कोरोना महामारी के इस वैश्विक दौर में बुरी तरह प्रभावित होने वाले तमाम क्षेत्रों में से एक है शिक्षा का क्षेत्र. पूरे देश में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक के लगभग 33 करोड़ विद्यार्थी इस महामारी के कारण अपनी पढ़ाई-लिखाई से समझौता करने को विवश हैं. ऑनलाइन माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाने की कोशिश तमाम स्कूलों व विश्वविद्यालयों द्वारा की जा रही है लेकिन रचनात्मकता व इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण कई विद्यार्थी इस तरह की कक्षाओं में अपनी रूचि खोते जा रहे हैं. एक ढर्रे में चलाई जा रही ऑनलाइन कक्षाएँ कई बार पढ़ाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति जैसी ही लगती हैं. इस खानापूर्ति रूपी ऑनलाइन पढ़ाई से परे उत्तराखंड के सरकारी शिक्षकों से जुड़े “रचनात्मक शिक्षक मंडल” ने “जश्न ए बचपन” नाम से एक व्हाट्सऐप ग्रुप का निर्माण किया है जिसकी चर्चा आजकल राज्य के लगभग हर स्थानीय अखबार व सोशल मीडिया ग्रुप में जोर-शोर से हो रही है.
सोमवार का दिन कत्थक, तबला व संगीत के नाम रहता है. हल्द्वानी से आस्था मठपाल बच्चों को कत्थक के गुर सिखाती हैं, रूद्रपुर से अमितांशु तबला व रामनगर से तुषार बिष्ट संगीत की शिक्षा पर अपना अनुभव बच्चों के साथ साझा करते हैं.
लॉकडाउन के बाद रचनात्मक शिक्षक मंडल की पहल पर 10 अप्रैल 2020 को वरिष्ठ शिक्षक नवेंदु मठपाल द्वारा इस ग्रुप का निर्माण किया गया. तब से अब तक राज्य के अलग-अलग जिलों से लगभग 180 विद्यार्थी इस ग्रुप से जुड़ चुके हैं और ग्रुप के साथ जुड़ने का यह सिलसिला अनवरत जारी है. जश्न-ए-बचपन ग्रुप से जुड़े बच्चों के तमाम लेख कई पोर्टल के अलावा स्थानीय अखबारों में छप चुके हैं. बच्चों की लॉकडाउन डायरी भी हल्द्वानी के रेडियो एफएम चैनल के कार्यक्रम हैलो हल्द्वानी के माध्यम से लोगों तक पहुँच रही है. बच्चों में रचनात्मकता पैदा करने वाले इस ग्रुप के निर्माणकर्ता नवेंदु मठपाल से हिमाँतर के लिए कमलेश चंद्र जोशी ने फोन पर विस्तृत बातचीत की. प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के कुछ…
- जश्न ए बचपन व्हाट्सऐप ग्रुप बनाने का विचार क्यों और कैसे आया?
जब से लॉकडाउन शुरू हुआ अचानक ही चारों तरफ ऑनलाइन पढ़ाई का शोर सुनाई देने लगा. जल्दी ही उसके दुष्परिणामों पर भी चर्चा सुनने को मिलने लगी. इन दुष्परिणामों के इतर सोचते हुए लगा कि जब बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं तो रचनात्मक गतिविधि क्यों नहीं? तब रचनात्मक शिक्षक मण्डल की ओर से विद्यार्थियों को कुछ नया, व्यावहारिक व रचनात्मक अनुभव देने के उद्देश्य से इस व्हाट्सऐप ग्रुप के निर्माण का फैसला लिया गया.
- ग्रुप से जुड़े तमाम एक्सपर्ट व गतिविधियों के बारे में कुछ बताइये?
इस ग्रुप में अपने-अपने क्षेत्र व विषयों के तमाम एक्सपर्ट जुड़े हुए हैं. ग्रुप को व्यवस्थित और सुचारू रूप से चलाने के क्रम में विभिन्न एक्सपर्ट्स के लिए अलग-अलग दिनों को सुनिश्चित किया गया है. बुधवार का दिन साहित्य के नाम रहता है. जिसका संचालन पिथौरागढ़ से वरिष्ठ अध्यापक, कवि व समीक्षक महेश पुनेठा करते हैं. बृहस्पतिवार को दिल्ली से सिने समीक्षक संजय जोशी बच्चों को सिनेमा देखने व उसकी बारीकियों को समझने के बारे में अवगत कराते हैं. शुक्रवार का दिन थियेटर के नाम होता जिसमें दिल्ली से संगवारी ग्रुप के कपिल शर्मा व नैनीताल से रंगकर्मी जहूर आलम बच्चों को थियेटर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ देते हैं व कई बार बच्चों को अलग-अलग भावों में अभिनय कर विडियो शूट कर के ग्रुप में भेजने को भी कहते हैं ताकि बच्चों की अभिव्यक्ति पर उन्हें प्रोत्साहित व सुधार की गुंजाइश पर टिप्पणी की जा सके.
