मंजू दिल से… भाग-10
- मंजू काला
“खिचड़ी के है यार चार
घी, दही, पापड़ आचार”
– मुल्ला नसीरुद्दीन
दाल-चावल की रूहों के एकाकार होने पर रचे गए जादूई व्यंजन का नाम है खिचड़ी और आज हम खिचड़ी कैसे बनाएं पर बात न करके कुछ
और बात करते हैं. सीधी-सादी, भोली-भाली खिचड़ी जिसकी पहचान न तो पूरब से है न पश्चिम से, न उत्तर से है न दक्षिण से. इसका स्वाद हर हिंदुस्तानी के दिल पर राज करता है.खिचड़ी का इतिहास
भी बहुत पुराना है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक सर्वे में प्रमाण मिले हैं कि 1200 ईस्वी से पहले से ही भारतीय लोग दाल-चावल को मिला कर खाया करते थे.भारतीय
खिचड़ी शब्द मूल रूप से संस्कृत के शब्द ‘खिच्चा’ से लिया गया है है, जिसका अर्थ है चावल और दालों को मिलाकर बनाया गया व्यंजन.
मूंग, उड़द, मसूर, अरहर दाल और चावल के अलावा साबूदाना, बाजरा और दलिया मिलाकर भी खिचड़ी बनाई जाती है. सब्जियां और मसाले भी अपने स्वाद के हिसाब से जो चाहे डाले जाते हैं.
भारतीय
भगवान जगन्नाथ, भगवान
बद्रीनाथ को चढ़ने वाला प्रसाद, संक्रात पर मंस कर बंटने वाली, हम सबकी प्यारी, दुलारी, स्वाद और सुगंध से भरी हरी-भरी सी खिचड़ी सभी को न्यारी लगती है.भारतीय
खिचड़ी शब्द मूल रूप से
संस्कृत के शब्द ‘खिच्चा’ से लिया गया है है, जिसका अर्थ है चावल और दालों को मिलाकर बनाया गया व्यंजन. मूंग, उड़द, मसूर, अरहर दाल और चावल के अलावा साबूदाना, बाजरा और दलिया मिलाकर भी खिचड़ी बनाई जाती है. सब्जियां और मसाले भी अपने स्वाद के हिसाब से जो चाहे डाले जाते हैं.भारतीय
यह एकमात्र ऐसा
व्यंजन है न तो बनाने में झंझट, न परोसने में, न खाने में और न ही पचाने में. खिचड़ी से एक बार जिसने इश्क फरमा लिया उसका किसी और व्यंजन से दिल लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.भारतीय
यूं तो खिचड़ी में स्वयं में ही इतना सामर्थ्य है कि आपको अपने स्वाद का कायल कर दे, लेकिन अक्सर इसके साथ पापड़, अचार, रायता, दही,
घी का बेहतर संयोजन होता है. अचार भी मौसम के हिसाब से इसका दोस्त बनता पाया जाता है. कभी आम तो कभी नींबू, कभी मिर्च, हींग तो कभी गाजर और गोभी का!भारतीय
खिचड़ी के सरल स्वभाव के
चलते इसके अनगिनत मित्र बन जाते हैं. जैसे दही जो कभी थक्का, कभी जीरा छुंका रायता या मट्ठा बन इसके साथ हिलमिल कर यारियां निभाती है! प्याज़, नींबू, हरी मिर्च, रचा अदरक भी स्वाद और मौसम के अनुसार इसके संग रास रचाने को तैयार रहते हैं!भारतीय
कहते हैं जीवन में
थोड़ी कुरकुराहट न हो तो मज़ा नहीं आता, तो खिचड़ी के संग पापड़ की यारी भी बहुत प्रसिद्ध है. फिर चाहे तला हुआ हो या भुना हुआ हो, खिचड़ी के साथ स्वाद दुगुना होने की.. जूगलबंदी तो यही निभाता है.भारतीय
खिचड़ी की महिमा से जो अनिभिज्ञ रहे उनकी जीवन नैया जब आपसी खिचड़ी सही कैसे बनाएं के मझधार में फंसती है तो फिर उसे भगवान भी पार
नहीं लगा सकते. क्योंकि ये आपसी संबंधों वाली खिचड़ी यदि सही से न पके तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं और पक भी जाए तो जो जितना घी डालकर खाए, उतना ही मज़ा आएगा और वह व्यक्ति उतना ही फायदे में रहेगा! वरना हींग और जीरे का छौंक कितनी खुशबू देगा ये तो आस-पड़ोस वालों की ईर्ष्या देखकर ही पता चल जाएगा.भारतीय
खिचड़ी
के इतिहास की बात करे तो सुनने में आता है सबसे पहली खिचड़ी बनी थी चावल और तिल से, और जिससे हम खीचड़े से नाम से जानते है. इसका नाम संस्कृत शब्द खिच्चा है, जिसका अनुवाद चावल और दालों से बनाया गया व्यंजन.
