केदारकांठा ट्रेक : चांद के किस्से-कहानियों का सफ़र जारी है  

Kedarkantha Trek

jp Maithani

जे पी मैठाणी

उत्तराखंड में अनेक ऐसे अनाम ट्रेकिंग रूट हैं जिनके बारे में शेष दुनिया को बहुत अधिक जानकारी नहीं है. ऐसे ही एक ट्रेकिंग रूट का नाम है- केदारकांठा ट्रेक जो देहरादून से सुदूर उत्तरकाशी के गोविन्द पशुविहार के आंगन में स्थित है. देहरादून से मसूरी-कैम्पटी फाल, यमुना पुल, नैनबाग, पुरोला, मोरी, नैटवाड़ से आगे शानदार सेब के बगीचों के बीच से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तरकाशी के अंतिम गांव सांकरी फिर सांकरी गांव से ही केदारकांठा का ट्रेक शुरू होता है. गोविन्द पशु विहार का बफर जोन भी यहीं से शुरू हो जाता है.

दिन भर की थकान भरी यात्रा के बाद अगर आप हिमालय के एक गांव सांकरी के आस पास शाम की सैर करने को निकलें और संध्या के अंधेरे के साथ आसमान को देखें तो काले आसमान पर चमकते तारे और उन सबके बीच सुदूर बेहद  चमकीला – शाम का सबसे अधिक चमकता शुक्र दिखेगा और आप सिर्फ मंत्रमुग्ध होकर रह जाते हैं. यहीं केदारकांठा ट्रेक के बेस कैम्प सांकरी गांव से हमको चमकते चांद के बीच शानदार वीनस दिखाई देता हैं. आपको लगता है आप किसी दूसरी दुनियां में पहुंच गए हो.  शुक्र तारे को निहारते हुए अब पहाड के इस गांव की सुकून भरी रात- सपनों के पार हम चल पड़ते हैं अगले दिन सुबह हिमालय के केदारकांठा ट्रेक के सिदरी कैम्प की ओर.

सिदरी नाम के इस स्थान की कैम्पिंग साईट से अगली सुबह केदारकांठा ट्रेक की चढ़ाई शुरू होती है इस ट्रेक के दोनों ओर सेब के अनेक बगीचे हैं. सेब के पेड़ों पर पत्तियां बची हुई थी वो पीली और लाल पड़ चुकी थी, अब ये पेड़ सुप्तावस्था की ओर हैं, जाड़ा आने को है. आस-पास के गांव की महिलाएं पीठ पर सूखी लकड़ियां लेकर आ रही हैं, पहाड़ में आज भी महिलाओं को उनके कठिन परिश्रम की वजह से पहाड़ की रीढ़ माना जाता है. इस रास्ते पर गले में घंटिया बजाते हुए-घोड़े, खच्चर और भेड़-बकरियों के झुण्ड आपका स्वागत करते दिखाते हैं. फिर ढाल पर नीचे उतरते हुए कहीं गायब हो जाते हैं, और हम केदारकांठा की तरफ चढ़ रहे हैं. सांस भारी हो रही है, मंजू राणा मुझे बताती हैं, हमारे टीम लीडर रजत- मुझे, नेहा और अजय को प्रेरित कर रहे हैं, अब हमको रास्ते में बर्फ दिखने लगी है, साथ ही इस ट्रेक के दोनों ओर स्प्रूस, सिल्वर फर, बांज, बुरांश के साथ-साथ कहीं-कहीं देवदार के पेड़ भी दिखते हैं. इन पेड़ों पर खूब सारे लाइकेन और हरी मोस घास के गुच्छे लटक रहे थे, यही नहीं कई टहनियों पर बीटल के खोल भी चिपके हुए थे. इस बढ़िया चढ़ाई वाले ट्रेक से आखिर हम हरगांव के कैम्प पर पहुंचते हैं, यहां पर ट्रिप माइ सोल और ऐडवेंथ्रिल की कैम्प साईट भी है. इस कैम्प के आस-पास शानदार लैंड स्केप है, देवदार और कैल के सुन्दर फल यानी कोन आस-पास बिखरे हुए थे. ट्रेक को आयोजित करने वाली एजेंसी आपको अपना पोलीथींन कचरा आदि रखने के लिए देते हैं, ये एक शानदार प्रयास है.

अनाम कैम्प के बर्फीले बुग्याल के एक कोने में साथी ट्रेकर्स इतने ऊंचे हिमालय में क्रिकेट खेल रहे हैं. यहां हमने तेज धूप के साथ क्रिकेट का आनंद लिया और फिर हम लोग आगे बेस कैम्प की ओर बढ़ जाते हैं, भारी बर्फ के सीजन के बावजूद भारत के विभिन्न प्रान्तों के ट्रेकर्स केदारकांठा ट्रैकिंग के लिए आ रहे हैं. इस ट्रैकिंग अभियान के दौरान हमने देखा जंगलों में आग लगी हुई है, चारों तरफ धुंआं ही धुंआं फैला हुआ है. इन दिनों ये पहाड़ के जंगलों और पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है. सूरज एक सिन्दूरी गोला दिखाई दे रहा है. शाम के धुंधलके के साथ ठंडी-ठंडी बर्फीली हवाएं चलने लगी हैं. इस बेस कैम्प जिसका कोई नामकरण नहीं हुआ है, में भारत के विभिन्न प्रान्तों के ट्रेकर्स आये हुए हैं. गाना, डांस-मस्ती और अन्ताक्षरी के बाद हम अपने-अपने टेंटों के स्लीपिंग बैग्स में दुबक जाते हैं.

