मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—51
- प्रकाश उप्रेती
नरसिंह देवता थोड़ा हिले लेकिन नाचे नहीं. बुबू कुछ समझ रहे थे क्योंकि वो उनके पुराने जगरी थे. उनके घर में पहली बार ‘नौतार’ (पहली-पहली बार) भी बुबू ने अवतरित किया था.
उस समय नरसिंह ने गुरु के तौर पर ‘हाथ मार’ (वचन दिया) रखा था कि आगे से तुम ही मेरे गुरु रहोगे और तुम्हारे नाम लेने मात्र से ही मैं दर्शन दे दूँगा. ऐसा होने के बावजूद नरसिंह नहीं नाच रहे थे.जागरी
बुबू ने एक बार फिर चाल लगाई. हुडुक की गमक फिर से गूँजने लगी और मैं साथ में थकुल ‘मिसाने’ में लगा हुआ था. बुबू अब नरसिंह देवता को ‘हाथ मारने’ (वचन देना) वाली बात भी याद
दिला रहे थे. हुडुक, थकुल और बुबू की आवाज से पूरा माहौल देवमय हो रखा था. वहाँ बैठे सभी लोग विनती-अर्जी कर रहे थे. जिनकी जागरी थी वो नरसिंह देवता के पांव में पड़कर विनती कर रहे थे. बुबू बीच-बीच में उनके पक्ष से बोल रहे थे- “देवा नर-बनर हय यूँ, अगर इने कल के ले गलती है गे तो माफ कर दे इनुकें, दर्शन दे नरसिंह” (देवता ये नादान इंसान हैं. अगर इनसे कोई भी गलती हो गई है तो माफ कर दें और दर्शन दे). बुबू की इस विनती का भी कोई असर नहीं हो रहा था.जागरी
ऐसे में बुबू ने सोचा कि एक बार ग्वेल देवता की चाल लगा देता हूँ. जैसे ही बुबू ने ग्वेल देवता की जागरी के चंद शब्द बोलते हुए ‘नदी में बहा देने’ तक आए थे वैसे ही उनकी हुडुक की ‘पूड’
(वो खाल जिससे आवाज निकलती है) ही फूट गई. जैसे पूड फूटी, बुबू अचानक रुक गए. मैं भी रुक गया. अंदर एकदम सन्नाटा छा गया. ऐसा कभी होता नहीं था. इस घर में बुबू कई बार जागर लगा चुके थे. बीच चाल में से हुडुक की पूड फूट जाना कोई साधारण घटना नहीं थी. पूड भी ऐसी फूटी की बीच में से दो हिस्से हो गए. यह बुबू के लिए अप्रत्याशित था.बुबू एकदम शांत और सोच में डूबे हुए थे.
उनके ललाट पर पिठ्या, लाल तेज रोशनी की भाँति चमक रहा था. चेहरे पर विस्मय का भाव था. आँखे बंद थी, किसी घोर चिंतन में डूबे से लग रहे थे. तभी मिनट भर में बुबू में एक कंपन सी छूटी और उन्होंने खिड़की से बाहर देखते हुए कड़क आवाज में कहा- “रामि ठिक निकोय तूल यो’.
जागरी
मैंने ये सब सुना था लेकिन ‘आँखिन देखि’
तो पहली बार ही था. इस घटना ने मेरी नींद को भी उड़ा दिया था.जागरी
अब सुबह के तकरीबन 3 बज चुके थे. एक भी देवता नहीं नाचा था. सभी हैरान-परेशान थे. लोग आपस में तरह-तरह की बातें और कानाफूसी में लगे हुए थे. कोई इसे उनके ‘घर का रगड़ा’ बात रहा था,
कोई देवताओं का असंतोष, कोई अघोर की बात कर रहा था तो कोई पूर्वजों की ‘घात’ का हवाला दे रहा था. मेरे कान में इन सब की तरफ थे लेकिन नज़र बुबू पर टिकी हुई थी.जागरी
बुबू एकदम शांत और सोच में डूबे हुए थे. उनके ललाट पर पिठ्या, लाल तेज रोशनी की भाँति चमक रहा था. चेहरे पर विस्मय का भाव था. आँखे बंद थी, किसी घोर चिंतन में डूबे से लग रहे थे.
तभी मिनट भर में बुबू में एक कंपन सी छूटी और उन्होंने खिड़की से बाहर देखते हुए कड़क आवाज में कहा- “रामि ठिक निकोय तूल यो’ (रामदत्त तुमने ये ठीक नहीं किया). बुबू का ऐसा कहते ही, सबकी नजर बाहर को गई. मैंने भी बाहर को देखा, तभी एक आदमी जो बाहर बैठा हुआ था, हुक्का पीते हुए वहाँ से जा रहा था.जागरी
उसके जाते ही लोगों में फुसफुसाहट शुरू हो गई थी.
