राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भाग-2
- डॉ. अरुण कुकसाल
मैकाले ने तत्कालीन गर्वनर जनरल विलियम वैंटिक को संबोधित अपने 2 फरवरी, 1935 के एक विवरण पत्र (Macaulay’s Minute Of 1935) में मात्र 3 सुझाव देकर भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को बिट्रिश सरकार की जबरदस्त इच्छा-शक्ति और सार्मथ्य की साहयता से पूर्णतया बदलवा दिया था.
स्वाधीनता के बाद विविध समय अन्तरालों में शिक्षा पर बनी सभी नीतियां एवं कार्यक्रम अपने समय-काल के अनुरूप और भविष्य की दूरदर्शिता की दृष्टि से उपयोगी और कारगर थे. बस, उनके क्रियान्वयन में हमारी सरकारें कमजोर से कमजोर साबित हुई हैं. नतीजन, शिक्षा के क्षेत्र में हम हर बार शून्य से आगे बढ़ने की कोशिश में लगे जैसे दिखते हैं.
नई शिक्षा नीति में सहमति, असहमति और आशंकाओं के कई बिन्दु हैं. परन्तु ये सब ज्यादा मायने नहीं रखते हैं. मायने तो यह है कि देश के सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों के मूलभूत हितों हेतु सरकार अपने ही कार्यक्रमों एवं उपायों के प्रति कितनी और कब तक प्रतिबद्ध रह पाती है. पिछली नीतियों की प्रमुख कमजोरी और विफलता यही रही कि शुरुआती सरकारी शोर-जोर तो खूब रहा परन्तु बाद में ‘शोर’ ‘शांत’ और ‘जोर’ ‘ढ़ीला’ होकर कहीं किन्हीं शैक्षिक विमर्शों के कोने में लुढ़का-दुबका कराहता रहा है. नतीजन, धीरे-धीरे विभिन्न शैक्षिक संस्थायें ‘अपनी ढ़पली अपना राग’ पर संचालित होती रही हैं. दिनों-दिन सरकारी और निजी शैक्षिक संस्थाओं के बीच स्तर एवं वर्चस्व की खाई ज्यादा विस्तृत और गहरी होती जा रही है.
वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय से उच्च प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय से हाईस्कूल और हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक का शैक्षिक ढांचा कक्षाओं के बीच अनावश्यक खिंचाव की मुद्रा में हैं. जो कि टुकडे-टुकडे में बंटा सा दिखता है. नतीजन, एक सामान्य बच्चा उत्तरोत्तर कक्षा के लिए उत्साह से अधिक अनचाहे डर – संकोच से घिरा रहता है. नई नीति में कक्षा स्तरों को सहज तालमेल के साथ एक क्रमबद्ध श्रृखंला की ओर दिशा दी गई है.
शिक्षा के संबध में सरकारें मात्र सैंद्धातिक मार्गदर्शक वो भी मूक बनकर ही आचरण करती रही हैं. पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों में मातृभाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाने की मंशा, एक जैसी शिक्षा या फिर देश की जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने का सरकारी राग इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.
अब बात करते हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के उन प्रमुख पक्षों-बदलावों की जो विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों को विगत कई दशकों की शैक्षिक जकड़न से मुक्त कराने की राह आसान करेगा.
1. निरंतर प्रवाहवान, समग्र और समावेशी शैक्षिक दृष्टि-
- 1.1 वर्तमान विद्यालयी शिक्षा प्रणाली 10+2 में 6 से 18 वर्ष के विद्यार्थी शामिल हैं. 3 से 5 तक की आयु के बच्चों के लिए अलग से आंगनबाड़ी शिक्षा का प्रावधान है. नई शिक्षा नीति में प्रचलित विद्यालयी शिक्षा प्रणाली 10+2 के स्वरूप को बदलकर 5+3+3+4 कर दिया गया है. अब विद्यालयी शिक्षा के दायरे को विस्तारित करके उसमें 3 से 18 वर्ष तक के विद्यार्थियों को लाया गया है. निश्चित रूप में नई नीति में आंगनबाडी शिक्षा ( 3 से 5 आयु वर्ग ) को विद्यालयी शिक्षा में समाहित कर बच्चों की उत्तरोत्तर कक्षाओं की आपसी तारतम्यता को एक सुगम प्रवाह देकर अधिक प्रासंगिक और प्रभावी बनाने का सफल प्रयास किया गया है.
