कुमाऊं में मनिया मंदिर: एक पुनर्विवेचना -3
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
द्वाराहाट के ‘मनिया मंदिर समूह’ के सन्दर्भ में पिछली दो पोस्टों में विस्तार से चर्चा की गई है.किंतु मन्याओं के बारे में इतिहास और पुरातत्त्व के विद्वानों द्वारा कोई खास जानकारी नहीं दी गई है. इसी सन्दर्भ में फेसबुक के माध्यम से कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में ‘मन्या’ सम्बन्धी जानकारी जुटाने का प्रयास किया गया. चिंता का विषय है कि आज हमारे पास कत्युरी नरेश मानदेव के द्वारा जैन श्रावकों अथवा शिल्पकारों के माध्यम से निर्मित द्वाराहाट के ‘मनिया मन्दिर समूह’ के अतिरिक्त कोई भी जीवंत साक्ष्य नहीं हैं. अधिकांश मन्याएं नष्ट हो चुकी हैं,उनका कोई नामोनिशान नहीं बचा है. कुछ धार्मिक स्थलों की मन्याओं का पुनर्निर्माण हो चुका है.
ज्योतिष
‘कुमाऊंनी शब्द सम्पदा’, ‘कुमाऊंनी’ और ‘पहाड़ी फ़सक’ ग्रुपों से मन्याओं के बारे में विभिन्न महानुभावों द्वारा जो जानकारी मुझे प्राप्त हुई, उसे शब्दशः यहां प्रस्तुत करना चाहता हूँ, ताकि
कत्युरी राजाओं के काल चली आ रही उत्तराखंड के मंदिर स्थापत्य की लुप्त होती इस सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा की जा सके और इसके पुराकालिक महत्त्व से भी जन सामान्य अवगत हो सकें.ज्योतिष
मन्या के बारे में ‘कुमाऊंनी शब्द सम्पदा’ में आए कॉमेंट
गिरीश चन्द्र जोशी – “मन्या” नाम से आपकी शोधपरक पोस्ट और उस पर शानदार प्रतिक्रियाओं को पढ़कर अलौकिक आनन्द की सी अनुभूति व
जानकारी प्राप्त हुई; चौड़मन्या, कोटमन्या नाम सुने थे पर ” मन्या ” शब्द का तात्पर्य पतान था. वर्णित प्रकार का एक बड़ा सा धर्मशाला अल्मोड़ा से सोमेश्वर जानेवाले सड़क मार्ग के किनारे (बायीओर) ”भगतोला” स्थान के लगभग मैंने भी आते जाते देखा था. आपके माध्यम से प्राप्त जानकारी हेतु आभार.ज्योतिष
विनोद पंत– हमारे गांव के हर मन्दिर में बने है.
दीपक उप्रेती– पिथौरागढ़ मैं कोटमन्या व चौड़ मन्या छन हो.
ज्योति पांडे– कोटमन्या
दिनेश चंद्र सिंह– पाली मन्या
अर्जुन सिंह बिष्ट– 1. हमारे डूंगरा गाँव में तो एक पूरा गाँव सा बसा हुआ है मन्या नाम से, जहाँ केवल हमारे पूजा पाठ कराने वाले जोशी मूल के ब्रहाम्ण रहते हैं.
2. ये मूर्ति है, लगता है मंदिर का पुराना स्वरूप पूरी तरह बदल दिया गया है, जब मैनें देखा था तो प्राचीन मंदिर शिल्पकला की तर्ज पर निर्मित था ये मंदिर जैसे जागेश्वर में बने हुये हैं.
इस बार जाऊँगा तो देख कर आऊँगा.चंद्रशेखर पांडे– 1. हमारी ओर तो मन्दिर के साथ मन्या लगभग सभी जगह होते हैं…
ज्योतिष
मुख्य मन्दिर में देव प्रतीक -शिलाखण्ड, प्रतिमा, विग्रह, मूर्ति होती है….