शनिवार को देहरादून से ओरेगामी एक्सपर्ट सुदर्शन जुयाल बच्चों को कागज व तमाम तरह के वेस्ट से कई काम की चीजें बनाना सिखाते हैं. बच्चे खुद भी कई बार कुछ इस तरह की सुंदर व उपयोगी चीजें बनाकर ग्रुप में पोस्ट करते हैं कि एक्सपर्ट भी चकित रह जाते हैं.
शनिवार को देहरादून से ओरेगामी एक्सपर्ट सुदर्शन जुयाल बच्चों को कागज व तमाम तरह के वेस्ट से कई काम की चीजें बनाना सिखाते हैं. बच्चे खुद भी कई बार कुछ इस तरह की सुंदर व उपयोगी चीजें बनाकर ग्रुप में पोस्ट करते हैं कि एक्सपर्ट भी चकित रह जाते हैं. जश्न ए बचपन में रविवार का दिन पेंटिंग का होता है जिसे रामनगर से पेशेवर चित्रकार सुरेश लाल व कोलकाता से कल्लोल बर्मन संचालित करते हैं तथा बच्चों को पेंटिंग व रंगों की बारीकियाँ सिखाते हैं.
सोमवार का दिन कत्थक, तबला व संगीत के नाम रहता है. हल्द्वानी से आस्था मठपाल बच्चों को कत्थक के गुर सिखाती हैं, रूद्रपुर से अमितांशु तबला व रामनगर से तुषार बिष्ट संगीत की शिक्षा पर अपना अनुभव बच्चों के साथ साझा करते हैं. मंगलवार को बच्चे रामनगर के भाष्कर सती के सानिध्य में परिंदों की दुनिया की सैर पर निकलते हैं. भाष्कर सती बच्चों को परिंदों की पहचान के साथ-साथ उनके विशेष गुणों के बारे में अवगत कराते हैं. इसके अतिरिक्त बच्चों के साथ काम कर रहे कई वरिष्ठ सम्मानित जनों को भी बतौर गेस्ट एक्सपर्ट ग्रुप में आमंत्रित किया जा सके यही हमारा प्रयास रहता है. इसी कड़ी में मई दिवस के मौके पर नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से डॉ कमलेश अटवाल को आमंत्रित किया गया था जिन्होंने एक विडियो के माध्यम से बच्चों के साथ मई दिवस के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा की. हाल ही में बच्चों से बेहद मोहब्बत करने वाले जाने माने विज्ञान कथा लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने बच्चों के बीच अपनी बात रखी और ग्रुप के माध्यम से उन्हें परिंदों की सैर पर ले गए.
- यह ग्रुप उन स्कूली ऑनलाइन कक्षाओं से किस तरह अलग है जो आजकल डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रहे हैं?
स्कूली ऑनलाइन कक्षाओं के इतर यह ग्रुप किसी दबाव में नहीं अपितु बच्चों के सीखने की स्वतंत्रता पर निर्भर है. बच्चे स्वयं से अपनी रचनात्मकता इस ग्रुप में दिखाते हैं. उन पर किसी भी क्रियाकलाप के लिए कोई दबाव एक्सपर्ट्स की तरफ से नहीं बनाया जाता. ग्रुप के निर्माण के बाद से एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा स्वयं बच्चों में देखने को मिली है जिस वजह से ग्रुप दिन प्रतिदिन बेहतर होता जा रहा है.
- ग्रुप की अब तक की उपलब्धियॉं क्या रही हैं और आप उन्हें कैसे देखते हैं?
ग्रुप की शुरुआत करते समय हम खुद असमंजस में थे कि यह अभियान पता नही कितना आगे तक चल पाएगा पर आज लगभग दो महीने से अधिक का समय हो गया है ओर हमें सन्तुष्टि है कि हमारी मेहनत रंग ला रही है. बच्चों और एक्सपर्ट्स की मेहनत का नतीजा यह है कि आज इस ग्रुप के बारे में जगह-जगह लिखा और पढ़ा जा रहा है. हर दिन कोई न कोई इस ग्रुप से जुड़ने के लिए कॉल या मैसेज कर ही देता है. अब हम फेसबुक पेज बनाकर इसको और अधिक विस्तार देने हेतु प्रयासरत हैं.
