जैनेटिक विज्ञान का नया दावा : क्या जल से पहले पौधों की उत्पत्ति हुई?

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

क्या है भारतीय सृष्टि विज्ञान की अवधारणा?

दो साल पहले उपर्युक्त शीर्षक से लिखे अपने  फेसबुक लेख को अपडेट करते हुए इस लेख के माध्यम से यह जानकारी देना चाहता हूं कि भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु (1858-1937) because ने उन्नीसवीं शताब्दी में जैनेटिकविज्ञान के क्षेत्र में यह खोज पहले ही कर दी थी कि पौधों में भी जीवन होता है. आधुनिक बायोफिजिक्स के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान यह था की उन्होंने अपने अनुसंधानों द्वारा यह दिखाया की पौधो में उत्तेजना का संचार वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल ) माध्यम से होता हैं न की केमिकल के माध्यम से. बाद में इन दावों को वैज्ञानिक प्रोयोगों के माध्यम से सच साबित किया गया था.

ज्योतिष

आचार्य बसु ने सबसे पहले माइक्रोवेव के वनस्पति के टिश्यू पर होने वाले असर का अध्ययन किया था. उन्होंने पौधों पर बदलते हुए मौसम से होने वाले असर का अध्ययन किया. because इसके साथ साथ उन्होंने रासायनिक इन्हिबिटर्स का पौधों पर असर और बदलते हुए तापमान से होने वाले पौधों पर असर का भी अध्ययन किया था. अलग अलग परिस्थितियों में सेल मेम्ब्रेन पोटेंशियल के बदलाव का विश्लेषण करके वे इस नतीजे पर पहुंचे की पौधे संवेदनशील होते हैं वे “दर्द महसूस कर सकते हैं, स्नेह अनुभव कर सकते हैं इत्यादि”.

ज्योतिष

अपनी खोज पर because उन्हें इतना दृढ़ विश्वास था कि उन्होंने भरी सभा में जहरीले इंजेक्शन की परवाह किए बिना कह दिया कि “अगर इस इंजेक्शन का इस पौधे पर कोई असर नही हुआ तो दूसरे सजीव प्राणी, यानी मुझ पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा.”

ज्योतिष

बसु ने दर्शाया कि अगर पौधों को काटा जाए या फिर उनमें जहर डाल दिया जाए तो उन्हें भी हमारी तरह तकलीफ होती है और वह मर भी सकते हैं. उन्होंने एक सभागार में because इस बात को प्रयोग के माध्यम से सार्वजनिक रूप से दर्शाया तो लोग दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो गए. बसु ने एक पौधे में जहर का इंजेक्शन लगाया और वहां बैठे वैज्ञानिकों से कहा- “अभी आप सब देखेंगे कि इस पौधे की मृत्यु कैसे होती है.”

ज्योतिष

उन्होंने प्रयोग शुरू किया और जहर का इंजेक्शन पौधे को लगाया. पर, पौधे पर कोई असर नहीं हुआ. अपनी खोज पर उन्हें इतना दृढ़ विश्वास था कि उन्होंने भरी सभा में जहरीले इंजेक्शन because की परवाह किए बिना कह दिया कि “अगर इस इंजेक्शन का इस पौधे पर कोई असर नही हुआ तो दूसरे सजीव प्राणी, यानी मुझ पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा.” परिणाम की चिंता किए बिना जैसे ही बसु खुद को इंजेक्शन लगाने ही जा रहे थे कि दर्शकों के बीच से एक आदमी खड़ा हुआ और कहा- ‘मैं अपनी हार मानता हूं, मिस्टर जगदीश चन्द्र बोस, मैंने ही जहर की जगह एक मिलते-जुलते रंग का पानी डाल दिया था.’ बोस ने फिर प्रयोग शुरू किया और पौधा सभी के सामने मुरझाने लगा.

ज्योतिष

एक अन्य अध्ययन क्षेत्र, जिसने बसु को आकर्षित किया, वह था पौधों में जड़ों से तने और पत्ते और फुन्गियों तक पानी का ऊपर चढ़ना. पौधे जो पानी सोखते हैं, उसमें अनेक प्रकार के कार्बन तथा अकार्बनिक तत्व भी होते हैं. यह जलीय मिश्रण का पौधों में because ऊपर चढ़ना “असेन्ट ऑफ सैप” कहलाता है. पौधों की वृद्धि और अन्य जैविक क्रियाओं पर समय के प्रभाव के अध्ययन की बुनियाद जगदीश चंद्र बसु ने डाली थी, जो आज विज्ञान की एक शाखा क्रोनोबायोलॉजी के नाम से प्रसिद्ध है.