भारतीय
और हां खिचड़ी एक
टेलिविजन धारावाहिक के रूप में अवतरित होकर हमें यह भी सिखा चुकी है कि हंसा और प्रफुल जैसा परिवार जिस प्रकार मेलजोल से रहता है उसी प्रकार हर परिवार को खिचड़ी जैसा ही रहना चाहिए.भारतीय
काश हम सब भी खिचड़ी
जैसा बन सकें जो सबमें समाहित होने और सबको स्वयं में समाहित करने का ईश्वरीय गुण रख सके.अगर खिचड़ी के इतिहास
की बात करे तो सुनने में आता है सबसे पहली खिचड़ी बनी थी चावल और तिल से, और जिससे हम खीचड़े से नाम से जानते है. इसका नाम संस्कृत शब्द खिच्चा है, जिसका अनुवाद चावल और दालों से बनाया गया व्यंजन.भारतीय
इतिहास में अबू फजल की
ऐन-ए-अकबरी में खिचड़ी का जिक्र आता है. खास तरह की खिचड़ी राजा मेहमानो के लिए बनायीं जाती थी. शाही रसोईघर में तैयार किए गए खिचड़ी के कई संस्करणों का उल्लेख है, जिनमें केसर, खड़े मसाले और सूखे फल शामिल होते थे.भारतीय
अगर हम आज की या
आज से पहले हमारे दादा – दादी की पीढ़ी की बात करे तो, खिचड़ी एक हलके खाने के रूप में जानी जाती है और हम लोग इससे या तो बीमार होने पर या बहुत दिनों से बाहर का खाना खाने पर उपयोग में लाते है ताकि कुछ सेहत से भरपूर और हल्का खाना खा सके.हिमाचल प्रदेश
में दाल चावल के साथ कुछ राजमा और सफ़ेद छोले डालकर खिचड़ी बनाई जाती है. इसका स्वाद राजमा और सफ़ेद छोले, के साथ कुछ स्थानीय मसाले के मिश्रण के साथ अलग ही लगता है.
इसलिय हल्के खाने के नाम
पर बहुत तरह की खिचड़ी हमारे देश में बनायीं जाती है. चलिए नज़र डालते है इनके विभिन्न विभिन्न प्रकार पर.भारतीय
शुरुआत करते है नार्थ यानी
उत्तर से- ‘उत्तर में जनवरी के महीने में जो खिचड़ी बनती है वो चावल और काली उड़द दाल से बनती है. और इस की खिचड़ी विशेषता है कि ये बासी यानी एक रात पहले बनाई जाती और अगले दिन खायी जाती है. ये मकर संक्रात पर विशेष रूप से बनाई जाती है.भारतीय
उत्तराखंड की पहाड़ी
खिचड़ी ज्यादातर सादी होती है. यह खिचड़ी प्रसाद के रूप में जानी जाती है. यहां के बद्रीनाथ मंदिर समेत कई जगह प्रसाद के रूप में खिचड़ी दी जाती है. इसे सीधे पानी में उबाल कर बनाया जाता है और प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.भारतीय
महाराष्ट्र में
साबूदाने की खिचड़ी प्रसिद्ध है. मुंबई महानगरी में खिचड़ी बहुत ही मसालेदार बनती है और लोग उससे काफी उत्साह से खाते हैं और इसे भी लजीज खाने में गिनते है. यहां के लोग तीखी खिचड़ी खाते हैं.
