बेटियों की सुरक्षा के लिए माता-पिता का उनसे संवाद जरूरी : श्री कृपाशंकर

  • हिमांतर ब्यूरो,  नोएडा

इस देश के अंदर आज भी सब लोग कानूनों के विषय में नहीं जानते,सिस्टम ऐसा बना है कि एक गरीब व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट तक नहीं जा पाता. हमारे यहाँ सनातन काल से नारी शक्ति स्वरूपा रही है,अबला नहीं शक्तिशाली रही है ,बेशक कुरीतियों के चलते महिलाओं के लिए कुछ सुरक्षा मानक बनाए गए थे. आज भी हमारी बेटियाँ एसपी बनकर असम के जंगलों में आतंकियों का खात्मा करने का साहस दिखा रही हैं,डॉक्टर,वकील,वैज्ञानिक और आदर्श शिक्षक की भूमिका निभा रही हैं,लेकिन आज बेटियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि माता-पिता एकांगी न बनकर घर की बेटी के साथ बैठकर संवाद करें .

ये विचार पर्वतीय लोकविकास समिति द्वारा अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर नोएडा के प्रेरणा भवन में आयोजित शक्तिपर्व संकल्प विचार गोष्ठी एवं हिमालयी मातृशक्ति सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री कृपाशंकर ने व्यक्त किए. हिमालयी महिला सम्मान से सम्मानित मातृशक्ति को बधाई देते हुए श्री कृपाशंकर ने कहा कि पहाड़ तो नंदा का मायका है इसलिए पहाड़ में शक्ति उपासना के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण की बहुत पुरानी परंपरा है.

समारोह की मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी की प्रोफेसर और अनुसूचित जनजाति आयोग,भारत सरकार की सलाहकार प्रो.सीमा सिंह ने कहा कि आज देश में महिला अपराधों का ग्राफ बढ़ रहा है,महिलाओं की सुरक्षा के निमित्त मौजूद 53 कानून गर्व नहीं शर्म की बात है. समाज जब अपने दायित्वों को निभाने में असफल रहता है तो समाज कि जिम्मेदारी कानून ले लेता है . महिला सशक्तिकरण की दिशा में उत्तराखंड की महिलाओं की भूमिका सबसे अहम है,वहाँ महिलाओं को केवल समानता ही नहीं दी जाती बल्कि उन्हें उचित सम्मान भी मिलता है.

अतिविशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार और मेरठ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो.नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि एक दौर ऐसा था जब चीन में महिलाओं के पैरों में बेड़ियाँ डालकर उन्हें पुरुषों से कमतर होने का अहसास कराया जाता था ,लेकिन भारत में स्त्रियों का सम्मान सनातन परंपरा से विद्यमान है.

 वरिष्ठ भाजपा नेता और भाजपा हिमालय परिवार के अध्यक्ष श्री उदय शर्मा ने कहा कि हमने आदर्श संयुक्त परिवार को देखा ही नहीं,जिया भी है. दुनिया के सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ हिन्दू धर्म में हमारे देवता परिवार वाले हैं जहां माँ,बहन अथवा बेटी को पूजना सिखाया गया है.

अतिविशिष्ट अतिथि दिल्ली सरकार की उपशिक्षा निदेशक डॉ. राजेश्वरी कापड़ी ने कहा कि पहाड़ के लोगों का जीवन आसान नहीं और वो भी बेटियों और महिलाओं का. मीलों मील स्कूल पैदल जाना, दसवीं से ही विवाह के लिए लड़के की तलाश, इसके बाद भी कोई बेटी शीर्ष पर पहुँचती है तो उसके पीछे का संघर्ष और भेदभाव की पीड़ा को भी समझना आवश्यक है.

समारोह की अध्यक्षता करते हुए भारत सरकार के पूर्व राज्यमंत्री, सुप्रसिद्ध उद्योगपति और पर्वतीय लोकविकास समिति के अध्यक्ष श्री वीरेंद्र दत्त सेमवाल ने कहा कि आज देश में बेटियों की सुरक्षा की चुनौती है और इसके लिए हम सबको गंभीरता से सोचना होगा. हिमालयी राज्यों की मातृशक्ति जीवन व्यवहार के क्षेत्र में सुदूर दुर्गम गांवों से लेकर,महानगरों और राष्ट्रीय स्तर तक प्रभावी भूमिका निभा रही हैं .

महिला सशक्तीकरण सम्मान से सम्मानित होने वाली महिलाओं में आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर डॉ.मणि मेहरा, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार सुषमा जुगरान ध्यानी, डीयू की प्राध्यापिका प्रो.सुषमा चौधरी,सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती अंजना गौड़, शिक्षाविद सुषमा त्यागी, स्तंभकार श्रीमती राजश्री गुप्ता और सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती कविता और श्रीमती रंजना पैन्यूली आदि प्रमुख हैं. इस अवसर पर वरिष्ठ कवि डॉ.देवनारायण शर्मा ,डीपीएमआई के चेयरमैन डॉ.विनोद बछेती, सामाजिक कार्यकर्ता चार्टर्ड अकाउन्टेंट राजेश्वर पैन्यूली, शिक्षाविद रामकुमार शर्मा, पत्रकार एवं साहित्यकार प्रदीप वेदवाल, उत्तराखंड प्रकोष्ठ भाजपा के दिल्ली अध्यक्ष हरेंद्र डोलिया, डॉ. अर्जुन चौधरी, योगाचार्य डॉ. रमेश कांडपल, पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के आर्ट डायरेक्टर शशिमोहन रावत, युवा पत्रकार ललित फुलारा, आचार्य वीरेंद्र प्रसाद पैन्यूली, जयेन्द्र नेगी, विजेंद्र ध्यानी, पत्रकार लोकेश चौहान, आचार्य रमेश भट्ट, जगदीश नेगी, विपिन थपलियाल और सौरव कबटियाल को सम्मानित किया गया.

समारोह का संचालन करते हुए प्रो.सूर्य प्रकाश सेमवाल ने कहा कि पर्वतीय लोकविकास समिति भारत के गांवों और हिमालयी राज्यों की महिलाओं की आवाज मुखर करने के साथ उनके अधिकारों के लिए तो मुखर है ही ,बेटियों और महिलाओं के प्रति समाज की दृष्टि को सकारात्मक और श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. प्रकृति के सम्मान और पर्यावरण रक्षा के लिए 2005 में शुरू की गई उत्तरायणी की पहल आज हमारी हिमालयी मातृशक्ति के बल पर राष्ट्रीय अभियान बन चुकी है.

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