ज्योतिष

मेरी इसी प्रस्तावना के साथ यदि दो वर्ष पूर्व लिखे लेख को पढ़ेंगे तो यह जानकारी बेहतर रूप से मिल सकेगी कि ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में भारत की अग्रणी भूमिका होने पर भी आविष्कार का श्रेय because पश्चिम के विद्वानों को ही दे दिया जाता है. किन्तु  हमारे सनातन हिन्दू धर्म में वृक्षों की पूजा करने और नौले,नदी तालाबों के किनारे वृक्षारोपण की परंपरा शुरू की उसका मूल सिद्धांत भी यही जैनेटिक सोच थी कि पौधों में जीवन होता है.

ज्योतिष

दरअसल, प्रस्तुत लेख दो वर्ष पूर्व आज के ही दिन ‘राष्ट्रीय सहारा’ आदि समाचार पत्रों में सुर्खियों में छपी इस खबर से जुड़ा था, जिसमें कनाडा के अलबर्टा विश्वविद्यालय के ‘ग‍ेन का शु वॉन्ग’ because समेत अन्य कई जैनेटिक विज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा जीवाणु से लिए गए जीन (वंशाणु) का परीक्षण करते हुए सृष्टिविज्ञान के क्षेत्र में एक नई खोज करने का दावा किया गया था कि धरती में जीवन की उत्पत्ति सबसे पहले मनुष्यों में नहीं,अपितु जल में उगे पौधों के माध्यम से हुई थी.

ज्योतिष

क्या भूमि पर जीवन की उत्पत्ति पौधों से शुरू हुई? इस सम्बन्ध में जैनेटिक विज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं की यह मान्यता रही है कि पौधों का जल से जमीन को अपना प्राकृतिक वास बनाना तब संभव हुआ जब मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणु के वंशाणु शैवाल तक स्थानांतरित होने लगे. अध्ययन में पाया गया कि पौधों ने क्षैतिज वंशाणु स्थानांतरण की because प्रक्रिया के जरिए ये जीन हासिल किए. इसके बाद पौधों ने धीरे-धीरे जमीन पर अपनी जड़ें जमाना शुरू किया और इस प्रक्रिया में डीएनए, प्रजातियों के बीच में स्थानांतरित होता रहा है. इस प्रक्रिया में जीवाणु से लिए गए जीन (वंशाणु) की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. वॉन्ग ने कहा, “जल से होकर भूमि पर जीवन की उत्पत्ति -पौधों से शुरू हुई जिसका फिर जानवरों ने अनुकरण किया और अंत में निश्चित तौर पर मनुष्यों ने. यह अध्ययन दिखाता है कि पहला कदम कैसे उठा था.” जीन सम्बंधी यह अध्ययन ‘सेल’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

ज्योतिष

आजकल पश्चिमी पुरातत्त्ववादी और आनुवंशिकी because के विद्वान जैनेटिक साइंस के आधार पर अपने नए नए शोधों के माध्यम से सांइंस पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित कर के कुछ ऐसी सनसनी फैलाना चाहते हैं,जिनका आविष्कार आठ-दस हजार वर्ष पूर्व भारतीय आर्य विचारकों और तत्त्ववेत्ता विशेषज्ञों द्वारा हो चुका था.

ज्योतिष

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त के अनुसार सृष्टि के because आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश,न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से श्वास ले रहा था. उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था-

ज्योतिष

नासदासीन because नो सदासीत तदानीं
नासीद रजो नो वयोमापरो यत.

किमावरीवः कुह because कस्य शर्मन्नम्भः
किमासीद because गहनं गभीरम..

न मर्त्युरासीदम्र्तं because न तर्हि
न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः.

