- इन्द्र सिंह नेगी
ये प्रयोग कितना सफल-असफल होता है ये भविष्य के गर्भ में है
लेकिन चलना शुरू करेगें तभी कहीं ना कहीं पहुंच पायेगें
ये लगभग चार वर्ष पहले की बात है जेठ का समय रहा और हमारे दो परिवारों के बच्चे सौरभ, कनिष्क, कुलदीप, शुभम एवं रवि समर जेस मोटर मार्ग जो
लखस्यार से निकल कर फिलहाल कचटा गांव में समाप्त हो रहा है, से लगी हमारी पारिवारिक जमीन जो बजंर हो चुकी थी ने गड्ढे खोदने शुरू किए. एक दिन मुझे भी इन्होने अपने इस कार्य को देखने के लिए आने को कहा तो मैं भी समय निकाल कर चल दिया, रस्ते में जब हम साथ-साथ खेतों की तरफ बढ़ने लगे तो मैंने पूछा कि तुम लोगों को ये गड्ढे खोदने की क्या सूझी तो कहने लगे कि जरूरी नहीं पढ़ाई लिखाई करने के बाद नौकरी लग ही जायेगी इसलिए जरूरी है इस तरह के कामों को भी साथ-साथ आगे बढ़ाया जाए.मैंने कहा ये तो बहुत दूरदर्शिता पूर्ण बात कह दी तुमने, अब मुझे बताओ क्या करना है तो कहा गया गड्ढे तो 250 बना दिये अब नीम्बू की पौध आपने व्यवस्था करनी है, मैं हामी भरी कर लौट आया.
उत्तराखंड
पहली बार हमने 250
नीम्बू रोपित किए जो बरसात में तो टीक पाये, लेकिन गर्मी आते-आते सब सूख गये, अगली बरसात में उसी स्थान पर हमने एक बार फिर नीम्बू लगाये लेकिन वो भी चल नहीं सके. इसके साथ दो परिवारों की एक दूसरे तोक में साथ-साथ खेत है यहां दो साल पहले सेब, अनार, आड़ू, खुम्बानी की पौध का रोपण किया, अगले वर्ष लगा कि अनार ज्यादा ठीक नहीं है तो उसकी जगह सेब का रोपण कर दिया.उत्तराखंड
इस कार्य को सौरभ
व शुभम ही आगे बढ़ा रहे है दूसरे भी सहयोग कर देते है, टिहरी जनपद स्थित जौनपुर के प्रसिद्ध उद्यान पति कुंदन सिंह पंवार का मार्गदर्शन इन्हे लगातार प्राप्त हो रहा है, ये दोनों समय-समय पर उनके उद्यान में जाकर हो रहे प्रयोगों की जानकारी हासिल करते है.
उत्तराखंड
जहां नीम्बू सफल नहीं हुए
वहां पिछली कुछ माह पूर्व निर्मल तोमर जो नर्सरी की दिशा में सफल मुकाम बना चुके है को बुलाया और उन्होंने सेब, नाशपाती, पलम, खुम्बानी की कुछ प्रजातियों के लिए ये स्थान उपयुक्त बताया तो इस सर्दी में 300 के करीब पौध अलग-अलग स्थानों से ला कर रोपित की गई. इस कार्य को सौरभ व शुभम ही आगे बढ़ा रहे है दूसरे भी सहयोग कर देते है, टिहरी जनपद स्थित जौनपुर के प्रसिद्ध उद्यान पति कुंदन सिंह पंवार का मार्गदर्शन इन्हे लगातार प्राप्त हो रहा है, ये दोनों समय-समय पर उनके उद्यान में जाकर हो रहे प्रयोगों की जानकारी हासिल करते है.उत्तराखंड
सेब, आड़ू, खुम्बानी, पलम,
नाशपाती एवं नीम्बू जैसी फलदार प्रजाति के रोपण से बंजर पड़े खेतों को पिछले तीन-चार सालों में पुन: संवरते दिख रहे है, इसके अतिरिक्त प्रयोगिक तौर पर एक खेत में स्ट्रोबेरी भी रोपित कर रखी है जिसमें फूल आने शुरू हो गये. ये प्रयोग कितना सफल-असफल होता है ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन चलना शुरू करेगें तभी कहीं ना कहीं पहुंच पायेगें.उत्तराखंड
सेब, आड़ू व खुम्बानी के कुछ पौधे
इस बार सेम्पल देने शुरू कर देगें, इसके साथ खाली जगह पर राजमा व बीन बोया गया है ताकि खेतों की उर्वरा शक्ति बनी रहे. सिंचाई के लिए एक 5 हजार लीटर सीमेंट का टेंक, 5-5 हजार लीटर के दो पालीथिन टेक निर्मित किए जा चुके है जिससे आपात स्थिति में सिंचाई की जाती है.उत्तराखंड
उम्मीद कर सकते है कि ये
प्रयोग पाठशाला के रूप में आगे बढ़ने के साथ परिवर्तन के कारक बनेगें और धीरे-धीरे अन्य भी इनसे सीख लेते हुए आगे बढ़ेगें.(लेखक सामाजिक
कार्यकर्ता हैं)