हिमालयी विविधता पूर्ण समाज और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हैं, देश में उत्तर से लेकर पश्चिम तक का हिमालयी समाज अपने-आप में बहुत बड़ी जनसख्यां का निर्धारण करता हैं, साथ ही देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने का जिम्मा जिस समाज को है उसमें प्रमुख रूप से हिमालय में निवास करने वाला ही समाज है जो सदियों से देश की सीमाओं का सजग प्रहरी की भांति कार्य कर रहा हैं। अनेक जातियों, धर्म और परिवेश को अंगीकार किये ये वृहत समाज आज भी अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है, किन्तु अभी तक कोई स्थाई रीति-नीति इस महत्त्वपूर्ण समाज के हित में देश और प्रदेशों की सरकारों द्वारा नहीं बनाई गयी! इस क्रम में इस हिमालयी समाज की संस्कृति के विभिन्न रूपों से देश और दुनिया अभी तक ठीक से परिचित नहीं हो पाई, हमारा प्रयास इस समाज के विभिन्न पहलुओं से देश और दुनिया को परिचित कराना है।
देहरादून कार्यालय
फेस-3, यमुनोत्री एनक्लेव, सेंवलाकला, देहरादून (उत्तराखंड)
मो.:8860999449
E-mail: himantar9@gmail.com
अच्छा कार्य। प्रशंसनीय। अनुकरणीय। हार्दिक बधाई।
हिमालयी विविधता पूर्ण समाज और संस्कृति को परिचित कराने का आपका प्रयास सराहनीय है।चायनीज बैम्बू के बारे में दी गई जानकारी स्वरोजगार एवं पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है।
धन्यवाद।
माननीय सम्पादक जी,
हिमातंर को लेकर आपके उद्देश्य पढ़ कर अच्छा लगा,
आप अपने इस उद्देश्य में सफल हों यहीं शुभकामनाएं है ,आपको बधाई !!
सादर
बहुत ही सराहनीय प्रयास है । पहाड़ की संस्कृति बहुत ही समृद्ध व भव्य संस्कृति है ।मैंने तो पी॰ एच॰डी॰ एवं डी॰ लिट कुमाऊँनी लोक साहित्य पर ही किया है । मेरे पिताजी डॉ. नारायणदत्त पालीवाल ( प्रथम सचिव हिन्दी अकादमी ) जी की हार्दिक इच्छा थी कि मैं कुमाऊँनी लोक साहित्य पर ही काम करूँ।पहाड़ पर तो जितना लिखा जाये उतना कम है ।
पढ़ कर बहुत ही सुंदर लगा, आप ने हमारे हिमालय को स्वर्गभूमि पुनः स्थापित करने में तपोभूमि ,देवभूमि उत्तराखंड के पर्वत को देव लोकों के शब्द में व्यख्यान कर आप का धन्यवाद ,
आप के द्वारा निर्धारित लोगों के विचारों के लिए एक पथगामी सुगमता से वह पथ निर्माण किया ,जिस से मै आप का आभार प्रकट करता हु।