अगले दिन के एकदम सुबह के (3.30 सुबह) धुंधलके में टार्च और चन्द्रमा की रोशनी के साथ अब हम आगे बढ़ रहे हैं अब हमारा लक्ष्य केदारकांठा टॉप है और अभी 4 किलोमीटर का ट्रेक बाकी है, इस बेस कैम्प से आगे बढ़ते हुए सांस फूलने लगी है, लेकिन चन्द्रमा की शानदार चांदनी के अजीब से तिलस्म में मोहित होकर हम आगे बढ़ते जा रहे हैं. बर्फ चमकीली-सी दिख रही है, ऐसा नहीं लगता कि ये बिलकुल अलस्सुबह है. बिलकुल गीतों और किस्से कहानियों की जुन्याली रात (जून- गढ़वाली में चांद को और जुन्याली रात चांदनी रात) की तरह. इतनी सुबह आप आस-पास के जंगलों में लगी आग की वजह से बर्फ की चादर के ऊपर काली राख बिखरी हुई है और काली राख की वजह से जो ब्लैक आइस बन जाती है वो फिसलन भरी होती है, इसलिए ब्लैक आइस पर नहीं चलना चाहिए.

अरे हां, चांद और नीले आसमान की बातों के बीच यह बताना जरूरी है- केदारकांठा ट्रेक की इस मंत्र मुग्ध कर देने वाली यात्रा के साथ पूरब से निकला चांद अब पश्चिम की ओर अस्त होने को है. यह दिसंबर की बेहद ठण्ड भरी रात है, लेकिन पहाड़ की चोटी के पास चांद के इस रूप को देखकर ठण्ड महसूस नहीं हो रही है. डूबते चांद के साथ-साथ हम केदारकांठा के समिट पॉइंट की तरफ बढ़ रहे हैं. थकान भी बढ़ने लगती है, लेकिन हम देखते हैं हमारी पूर्वी दिशा में लालिमा के साथ सूर्योदय का आगाज हो चुका है. पश्चिम में चांद अस्त हो रहा है.

हमारे ट्रेक की लीडर अमृता ने हमको मोटिवेट करते हुए कहा अगर तुमने मन में सोचा लिया है कि तुमको केदारकांठा से सूर्योदय देखना चाहते हो, तो तुम जरूर देखोगे और इसी प्रेरणा से हम आगे बढ़ने लगे. अब हम थोड़ा  आगे बढे़. एक बड़ी-सी चट्टान को पार ही किया कि सामने एक शानदार विस्मृत करने वाला सूर्योदय का दृश्य था. ओह – बेहद अद्भुत, कोई शब्द नहीं. इस आनंद की कोई भाषा नहीं, सारी थकान झट से गायब और हम थोड़ी देर के लिए आंख भी नहीं झपका पाए. शीर्ष पर खड़े हमको विजय का-सा अहसास होने लगा. 12,500 फीट की उंचाई पर हम एक स्वप्नलोक में खो से गए.

ऐसा लगता है केदारकांठा के चांद के किस्से कहानियों का सफ़र जारी है. पूर्णिमा की पूनम और उसके रश्मि रथ की आभा हमारे कैम्प साइड पर पड़ती, उससे पहले हमको वापस बेस कैम्प पहुंचना था. चांद के केदारकांठा से दर्शन या दीदार चांदनी के आगोश में समाहित हो रहे थे. हम तेज कदमों से पूरब से उगते और फिर धीमे-धीमे बुग्याल के सीने पर फ़ैली बरफ में चांद की रोशनी को महसूस करने लगे थे.

केदारकांठा के इस ट्रेक में, कैम्प के पास पश्चिम की ओर पीठ किये हम दोस्त एक दूसरे के चेहरे पर देखते, लेकिन उगते चांद को देखकर कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे. आस-पास की तिरछी बिछी घास और हिमालय की अन्य झाड़ियां चांद की रोशनी में अभी हाल की पहली बर्फ की चादर के ऊपर से बिखरती चांद की चांदनी से अजीब-सा सम्मोहन पैदा कर रहे थे. अचानक लगा हम किसी और लोक में हैं. केदारकांठा ट्रेक के इस मोहपाश का कोई अंत नहीं था. चांद धीरे-धीरे पश्चिम में उतरने जा रहा था. कैम्प के मेस से खाने की आवाज आने लगी थी, लेकिन केदारकांठा के शीर्ष से उतर कर नीचे आते समय महसूस हो रही भारी थकान केदारकांठा के नीचे के इस बेस कैम्प पर छाये चंद्रोदय के साथ पूरी गायब हो गयी. अब हम चांद को पश्चिम में डूबते हुए यानी चंद्रास्त करते हुए देखना चाहते थे. कैम्प के मेस टेंट के भीतर सोलर लालटेन और चूल्हे की आग के उजाले में थोड़ी देर के लिए चांद की रोशनी धूमिल हो गयी.

