नीलम नवीन ‘नील‘
“जीवन में होश संभालने के बाद के 40 वर्षों को अगर बांटा जाए, तो देखती हूं कि पूरे जीवन के दो दो दशक, दो शहरों में गुजरे हैं. एक भागता, दौड़ता, बदलता, चीखता-चिल्लाता, रंगीन मिजाज, समुद्र के उठान-उफान जैसा बड़ा छोटा मिश्रित शहर. जहां एक हफ्ते बाद बाजार जाओ तो कुछ न कुछ बदल रहा होता है, लोग, मौसम, हवा …सब बदल रहे हैं, ये एक ऐसा शहर है, जो कई बार पहाड़ी कस्बे सा दिखता है तो कभी मेट्रो सिटी जैसा होने का आभास देता है. जहां एक टोली निरपट्ट पहाड़ियों की है, तो दूसरी बिल्कुल अलग है, यह बेहद मिश्रित शहर है.
दूसरा छोटा शहर बिल्कुल खामोश है, कोई हलचल नहीं, कोई जल्दी नहीं, एकदम शांत, गहरी धीमी नदी सा बहता हुआ, जैसे सदियों से ध्यानस्थ हो, जैसे अपने पूर्वजों को याद करते हुए, उन्हें अनुसरण करता हुआ चल रहा हो. वहां के लोग पहचाने जाते हैं, या एक दूसरे को उनके हाव भाव, बातचीत के अंदाज से भीड़ में भी पहचान लेते हैं. वहां कुछ नहीं बदला है– न शहर बदला, न आबो-हवा बदली, और लोग भी काफी हद तक पहले जैसे हैं. जहां बदलने के नाम पर सिर्फ दुकानदार की उम्र बदली है, पहले वो जवान था, अब अधेड़ हो चुका है…
इन चालीस से अधिक वर्षों में, दोनों शहर मुझमें जब-तब गुजरते रहे हैं, और मैं काफी कुछ बदलने के बाद भी, वापस घूम फिरकर वही पुरानी पगडंडी पर खड़ी हो जाती हूं. पिता के हर लेखन में पहाड़ होता था, इसीलिए उनका एकमात्र पाठक उन्हें अक्सर पढ़ लेता है. पिता कभी पहाड़ नहीं छोड़ पाए, उनके लिखे कुछ शब्दों को देखूं तो मुझे लगता है हम चाहकर भी अपनी जड़ों से बहुत दूर तक नहीं जा पाते हैं और लौट आते हैं.
मेरे जन्म से कुछ साल पहले की बात है, वे लिखते हैं कि “आज 12 जनवरी 1974 है और रानीखेत और इसके आसपास की ऊंची चोटियों में काफी मात्रा में सुबह चार बजे से लगातार बर्फ गिर रही है. अभी तक आठ इंच से एक फिट तक बर्फ गिर चुकी है. सैलानियों की आवाजाही पिछले वर्ष से कहीं अधिक है. मैं कल ही अल्मोड़ा से लौटा, एक दिन रुक जाता तो आज कसार देवी में होता, जहां विवेकानंद जी की उपस्थिति को महसूस कर सकता था. आज एक अच्छा संयोग था, मैं एक बार कसार देवी सिर्फ विवेकानंद जी के साथ बैठने अथवा उन्हें अनुभव करने के लिए जाना चाहता था, हालांकि उधर कई बार गया हूं पर बैठ नहीं सका”
यहां मैं इस संस्मरण को इसीलिए लिख रही हूं क्योंकि कि मैंने भी जीवन का काफी समय रानीखेत में रहने के बाद इस साल पहली बार कसार देवी में बैठकर वास्तविक रूप से एक अच्छा समय दिया. उस जगह को केवल एक मंदिर न मानकर एक चैतन्य स्थल मानकर वास्तविक ध्यान की अनुभूति को सहज अनुभव कर पाई, और संयोग देखो, पिता ने जो लिखा था, वह भी मैंने आज ही पढ़ा. अल्मोड़ा में कसार देवी वह जगह है, जहां स्वामी विवेकानंद भी आए थे, यहां उन्होंने ध्यान किया था. स्वामी विवेकानंद को यह जगह इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने अपने लेखन में इसका जिक्र भी किया था. कसार देवी में बॉब डायलन, जॉर्ज हैरिसन, कैट स्टीवंस, एलन गिन्सबर्ग और टिमोथी लेरी जैसे कई प्रसिद्ध व्यक्ति भी आ चुके हैं, मेरे जैसे कई लोगों का जाना कई बार कुछ लेकर लौट आना ही होता है, शायद सहज अनुभूति के मर्म को…
लिखित संस्मरण से….