प्रेम मात्र पा लेना तो नहीं…

सपना भट्ट

कविता कई मायनों में जीवन राग भी है. व्यक्ति के जीवन का व्यक्त- अव्यक्त, दुःख-सुख, प्रेम- वियोग, संघर्ष- सफलता की ध्वनि काव्य में सुनाई देती है. भले ही ‘लेखक की मृत्यु’ की घोषणा हुए पाँच दशक गुजर गए हों लेकिन रचना को आज भी लेखक के संघर्ष और जीवन-अनुभवों से काट कर नहीं देखा जा सकता है. कविता में तो जीवनानुभव और सघन रूप में मौजूद रहते हैं. जीवन की इन्हीं सघन अनुभूतियों को व्यक्त करने वाली कवियत्री हैं- सपना भट्ट. यहाँ सपना भट्ट की पाँच कविताएँ दी जा रही हैं. इन कविताओं में प्रेम की सघन अनुभूति भी है और निश्छल मन की बैचेनी भी है-

(1)

सहानुभूति के लेप से
आत्मा के अदृश्य घाव नहीं भरते
कोरे दिलासों से मन की चिर अतृप्त
तृष्णाएं तृप्ति नहीं पाती।

किसी स्वप्न में किये आलिंगन की
स्मृति की सुवास से
देह नहीं महकती।

पीठ पर हाथ भर फेर देने से
रीढ़ की टीस नहीं जाती
हाथ की रेखाएं बदल लेने से
भाग्य नहीं बदलते।

आँख मूंदने से ओझल भर होता है प्रकाश
सूर्य नहीं बुझता
पानी के प्रतिबिंब से
कंठ की प्यास नहीं बुझती ।

प्रार्थनाओं पर अनास्था से
ईश्वर नहीं मरता
तुम्हारी कविता में पलायन के बिंबों के बाद भी
मुझे मृत्यु नहीं आती ।
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(2 )

देना …
इतनी निर्द्वन्द्व प्रार्थनाएँ
कि अपने सुख से बड़ा रहे प्रेयस का सुख
इतना अडिग साहस
कि स्वयं पर आँच आए पर प्रेम पर नहीं।

इतनी भर गुंजाइश
कि बची रहें रिक्तताएँ आधे मन में
आधा मन हमेशा भरा रहे
एक अनिर्वचनीय आश्वस्ति से।

इतनी भर नीरवता
कि सदा सुधियों में गूंजता रहे
उसके मौन का कोलाहल
और मेरे निजी एकांत में बजता रहे|
उसी का कांपता हुआ आकुल स्वर।

इतना अटल निष्कम्प धीरज
कि सुख में बरसें उनींदी पलकें
दुःख में आँख हँसती रहे ।

हे सृष्टि पिता !
अपनी सबसे पगली संतान को
देना तो यह वर देना ;
कि किसी भग्न मंदिर की
खंडित प्रतिमा के अवशेष की तरह

मैं उसकी स्मृतियों में ठिठका हुआ एक क्षण हो सकूँ
जो कभी न बीते ।
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(3)

विस्मृति से बड़ी कोई औषधि नहीं
मन से निरन्तर रिसते याद के घाव पर
उसी का लेप हो तो प्राण बचते हैं
मेरे जन्मचक्र में किन्तु तुम्हारा स्मृति दोष है

दिन की कोई घड़ी हो, रात का कोई पहर
मन के कोमल तंतुओं को काटती
तुम्हारी याद की छुरी रुकती नहीं
उधर प्रेम के क्रूर ग्रहों को अश्रुओं का अर्घ्य चढ़ता है
इधर मैं सूखती चली जाती हूँ।

हे देवो, गंधर्वों , किन्नरों , नव ग्रहों , दसों दिशाओं
तुमने कहीं देखी है क्या !
दुष्यंत की दी अंगूठी मुझसे कहीं खो गयी है
मैं अपने ही बियाबान में भटक रही हूँ
अभिशप्त और अकेली

पीठ पर कामनाओ की शिला बांध
मुक्ति के ऊंचे बहुत ऊंचे
पहाड़ पर चढ़ना आसान नहीं
मैं तुम्हारी याद का भारी पत्थर पीठ पर नही

सीने पर बांधे जाने कितने जन्मों की असम्भव यात्रा पर हूँ
कहते हैं, कुछ यात्राएं कभी पूरी नहीं होती,
कहते हैं कुछ यात्री कभी कहीं नहीं पहुंचते !
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(4)

जो कभी फलित नहीं हुई
उन प्रार्थनाओं के चिह्न
मेरे माथे पर गहरे खुदे हुए हैं ।

तुम मुझसे बालिश्त भर की दूरी पर हो।
जानती हूं कि दोनो ध्रुव मिल जाएं फिर भी
हमारे मध्य की यह अलंघ्य दूरी नहीं पाटी जा सकती।

मन के कौमार्य से देह की तृष्णाओं तक
एक शोकागार इस अश्रव्य रुदन की
ध्वनियों से भरा हुआ है।

फिर यह क्या कि
सांत्वना की थपकियों से भी
तुम्हारी स्मृतियों के संताप नहीं जाते
आत्मा पर लगे घाव लोप नहीं होते ।

दुख सदा इतने अपने रहे कि साथ नहीं छोड़ते।
सुख ऐसा निर्दयी कि कभी हाथ नहीं आया।

तिस पर प्रेम की वे निगोड़ी दुष्कर अहर्ताएं
मुंह चिढ़ाती रहीं,
जो न मेरी अंकतालिकाओं में थीं
न मेरे हाथ की रेखाओं में ।

मेरे प्यार !
मेरा दोष बस इतना रहा कि
मैंने अयोग्य होते हुए भी तुम्हारी इच्छा की ।

और तुम तो जानते ही होगे
कि किसी के योग्य – अयोग्य हो कर सर उठाना
इच्छाएं कहाँ जानती हैं !
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(5)

प्रेम में इतना भर ही रुके रस्ता
कि ज़रा लम्बी राह लेकर
सर झटक कर, निकला जा सके काम पर।

मन टूटे तो टूटे, देह न टूट
कि निपटाए जा सकें
भीतर बाहर के सारे काम।

इतनी भर जगे आंच
कि छाती में दबी अगन
चूल्हे में धधकती रहे
उतरती रहें सौंधी रोटियां
छुटकी की दाल भात की कटोरी खाली न रहे।

इतने भर ही बहें आँसू
कि लोग एकबार में ही यकीन कर लें
आँख में तिनके के गिरने जैसे अटपटे झूठ का।

इतनी ही पीड़ाएं झोली में डालना ईश्वर!
कि बच्चे भूखे रहें, न पति अतृप्त!
सिरहाने कोई किताब रहे
कोई पुकारे तो
चेहरा ढकने की सहूलत रहे।

बस इतनी भर छूट दे प्रेम
कि जोग बिजोग की बातें
जीवन मे न उतर आएं।
गंगा बहती रहे
घर संसार चलता रहे।

(सपना भट्ट का जन्म 25 अक्टूबर को कश्मीर में हुआ. शिक्षा-दीक्षा उत्तराखंड में सम्पन्न हुई. सपना अंग्रेजी और हिंदी विषय से परास्नातक हैं और वर्तमान में उत्तराखंड में ही शिक्षा विभाग में शिक्षिका पद पर कार्यरत हैं. साहित्य, संगीत और सिनेमा में गम्भीर रुचि। लंबे समय से विभिन्न ब्लॉग्स और पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित.)

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