लोगों की फुसफुसाहट से जो मैं समझ पाया कि वह बग़ल के गांव का ‘गणतू’ (भूत, भविष्य बताने वाले) था. साथ ही टोना-टोटका भी जानता था. बुबू ने जैसे ही उसका नाम लिया तो वो चल दिया. अब बुबू ने अपनी मंत्र विद्या शुरू की और एक आदमी से थोड़ा ‘खारुण’ (राख) लाने को कहा, कुछ अनाज व अपने झोले से चीजें निकालीं और उसे बाहर जाकर कहीं फूंक आए. जब वो बाहर को निकले तो सभी को सख़्त निर्देश दे गए कि कोई बाहर न निकले.जागरी
बुबू 10 मिनट बाद जब
आए और जैसे ही उन्होंने अंदर आने के लिए ‘देहरी’ में कदम रखा तो नरसिंह अपने आसन से बिना हुडुक और थकुल के अवतरित हो गए. वहाँ बैठे सभी लोग दंग रह गए थे. नरसिंह ने नाचते ही कहा- “धामी लगा म्येरी चाल”( गुरु मेरी चाल लगा). बुबू ने मेरे से थकुल लिया और उसी में नरसिंह की चाल लगाई.
जागरी
बुबू घनघोर अँधेरे में पता नहीं कहाँ तक गए लेकिन 10 मिनट बाद लौटे. तब तक सब जहाँ पर बैठे थे वहीं बैठे रहे. मेरे लिए यह नया नहीं था लेकिन अनुभव पहला था. बुबू 10 मिनट बाद जब आए और जैसे ही उन्होंने अंदर आने के लिए ‘देहरी’ में कदम रखा तो नरसिंह अपने आसन से बिना हुडुक और थकुल के अवतरित हो गए.
वहाँ बैठे सभी लोग दंग रह गए थे. नरसिंह ने नाचते ही कहा- “धामी लगा म्येरी चाल”( गुरु मेरी चाल लगा). बुबू ने मेरे से थकुल लिया और उसी में नरसिंह की चाल लगाई. नरसिंह ने नाचते-नाचते जमीन-आसमान एक कर दिया और बुबू इधर से कह रहे थे- “तेरा बंधन खोल दिया अब दर्शन दे और इनकी खुशी की जागरी को अपनी सेवा में ले”.जागरी
नरसिंह के बाद ग्वेल की जागरी लगाई थी.
ग्वेल भी थकुल में नाच गए. हुडुक तो फूट चुका था. फिर तो मैतू-सोरासी सभी नाचे. सभी लोगों ने देवता से अपनी-अपनी पूछ-ताछ की और जो भी बोली-टोली थी उसका न्याय हुआ. बाद में बुबू ने सभी देवताओं को ‘घेरा’ (शांत करना) दिया. तब तक सुबह के 6 बज चुके थे.जागरी
उसके बाद लोग बुबू से पूछने लगे कि-
“रामिल के कर छी” (रामदत्त ने क्या किया था). बुबू ने बताया कि उसने देवाताओं को मंत्रों से बांध दिया था और जब मैं ग्वेल को नचाने लगा तो उसने मेरा हुडुक ही “मुनि दिया”(मंत्रों से आवाज गायब कर देना) दिया था. तभी बीचों-बीच में से हुडुक की पूड फूट गई. सभी इस बात से आश्चर्यचकित थे लेकिन सबने यह अपनी आँखों के सामने घटते हुए देखा था. बुबू की प्रतिष्ठा और बढ़ गई थी. मेरा पहला ही अनुभव यादगार बन गया था.जागरी
ईजा तब भी छन पर ही थीं.
मैंने “ओ ईज” (मां), ईजा ने उधर से कहा- “आ गे छै जागेरि लगे बे” (आ गया जागरी लगा कर). मैं, होई, कहते हुए घर की तरफ बढ़ गया. ईजा जैसे मुझे जाते हुए ताक रही थी ठीक वैसे ही आते हुए भी ताक रही थीं. मैं, उनकी आशाओं के विपरीत रास्ते पर एक कदम बढ़ा चुका था…
जागरी
सुबह हमारा टिका-पिठ्या हुआ. बुबू
और मैं घर के लिए लौट आए . बुबू रात की कुछ और घटनाओं के बारे में बता रहे थे. पूरे रास्ते बुबू ने कई किस्से सुनाए जिनमें जगरी की आवाज बंद कर देने से लेकर मार देने तक की घटनाएं थी. इन किस्सों में ही हमारा रास्ता कट गया और हम घर पहुँच गए.जागरी
ईजा तब भी छन पर ही थीं. मैंने
“ओ ईज” (मां), ईजा ने उधर से कहा- “आ गे छै जागेरि लगे बे” (आ गया जागरी लगा कर). मैं, होई, कहते हुए घर की तरफ बढ़ गया. ईजा जैसे मुझे जाते हुए ताक रही थी ठीक वैसे ही आते हुए भी ताक रही थीं. मैं, उनकी आशाओं के विपरीत रास्ते पर एक कदम बढ़ा चुका था…जागरी
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)