विश्व गौरेया दिवस पर विशेष
- अनीता मैठाणी
एक सयानी गौरेया-
हमारी चीं-चीं, चूं-चूं के बीच आज ये क्या मच-मच लगी है इंसानों की, कि जिसे देखो अपना एंड्राॅयड फोन लिए घर के आगे पीछे घूम रहा है कि कहीं हम दिख भर जाएं क्लिक, क्लिक, क्लिक, और वो सोशल मीडिया में दोस्तों के बीच शेखी बघार कर पोस्ट डाल सके कि ये देखो साहब हम भी ठहरे बड़े वाले प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद् और गौरेया के पक्षधर।
एक दूसरी गौरेया- मुझे लगता है इसमें हमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, चाहे जो हो इन दशकों में उन्हें कम से कम हमारे अस्तित्व की चिंता तो हुई।
एक बेबी गौरेया- हाँ यही मैं भी कह रही हूँ लेने दो उन्हें हमारी फोटू। कौन सा रोज-रोज लेते हैं कोई हमारी फोटू। कहकर छुटकी ढाई सेेंटीमीटर की मुस्कान मुस्कुरा दी। और साथ में एक दूसरा बेबी गौरेया भी अपने पोपले मुंह से खी-खी कर पेट पकड़ कर हंस पड़ा।
एक सयाना चिड़ा- कुछ गंभीर होकर बोल उठा, दिखावे के लिए ही सही हमारी मौजूदगी का एहसास तो हुआ उन्हें, हमारा आसपास होना कुछ तो रास आया इन्हें। तभी आजकल कुछेक घरों में हमारे लिए काठ का बना एक स्पैरो हाउस टंगा मिल जाता है। वैसे सच कहूं तो ऐसे बक्सों में घोंसला बनाने से सुरक्षा का एहसास कई गुना बढ़ जाता है।
सब सब स्वर में चीं-चीं कर अपनी सहमति प्रकट करने लगे।
तभी वही पहले वाली सयानी गौरेया- अरे तुम सब तो मुझे ही समझाने लगे। पहले मेरी बात तो पूरी तरह समझ लो।
मैं कौन सा इनके इस प्रयास के खिलाफ झंडा उठा कर बैठ गई हूँ। मुझे तो पता चला कि एक-एक कर विश्व के 50 से भी अधिक देशों में आज का दिन यानि 20 मार्च विश्व गौरेया दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है वो भी पिछले दस वर्षों से।
सभी गौरेया एक साथ- क्या…
हाँ और नहीं तो क्या। और इसकी शुरूआत करने वाले हैं हमारे ही देश के मोहम्मद दिलावर जो कि एक नेचर कंसर्वेशनिस्ट हैं। इनके संगठन नेचर फाॅरएवर सोसायटी ने इको-सिस एक्शन फाउण्डेशन- फ्रांस के साथ मिलकर 20 मार्च 2010 से यह दिन यानि कि 20 मार्च विश्व गौरेया दिवस के रूप में नामित किया गया और जिसके बहाने उन्होंने अपने पर्यावास साझा करने वाले हम गौरयों और हमारे जैसे अन्य विलुप्त होती पक्षियों की प्रजाति की ओर लोगों का ध्यान खींचने का प्रयास किया है।
सुनो हमारी पड़ोसन भी शायद बाहर आ रही है वो भी तो कभी कभार सोशल मीडिया पर पोस्ट डालती है।
और वाकई मेरा हाथ में फोन लिए बाहर आना हुआ… पर तब तक मैं उनकी ये सारी बातें सुन चुकी थी।
हमारे देहरादून में ये छोटे-छोटे लकड़ी के बक्से गौरेया घर- स्पैरो हाउस बड़े पैमाने पर बनाये जा रहे हैं जानते हैं कहाँ। आप में से कई जानते भी होंगे। जी हाँ ये बनाये जा रहे हैं- शुद्धोवाला कारागार में, कैदियों के हाथों से। ये बिक्री के लिए मेलों में, बाजारों में खूब आते हैं लोग इन्हें उतने ही प्यार से खरीदते हैं और अपने घरों की बाहरी दीवारों पर अपने हिस्से की गौरेयों के लिए टांग देते हैं। और कुछ ही दिनों में किसी जोड़े की नज़र इन पर पड़ती है। और कुछ ही दिनों में ये आबाद हो उठते हैं चीं-चीं, चूं-चूं की आवाजों के बीच।
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