भक्त गणों के बैठने, विश्राम करने,
बर्षा और ठंड से बचाव करने तथा सामूहिक पूजा, नवरात्रि, कथा, श्रीमद्भागवत या अन्य पुराण पाठ, कथा आदि के समय सामान के भण्डारण, जागरण, भजन, कीर्तन आदि के लिए मन्दिर के साथ मन्या होते हैं..गाँव के मन्दिर में आवश्यकतानुसार एक-दो तो
इलाके के मन्दिर में जहाँ ज्यादा गाँवों से लोगों का आना होता है वहाँ अलग अलग गाँव वालों द्वारा बनाए मन्या होते हैं..ज्योतिष
पहले से ये मन्या किसी परिवार द्वारा या फिर
सामूहिक चन्दा करके बनाए जाते थे और समय समय पर इनकी मरम्मत और नये मन्या का निर्माण कार्य भी आपसी सहमति से होता रहता था..पहले से बने मन्या , जगह जगह पैदल रास्तों में बनी धर्मशालाओं के तर्ज पर स्थानीय पत्थर , पाथर से बने होते थे और इनमें दरवाजे भी नहीं होते थे..
रिहायशी क्षेत्र से दूर स्थित मन्दिरों में
दर्शनार्थी रात्रि विश्राम इन्हीं में करते थे..पूजा, पाठ, कथा आदि के समय भक्त इन्हीं में खाद्य सामग्री का भण्डारण , भजन कीर्तन , विश्राम , शयन करते थे..
ज्योतिष
मौसम खराब होने पर रसोई भी इन्हीं में बनाई जाती थी..
अब तो सरकारी मद से मन्दिर का सौन्दर्यीकरण के नाम पर इनका रूप भी बदल गया है..
2. बागेश्वर जनपद के नाकुरी पट्टी अन्तर्गत हमारे गाँव ” पचार ” में गाँव के ही देवी मन्दिर में एक और नौलिंग मन्दिर में दो मन्या पहले से थे जिन्हें हमने अपने बचपन 1960 – 70 के दशक से देखा है..
नजदीकी क्षेत्र यथा बनलेख के मूल
नारायण मन्दिर, सनगाड़ के नौलिंग मन्दिर, शिखर के मूलनारायण मन्दिर, मजगाँव के बजैंणी मन्दिर, किड़ई के हरू मन्दिर, भनार के बजैंणी मन्दिर आदि सभी जगह इसी तरह के एकाधिक मन्या थे..ज्योतिष
पैदल मार्ग, जिला परिषद् की सड़क के
किनारे कई जगह इसी शैली से बनी धर्मशालाएं थी..हमारे गॉव के निकट महोली में जागेश्वर , बागेश्वर , बैजनाथ के मन्दिर समूह की तरह मन्दिर समूह आज भी विद्यमान है जहाँ लोग जलाभिषेक करते हैं और वहाँ शिवरात्रि के दिन मेला लगता है ..
ज्योतिष
हथरसिया, धामीगाँव तोक को जाने वाले रास्ते में भी पुंगर नदी के किनारे इसी शैली का पुरातन मन्दिर विद्यमान है ..
पुंगर नदी से महोली गाँव तक
विशालकाय पत्थरों की सीढ़ियों वाला रास्ता भी बना है जो नीचे नदी से ऊपर चोटी में गाँव की सरहद तक बना है..नदी से आकर चढ़ाई समाप्त
होने वाले स्थान पर बीर खम्ब बने हैं व उस स्थान का नाम ही बिरखम प्रचलित है..ज्योतिष
स्थानीय लोग इन्हें पाण्डवों के वनवास से भी जोड़ते हैं..
बीर खम्ब को कन्या संक्रान्ति को
मनाए जाने वाले पर्व खतड़ुवा की तरह राजाओं के युद्ध और विजय सूचना से भी जोड़ा जाता है ..सनेती इण्टर कालेज के
पास एक देवालय है जिसमें कोई लिंग या विग्रह नहीं है तथा मन्दिर के ऊपर गोल चक्र तो है पर गुम्बद नहीं है ..इसे हम ” टोटा देवाव ” यानि छिद्र वाला देवालय के नाम से पुकारते हैं..
ज्योतिष
इसके सम्बन्ध में किंवदन्ती सुनी
थी कि इसे अज्ञातवास के समय रात्रि में अकेले भीम ने बनाया था और सुबह तक पूरा नहीं हो पाया इसलिए अधूरा रह गया..बाकी आप इसकी प्रामाणिकता के बारे में किसीअन्य source से भी इसकी पुष्टि कर लीजिएगा …
सादर नमस्कार ..
