष से लेखन में सक्रिय हैं. एमकेपी महविद्यालय से स्नातक और डीएवी महाविद्यालय से समाज शास्त्र में मास्टर्स की डिग्री ली है, वर्तमान में स्वधा नाम से अपना हर्बल स्टार्टअप 1121 महिलाओं के संचालित कर रही हैं! पठन-पाठन में विशेष रुची. कई कहानियां, लेख और कवितायें पत्र पत्रिकाओं में प्रकशित!)

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