- 1.2 वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय से उच्च प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय से हाईस्कूल और हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक का शैक्षिक ढांचा कक्षाओं के बीच अनावश्यक खिंचाव की मुद्रा में हैं. जो कि टुकडे-टुकडे में बंटा सा दिखता है. नतीजन, एक सामान्य बच्चा उत्तरोत्तर कक्षा के लिए उत्साह से अधिक अनचाहे डर – संकोच से घिरा रहता है. नई नीति में कक्षा स्तरों को सहज तालमेल के साथ एक क्रमबद्ध श्रृखंला की ओर दिशा दी गई है.
- 1.3 नई नीति में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम – 2009 के प्रारंभिक शिक्षा सुलभ कराने हेतु कानूनी आधार को और व्यापक बनाया गया है. वर्तमान में इसमें 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा को ही शामिल किया जा रहा है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इसका फलक पूर्व प्राथमिक से लेकर इंटरमीडिएट की कक्षाओं तक कर दिया गया है. अर्थात अब इसके अन्तर्गत 3 से 18 वर्ष तक के अध्ययनरत विद्यार्थी लाभान्वित होंगे. यह बदलाव संपूर्ण विद्यालयी शिक्षा में बहुजन और कमजोर आर्थिक वर्ग के परिवारों के बच्चों की और अधिक उपस्थिति को प्रेरित करेगा.
- 1.4 हाईस्कूल की परीक्षा को अधिक सरलीकृत करके वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा के अनावश्यक कसे हुये शैक्षिक वातारण में स्वाभाविक सहजता आयेगी.
- 1.5 विद्यालयी शिक्षा के चारों चरणों में सेमेस्टर अथवा अन्य प्रणाली की ओर बढ़ने का विचार परीक्षा को कक्षा – कक्ष की गतिविधियों से सीधे जोड़ने की सकारात्मक पहल है. इससे पढ़ाई और परीक्षा की आपसी कसमसाहट को कम किया जा सकेगा.
2. शैक्षिक खाचों से मुक्त शिक्षा-
- 2.1 धर्म, जाति, वर्ग, क्षेत्र और अन्य विभेदों वाले हमारे समाज में विभिन्न शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले वर्ग भी अपने प्रभुत्व के साथ पहचान बनाए हुए हैं. मानविकी, विज्ञान और व्यावसायिक विषयों में विभाजित संपूर्ण शिक्षा प्रणाली ने कई शैक्षिक खाचों को जन्म दिया है. जो अक्सर एक दूसरे से अनजान रहते और रहना चाहते हैं. विद्यार्थियों और शिक्षकों में अपने विषयों के प्रति अहम अथवा हीनता का भाव अक्सर झलकता रहता है. यहां तक कि अभिभावक भी इस अहम अथवा हीनता से ग्रसित रहते हैं.
- नई शिक्षा नीति ने मानविकी, विज्ञान और व्यावसायिक विषयों की आपसी दूरी को कम करने की ओर इशारा किया है. इसके तहत शिक्षा में विराजमान विभिन्न अकादमिक धाराओं जैसी श्रेणियों को समाप्त करना एक क्रांतिकारी कदम है. इससे विषयों पर आधारित शैक्षिक खाचों यथा- मानविकी, विज्ञान और व्यावसायिक शिक्षा की आपसी खींचतान को बाय-बाय कहा है. विषयों के अध्ययन और अध्यापन में इससे सदभाव और समानता का बोध पल्लवित होगा.
- 2.2 विभिन्न विषयों के बीच की दीवारें नीची करने की अभिनव पहल इस नीति में हुई है. अग्रेतर वर्ष की कक्षा में अपने विषयों एवं पाठ्यक्रमों में बदलाव और उन्हें फिर से चुनने का विकल्प देना माध्यमिक शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए मन मांगी मुराद पाने की अपार खुशी जैसा ही है.
- 2.3 वर्तमान में विद्यार्थियों के लिए अपने प्रमुख विषयों के साथ अन्य विषयों को चुनने के विकल्पों की संकुचित सीमायें हैं. परन्तु अब विद्यार्थी किसी विषय को मजबूरी में पढ़ने की अनावश्यक सजा से मुक्त हो सकेगा. अब उसके पास आधिकाधिक विषयों को चुनने के विकल्प खुले हैं. एक ही तरह के विषयों में जकड़ा विद्यार्थी इससे खुली हवा में सांस ले सकेगा. अक्सर कई लोग अपनी अभिरुचि के किसी विशिष्ट विषय को विद्यार्थी जीवन में न चुन पाने के कारण उसके अध्ययन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. बाद में उस विषय को न पढ़ पाने की कसक उन्हें जीवन-भर रहती है. कह सकते हैं कि अब विद्यार्थी वो पढ़ सकेगा जो वो पढ़ना चाहता है.