ललित बिष्ट – हमारे यहाँ पाली-मंया, मंया चौरा (मुनियाचौरा), साथ में धार्मिक स्थल, विराम घर भी है .-पाली-पछाऊँ क्षेत्र (राणीखेत)
ज्योतिष
गजेंद्र मपवाल – होकरा देवी मंदिर (पिथौरागढ़) मैं अलग गॉवो के द्वारा पूजा के समय रात्रि विश्राम के लिये काफी सारी छोटी छोटी धर्मशालायें बनाई गई है
जिनको मन्या कहते हैं. उन गांवों के लोग पूजा के समय अपने गांव की मन्या मैं ही रुकते है.ज्योतिष
मुनस्यारी हाउस– 1.मन्या का तातपर्य विश्राम से भी है जहाँ पर पूर्व समय मे यात्री धार्मिक या व्यापारिक या अन्य यात्राओ में रात्री विश्राम या
क्षणिक विश्राम करते थे जैसे कोटमन्या आदि कस्बे है जो इन मन्या के पूर्व पड़ावों के आधार पर रखे गए होंगे.ज्योतिष
2. मन्या का निर्माण सबसे अधिक दारमा जोहार क्षेत्र की महान दान वीरांगना लला (आमा) जशूली शौकयानी के बनाये गए धार्मिक,व्यापारिक,व अन्य यात्राओ जैसे 1800 सदी या उससे पहले यातायात के संशाधन नही थे
परन्तु व्यापारिक, धार्मिक, विवाह यात्रा प्रचलित थी तब हमारे लला ने कुमाऊ,गढ़वाल,नेपाल तक मन्या धर्मशालाओं का निर्माण कराया जो काफी जगहो पर अभी तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराये है सबसे अधिक निर्माण कार्य सोमेश्वर, कटारमल, द्वाराहाट,मार्ग पर हुआ है.मन्या (धर्मशाला) क़ई अधिकता
वाले जगह क़ई भौगोलिक परिस्थिति या उसकी बनावट के अनुसार उनके नाम भी प्रचलित है जैसे चोड़मन्या, कोटमन्या आदि जगहों के नाम इन मन्या के आधार पर हो.ज्योतिष
किसी भी महानुभाव को धर्मशालाओं
मन्या की विवरण अध्यन अध्यापन हेतु आवश्यकता हो सेवा सहायता ले दे सकते हैंमुनस्यारी हाउस- हिमालय मेरा प्राण, 9557777264, 8394811110
शिवेंद्र फुलोरिया- राम पादुका मंदिर समुह मासी.
ज्योतिष
पूरन मनराल- कोटमान्या
कला दौरबी- बग्वालीपोखर भी है मन्या तो हैं. अभी भी बहुत हैं यहां तो
ज्योतिष
जोगा सिंह कैरा- इस ऐतिहासिक विवरण में आप का आलेख बहुत तर्क संगत लगता है ज्ञानवर्धक भी है. एक सवाल भी उठता है कि कुछ मन्याऊं के अन्दर
क्या इतनी जगह है की आदमी सो सके किसी में कोई खिड़कियां भी नहीं हैं गर्भ स्थल की लम्बाई चौड़ाई के अभाव में कुछ अनुमान लगाना कठिन सा लगता है बरामदा कुछ में है तो कुछ में नहीं . बाकी विवरण और विवेचना सही और तर्कसंगत है. गर्भ स्थल की जानकारी क्षेत्रफल के रूप में आप के पास जरूर होगी, उसे भी जोड़ देते तो कुछ और जानकारी मिल जाती. सविनय सादर प्रणाम सर.ज्योतिष
बसन्त जोशी- बहुत सुन्दर जानकारी
मान्या हमारे यहां भी एक जगह का
नाम है हम बचपन में देखते थे की खेत के एक कोने में कोई आठ दस फुट का मंदिर नुमा जिसकी खाली टुटी दिवारें थी. उस जगह को पार मान्या वाल गड़ करके संबोधित किया जाता था कुछ समय बाद वहां के सारे पत्थर हटा का खेत की दिवार बना दी गईज्योतिष
कास इन धरोहरों का रख रखाव हुआ होता जो
हमारी विरासत थी आपके इस लेख से मुझे व मान्या का सचित्र दर्शन 50 साल बाद भी कल्पनाओं में हो गये.जबकि अब वहां बंजर खेत है.‘कुमाऊंनी’ ग्रुप में आए कॉमेंट
बीना जोशी- मन्या जंगल द्वाराहाट के दैरी गाव मे है .यहा ग्वैलज्यू का पौराणिक मंदिर है.
