- डॉ. हेमचन्द्र सकलानी
जब भी उनको फोन करता तो बड़ी देर तक उनके आशीर्वादों की झड़ी लगी रहती थी जो मेरी अंतरात्मा तक को भिगो जाती थी। वो उत्तराखंड की वास्तव में अनोखी ज्ञानवर्धक विभूति थीं।
6 मार्च को उत्तराखंड की विभूति वीणा पाणी जोशी जी के निधन का जब सामाचार मिला तो हतप्रभ रह गया। तीन माह पूर्व उनसे बसंत विहार में मिलने पहुंचा था, पता चला था गिरने के कारण कुछ अस्वस्थ हैं। यूं तो लगभग तीस वर्षों से उनसे परिचय था निरंतर संपर्क में भी था। एक पत्रिका ने उनके बारे में मुझसे कुछ जानना चाहा था तो मुझे भी मिलने की उत्सुकता थी। मुझे पहचानने में उन्हें एक दो मिनट का समय लगा। ध्यान आते ही उनका पहला प्रश्न था लेखन कैसा चाल रहा है और स्वास्थ कैसा है। दस वर्ष पूर्व जब से उन्हें पता चला था मेरा ऑपरेशन हुआ है तो स्वास्थ के सम्बन्ध में हमेशा पहले पूछती बाकी बातें बाद में होती। मुझे याद है सी.एम.आई.में जब वो कई साहित्यकारों को लेकर मुझे देखने आई थीं।
उत्तराखंड ने डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी, मोहनलाल बाबुलकर, हरिदत्त भट्ट शैलेश, बी मोहन नेगी, ललित मोहन कोठियाल, सुरेन्द्र पुंडीर, उमा जोशी जैसे महान साहित्यकारों को खोया है जिसकी शायद कभी भरपाई नहीं हो पाएगी। इसी क्रम में वीणा पाणी जी का निधन उत्तराखंड के साहित्य जगत की गम्भीर क्षति कही जा सकती है।
करीब आधे घंटे तक उनके बारे में, उनके लेखन के बारे में जानकर मै लौट आया था। वो मेरे हर कार्यक्रमों में उपस्तिथ रहकर व्यक्तव्य देकर अपनी सार्थक भूमिका निभातीं रही थीं। इसलिए उनको भूलना मेरे लिए आसान नहीं हो सकता था। एक बार उन्होंने मेरे ऊपर ही एक काव्य रचना लिखकर मुझे दी जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है। जब भी उनको फोन करता तो बड़ी देर तक उनके आशीर्वादों की झड़ी लगी रहती थी जो मेरी अंतरात्मा तक को भिगो जाती थी। वो उत्तराखंड की वास्तव में अनोखी ज्ञानवर्धक विभूति थीं। गत कुछ वर्षों में उत्तराखंड ने डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी, मोहनलाल बाबुलकर, हरिदत्त भट्ट शैलेश, बी मोहन नेगी, ललित मोहन कोठियाल, सुरेन्द्र पुंडीर, उमा जोशी जैसे महान साहित्यकारों को खोया है जिसकी शायद कभी भरपाई नहीं हो पाएगी। इसी क्रम में वीणा पाणी जी का निधन उत्तराखंड के साहित्य जगत की गम्भीर क्षति कही जा सकती है। उनके बारे में कितना भी लिखा जाए, बोला जाए कम होगा फिर भी थोड़ा सा रेखांकित करना आवश्यक समझता हूं।
बालकाल से ही वीणापाणी जी को साहित्य और संस्कृति में विशेष रूचि रही क्योंकि जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में यह उन्हें विरासत में भी मिली थी। आपने देहरादून के प्रसिद्ध स्कूल महादेवी कन्या पाठशाला से इंटर की परीक्षा पास की, बाद में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक और गढ़वाल विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ एडयूकेशन की डिग्री हासिल कीं।
उत्तराखंड की जानी मानी लेखिका, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती वीणापाणी जोशी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन कभी किसी परिचय की मोहताज नहीं रहीं । आपका जन्म 10 फरवरी 1937 को देहरादून के प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक स्थान चुक्खु मुहल्ले में गढ़वाली भाषा के प्रसिद्ध लेखक पं.चक्रधर बहुगुणा और श्रीमती विश्वेश्वरी देवी जी के घर पर हुआ था। बालकाल से ही वीणापाणी जी को साहित्य और संस्कृति में विशेष रूचि रही क्योंकि जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में यह उन्हें विरासत में भी मिली थी। आपने देहरादून के प्रसिद्ध स्कूल महादेवी कन्या पाठशाला से इंटर की परीक्षा पास की, बाद में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक और गढ़वाल विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ एडयूकेशन की डिग्री हासिल कीं। आपकी प्रमुख पुस्तकें ‘पिठैड़ पेइरालो बुरांस’ (कविता संग्रह) जो गढ़वाली में है तथा गढ़वाली दंत कथाएं (कहानी संग्रह) भी पाठकों के बीच