मोनाल : क्या बुरांश के फूल भी खाते हैं?

मेघा प्रकाश

मोर जैसा रंग-बिरंगा-अति सुन्दर और आकर्षक-मोनाल उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी है.

देहरादून में स्थित, भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधार्थी रमेश कृष्णामूर्ति, जिन्होनें सन 2003 में हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाले फीसेंट (तीतर) के ऊपर अध्ययन किया था बताते हैं कि मोनाल, एक फीसेंट है.

हिमालयन मोनाल या इम्पेयन मोनाल, उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और सिक्किम, में पाया जाता है. भारत के अलावा मोनाल नेपाल, दक्षिण तिब्बत और भूटान में भी पाया जाता है. पर, उत्तराखंड में पाया जाने वाला मोनाल, ज्यादा सुन्दर और आकर्षक दिखता है.

नर-मादा मोनाल

कृष्णामूर्ति बताते है कि नर मोनाल का रंग नीला भूरा होता है. जबकि मादा मोनाल भूरे रंग की होती है. नर मोनाल के सर पर ताज जैसी कल्गी होती है और उसके पंखों में 7 रंग पाए जाते हैं. शोध से पता चलता है कि एक नर मोनाल का औसतन वजन 1.98 से 2.38 किलोग्राम होता है, वहीं मादा मोनाल 1.80 से 2.15 किलोग्राम की होती है.

मादा को आकर्षित करने के लिए बॉबिंग बॉडी डिस्प्ले का उपयोग करते हुए, नर पूरे दिन कॉल करना शुरू कर देता है. मादा मोनाल अप्रैल-जुलाई के बीच 5-6 अंडे  देती है. अधिकतम मोनाल अकेले रहते हैं या दो नर एक साथ दिखाई देते हैं. परन्तु, प्रजनन के समय नर-मादा साथ पाए जाते हैं और चूजे जब तक बड़े नहीं हो जाते, मोनाल परिवार साथ रहता है. मोनाल के व्यव्हार के बारे में बताते हुए कृष्णामूर्ति कहते हैं, “वे एक साथी के लिए संतोष, आक्रामकता, अलार्म और विज्ञापन के बीच अंतर करने के लिए कॉल की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग करते हुए अत्यधिक मुखर पक्षी हैं.

मोनाल को बुरांश के फूल भी खाते देखा गया है. 2013 में शोधकर्ताओं ने मोनाल क्या खाता है इसका पता लगाने के लिए उसके बीट/मल का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में रहने वाले हिमालयन मोनाल उच्च हिमालयन क्षेत्र में पायी जाने वाली दुर्लभ जड़ीबूटी भी खाते हैं जैसे जटामानसी, कुटकी, अमरकन्द, अतीस, वज्रदंती, नागदोना, कपूर कचरी, आदि.

जब मोनाल किसी तरह का खतरा महसूस करते हैं, तब नर मोनाल तेज़ आवाज़ देता है और उड़ कर पेड़ की झुरमुट में बैठ जाता है या तेज़ रफ़्तार से ढलान की तरफ भागता है. वह शिकारी को भ्रमित करने के लिए ऐसा करता है. इस बीच शिकारी का ध्यान बट जाता है. नर पूरी रात उसी जगह बिताता है और सुबह की पहली किरण निकलते ही अपने परिवार के पास लौट जाता है. कई बार मोनाल शिकारी (बड़े पक्षी और हिम तेंदुए) से अपने घोंसले बचाने के लिए ज्यादातर खड़ी ढ़लान पर चट्टान की ओट, सूखे पेड़ में बने कोटर, या घास के बीच में ही बनाते हैं”.

समुद्र तल से 2,500-4,500  मीटर की ऊंचाई पर मोनाल उच्च हिमालय में पाया जाता है. मोनाल बर्फ में भी रह सकते हैं. उनके घुमावदार, मजबूत एवं नुकीले पंजे, बर्फ में दबी पेड़ की जड़, कंद, मॉस, कीड़े-मकौड़े खोदने में मदद करते हैं. यह जंगली बेरी भी खाते हैं. मोनाल को बुरांश के फूल भी खाते देखा गया है. 2013 में शोधकर्ताओं ने मोनाल क्या खाता है इसका पता लगाने के लिए उसके बीट/मल का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में रहने वाले हिमालयन मोनाल उच्च हिमालयन क्षेत्र में पायी जाने वाली दुर्लभ जड़ीबूटी भी खाते हैं जैसे जटामानसी, कुटकी, अमरकन्द, अतीस, वज्रदंती, नागदोना, कपूर कचरी, आदि. यह जानकारी उन्होंने Ecologia Balkanica में प्रकाशित एक शोधपत्र में की.

