राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-4
- डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा “अरुण”
लगभग 34 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और कर्मठ केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” के प्रयासों के परिणाम स्वरूप भारत को नई शिक्षा नीति के रूप में वस्तुतः ‘लॉर्ड मैकाले की मानसिक कैद’ से मुक्ति मिली है. माननीया श्रीमती इंदिरा गाँधी की निर्मम हत्या के बाद जब उनके सुपुत्र श्री राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने, तो उनके दिमाग में शिक्षा का कोई रूप अगर था, तो वह था “दून स्कूल, देहरादून” की अंग्रेजी से लदी-फदी ‘कान्वेंट’ की शिक्षा का और उन्होंने इसी लिए भारत को एक बार फिर से विदेशी अवधारणा के अनुसार चलाने का स्वप्न संजोया. उस समय राजीव गाँधी के सलाहकार थे सैम पित्रोदा, जो स्वयं विदेशी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे. इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के “शिक्षा मंत्रालय” का नाम बदलकर “मानव संसाधन विकास मंत्रालय” कर दिया गया. इस प्रकार “शिक्षा की अवधारणा” को ही पूरी तरह बदल दिया गया और शिक्षा का उद्देश्य अब “विद्वान्” पैदा करना न होकर “मानव संसाधन” (Human Resource) बनाना ही रह गया.
भारत विगत 34 वर्षों से इसी विदेशी अवधारणा पर चलते हुए देश में केवल पढ़े-लिखे ‘मानव-संसाधन’ का निर्माण करता रहा जैसे बड़े-बड़े बांधों और बिल्डिंगों के निर्माण के लिए ईंट-गारे आदि का प्रबंध किया जाता है. इसका दुष्परिणाम हमें तब देखने को मिला जब देश में गाँव-गाँव और गली-गली में ‘इंग्लिश मीडियम’ स्कूलों की बाढ़ आ गई. धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि स्वाधीन भारत में एक बार फिर से ‘लॉर्ड मैकाले’ की आत्मा जिंदा हो गई है. हमारी शिक्षा की नींव “प्राइमरी शिक्षा” पूरी तरह “कान्वेंट” प्रणाली की गिरफ्त में आ गई और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों की स्थिति सोचनीय होती गई. संस्कारों की जगह अब शिक्षा का लक्ष्य “कारों की प्राप्ति” हो गया. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारी शिक्षा “दो मुही” बन गई. एक शिक्षा थी “इंडिया” के लिए और दूसरी थी “भारत” के लिए. ‘इंडिया’ की शिक्षा पाने वालों का लक्ष्य था डिग्री लेकर अमेरिका, जापान, इंग्लैंड या किसी भी विदेशी कंपनी में जाकर लाखों डॉलर का ‘पैकेज’ प्राप्त करना और ‘भारत’ की शिक्षा प्राप्त करने वालों को “हीन भावना से देखना” और उन्हें दोयम दर्जे का आंकना.
इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हमारे युवाओं को ‘पढ़ा- लिखा संसाधन’ मानकर विदेशों में नौकरियां मिली और परोक्ष रूप से हमारी प्रतिभाओं का उपयोग विदेशों की समृद्धि के लिए होता रहा. यह स्थिति निरंतर चलती ही नहीं रही,बल्कि खूब फली और फूली और हमने भारत की गली-गली में अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा देने वाली दुकानें खुलवा दीं.
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि भारत की “नई शिक्षा नीति-2020” को बनने के लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के साथ ही कुल 6,600 ब्लौक पंचायतों तथा 676 जिला पंचायतों के लोगों से सुझाव लिए गए हैं. किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में शायद यह पहला मौका है कि किसी नीति को बनाने के लिए इतने बड़े स्तर पर आमजनों और शिक्षाविदों की राय ली गई हो.
भारत का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि सन 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी और भारत की शिक्षा व्यवस्था को आमूलचूल बदलने के लिए उच्चस्तरीय समिति प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में गठित की गई.
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि भारत की “नई शिक्षा नीति-2020” को बनने के लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के साथ ही कुल 6,600 ब्लौक पंचायतों तथा 676 जिला पंचायतों के लोगों से सुझाव लिए गए हैं. किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में शायद यह पहला मौका है कि किसी नीति को बनाने के लिए इतने बड़े स्तर पर आमजनों और शिक्षाविदों की राय ली गई हो. यही कारण है कि देश भर में “राष्ट्रीय नई शिक्षा नीति” का भरपूर स्वागत किया गया है.
