स्वीटी टिंड्डे
हिंदुस्तान के कई हिस्सों के आलीशान राजाओं और उनके दरबारों का मजा लेते हुए राजकुमार 7 फरवरी 1876 में ट्रेन से मुरादाबाद, नैनीताल और कुमाऊं होते हुए नेपाल
तराई के घने जंगलों में बाघ और हाथी का शिकार करते हुए गुजरना था जो डाकुओं, बाग़ियों, और ख़ूँख़ार जानवरों के लिए जाना जाता था. नाना साहब समेत 1857 के तमाम बाग़ी (स्वतंत्रता सेनानी) हारने के बाद इन्हीं जंगलों में आकर छुपे और और उनमे से ज्यादातर इस ख़ूँख़ार जंगल के भेंट चढ़ गए थे.नैनीताल
दावा किया जाता है कि इस शिकार के दौरान राजकुमार ने एक ही दिन में 6 बाघ मार डाले जिनमें से दो बाघ तो एक ही गोली से मर गए थे बिना निशाना चुके.
राजकुमार इतने मंझे हुए शिकारी थे कि हाथी को पकड़कर पहले सजाया जाता था, रंग लगाया जाता था फ़र फिर जंगल में शिकार होने के लिए छोड़ जाता था और राजकुमार उसे ढूँढकर शिकार करते थे.
नैनीताल
कुमाऊं के कमिश्नर रैम्ज़ी (जिनके नाम पर चमोली का रमणी गाँव बसा हुआ है) ने साहब की ख़िदमत में गोरखा सेना सहित 200 हाथी, 120 घोड़े, 550 ऊँट, 6 बैलगाड़ी, और 1526 नौकर-चाकर लगा दिया. सफेद हिमालय में सफेद रंग के ही टेंट लगे. टेंट क्या एक छोटा सा सफ़ेद क़स्बा चल रहा था उनके साथ.
नैनीताल
क़ाफ़िला जब नेपाल की
सीमा पर पहुँचा तो नेपाल के राजा जंग बहादुर क्यों पीछे रहते. 800 हाथियों और पंद्रह हज़ार सेना के साथ पहुँच गए राजकुमार का स्वागत करने. रैम्ज़ी स्वागत में एक सफेद कस्बा लेकर आए थे, तो राजा जंग बहादुर पूरा का पूरा रंग-बिरंगा शहर लेकर राजकुमार की ख़िदमत में हाज़िर हो गए.नैनीताल
दावा किया जाता है कि इस शिकार के दौरान राजकुमार ने एक ही दिन में 6 बाघ मार डाले जिनमें से दो बाघ तो एक ही गोली से मर गए थे बिना निशाना चुके.
राजकुमार इतने मंझे हुए शिकारी थे कि हाथी को पकड़कर पहले सजाया जाता था, रंग लगाया जाता था फ़र फिर जंगल में शिकार होने के लिए छोड़ जाता था और राजकुमार उसे ढूँढकर शिकार करते थे.नैनीताल
(स्वीटी टिंड्डे अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन (श्रीनगर, गढ़वाल) में कार्यरत है. tinddesweety@gmail.com
पर इनसे सम्पर्क किया जा सकता है.)