शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ!

  • जेपी मैठाणी

देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान क्रांतिकारी शहीद मेजर दुर्गामल्ल को शत शत नमन. शहीद मेजर दुर्गा मल्ल मूल रूप से देहरादून जिले के डोईवाला के रहने वाले थे. महान क्रांतिकारी दुर्गामल्ल का जन्म एक जुलाई  1913  को गोरखा राइफल के नायब सूबेदार गंगाराम मल्ल के घर हुआ था. माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी था. बचपन से ही दुर्गा मल्ल अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे. गोरखा मिलिट्री मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है. देहरादून के विख्यात गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर चन्दन सिंह, बीर खड़क बहादुर सिंह बिष्ट, पंडित ईश्वरानंद गोरखा  और अमर सिंह थापा से प्रेरित होकर दुर्गा मल्ल ने् स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कवि और समाज सुधारक  मेजर  बहादुर सिंह बराल  और संगीतज्ञ  व नाटककार  मित्रसेन थापा से भी प्रेरणा हासिल की.

विश्व हैरिटेज दिवस

दुर्गा मल्ल 1931 में मात्र 18 वर्ष की आयु में गोरखा रायफल्स (Gorkha Rifles) की 2/1 बटालियन में भर्ती हो गए. अपने फर्ज को निभाते हुए 23 अगस्त 1941 को बटालियन के साथ मलाया रवाना हो गए. 8  दिसंबर 1941  को मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युध्द की घोषणा हो गई थी. इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से 1सितम्बर 1942 को सिंगापुर में इंडियन नेशनल आर्मी  (आजाद हिन्द फौज) का गठन हुआ, जिसमें दुर्गा मल्ल की बहुत सराहनीय भूमिका थी. इसके लिए मल्ल को मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया. युवाओं को आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल करने में बड़ा योगदान दिया. बाद में गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य दुर्गा मल्ल को सौंपा गया. 27 मार्च 1944 को महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करते समय दुर्गामल्ल को शत्रु सेना ने मणिपुर में कोहिमा के पास उखरूल में पकड़ लिया.

आजाद

युध्दबंदी बनाने और मुकदमे के बाद उन्हें बहुत यातना दी गई.  टॉर्चर किया गया, माफ़ी माँगने के लिए कहा गया, लेकिन वीर दुर्गामल्ल झुके नहीं और ना ही कोई समझौता किया. जब ब्रिटिशर्स ने उनकी पत्नी को ढाल बनाकर उनको माफ़ी माँगने के लिए कहा, तो उन्होंने अपनी पत्नी को अंतिम बात कही –“शारदा, मैं अपना जीवन अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता  के लिए त्याग कर रहा हूँ. तुम्हें चिंतित और दुखी नहीं होना चाहिए. मेरे शहीद होने के बाद करोड़ों हिन्दुस्तानी तुम्हारे साथ होंगे. मेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. भारत आज़ाद होगा, मुझे पूरा विश्वास है कि, अब यह थोड़े समय की बात है. 15 अगस्त  1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और दस दिन बाद 25  अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया. मात्र 31 वर्ष की आयु में मेजर मल्ल हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटे.

हिन्द

सार्थक फाउंडेशन के समाजसेवी सुरेन्द्र सिंह थापा, सबकी सहेली फाउंडेशन के पदाधिकारियों पूजा सुब्बा, उमा उपाध्याय, सुनीता क्षेत्री, गोदावरी थापली, माया पंवार, मंजू कार्की, कमला थापा,प्रभा शाह  और आगाज फैडरेशन  के जेपी मैठाणी  और उत्तराँचल  संयुक्त सर्वा समाज संगठन ने शहीद दुर्गामल्ल की पुण्य तिथि और जन्मतिथि पर विज्ञापन जारी करके उनकी वीरता और शहादत का व्यापक प्रचार प्रसार करने पर जोर दिया.

फौज

(लेखक पहाड़ के सरोकारों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार एवं पीपलकोटी में ‘आगाज’ संस्था से संबंद्ध हैं)

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