- 2.4 विद्यार्थियों को अपने जीवनीय आनंद के लिए रुचिपूर्ण विषय और जीविका के लिए उपयोगी विषय चुनने की आजादी वास्तव में शिक्षा के परम उदे्श्य ‘व्यक्ति के जीवन और जीविका के मध्य अनुकूलतम संतुलन बनाये रखने के सपने का साकार होना है.
- 2.5 नई शिक्षा नीति में बच्चों को अपने स्थानीय परिवेश में उपलब्ध उद्यमीय संभावनाओं और अवसरों की पहचान करने के लिए ग्रेड (कक्षा) 6, ग्रेड 7 और ग्रेड 8 में स्कूली शिक्षा के इतर एक आनंददायी कोर्स को संचालित करने का सुझाव दिया गया है. इसमें प्रत्येक कक्षा 10 दिनों का एक बस्ता रहित पीरियड में भाग लेंगे. इस दौरान अपने स्कूल के दायरे में संचालित विविध उद्यमीय कार्यों जैसे शिल्पकारी, दस्तकारी, सूक्ष्म उद्यमों और व्यवसायों का वह व्यवहारिक ज्ञान लेंगे. यह कोर्स आगे की कक्षाओं में भी व्यापक रूप में संचालित होंगे. विद्यार्थियों को अपने परिवेश को जानने, समझने और उसमें संचालित गतिविधिों का सम्मान करते हुए उसमें जीविका की संभावनाओं को तलाषने और पहचाने के दृष्टिगत ये उद्यमिता विकास कोर्स बहुत उपयोगी साबित होंगे.
वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार विश्व में 2030 तक ‘‘सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने और जीवन-पर्यन्त शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने’’ का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. हमें यह भी मालूम है कि अगले दशक की दुनिया में भारत सबसे अधिक युवाओं की संख्या वाला देश होगा. अतः भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित नवीन ज्ञान एवं तकनीकी से मजबूत स्कूली शिक्षा ही आने वाली इस विशाल युवा शक्ति को सही दिशा में गतिशील कर पायेगी.
यह सुखद संयोग है कि देश के शिक्षामंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ सार्वजनिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को साकार करने के प्रति जबरदस्त सर्मपण का भाव रखते हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी तो जुनून और जिद्द के प्रमाणिक सर्वमान्य प्रतीक ही हैं. अतः देश में क्रांत्रिकारी शैक्षिक परिवर्तनों और सुधारों का यही सर्वाधिक अनुकूल समय है.
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पर बनी सुब्रहृमण्यन समिति (वर्ष-2015) और प्रो. कस्तूरीरंगन समिति (वर्ष-2017) की सिफारिशों पर तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के किन्हीं हिस्सों से वैचारिक सहमति और असहमति हो सकती है. इसमें सहमत बिन्दुओं के अंदर कहीं-कहीं असहमति के भाव और असहमत बिन्दुओं के अंदर कहीं-कहीं सहमति के भाव होना भी संभव है. परन्तु यह विचारणीय है कि 29 जुलाई, 2020 को केन्द्रीय मत्रिमंडल से स्वीकृत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 यदि वास्तविक धरातल पर हू-ब-हू अमल में आ जाये तो आत्मनिर्भर और विश्व गुरू भारत हमारे ही सामने जीवंत होगा. परन्तु यह सरकार की वर्तमान शिक्षा प्रणाली को सुधारने के प्रति दृड-इच्छाशक्ति, अदम्य साहस और प्रभावी सार्मथ्य को वाकई में उपयोग में लाने पर ही संभव है. ऐसे में सरकार को नई शिक्षा नीति को अमल में लाने के लिए जुनून और किसी हद तक जिद्दी व्यवहार अपनाना होगा.
यह सुखद संयोग है कि देश के शिक्षामंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ सार्वजनिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को साकार करने के प्रति जबरदस्त सर्मपण का भाव रखते हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी तो जुनून और जिद्द के प्रमाणिक सर्वमान्य प्रतीक ही हैं. अतः देश में क्रांत्रिकारी शैक्षिक परिवर्तनों और सुधारों का यही सर्वाधिक अनुकूल समय है.
आगे….
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020
मातृभाषा में शिक्षण: अभी भी कदमताल मुद्रा में-
(लेखक एवं प्रशिक्षक)