संरक्षण व संवर्धन

फोटो साभार : wikipedia

मोनाल की घटती संख्या को देखते हुए, 2018 में उत्तराखण्ड वन विभाग ने मोनाल के संरक्षण व संवर्धन के लिए नैनीताल ज़ू में इसका प्रजनन केंद्र बनाने का निर्णय लिया. पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के नेहरू फीसेंट्री से दो नर, दो मादा मोनाल लाने पर सहमति हुई थी.

वर्तमान में हल्द्वानी स्थित वन विभाग (शोध विंग) द्वारा मंडल वैली में पाए जाने वाले पक्षियों की चिन्हांकन-सूची (चेकलिस्ट) तैयार की जा रही है. मनोज सिंह चैसर, जो इस सूची पर काम कर रहे हैं, ने मोनाल के यहाँ दिखने की पुष्टि की है. गढ़वाल के मंडल वैली में पड़ने वाले जिला चमोली के पर्यटक स्थल औली, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ मंदिर, रुद्रनाथ मंदिर, चोपता और चोपता के नीचे काचलाखर्क क्षेत्र में मोनाल काफी दिखाई देते हैं. यही वजह है की इस क्षेत्र में बर्ड वॉचर बड़ी संख्या में आते हैं. दयारा बुग्याल और कन्दरा बुग्याल में भी मोनाल देखे गए हैं. मनोज बताते हैं कि इस क्षेत्र में पर्यटन बढ़ने से मोनाल के हैबिटैट खतरे में है. काफी लोग बुग्याल में कैंपिंग के लिए आते हैं. इसकी वजह से मोनाल के प्रजनन पैटर्न में बदलाव आया हैं.

कुमाऊँ मंडल के जिला पिथौरागढ़ में पड़ने वाले मुनस्यारी, खलिया टॉप, अस्कोट, नेपाल की सीमा से सटे धारचूला में पाया जाता है. मुनस्यारी स्थित, गैर सरकारी संगठन, मोनाल के संचालक सुरेंद्र पंवार ने 2014 में मोनाल के संरक्षण हेतु एक प्रयास शुरू किया. पंवार बताते हैं, “मैंने देखा कि त्योहार या किसी शुभ दिवस पर स्थानीय लड़के मोनाल का बड़ी मात्रा में शिकार कर रहे थे. कुछ गडेरे (बकरी चराने वाले) मोनाल के घोसलों से अण्डे उठा कर खाने में प्रयोग करते.

यह सब देख कर, मैंने स्कूल के बच्चों को मोनाल और अन्य पक्षियों के बारे में बताना शुरू किया क्योंकि नयी पीढ़ी ज्यादा शिकार कर रही थी. धीरे-धीरे वन विभाग के माध्यम से हमने मोनाल के आवासीय स्थान (हैबिटैट) के बारे में आस-पास के स्कूलो में जागरूकता अभियान चलाया. जागरूकता पैदा करने के लिए कालीन बनाने की स्थानीय शिल्पकला का इस्तेमाल किया गया. मोनाल संगठन से जुड़ी महिला बुनकरों ने कालीनों पर मोनाल बुना. इन कुछ सालों में काफी हद तक मोनाल का शिकार कम हुआ है क्योंकि अब मोनाल का शिकार करना दंडनीय अपराध है”.

पंवार बताते हैं कि कई साल पहले, मुनस्यारी क्षेत्र में मोनाल के पंख घर के बाहर लगाने का रिवाज़ था. इसी तरह हिमाचल में मोनाल पंख के लिए मारा जाता था. वहाँ पहाड़ी टोपी में मोनाल का पंख शान दर्शाता था. अब इन प्रथाओं पर सरकार ने रोक लगा दी है.

राज्य में कितने पक्षी बचे हैं, इसकी गणना नहीं हुई है. माना जाता है कि इनकी जनसँख्या 2000 से ऊपर है और इनकी प्रजाति को खतरा नहीं है. पर इनके अवैध शिकार और आवासीय क्षेत्र को होते नुक्सान को देखते हुए मोनाल की सुरक्षा के लिए इसे Schedule I of Wildlife Protection Act (1972) के अंतर्गत रखा है.

( मेघा प्रकाश देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह अपने लेखन के माध्यम से उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का दस्तावेजीकरण करना पसंद करती हैं. वह पूर्व में IISc बैंगलोर में सलाहकार संपादक थीं.)

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