ज्योतिष
ललित मोहन पाठक- हमारे इधर
तो मन्दिर के बगल में एक छोटा सा कमरा बना होता है जो मुख्य रुप से स्टोर के रुप में प्रयुक्त होता है. सी को मन्या/मण्यो कहते हैं.मनोज वर्मा- बागेश्वर
ज्योतिष
दीप कांडपाल- मन्या मन्दिर
नहीं बल्कि उसके बगल में बने छोटे कमरे होते हैं जो सामान रखने,पूजा के उपरान्त आराम करने आदि के काम आते हैं.ज्योतिष
रमेश उपाध्याय- संभवत मन्या मंदिर का तात्पर्य उन मंदिरों से होता हो जिन्हें बड़े मंदिरों के समकक्ष मान्यता स्थानीय स्तर यह उस समय की तत्कालीन राजशाही द्वारा जो उस समय शासन में थी द्वारा दी जाती रही हो जैसे द्वाराहाट के मंदिर.
ज्योतिष
आदित्य लोहनी- जागेश्वर और बैजनाथ में भी बने हुए हैं.
प्रेम गोस्वामी- सहायक देवता
होना चाहिए मेरे ख्याल से (जैसे सैम देवता अपने सहायको को लाये थे नेपाल से)ज्योतिष
बिशन दत्त जोशी – हमारे वहां मंदिरों के
साथ उठने बैठने एवं पूजा के अलावा अन्य कार्यों के लिए बनाये गये कमरे को मन्या कहते हैं. हमारे वहां लगभग-लगभग सभी मंदिरों में मंदिर के आसपास ऐसे कमरे बने रहते हैं और इन्हें हम मन्या कहते हैं.‘पहाड़ी फ़सक’ ग्रुप में आए कॉमेंट
चन्द्र शेखर पांडे- 1.हमारी ओर तो मन्दिर के साथ मन्या लगभग सभी जगह होते हैं…
ज्योतिष
मुख्य मन्दिर में देव प्रतीक- शिलाखण्ड, प्रतिमा, विग्रह, मूर्ति होती है. भक्त गणों के बैठने, विश्राम करने, बर्षा और ठंड से बचाव करने तथा सामूहिक पूजा, नवरात्रि, कथा,
श्रीमद्भागवत या अन्य पुराण पाठ ,कथा आदि के समय सामान के भण्डारण, जागरण, भजन,कीर्तन आदि के लिए मन्दिर के साथ मन्या होते हैं. गाँव के मन्दिर में आवश्यकतानुसार एक-दो तो इलाके के बड़े मन्दिर में जहां ज्यादा गाँवों से लोगों का आना होता है वहां अलग अलग गाँव वालों द्वारा बनाए मन्या होते हैं.ज्योतिष
पहले से ये मन्या किसी परिवार
द्वारा या फिर सामूहिक चन्दा करके बनाए जाते थे और समय समय पर इनकी मरम्मत और नये मन्या का निर्माण कार्य भी आपसी सहमति से होता रहता था.ज्योतिष
पहले से बने मन्या,जगह जगह
पैदल रास्तों में बनी धर्मशालाओं के तर्ज पर स्थानीय पत्थर (पाथर) से बने होते थे और इनमें दरवाजे भी नहीं होते थे. रिहायशी क्षेत्र से दूर स्थित मन्दिरों में दर्शनार्थी रात्रि विश्राम इन्हीं मन्याओं में करते थे.ज्योतिष
पूजा, पाठ, कथा आदि के समय
भक्तगण इन्हीं में खाद्य सामग्री का भण्डारण ,भजन कीर्तन, विश्राम, शयन करते थे. मौसम खराब होने पर रसोई भी इन्हीं में बनाई जाती थी. अब तो सरकारी मद से मन्दिर का सौन्दर्यीकरण के नाम पर इनका रूप भी बदल गया है.ज्योतिष
2.जी सादर नमस्कार..