बहुत सराही गयी हैं। ‘पिठैड़ पेइरालो बुरांस’ एक गढ़वाली काव्य संग्रह है जिसमें प्रकाशित सौ कविताओं को, छ उप-दीर्घाओं के अन्तर्गत बॉटा गया है। इक्कीसवीं सदी नई सह शताब्दी का यह पहला प्रकाशित लोक भाषा गढ़वाली काव्य संग्रह है। संग्रह की भूमिका गढ़वाली लोक भाषा में होनी चाहिए थी, लेकिन आम आदमी आसानी से समझ सके, इसलिए सम्भवतः हिन्दी में लिखी गयी। डॉ. गोविन्द चातक के अनुसार ये चिन्तनशील, जागरूक और सचेतन कवयित्री की कविताएं हैं। यह कथन यथार्थ और ठोस है। एक ओर जहॉ इसमें गढ़वाल और गढ़वाली की परम्पराएं हैं वहीं दूसरी ओर युग पीड़ा और पार्वत्य संस्कृति का सम्यक रूप भी है। नारी चरि़त्रों में स्नेह प्रेम और दुःख दर्द की कचोटती टीस भी है। हाड़ मांस गलाने वाला परिश्रम है तो उत्साहित मन और पति-पत्नी के दिव्य प्रेम की अलौकिक छटा भी है। इन कविताओं में जहॉ खाली होते गॉवों का दर्द है, वहीं बंजर होती धरती मां की पीड़ा का अहसास भी है। अनेक प्रस्तुतियों में कवयित्री के पहाड़ प्रेम और ममता का सुंदर निरूपण हुआ है। आत्मीयता और संवेदनाओं का संपुट है यह कविता संग्रह। खोये के लिए दर्द है तो आगत के लिए उल्लास। माटी, जल, जमीन, और वृक्षहीन होती धरती के खोते स्वरूप के लिए अथाह दर्द और टीस है। ये कविताएं कवयित्री की जागरूक चेतना का सूचक हैं। कविता के रूप में कवयित्री को पिता की विरासत और परम्परा मिली है। कविता संग्रह की भाषा काव्यमयी और लालित्यपूर्ण है। एक-एक शब्द मन छूने वाले हैं। भाषा और भाव सहज रूप में स्वनिर्मित प्रतीत होते हैं। इन कविताओं में जीवन के प्रति दिशा है। गढ़वाली भाषा और और काव्य कें लिए यह शुभ संकेत है। यह गढ़वाली भाषा की उत्कृष्ठ कृति है। (संदर्भ-गढ़वाली साहित्य की सर्वानुक्रमणी)।
वीणापाणी जोशी की कविताएं जिस तरह उनके मन से सहज रूप में प्रस्फुटित हुई हैं, वे उतनी सहजता के साथ अपने पाठकों और श्रोताओं से अपना अटूट संबंध भी बनाती हैं। — डॉ श्याम निर्मम
आपकी कविताओं के बारे में डॉ श्याम निर्मम का कथन बहुत सटीक प्रतीत होता है। वो लिखते हैं- वीणापाणी जोशी की कविताएं जिस तरह उनके मन से सहज रूप में प्रस्फुटित हुई हैं, वे उतनी सहजता के साथ अपने पाठकों और श्रोताओं से अपना अटूट संबंध भी बनाती हैं। वीणापाणी जी के जीवनानुभव उनकी भावाभिव्यक्ति में कुछ ऐसे घुल मिल कर सामने आते हैं कि वे एक दृश्य जैसा, हमारी ऑंखों में चित्रित होकर हमें देर तक अभिभूत किये रहते हैं। उनकी कविताओं में लोक संस्कृति और पर्यावरण के मनभावन चित्र तो हैं ही, प्रकृति और आम जिंदगी को जिस तरह से उन्होंने अपने मन में अनुभूत किया है, उसकी हिरदय स्पर्सिय छवियॉ उनकी कविताओं में शिद्दत से महसूस की जा सकती हैं। वे अपने ढंग की स्वयं निर्मित अनूठी कवयित्री हैं। उनकी भाषा और कहन में जितनी सादगी है, ताजगी है, उनमें उतनी ही गहराई तथा मन को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति भी विद्यमान है। ये कविताऍ अपने ऑचलिक सौंदर्य में रची-बसी तो हैं ही, अपने परिवेश को उजागर करने में भी सक्षम, समर्थ और अग्रणी हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य तथा घटनाओं का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है। यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। निर्मल एवं पावन वसुन्धरा को, मानव जाति ने विकास के नाम पर धीरे धीरे विनाश की ओर धकेल दिया है, जिससे पर्यावरणीय सन्तुलन डगमगा गया है।
उनकी एक अन्य कृति ‘श्याम भंवर कुछ बोल गया’ के बारे में डॉ रघुवीर सिंह रावत जी मानते हैं कि श्रीमती वीणापाणी जोशी की काव्य कृति श्याम भंवर कुछ बोल गया’ का अघ्ययन करने का जब अवसर मिला तो पाया इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का बहुत ही मन भावन चित्रण किया गया है। इस काव्य कृति में कवयित्री का प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति गहन लगाव परिलक्षित होता है। प्राकृतिक सौंदर्य तथा घटनाओं का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है। यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। निर्मल एवं पावन वसुन्धरा को, मानव जाति ने विकास के नाम पर धीरे धीरे विनाश की ओर धकेल दिया है, जिससे पर्यावरणीय सन्तुलन डगमगा गया है। इस कृति के माध्यम से कवयित्री की वेदना, पर्यावरण संरक्षण के प्रति परिलक्षित होती है। प्रकृति का यह एक सजीव प्रतिविम्ब है।
