नोएडा ट्विन टावर: हम कहाँ जा रहे हैं? 

प्रो. गिरीश्वर मिश्र 

टीवी पर नोएडा में सुपर टेक के बहुमंज़िले ट्विन टावरों के गिराने और उससे उड़ते धूल-धुआँ के भयावह दृश्य दिखाने के कुछ समय बाद उसके निर्माता का बयान आ रहा था कि उन्होंने सब कुछ बाक़ायदा यानी नियम क़ानून से किया था और हर कदम पर ज़रूरी अनुमति भी ली थी। शायद 800 करोड़ रूपयों की लागत की यह सम्पत्ति थी जिसे सिर्फ़ 10 सेकेंड में जमीदोज कर दिया गया। वहाँ आस-पास रहने वाले  राहत की साँस ले रहे हैं कि सालों से ठहरी धूप और हवा उन तक पहुँच सकेगी। निश्चय ही यह एक क़ाबिले गौर घटना है जो भ्रष्टाचार होने और उस पर लगाम लगाने इन दोनों ही पक्षों पर रोशनी डालती है।

टीवी के ऐंकर ने यह भी बताया कि सालों से चलते इस पूरे मामले में काफ़ी बड़ी संख्या में अधिकारी संलिप्त रहे थे पर तीन के निलम्बन के सिवा शेष पर अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश के मंत्री का बयान था कि जाँच के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी। कुल मिला कर यह पूरा घटना चक्र भारत में भ्रष्टाचार की व्यापक उपस्थिति के ऊपर बहुत कुछ कहता है।

देश में भ्रष्टाचार-निरोधी उपाय कमजोर और समय-साध्य होने के कारण  इतने लचर हैं कि उनका ज़्यादा असर नहीं पड़ता। एक पखवाड़ा पहले पंद्रह अगस्त के दिन लालक़िले से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार की समस्या की विकरालता की ओर देशवासियों का ध्यान दिलाया था। यह दुखद है आज प्रतिदिन के समाचारों में क़िस्म – क़िस्म के भ्रष्टाचारों की घटनाओं की ही संख्या सर्वाधिक होती है। अब भ्रष्टाचार घर, परिवार, निजी और सरकारी संस्थाओं हर कहीं फ़ैलता जा रहा है और इसका परिणाम जन, जीवन और धन की हानि के रूप में दिख रहा है । इससे सामाजिक जीवन  विषाक्त और खोखला होता जा रहा है।

आर्थिक लोभ के चलते अधिकाधिक कमाई करने के लिए नीचे से लेकर ऊपर तक लोग भरोसे, विश्वास और ज़िम्मेदारी को दांव पर लगा रहे हैं।पश्चिम बंगाल और झारखंड में जिस तरह शासन के उच्च स्तर पर गहन भ्रष्टाचार के तथ्य निकल सामने आए हैं वह आम आदमी के भरोसे को तोड़ने वाला है। आर्थिक अपराध करने वाले बैंकों के साथ किस तरह हज़ारों करोड़ की धोखाधड़ी  कर विदेश भागते रहे हैं यह बात कहीं न कहीं व्यवस्था में कमियों की ओर ध्यान आकृष्ट करती है ।

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आजकल लोग अक्सर उन अवसरों की तलाश में विचरते पाए जा रहे हैं जहां कम से कम लागत में ज़्यादा से नफ़ा कमाया जा सके। वे साधारण जनता को झाँसे में ले कर उन्हें नुक़सान पहुँचाते रहते हैं। इसके लिए झूठ, बेईमानी, घूस और ग़ैर क़ानूनी रास्ते अपनाए जाते हैं। पर इसका संस्थागत रूप भी बन चुका है। मसलन ज़मीन जायदाद की रजिस्ट्री, नक़्शा पास करने वाला दफ़्तर, अग्नि-शमन विभाग, कचहरी और पुलिस थाना, अस्पताल, चुंगी आदि बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहां बिना सुविधा शुल्क के काम ही नहीं चलता। इसलिए इसके केंद्रों पर तैनाती के लिए सेवारत लोग दक्षिणा देते लेते हैं और इस तरह ग़ैर वाजिब धन उगाही करना स्थापित व्यवस्था का स्थायी अंग बन चुका है। इसमें नीचे से ऊपर तक सबका हिस्सा बंधा होता है जो आपसी सहमति से बंटता है।

बेरोज़गारी के दौर में नौकरी देने के लिए घूस देने लेने के मामले नीचे से ऊपर तक व्यवस्था को और भी रुग्ण और कमजोर बना रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी जहां चरित्र अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और समाज पर व्यापक असर पड़ता है भ्रष्टाचार तेज़ी से पाँव पसार रहा है।

(लेखक शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपतिमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा हैं.)

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