आनीदवातं because सवधया तदेकं
तस्माद्धान्यन न परः किं चनास ..”
ऋग्वेद,10.129..-2

श्याम बेनेगल के धारावाहिक because ‘भारत एक खोज’ के शीर्षक गीत में वसंत देव ने इन वैदिक ऋचाओं का अनुवाद इस प्रकार किया है-

ज्योतिष

सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत becauseभी नहीं
अंतरिक्ष soभी नहीं
आकाश but भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ
किसनेbecause ढका था
उस soपल तो
अगम butअतल जल भी कहां था
सृष्टि का becauseकौन है कर्ता?
कर्ता है soया विकर्ता?
ऊँचे butआकाश में रहता
सदा soअध्यक्ष बना रहता
वही butसचमुच में जानता
या नहीं भी becauseजानता
है किसी soको नहीं पता
नहीं butपता
नहीं becauseहै पता
नहीं soहै पता

ज्योतिष

भारतीय दृष्टि से जीवन की उत्पत्ति

भारतीय चिंतकों ने जीवन की उत्पत्ति because और उसके सृष्टिक्रम का जो सिद्धांत दिया,उसके अनुसार सबसे पहले पेड़-पौधे, फिर जलचर जंतु, फिर उभयचर, फिर नभचर तथा अं‍त में थलचर जीव-जंतुओं की उत्पत्ति को माना गया है.भारतीय सृष्टिविज्ञान के अनुसार जड़ और चेतन दोनों ही ईश्वर द्वारा रचे गए स्थावर और जंगम तत्त्व हैं, जैसा कि ईशावास्योपनिषद्’ के इस वेदमन्त्र में कहा गया है-

ज्योतिष

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् .
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्..”
(
ईशोपनिषद्, मन्त्र 1)

दरअसल,आत्मा का नीचे गिरना because ही जड़ हो जाना है और आत्मा का ऊपर उठना ही ब्रह्म हो जाना है.

ज्योतिष

यह नीचे गिरने और ऊपर उठने की प्रक्रिया ब्रह्मांड में अनंत काल से जारी और आज भी चल रही है. जब आत्मा जड़ बन गई तो उसने फिर से उठने का प्रयास किया और फिर because वह भौतिक सृष्टिविज्ञान के धरातल पर जल में पौधों के रूप में अभिव्यक्त हुई. फिर जलचर के रूप में, फिर उभयचर और फिर थलचर के रूप में. इन समस्त जलचर,थलचर और नभचर में भी आत्मा का अस्तित्व है किंतु मानव के रूप में ही मनुष्य अपने आत्मस्वरूप को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त कर सकता है.तैत्तिरीय उपनिषद में सृष्टि का जो क्रम बताया गया है,उसके अनुसार भी ब्रह्म से आविर्भूत जीवाश्म या स्फुलिंग वायु,आकाश,वानस्पतिक योनियों को प्राप्त होता हुआ अन्नरसमय पुरुष संज्ञा को प्राप्त करता है-

ज्योतिष

तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः. आकाशाद्वायुः. वायोरग्निः. अग्नेरापः. अद्भ्यः पृथिवी. पृथिव्या ओषधयः. ओषधीभ्योऽन्नम्. अन्नात्पुरुषः. स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः.”
तैत्तिरीय उपनिषद, 2.1.1

ज्योतिष

अर्थात् उस परमात्मा से आकाश उत्पन्न हुआ.आकाश के पश्चात वायु, वायु के पश्चात अग्न‍ि,अग्नि के पश्चात जल, जल के पश्चात पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि,औ‍षधियों से अन्न,अन्न से वीर्य,वीर्य से because पुरुष अर्थात शरीर उत्पन्न होता है. यह शरीर अन्न के रस से निर्मित हुआ है. आधुनिक वैज्ञानिक ईश्वर और ब्रह्मांड की अवधारणा नहीं मानते हैं केवल पृथिवी के धरातल पर उन्होंने सृष्टि की परिकल्पना की है. किंतु भारतीय चिंतकों ने सृष्टि की उत्पत्ति के विचार को समग्र ब्रह्मांड से जोड़ते हुए उसका क्रम इस प्रकार से निर्धारित किया है-

ज्योतिष

अनंत ब्रह्म > महत् > अंधकार >आकाश > वायु >अग्नि > जल > पृथ्वी. अनंत जिसे आत्मा या ब्रह्म कहते हैं मन, बुद्धि, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल because और पृथ्वी ये प्रकृति के आठ तत्त्व हैं.

इनमें भी पृथ्वी पर भौतिक सृष्टि का because क्रम इस प्रकार है- पृथ्वी > औषधि (वनस्पतियां) > जलचर > उभयचर > थलचर > अन्न > मानवी सृष्टि.