इसके अतिरिक्त आपकीे गढ़वाली लोक भाषा में दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। आपने अपने सहयोगियों के साथ स्व. पं. शम्भु प्रसाद बहुगुणा की रचनाधर्मिता और कार्यों पर उनका स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन भी किया। उत्तराखंड की महिलाओं पर शोध निबंध, शोधपरक नव वर्ष-सहस्त्राब्दी 2001, नव वर्ष कार्ड द्वारा उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत प्रवर्तक महिलाओं को सूचीबद्व करने का प्रथम प्रयास भी सराहनीय रहा है।
आपने गढ़ जागर की डिप्टी डायरेक्टर तथा धाद महिला मंच की अध्यक्षता का पद भी बखूबी सम्भाला। हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बत्थर्वाल पर आपके अनेक शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए। अंग्रेजी, गढ़वाली, कुमाउंनी, पंजाबी, अवधी, भाषा की आपको अच्छी जानकारी रही है। सन 2006 में उत्तराखंड सरकार ने आपकी रचना धर्मिता और उपलब्धियों को देखते हुए आपको ‘उत्तराखंड संस्कृति-साहित्य एवं कला परि षद उत्तरांचल’ में सम्मान सहित मनोनीत किया।
मोहनलाल बाबुलकर जी ने आपके बारे में कहा है कि जब गढ़वाल साहित्य परिषद ने अनेक संकटों के समय ‘वसुधारा’ का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया तो वीणापाणी जोशी जी का प्रकाशन में भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ था। आपके लेख, कविताएं, उत्तराखंड ही नहीं देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में और समाचार पत्रों यथा नवभारत, उत्तरायणी, वसुधारा, हरित वसुन्धरा, युगवाणी, हिमालय दर्पण, दून दर्पण, समय साक्ष्य, धाद, शैलवाणी, रंत रैबार, बुरांस, चिठठी पत्री, घुघुति, तथा अखिल गढ़वाल सभा की स्मारिका ”उत्तराखंड महोत्सव पत्रिका” में प्रमुखता के साथ प्रकाशित होती रही हैं। आपने गढ़ जागर की डिप्टी डायरेक्टर तथा धाद महिला मंच की अध्यक्षता का पद भी बखूबी सम्भाला। हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बत्थर्वाल पर आपके अनेक शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए। अंग्रेजी, गढ़वाली, कुमाउंनी, पंजाबी, अवधी, भाषा की आपको अच्छी जानकारी रही है। सन 2006 में उत्तराखंड सरकार ने आपकी रचना धर्मिता और उपलब्धियों को देखते हुए आपको ‘उत्तराखंड संस्कृति-साहित्य एवं कला परि षद उत्तरांचल’ में सम्मान सहित मनोनीत किया। अनेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं से आप जुड़ी ही नहीं रहीं बल्कि आर्थिक सहयोग के साथ उन्हें अपना बहुमूल्य सहयोग भी समय समय पर प्रदान करती रही हैं। प्रदेश में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों, अभिनन्दन समारोहों तथा स्मृति समारोहों के साथ साहित्य, संस्कृति और कला से संबन्धित सेमिनारों में आप हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आ रही हैं।
साहित्य, और सामाजिक, क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपको ‘उत्तराखंड गौरव सम्मान’, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा ‘साहित्य शिरोमणी मानद सम्मान’, ‘उत्तरायणी रत्न’ अवार्ड (दिल्ली), संस्कार भारती ‘साहित्य शिरोमणी सम्मान’, हिंदी साहित्य समिति देहरादून सम्मान, अखिल गढ़वाल सभा सम्मान, ‘डॉ गोविन्द चातक सम्मान’, जयश्री सम्मान, वसन्त श्री सम्मान तथा ‘नागरिक सुरक्षा सम्मान’ सहित अनेक सम्मान अब तक प्राप्त हो चुके थे। उनके निधन से उत्तराखंड साहित्यिक जगत में जो खालीपन आया है उसकी भरपाई शायद ही कभी हो पाए,ऐसी विभूति को शत शत नमन है। स.स.3280/2016.
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)
बहुत सुंदर तरीके से आपने वीणापाणी जी वाले लेख को प्रस्तुत किया हिरदय से आभार आपका.
आज देख पाया मै . कुछ रचनाएँ भेजनी थी इमेल नहीं मिल पाया आपका.फोन किया था पर उठा नहीं.