125वीं जन्मजयंती पर नेताजी को ‘भारतराष्ट्र’ का शत् शत् नमन
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
आज भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिवीर नेता सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जन्म जयंती है.समूचा देश नेता जी की इस जयंती को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मना रहा है. यह भी स्वागत योग्य है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देश के सभी शिक्षण संस्थानों से कहा है कि वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की
इस 125वीं जयंती को मनाने के लिए ऑनलाइन व्याख्यान, वेबिनार, खेल गतिविधियों और अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन करें. यूजीसी ने अपने पत्र में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से कहा है कि वे राष्ट्र के प्रति नेताजी की अदम्य भावना और निःस्वार्थ सेवाओं के उपलक्ष्य में साल भर शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन करें.नेता जी
‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चन्द्र बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है. उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान,
भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का गठन किया. इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था.
नेता जी
‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चन्द्र बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है. उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये 21अक्टूबर,1943 को ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’
का गठन किया. इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था. इस संगठन का राष्ट्रीय गीत था “क़दम-क़दम बढाए जा, खुशी के गीत गाए जा” जिसे गुनगुना कर संगठन के सेनानी जोश और उत्साह से भर उठते थे. उनके द्वारा दिया गया ‘जय हिन्द’ का नारा आज भी भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है. “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का क्रांतिकारी विचार भी नेता सुभाष चन्द्र बोस का दिया हुआ विचार था. नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो !” का नारा भी दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से जमकर मोर्चा लिया.नेता जी
23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस और माता जी का नाम प्रभावती देवी था.
अपनी शुरुआती पढ़ाई उन्होंने कटक के ही रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से की. नेताजी ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से 1915 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. उसके बाद सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता ने उन्हें इंडियन सिविल सर्विस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया.1921 में भारत में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगीं, तो खबर मिलते ही नेताजी भारतीय प्रशासनिक सेवा को बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए और फिर वे आजादी की लड़ाई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए.नेता जी
कांग्रेस में जहां महात्मा गांधी उदार
दल का नेतृत्व करते थे,तो वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के नाम से जाने जाते थे. इसलिए नेताजी गांधी जी के विचार से सहमत नहीं थे. हालांकि, दोनों का मकसद सिर्फ और सिर्फ एक था कि भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवाना.नेता जी
साल 1938 में नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
के अध्यक्ष निर्वाचित किए गए, जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया.1939 के कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभि सीतारमैया को हराकर विजय प्राप्त की. इस से गांधी जी और बोस के बीच मतभेद बढ़ते गए, जिसके बाद नेताजी ने खुद ही कांग्रेस को छोड़ दिया. इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा और नेताजी ने अंग्रेजों का विरोध करना तेज कर दिया,जिसके बाद उन्हें उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया गया. हालांकि, वे बीच में ही जर्मनी चले गए. यहां उन्होंने विश्व युद्ध को बड़े ही करीब से देखा.नेता जी
अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को ‘आजाद हिंद सरकार’ की स्थापना करते हुए ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया. उसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (म्यांमार) पहुंचे,जहां उन्होंने नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो,
मैं तुम्हें आजादी दूंगा.’ ‘आजाद हिंद फौज’ को जर्मनी, जापान, कोरिया, चीन, इटली, आदि अनेक देशों ने भी मान्यता दी. जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये.1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया. कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था. इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था.नेता जी
नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है. किन्तु नेताजी की देशभक्ति और उनकी सशत्र क्रान्ति की बदौलत ही ब्रिटिश हुकुमत की जड़ों को खोखला किया
गया जिससे भारत की आजादी संभव हो सकी.आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास बहुत दूरगामी परिणाम वाला सिद्ध हुआ.
नेता जी
लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया. तथ्य बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज में
सवार होकर मंचुरिया जा रहे थे, लेकिन इसके बाद वे अचानक कहीं लापता हो गए और आज तक उनकी मौत का रहस्य एक अनसुलझी गुत्थी बन कर रह गया. नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है. किन्तु नेताजी की देशभक्ति और उनकी सशत्र क्रान्ति की बदौलत ही ब्रिटिश हुकुमत की जड़ों को खोखला किया गया जिससे भारत की आजादी संभव हो सकी.आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास बहुत दूरगामी परिणाम वाला सिद्ध हुआ.नेता जी
सन् 1946 का नौसेना विद्रोह
इसका उदाहरण है. इस सैनिक विद्रोह के बाद ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा. विश्व-इतिहास में आजाद हिन्द फौज को छोड़कर ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो.नेता जी
सबसे पहले गांधी को
राष्ट्रपिता कहने वाले नेताजी ही थे. 6 जुलाई 1944 को सुभाष बोस ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम जो प्रसारण जारी किया था उसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये गांधी जी से उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगीं.
नेता जी
सुभाषचंद्र बोस जैसे महान् नेता अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करते, पर उनमें विरोधियों को साथ लेकर चलने का भी महान् गुण होता है.नेता जी में यह गुण विद्यमान था.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अलग-अलग विचारों के दल थे. महात्मा गांधी को उदार विचारों वाले दल का प्रतिनिधि माना जाता था तो वहीं नेताजी अपने जोशीले स्वभाव के कारण क्रांतिकारी विचारों वाले दल में थे. यही कारण था कि महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे. लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मक़सद एक है और वह था देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करना.नेता जी
नेता जी यह भी जानते थे
कि महात्मा गांधी ही देश के ‘राष्ट्रपिता’ कहलाने के सचमुच हक़दार हैं. सबसे पहले गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले नेताजी ही थे. 6 जुलाई 1944 को सुभाष बोस ने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम जो प्रसारण जारी किया था उसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये गांधी जी से उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगीं.नेता जी
नेताजी एक ऐसे
पराक्रमी वीर और रणनीति कुशल योद्धा थे कि इतिहास के पन्नों में उनकी वीरता पूर्ण गाथा सदा अमर रहेगी.उनके विचार, कर्म और आदर्श अपना कर राष्ट्र आज भी आजादी के अपने अधूरे सपनों को पूरा कर सकता है.स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी और मां भारती के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी 125वीं जयंती पर ‘भारतराष्ट्र’ का शत शत नमन और जय हिन्द.
नेता जी
उन्होंने कहा “मैं जानता हूं कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की मांग कभी स्वीकार नहीं करेगी. मैं इस बात का कायल हो चुका हूं कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये. अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा
तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं. मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है. विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुंचने के लिये किया है. भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है. आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं. हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं.”(मदनलाल वर्मा,’ स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास’ भाग-2,पृ.512)नेता जी
दरअसल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नि:स्वार्थ, निर्भीक तथा देशभक्त नेता की ज़रूरत देश को हर समय रहती है.वह कल भी थी,आज भी है और आने वाले कल में भी रहेगी.
नेताजी एक ऐसे पराक्रमी वीर और रणनीति कुशल योद्धा थे कि इतिहास के पन्नों में उनकी वीरता पूर्ण गाथा सदा अमर रहेगी.उनके विचार, कर्म और आदर्श अपना कर राष्ट्र आज भी आजादी के अपने अधूरे सपनों को पूरा कर सकता है.स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी और मां भारती के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी 125वीं जयंती पर ‘भारतराष्ट्र’ का शत शत नमन और जय हिन्द.नेता जी
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)