- जश्न ए बचपन ग्रुप की पहुँच राज्य में कहॉं तक रही है और किन क्षेत्रों तथा विद्यालयों के छात्र इससे जुड़ पाए हैं?
राज्य के तमाम जिलों के सरकारी व निजी विद्यालयों के लगभग 180 विद्यार्थी हमारे इस ग्रुप के साथ जुड़ चुके हैं जिसमें पहाड़ों से लेकर मैदानी स्कूलों तक के छात्र शामिल हैं. इस ग्रुप का सबसे मजबूत पहलू यही है कि इसमें अलग-अलग क्षेत्र और विद्यालयों के विद्यार्थी जुड़े हुए हैं और नए विद्यार्थियों का जुड़ना अभी भी जारी है.
- इस तरह ऑनलाइन ग्रुप के माध्यम से सीखने-सिखाने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
ऑनलाइन पढ़ाई की जो भी समस्याएं हैं उन सबसे हमें भी जूझना पड़ रहा है. मसलन ग्रुप का अनुशासन बनाए रखना, अनावश्यक मैसेज न भेजना, कई बच्चों का ग्रुप छोड़ देना, कई बच्चों का प्रतिभाग न करना आदि तमाम तरह की समस्याएँ हैं जिनसे जूझना पड़ता है. लेकिन जश्न ए बचपन ग्रुप में इस तरह की समस्या यदा कदा ही महसूस की गई है.
- ग्रुप से जुड़े बच्चों का साझा किया गया अब तक का अनुभव कैसा रहा?
इस ग्रुप में प्रतिभाग करने वाले बच्चे इतने प्रतिभाशाली हैं कि कई नई-नई बातें हम जैसे शिक्षकों को भी उनसे सीखने को मिल रही हैं. बच्चों के लिखे लेखों को पढ़ने के बाद कई बार प्रकाशक यह पूछने लगते हैं कि यह वाकई बच्चों ने स्वयं ही लिखा है या उनके अध्यापकों ने इसमें उनकी मदद की है? हैलो हल्द्वानी के लिए कुछ बच्चों की रिकार्ड की गई लॉकडाउन डायरी को सुनकर रेडियोकर्मियों ने तो यहॉं तक कह दिया कि यह बच्चों के खुद के शब्द तो नहीं लगते. जरूर इसमें इनके गुरूजनों ने इनकी मदद की होगी. जबकि सच्चाई यह है कि बच्चे हर प्रकार की गतिविधि बिना किसी की मदद के स्वयं ही पूरी लगन और आत्मीयता से अंजाम देते हैं. बच्चों का अब का साझा किया गया अनुभव लाजवाब रहा है.
- जश्न ए बचपन ग्रुप से किस प्रकार जुड़ा जा सकता है?
ग्रुप से जुड़ने के लिए आप मोबाइल नम्बर 9536572514 पर सम्पर्क कर सकते हैं. एहतियातन आपसे कुछ सामान्य सी जानकारियां ली जाएंगी और फिर आपको ग्रुप के साथ जोड़ दिया जाएगा.
- यह ग्रुप सिर्फ लॉकडाउन या विद्यालयों के बंद रहने तक ही अस्तित्व में रहेगा या भविष्य में भी इसी तरह बच्चों के साथ जुड़ा रहेगा?
इस ग्रुप को बनाते समय निर्णय यह लिया गया था कि यह ग्रुप केवल लॉकडाउन तक ही अस्तित्व में रहेगा लेकिन ग्रुप की रचनात्मकता व बच्चों की कलात्मकता को देखकर यह निर्णय ग्रुप के प्रतिभागियों के ऊपर छोड़ा जाएगा कि वह इस ग्रुप को बनाए रखना चाहते हैं या भंग करना चाहते हैं. वे जैसी राय देंगे भविष्य में वैसा ही होगा.
लॉकडाउन के समय में जहॉं ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता व व्यावहारिकता पर ढेरों सवाल उठ रहे हैं ऐसे समय में रचनात्मक शिक्षक मंडल द्वारा संचालित जश्न ए बचपन ग्रुप की कामयाबी ऑनलाइन शिक्षा को एक नई दिशा दे रही है. इसी उम्मीद के साथ की ऑनलाइन शिक्षा की बात करने व इसको बढ़ावा देने वाली संस्थाएँ जश्न ए बचपन ग्रुप की तरह इसकी गुणवत्ता व रचनात्मकता पर भी विचार करेंगी अपना समय देने व हमसे बात करने के लिए नवेंदु जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.