वहीं हिमाचल प्रदेश
में दाल चावल के साथ कुछ राजमा और सफ़ेद छोले डालकर खिचड़ी बनाई जाती है. इसका स्वाद राजमा और सफ़ेद छोले, के साथ कुछ स्थानीय मसाले के मिश्रण के साथ अलग ही लगता है.भारतीय
उत्तर प्रदेश के
व्यंजनों में आंवला का प्रयोग किया जाता है तो यहाँ की खिचड़ी में काली दाल, चावल के साथ आंवला का प्रयोग कर विशेष खिचड़ी बनायीं जाती है और ये मकर संक्रांति के त्यौहार पर दान में भी दी जाती है.भारतीय
राजस्थान राज्य
अपने शाही खाने के लिए काफी जाना जाता है, तो ऐसा कैसे हो सकता है की आपको राजस्थान में खिचड़ी का स्वाद न मिले. यहा की खिचड़ी दाल, गेहू और बाजरा से बनती है और इसकी विशेषता यह है कि इससे बहुत अच्छे से पकाया जाता है और ये काफी गरम तासीर की होती है, सर्दियों में सभी राजस्थानी घरो में मिलती है.भारतीय
अब आते है गुजरात
की खिचड़ी पर, इसमें खासतौर से हल्दी और हींग का प्रयोग किया जाता है. गुजरात की खिचड़ी आमतौर पर पतली बनाई जाती है और ज्यादातर कढ़ी और सुराती उंधनिया आदि के साथ परोसी जाती है.भारतीय
बंगाल में खिचड़ी
का विशेष स्थान रूप है. और ये दुर्गा पूजा में भोग के रूप में प्रसाद में दी जाती है, जो तैयार होती है दाल, चावल और विभिन्न सब्जियों का. यहां की खिचड़ी मीठी होती है.
महाराष्ट्र में साबूदाने की खिचड़ी प्रसिद्ध है. मुंबई महानगरी में खिचड़ी बहुत ही मसालेदार बनती है और लोग उससे काफी उत्साह से खाते हैं
और इसे भी लजीज खाने में गिनते है. यहां के लोग तीखी खिचड़ी खाते हैं. यही साबूदाने की खिचड़ी उत्तर भारत में ज्यादातर व्रत के दौरान भी बनाई और खायी जाती है.भारतीय
तमिलनाडु में मीठी
खिचड़ी बनाई जाती है और इसे पोंगल कहा जाता है. इस खिचड़ी का बहुत महत्व है, इसकी खासियत है कि इसे नमकीन भी बनाया जा सकता है.मीठी खिचड़ी यहां के मंदिरों में प्रसाद के रूप में बांटी जाती है.भारतीय
आंध्र प्रदेश में कीमा
खिचड़ी खाई जाती हैं. जिसमें ग्राउंड बीफ, चावल, दाल, सॉस के साथ इमली और तिल का मिश्रण होता है. और कई जगह लोग इसमें दाल का प्रयोग नहीं करते हैं..!कर्ऩाटक में खिचड़ी
सब्जियों से भरपूर होती है. यहां की खिचड़ी में इमली, गुड़, मौसमी सब्जियां, कढ़ी पत्ता, सूखे नारियल का बुरादा और सेमल की रुई का इस्तेमाल किया जाता है. और ये काफी मज़ेदार होती है.बंगाल में खिचड़ी का विशेष स्थान रूप है. और ये दुर्गा पूजा में भोग के रूप में प्रसाद में दी जाती है, जो तैयार होती है दाल, चावल और विभिन्न सब्जियों का. यहां की खिचड़ी मीठी होती है.
तो कहानी ये है की खिचड़ी हमे हर शहर, हर गांव, हर नुकड़ पर कुछ ट्विस्ट के साथ मिल जाएगी और वो भी अलग अलग स्वाद के साथ. इतना ही नहीं टीवी पर खिचड़ी सीरियल बहुत लोकप्रिय हुआ था अपने विभिन्न किरदारों को लेकर और लोगो के दिलो में एक विशेष जगह बनाने में कामयाब हुआ था.
भारतीय
(मंजू काला मूलतः उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से ताल्लुक रखती हैं. इनका बचपन प्रकृति के आंगन में गुजरा. पिता और पति दोनों महकमा-ए-जंगलात से जुड़े होने के कारण, पेड़—पौधों, पशु—पक्षियों में आपकी गहन रूची है. आप हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करती हैं. आप ओडिसी की नृतयांगना होने के साथ रेडियो-टेलीविजन की वार्ताकार भी हैं. लोकगंगा पत्रिका की संयुक्त संपादक होने के साथ—साथ आप फूड ब्लागर, बर्ड लोरर, टी-टेलर, बच्चों की स्टोरी टेलर, ट्रेकर भी हैं. नेचर फोटोग्राफी में आपकी खासी दिलचस्पी और उस दायित्व को बखूबी निभा रही हैं. आपका लेखन मुख्यत: भारत की संस्कृति, कला, खान-पान, लोकगाथाओं, रिति-रिवाजों पर केंद्रित है.)