कुछ गढवाली रचना
दिशा धियाण
नवरात्रों बेटी पूजदा ना जाणि कै दौ बलात्कार ह्वोणू
जे समाज देश मा बेट्यूं इज्जत तार तार ह्वोणू
रावण अथा घूमण लग्या हर बेटी जांगणी न्यो निसाफ
तख राम जी का भेस मा. बेटी जन्म ह्वोण किले च पाप.
गर्भ बटिन भला बीज डाळा
बलात्कारी नीच सोच ना पाळा
जन नौनी अपडि होंदि
हक्कै भी तनी मांणा दूं
बिरांणा नौन्यूं सम्मान कन
नौन्याळू घौरै बटि समझा दूं.
- अश्विनी गौड़, राउमावि पालाकुराली, रूद्रप्रयाग
अबकि बार
मैनत से बणाई सजांई
कूडी बांजा पडिगिन
चौक तिबार यखुलि
छूटी गैन.
तुमारी सैती बांज बुराश
पैंया
मोळिगिन
झपझपी घास
काटणो हवेगिन.
यि बण डाळा पुंगणा
देखी देखी
थकी गैन
तुमारि जग्वाळ
कर्दि रैन.
स्या नौखंब्या तिबार
चौक की पठ्ठाली
तै पूछण लेगी
कि घौर कब ओला यि.
सैरी कूडी उदास्येगी
जरा आवा दू घौर बौडी
देखा तै चौक तिबार
जु देखणी
धार-धार
कि अजु भी नी ऐन
सि परदेसी घार
हमेशा
नी ओंदू त
घडेक
औ दू जरा
देखण एक झलक
दी दे ते बांजा कूडा
अपडु रैबार
बिसरी गै तू जैं
चौक तिबार .
जखमु माँ दगडि
बेली
कोदे रोटी
अर खे दूध भात
खाणो सीखी छो तू.
तौं ही चोके पठ्ठाली मा
बाबा जी की उंगली
पकडी
हिटण सीखी थो.
अबकी बार तुम बौडी ए जावा
यू चौक तिबार भेंटी जावा।
- लक्ष्मी राणा, पालाकुराली, रुद्रप्रयाग
धै
औ दूँ यख औ दूँ
हे लठ्याळा
औ अपडा पाड़ मा रोला
तौं सैरों कि भागदौड़ चुले
यख ठाठ मा रोला
तख देख! हपार यूं डांडो मा देख
कन बन-बनि रौंस च
औ, ईं हर्याळि तै
होर बढ़ोला
सजोला-धजोला.
त्वेन मेरी पांण नि जाणी
नि पच्छ्याणी अभी
औ द्वी यख मैनत करला
खोला कमोला, सुखि रोला.
चौदिसों चौछोड़ि
सब निरोगी
न दुःख, न बिमारी
औ यख साफ हवा-पाणी मा
अपणि जिन्दगी बितोला.
कथगा गैनी तख तौं सैणौ
बसि गेनी, बौड़ी नि ऐनी
औ त्वी अर मि यख
अपड़ी एक नै दुन्या बसौला.
- कविता कैन्तुरा, रूद्रप्रयाग बटि
“तेरा बस मा”
जुबांन तेरा बस मा
मुस्कान तेरा बस मा.
काज तेरा बस मा
आज तेरा बस मा.
लपांग तेरा बस मा
उड़ान तेरा बस मा.
पर यन न समझि.
भगवान तेरा बस मा.
सब कुछ तेरा बस मा
यु तेरु अहम् च
प्रकृति तेरा बस मा
यु सब तेरु बहम च
- गितांशू कप्रवान, रूद्रप्रयाग
संकलन– अश्विनी गौड , राउमावि पालाकुराली, रुद्रप्रयाग