ज्योतिष

ब्रह्म (आत्मा) से आकाश की उत्पत्ति

उपनिषदों के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ मैं जो कारण रूप द्रव्य (ब्रह्माणु) सर्वत्र फैल रहा था उसको इकट्ठा करने से अवकाश यानी स्पेश उत्पन्न होता है. वास्तव में आकाश की उत्पत्ति नहीं होती, because क्योंकि बिना स्पेश के प्रकृति और परमाणु कहां ठहर सकता और बिना स्पेश के आकाश कहां हो सकता.अवकाश अर्थात जहां कुछ भी नहीं है और आकाश जहां सब कुछ है.

ज्योतिष

आकाश के पश्चात वायु की उत्पत्ति

आत्मा से अवकाश यानी स्पेश,अवकाश से आकाश और आकाश से वायु की उत्पत्ति हुई. वायु आठ तरह की होती है. सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से because यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है.वायु को ब्रह्मांड का प्राण और आयु कहा जाता है. जैसे- हमारे शरीर में हमारे बाद मन की सत्ता है. फिर प्राण की और फिर जल, अग्नि और शरीर की. शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है.प्राणवायु ही जीवन का मूलाधार है.

ज्योतिष

वायु के पश्चात अग्नि की उत्पत्ति

वायु में ही अग्नि और जल तत्व because छुपे हुए रूप में रहते हैं. वायु ठंडी होकर जल बन जाती है गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है. वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई. अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी. वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है लेकिन यहां जिस वायु की बात कही जा रही है वह किसी धरती ग्रह की नहीं अंतरिक्ष में वायु के विराट समुद्री गोले की बात कही जा रही है.

ज्योतिष

वैज्ञानिक भी मानते हैं because कि जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया यानी ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया.धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों कि.मी. तक बर्फ भी जमी है.धरती पर 75 प्रतिशत जल ही है.

ज्योतिष

अग्नि से जल की उत्पत्ति

वायु जब विराट अग्नि के गोले में because बदल गई तो उसी में जल तत्व की उत्पत्ति हुई.अं‍तरिक्ष में आज भी ऐसे समुद्र घुम रहे हैं जिनके पास अपनी कोई धरती नहीं है लेकिन जिनके भीतर धरती बनने की प्रक्रिया चल रही है.

ज्योतिष

जल से धरती की उत्पत्ति हुई

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि because जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया यानी ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया.धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों कि.मी. तक बर्फ भी जमी है.धरती पर 75 प्रतिशत जल ही है.

ज्योतिष

दरअसल,यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड अंडाकार है,जो जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है. इससे जल से भी दस ‍गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से ‍घिरा हुआ है और इससे भी दसbecause गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ माना गया है.

वायु से दस गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है,वहां से यह दस गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है. और यह तामस अंधकार because भी अपने से दस गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा हुआ है.

ज्योतिष

उस अनंत ब्रह्म से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है. प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही because प्रलय है.ईशोपनिषद में यह आया है-

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते.

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥ॐ

ज्योतिष

अर्थात् वह (परब्रह्म) पूर्ण है because और यह (कार्यब्रह्म) भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है. तथा (प्रलयकाल मे) पूर्ण (कार्यब्रह्म) – का पूर्णत्व लेकर (अपने मे लीन करके) पूर्ण (परब्रह्म) ही शेष रहता है. त्रिविध ताप की शांति हो.

ज्योतिष

अंत में कहना चाहुंगा कि आधुनिक काल में पश्चिमी पुरातत्त्ववादी और आनुवंशिकी के विद्वान जैनेटिक साइंस के द्वारा जो नई खोज होने का दावा कर रहे हैं,दरअसल, उनके द्वारा हजारों because वर्ष प्राचीन ऋग्वेद के दार्शनिक सूक्तों और उपनिषदों के सृष्टिविज्ञान की मान्यताओं की ही पुष्टि की जा रही है तथा आधुनिक काल में भी पहले भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ही थे जिन्होंने जैनेटिक विज्ञान के क्षेत्र में भी सबसे पहले वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि वनस्पतियों में भी हमारी तरह प्राण होते हैं. वह भी हमारी तरह दुःख और सुख का अनुभव करती हैं.

ज्योतिष

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के  रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में विद्या रत्न सम्मानऔर 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा आचार्यरत्न देशभूषण सम्मानसे अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्रपत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *