मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—50
- प्रकाश उप्रेती
हुडुक बुबू ने नीचे ही टांग रखा था लेकिन किसी ने उसे उठा कर ऊपर रख दिया था. बुबू ने हुडुक झोले से निकाला और हल्के से उसमें हाथ फेरा, वह ठीक था. उसके बाद वापस झोले में रख दिया.
हुडुक रखने के लिए एक काला सा थैला था. उसी में रखा रहता था. बुबू के हुडुक पर कोई हाथ लगा दे यह उनको मंजूर नहीं था. तब ऐसे किस्से भी बहुत प्रचलित थे कि मंत्रों से कोई हुडुक या जगरी की आवाज़ बंद कर देता है. वो कहते थे कि “आवाज मुनि गे”.जागरी
जागरी अंदर लगनी थी. देवताओं के आसन लग चुके थे. बुबू और मेरे लिए आसन लगा हुआ था. एक आदमी सबको पिठ्या लगा रहा था. मुझे भी उन्होंने पिठ्या लगाया और 10 रुपए दक्षिणा दी. मैंने उन्हें सीधे अपने झोले में रखे तौलिए के किनारे में बांध दिया. अब एक तरफ देवताओं के आसन लगे हुए थे और ठीक उनके सामने मैं, बुबू और दो ‘ह्वो’
(सुर मिलाने वाले) लगाने वाले लोग बैठे थे. बुबू ने एक आदमी को कहा- “अरे शिविया थकुल कति छु, थकुल ल्या” (शिव सिंह थाली कहाँ है, थाली लाओ). वो झट से अंदर गए और कांसे का एक थकुल लाकर मेरे सामने रख दिया. मैंने थकुल को थोड़ा अलट-पलट कर देखा और फिर झोले से ‘आंटू’ (थाली बजाने वाली डंडियाँ) निकाले. बुबू ने मेरे हाथ से आँटू लिए और थकुल को बजा कर देखने लगे.आसन
मैं थोड़ा घबराया हुआ भी था. थकान, नींद,
और पहले अनुभव के साथ बुबू का डर था कि कहीं गलत करूँगा तो बुबू सबके सामने ही डांट देंगे. सारे लोगों की नज़र भी मुझ पर थी. बच्चे और बूढ़े मुझे अति उत्सुकता से देख रहे थे. इसलिए प्रेशर बढ़ता जा रहा था. बुबू ने थकुल और आँटू दोनों को परख लिया था. उन्होंने थकुल मेरी तरफ खिसकाते हुए दोनों ‘आंटू’ बड़े सलीके से मुझे दिए. ऐसा लगा वह कोई बड़ी विरासत मुझे सौंप रहे हों.थकुल
मैंने आँटू पकड़े और थकुल के ऊपर रख दिए. तब तक लोग आते जा रहे थे और जहाँ जगह मिलती बैठते जा रहे थे. देवता के ‘डंगरि’ (जिन पर देवता अवतार लेता है) आसन ग्रहण कर चुके थे.
बुबू ने फिर काले थैले से हुडुक निकाला और दोनों तरफ से उसमें हाथ फेरा. फिर वही गले में लटकाते हुए घुटने में फंसाया और चार उंगलियों से दम….दम शुरू कर दिया. अचानक उनके हुडुक की पहली थाप के साथ ही लोगों में सन्नाटा सा छा गया. बुबू ने हल्के से मेरी तरफ देखा. वह एक तरह से इशारा जैसा था. मैंने भी फट आँटू पकड़े और थकुल में दोनों आंटू की संगत के साथ टुन.. टुन… बजाने लगा. सब लोगों का ध्यान मेरी तरफ था और मेरा बुबू के हाथ पर. अन्दर एक डर बराबर बना हुआ था कि गलत न हो जाए.हुडुक और थकुल की चाल पर लोग मंत्र-मुग्ध थे. बुबू के
चेहरे पर भी प्रसन्नता थी. उनको अपनी सिखाई विद्या पर गर्व करने का यह पहला अवसर था. मेरे लिए यह परीक्षा का पहला चरण था. 20 मिनट के बाद बुबू ने हुडुक बंद किया तो मेरी तरफ शाबासी के भाव के साथ देखा.
बुबू
धीरे-धीरे बुबू के हुडुक और मेरे थकुल का रंग जमने लगा था. उन्होंने 15 से 20 मिनट सिर्फ अलग-अलग चाल के साथ हुडुक बजाया और मैं उनके साथ उसी संगत में थकुल ‘मिसा’ (मैच करना) रहा था. मेरे अंदर का डर धीरे-धीरे दूर हो रहा था और बुबू मुझे हर चाल पर परख लेना चाहते थे. हुडुक और थकुल की चाल पर लोग मंत्र-मुग्ध थे.
बुबू के चेहरे पर भी प्रसन्नता थी. उनको अपनी सिखाई विद्या पर गर्व करने का यह पहला अवसर था. मेरे लिए यह परीक्षा का पहला चरण था. 20 मिनट के बाद बुबू ने हुडुक बंद किया तो मेरी तरफ शाबासी के भाव के साथ देखा. हुडुक बंद करके उन्होंने झोले से अपनी ‘सुल्फी हॉक’ (छोटा वाला हुक्का) निकाली, उसमें तम्बाकू भरा और एक आदमी को पकड़ा दिया. वह चट बाहर चूल्हे में से एक आग का कोयला उसमें रख लाया.हॉक
बुबू हॉक पीने लगे और लोग उनसे कह रहे थे- ‘नाति तैयार क हा तुमुल’ (पोता तुमने तैयार कर दिया है). लोग तारीफ में अलग-अलग बात कर रहे थे. मैं सहमा
और शर्माया सा बस सुन रहा था. तब मेरी उम्र ही 8 वर्ष की थी. बुबू किसी को जवाब देते और किसी की बात को टाल दे रहे थे.रात के तकरीबन 1 बज रहे होंगे. मेरी नींद चरम पर थी. बुबू इस बात को शायद समझ भी रहे थे. उन्होंने बोल बिरत के तुरंत बाद सीधे देवताओं की
चाल लगानी शुरू कर दी. मैं भी आँख मल कर थोड़ा ध्यान से बजाने लगा. उनके घर में नरसिंह और ग्वेल दो जबरदस्त देवता थे. बुबू ने नरसिंह की चाल लगाई और पूरा माहौल ही बदल गया. मेरी नींद गायब.
चाल
बुबू जितना जागरी लगाने के लिए विख्यात थे उतने ही जागरी सुनाने के लिए भी. कई लोग तो सिर्फ उनकी जागरी सुनने आते थे. उनका कंठ सुरीला था और आवाज़ में एक अलग सी खनक थी.
जागरी में जब वो कथा सुनाते और बीच-बीच में हुडुक की थाप देते तो वह देखने और सुनने में अद्भुत होता था. जब बुबू जागरी सुनाते थे तो तब सिर्फ बीच-बीच में हुडुक ही बजाते थे. थकुल का कोई काम नहीं होता था. मेरे कान कथा पर थे लेकिन आँखे धीरे-धीरे बंद हो रही थी. एक दो बार तो नीचे तक वाली झपकी भी ले चुका था. झपकी लेता फिर तुरंत आँख मलता और जगे रहने की पूरी कोशिश करता लेकिन रात जैसे आगे बढ़ रही थी तो मेरी कोशिश नाकाम होती जा रही थी. बुबू ने एक-दो झपकी लेते हुए मुझे देख भी लिया था.कथा
अब वो जल्दी-जल्दी कथा खत्म करने पर लगे हुए थे. उन्होंने कथा खत्म की और देवता के बोल बिरत लेने लगे. अब इसमें मुझे भी थकुल बजाना था. बुबू कभी हुडुक तो कभी
मेरी तरफ देख रहे थे. मैं ऊँघते हुए बजा रहा था. बीच-बीच में वो मुझे कुहनी मारते तो मैं उनकी चाल के हिसाब से थकुल बजाता नहीं तो एक ही चाल मेरी चल रही थी. पूरे ‘बोल बिरत’ लेने तक यह सिलसिला चलता रहा.बुबू को लग गया कि कुछ तो गड़बड़ है. उन्होंने हुडुक बंद किया और शुरू हो गई बोली-टोली… बात घात-मघता, बोली-टोली, ओसान, अघोर, और बंधी बनाने तक
चली गई. वहाँ बैठे लोग भी अर्जी-विनती करने लगे.. बुबू पर खुद भी हमारे घर के देवता आते थे. वह हर तरह की विद्या को जानते और समझते थे. उन्हें लग रहा था कोई तो गड़बड़ है.
बारी
अब बारी देवताओं को नचाने की थी.
रात के तकरीबन 1 बज रहे होंगे. मेरी नींद चरम पर थी. बुबू इस बात को शायद समझ भी रहे थे. उन्होंने बोल बिरत के तुरंत बाद सीधे देवताओं की चाल लगानी शुरू कर दी. मैं भी आँख मल कर थोड़ा ध्यान से बजाने लगा. उनके घर में नरसिंह और ग्वेल दो जबरदस्त देवता थे. बुबू ने नरसिंह की चाल लगाई और पूरा माहौल ही बदल गया. मेरी नींद गायब. मैं एक दम पूरे जोश के साथ चाल मिसा रहा था लेकिन बहुत देर हो गई, नरसिंह नाचा ही नहीं. जोशीमठ से लेकर हरि-हरिद्वार, बद्री-केदार तक की आन दे रहे थे लेकिन नरसिंह नाच ही नहीं रहे थे.गड़बड़
बुबू को लग गया कि कुछ तो गड़बड़ है.
उन्होंने हुडुक बंद किया और शुरू हो गई बोली-टोली… बात घात-मघता, बोली-टोली, ओसान, अघोर, और बंधी बनाने तक चली गई. वहाँ बैठे लोग भी अर्जी-विनती करने लगे.. बुबू पर खुद भी हमारे घर के देवता आते थे. वह हर तरह की विद्या को जानते और समझते थे. उन्हें लग रहा था कोई तो गड़बड़ है. उन्होंने फिर एक बार हुडुक में चाल लगाई लेकिन नरसिंह थोड़ा हिले, नाचे नहीं..जागरी
बुबू को बात अब समझ में आ गई थी….
जारी है….
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)