आसमान पूरा का पूरा गेलेक्सियों से भर गया है. तारे टिमटिमाते हुए और टूटते हुए दिख रहे हैं, पेड़ मानों खड़े-खड़े दूर सो गए हैं. झींगुरों की आवाज भी दूर से आती रुपिन-सुपिन की जलधाराओं के सिर्फ महसूस किये जाने के बीच हमारे दिलो-दिमाग से उतर गयी है. डूबते चांद को केदारकांठा क्षेत्र से देखना एक अजीब-सा तिलिस्म है.

केदारकांठा के शीर्ष पर थोड़ी देर रुकने के साथ ही हमने केदारकांठा तिरंगा लहरा दिया और केदारकांठा के ट्रेक को पूरा करने का सेलिब्रेशन भी कर लिया. लेकिन अब वापस तो जाना ही था, काफी देर रुकने के बाद जब धूप तेज होने लगी, चांद भी पश्चिम में छुप गया, सूरज की रोशनी बर्फ पर चमक पैदा करने लगी तो हम केदारकांठा के समिट पॉइंट से भारी मन से नीचे उतरने लगे.

केदारकांठा से नीचे उतरते हुए अनाम बेस कैम्प के बाद हम दूसरे तरफ से जूड़ा का ताल नाम के स्थान पर पहुंचे हैं शायद यहां बरसात में बुग्याल के नजदीक ताल बन जाता होगा. जूड़ा का ताल के बाद हमने थके-हारे सिदरी कैम्प में रात्री विश्राम किया. थकान बहुत थी, बस केदारकांठा की शानदार याद के साथ नींद के आगोश में न जाने कब सो गए. अगली सुबह सभी साथियों को इस ट्रेक को सफलता पूर्वक समापन करने के लिए प्रशस्ति पत्र भी दिए गए. ये एक सराहनीय पहल है. सिदरी से सांकरी पहुंचे, अब वापस बाजार-सा आ गया है, ये उत्तरकाशी का सीमान्त क्षेत्र है, वहां से अब जीप टैक्सी से देर शाम तक हम देहरादून पहुंच गए हैं. हां, मैंने सांकरी से स्थानीय भेड़ पालकों की ऊन से बना कन्छुप्पा निशानी के तौर पर ले लिया था. अब हम शहर के कोलाहल के बीच वापस हैं देहरादून घाटी में केदारकांठा का ट्रेक पूरा करके.

Kedarkantha Trek

केदारकांठा के अनेक ट्रेक आयोजित करने वाले- ऐडवेंथ्रिल (ADVENTHRIL)  के संस्थापक और पर्वतारोही विजय प्रताप ने मुझे बताया कि ये एक प्रशिक्षण के लिए एक शानदार ट्रेक है. इस क्षेत्र में ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप भी नहीं होने चाहिए. उनकी कम्पनी हर वर्ष यहां ट्रेकिंग का प्रशिक्षण भी करवाती है.

ट्रेक के लिए जरूरी उपकरण- केदारकांठा के ट्रेक के लिए अच्छी किस्म के विंड और वाटरप्रूफ टैंट माइनस 10 डिग्री तापमान झेलने के लिए अच्छे स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, अच्छे क्वालिटी का वाटरप्रूफ बैकपैक, पौंचू, टोपी, सनग्लास, ग्लव्स, ट्रैकिंग शूज़, थर्मलवियर, टार्च, टायलैट्रिज़ और आवश्यक दवायें रखना ना भूलें.

खाने-पीने की व्यवस्था- इस ट्रेक के शुरू हो जाने के बाद सांकरी के बाजार से आगे अधिक दुकान या ढाबे नहीं हैं, इसलिए खाने का सामान और खाना पकाने के लिए छोटे गैस सिलेण्डर (ब्यूटेन सिलेण्डर) साथ में ले जाएं. अलग से ड्राई फ्रूट आदि रखना ना भूलें. शीतल हिमालयी जल मिनरल वाटर से कम नहीं है.

ध्यान रहे ट्रेकिंग के दौरान अकेले कहीं ना जाएं.  कोई ना कोई साथ में अवश्य रहे. इस ट्रेकिंग में यह विशेष ध्यान रखने की जरूरत है कि शोरगुल ना करें, चटकीले- भड़कीले कपड़े न पहनें, वनस्पति को नुकसान न पहुंचाएं और किसी भी प्रकार प्लास्टिक पालिथीन कचरा कहीं भी इधर-उधर ना फेंके.

(यह लेख केदारकांठा के ट्रेक पर गए एक ट्रेकर मंजू राणा और लेखक जे पी मैठाणी के ट्रैकिंग अनुभव पर एक लिखा एक ट्रेवलाग है) 

सभी चित्र – सुश्री मंजू राणा एवं विजय प्रताप (संस्थापक- ऐडवेंथ्रिल (ADVENTHRIL)  

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