मैं बागेश्वर जनपद के नाकुरी पट्टी का
मूल निवासी हूं. हमारे गाँव ‘पचार’ में गाँव के ही देवी मन्दिर में एक और नौलिंग मन्दिर में दो मन्या पहले से थे जिन्हें हमने अपने बचपन 1960 – 70 के दशक से देखा है.ज्योतिष
नजदीकी क्षेत्र यथा बनलेख के मूल नारायण मन्दिर, सनगाड़ के नौलिंग मन्दिर, शिखर के मूलनारायण मन्दिर, मजगाँव के बजैंणी मन्दिर, किड़ई के हरू मन्दिर, भनार के बजैंणी मन्दिर
आदि सभी जगह इसी तरह के एकाधिक मन्या थे.पैदल मार्ग,जिला परिषद् की सड़क के किनारे कई जगह इसी शैली से बनी धर्मशालाएं थी. हमारे गॉव के निकट महोली में जागेश्वर , बागेश्वर,बैजनाथ के मन्दिर समूह की तरह मन्दिर समूह आज भी विद्यमान हैं,जहां लोग जलाभिषेक करते हैं और वहां शिवरात्रि के दिन मेला लगता है.ज्योतिष
हथरसिया, धामीगाँव तोक को जाने वाले रास्ते में भी पुंगर नदी के किनारे इसी शैली का पुरातन मन्दिर विद्यमान है. पुंगर नदी से महोली गाँव तक विशालकाय पत्थरों की सीढ़ियों वाला रास्ता भी बना है, जो नीचे नदी से ऊपर चोटी में गाँव की सरहद तक जाता है. नदी से आकर चढ़ाई समाप्त होने वाले स्थान पर ‘बीर खम्ब’ बने हैं व उस
स्थान का नाम ही ‘बिरखम’ प्रचलित है.स्थानीय लोग इन्हें पाण्डवों के वनवास से भी जोड़ते हैं. ‘सनेती इण्टर कालेज’ के पास एक देवालय है, जिसमें कोई लिंग या विग्रह नहीं है तथा मन्दिर के ऊपर गोल चक्र तो है पर गुम्बद नहीं है.इसे हम ‘टोटा देवाव’ यानि छिद्र वाला देवालय के नाम से पुकारते हैं. इसके सम्बन्ध में किंवदन्ती सुनी थी कि इसे अज्ञातवास के समय रात्रि में अकेले भीम ने बनाया था और सुबह तक पूरा नहीं हो पाया इसलिए अधूरा ही रह गया.ज्योतिष
बाकी आप इसकी प्रामाणिकता के बारे में किसी अन्य source से भी इसकी पुष्टि कर लीजिएगा.
सादर नमस्कार ..
मनोज ‘हमराही’– -मन्या ना तो मंदिर ही थे……..
और ना ही स्मारक……..
द्वाराहाट के आसपास कई गांवों में मन्या हैं……… या उनके नामावशेष हैं……..
मेरी फेस बुक पोस्ट
दिनेश चंद्र भट्ट- पिथौरागढ़ में
बेरीनाग के निकट चौड़मन्यां, कोटमन्यां है, संभवतया पड़ाव.ज्योतिष
अर्जुन अधिकारी- बहुत सुंदर
आलेख लिखा है जी द्धाराहाट बेसक द्धारका न बन सकी लेकिन यहा के ये मनया मंदिर, चाहे वो जालली के हो या सुरे गवेल के ये शिल्प कला मे देश के अन्य मंदिरों की तरह ही विशेषता रखते है .ये सभी राष्ट्र की धरोहर है .जो हमे सजोये रखना है. सुंदर ऐतिहासिक लेखनी के लिये धन्यवाद जीजगत सिंह रौतेला- ज्ञानवर्धक तथ्य
दिए हैं सर. मेरा उल्लेख करने के लिए आभार.सादर आभार
ज्योतिष
अंत में मैं उन सभी महानुभावों का सादर आभार प्रकट करना चाहता हूँ ,जिन्होंने इस फेसबुक संगोष्ठी में अपने विचार या कॉमेंट प्रस्तुत किए और अपने क्षेत्र की मन्याओं के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण
जानकारी से जनसामान्य को अवगत कराया.आगे पढ़िए – जसूली शौक्याणी द्वारा निर्मित मन्याओं का इतिहास
ज्योतिष
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में
‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)