नई शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य
वास्तव में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ इक्कीसवीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है, जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है. यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के शाश्वत आधार को सुरक्षित रखते हुए, इक्कीसवीं सदी की शिक्षा-व्यवस्था के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों के संयोजन में शिक्षा-व्यवस्था के सभी पक्षों के सुधार और पुनर्गठन पर जोर देती है! दूसरे शब्दों में कहें तो 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूर्णतः सर्वसमावेशी स्वरुप में शिक्षा को देखने का प्रयास है!
संक्षेप में नई शिक्षा नीति में भारत की शिक्षा-व्यवस्था का रूप अब कैसा होगा, इसे निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है-
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy, 2020) को स्वीकृति दे दी है. 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है. नई शिक्षा नीति की उल्लेखनीय बातें सरल तरीके से इस प्रकार समझी जा सकती हैं-
5 Years Fundamental
- Nursery @4 Years
- Jr KG @5 Years
- Sr KG @6 Years
- Std 1st @7 Years
- Std 2nd @8 Years
3 Years Preparatory
- Std 3rd @9 Years
- Std 4th @10 Years
- Std 5th @11 Years
3 Years Middle
- Std 6th @12 Years
- 10.Std 7th @13 Years
- 11.Std 8th @14 Years
- 4 Years Secondary
- 12.Std 9th @15 Years
- 13.Std SSC @16 Years
- 14.Std FYJC @17Years
- 15.STD SYJC @18 Years
10वीं की बोर्ड परीक्षा ख़त्म होगी. एम.फिल. (MPhil) बंद हो जाएगा. कॉलेज की डिग्री 4 साल की रहेगी.
“सर्वाधिक मूल्यवान परिवर्तन”
नई शिक्षा नीति का सबसे मूल्यवान और सार्थक परिवर्तन यह है कि अब 5वीं कक्षा तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्र भाषा में ही पढ़ाया जाएगा. बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा.
वास्तव में सभी शिक्षाविदों का यह मानना रहा है कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा यदि उनकी मातृ-भाषा या फिर स्थानीय भाषा में दी जाए, तो वह अधिक उपयोगी होती है और बच्चा बहुत शीघ्र उसे ग्रहण करता है. अब अंग्रेजी का भूत बच्चों को अनावश्यक रूप से नहीं डराएगा और रटने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा.
अब 12वीं कक्षा में आकर ही बोर्ड की परीक्षा देनी होगी, जबकि इससे पहले 10वी बोर्ड की परीक्षा देना अनिवार्य होता था, जो अब नहीं होगा. अब 9वीं से 12वीं क्लास तक सेमेस्टर पद्धति में परीक्षा होगी. स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा.
नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को एक ऐसी सुविधा दी गई है, जो अब तक नहीं थी और लाखों विद्यार्थी अपनी वैयक्तिक मजबूरियों के चलते अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते थे. अब विद्यार्थी किसी एक कोर्स को कुछ समय के लिए स्थगित करके दूसरा कोर्स बीच में कर सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि नई शिक्षा नीति में देश की उच्च शिक्षा में सन 2035 तक एनरोलमेंट का अनुपात बढकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य प्राप्त करना रखा गया है.
वहीं सबसे मूल्यवान परिवर्तन कॉलेज की उच्च शिक्षा में हुआ है! अब डिग्री 3 और 4 साल की होगी, यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेट, दूसरे साल पर डिप्लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी और जो विद्यार्थी शोध के क्षेत्र में जाना चाहेंगे, उन्हें डिग्री के चौथे वर्ष में “शोध” के विषय पढ़ाए जाएंगे और वे एक वर्ष में एम.ए. करके पीएचडी कर सकेंगे. वस्तुतः तीन वर्ष की डिग्री उन छात्रों के लिए है, जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है. वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी और 4 साल की डिग्री करने वाले स्टूडेंट्स एक साल में एम.ए. (M.A.) कर सकेंगे.
अब विद्यार्थियों को एम.फिल. (M Phil) नहीं करना होगा, बल्कि एम.ए. करने के बाद छात्र सीधे पीएचडी (PhD) कर सकेंगे!
“लीक से हटकर नए परिवर्तन”
नई शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को एक ऐसी सुविधा दी गई है, जो अब तक नहीं थी और लाखों विद्यार्थी अपनी वैयक्तिक मजबूरियों के चलते अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते थे. अब विद्यार्थी किसी एक कोर्स को कुछ समय के लिए स्थगित करके दूसरा कोर्स बीच में कर सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि नई शिक्षा नीति में देश की उच्च शिक्षा में सन 2035 तक एनरोलमेंट का अनुपात बढकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य प्राप्त करना रखा गया है. बीच में अगर कोई विद्यार्थी किसी कारण दूसरा कोर्स करना चाहे, तो वह अपने पहले कोर्स से “सीमित समय के लिए” ब्रेक लेकर दूसरा कोर्स कर सकता है और उसके बाद अपना पहला कोर्स भी पूरा कर सकता है.
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में भी अनेक नए सुधार किए गए हैं ताकि देश के युवाओं को निर्बाध शिक्षा के अवसर मिल सकें. सुधारों में ग्रेड, अकादमिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता देना (ऑटोनॉमी) आदि शामिल हैं!
नई शिक्षा नीति में जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात हुई है ,वह यह है कि क्षेत्रीय भाषाओं को महत्त्व देते हुए इन भाषाओं में ‘ई-कोर्स’ शुरू करने की पहल की गई है, जिससे एक ओर विद्यार्थियों को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति लगाव के कारण अपनी पढ़ाई पूरी करने का उत्साह होगा तो दूसरी ओर क्षेत्रीय भाषाओं का विकास भी सुनिश्चित होगा. वर्चुअल लैब बनने के साथ ही पूरे देश में नेशनल साइंटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा.
स्मरणीय है आज कि देश में 45 हजार कॉलेज हैं और सरकारी, निजी, डीम्ड विश्वविद्यालयों के साथ-साथ अनेक संस्थान चल रहे हैं, जिनके लिए अब एक समान नियम होंगे, ताकि राष्ट्रीय एकता स्थापित की जा सके और उच्च शिक्षा में एकरूपता के साथ ही गुणवत्ता भी सुनिश्चित हो सके.
हमारे शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल “निशंक” का स्वप्न रहा है कि भारत की प्रतिभा का उच्चतम सदुपयोग भारत में ही हो और जो “ब्रेन-ड्रेन” अर्थात ‘प्रतिभा-पलायन’ हो रहा है, उसे रोका जाए, ताकि हमारी भारतीय मेधा और प्रतिभा भारत के सर्वोमुखी विकास में लग सके. डॉ. “निशंक” का सपना तो यह है कि दूसरे देशों के युवा भारत में पढ़ने आएं ताकि हमारी शिक्षा का लोहा पूरा विश्व माने.
एक और उल्लेखनीय उपलब्धि वर्तमान नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की यह है कि इसमें हमारी प्राचीन भाषाओं संस्कृत, पालि, प्राकृत-अपभ्रंश तथा पर्शियन के उद्धार और विस्तार के साथ-साथ इन में उच्चस्तरीय शोध के द्वार पहली बार खोले गए हैं.
हमारे शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल “निशंक” का स्वप्न रहा है कि भारत की प्रतिभा का उच्चतम सदुपयोग भारत में ही हो और जो “ब्रेन-ड्रेन” अर्थात ‘प्रतिभा-पलायन’ हो रहा है, उसे रोका जाए, ताकि हमारी भारतीय मेधा और प्रतिभा भारत के सर्वोमुखी विकास में लग सके. डॉ. “निशंक” का सपना तो यह है कि दूसरे देशों के युवा भारत में पढ़ने आएं ताकि हमारी शिक्षा का लोहा पूरा विश्व माने.
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विस्तृत विचार-विमर्श के पश्चात् लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने जा रही है, जिसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि प्राथमिक स्तर पर बच्चे अपनी मूल मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करेंगे और उनमें राष्ट्रीयता की भावना बलवती होगी!
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विस्तृत विचार-विमर्श के पश्चात् लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने जा रही है, जिसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि प्राथमिक स्तर पर बच्चे अपनी मूल मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करेंगे और उनमें राष्ट्रीयता की भावना बलवती होगी!
(लेखक पूर्व प्राचार्य हैं)