गोपाल आ गया है…
- प्रकाश चन्द्र पुनेठा
मैं अपने एक मंजिले भवन को परिवार के सदस्यों की भविष्य में संख्या बढ़ने के बारे में सोचता हुआ दुमंजिला बनवा रहा था. इस कार्य के लिए मजदूरों की आवश्यकता थी. पिथौरागढ़ में स्थानीय मजदूर न के बराबर मिलते है. अतः यहां मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार व पड़ोसी देश नेपाल उपलब्ध हो पाते हैं. बिहार के अधिकतर कुशल मजदूर हैं. राजमिस्त्री, कारपेन्टर, पेन्टर व लोहा काटने वाले कुशल मजदूर अधिकतर बिहार राज्य के मिलते है. वर्तमान में जहां भी भवन निर्माण कार्य हो रहा हैं वहां बिहार के मजदूरों का अधिपत्य हैं. अकुशल मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश या नेपाल के मिलते है. शारीरिक श्रम में एक नेपाली मजदूर अन्य क्षेत्रों के मजदूरों की अपेक्षा अधिक सक्षम होते हैं.
नेपाल
जब मेरा मेरा मकान पूर्ण रुप से निर्मित हो गया. सब मजदूर अपनी मजदूरी लेकर संतुष्ट होकर चले गए. किन्तु गोपाल का मेरे यहां से जाने का मन नही कर रहा था. किन्तु मेरे यहां अब कुछ कार्य नही था, मजदूरी में कराने के लिए. गोपाल बहुत भारी मन से मेरे यहां से विदा हो रहा था. गोपाल को विदा करने का मेरा भी मन नही हो रहा था.
नेपाल
नेपाली मजदूरों की तलाश में मुझे नेपाल के जिला बझांग का गोपाल नाम का मजदूर मिला था. गोपाल को मैंने अपने यहां काम में रख लिया. गोपाल को कार्य देने के पश्चात उस कार्य को निरीक्षण करने की आवश्यकता नही पढ़ती थी, क्योकि वह काम बहुत मेहनत व ईमानदारी के साथ करता था. गोपाल अन्य मजदूरों के काम में
आने से पहले मेरे यहां काम में आ जाता था. दिन भर काम करता तथा सांयकाल काम पूरा करने के बाद ही अपने ठिकाने में वापस लौटता था. गोपाल मेरे से लगभग एक किलोमीटर दूर अपने चार साथी मजदूरों के साथ बाजार के निकट रहता था. गोपाल के काम देखका वह मेरा बहुत विश्वास पात्र हो गया था. जब मेरा मेरा मकान पूर्ण रुप से निर्मित हो गया. सब मजदूर अपनी मजदूरी लेकर संतुष्ट होकर चले गए. किन्तु गोपाल का मेरे यहां से जाने का मन नही कर रहा था. किन्तु मेरे यहां अब कुछ कार्य नही था, मजदूरी में कराने के लिए. गोपाल बहुत भारी मन से मेरे यहां से विदा हो रहा था. गोपाल को विदा करने का मेरा भी मन नही हो रहा था. अतः मैंने एक उपाय निकाल लिया था.नेपाल
मैंने अपने मकान के बगल में गाय पालने के लिए एक छोटा-सा ईटों का कमरा बना रखा था. पत्नी के अस्वस्थ होने के कारण हम गाय पालने में असमर्थ हो गए थे, अतः गाय को मजबूरी
वश किसी दूसरे को सौंपनी पढ़ी थी. अतः वह कमरा खाली था. अतः गोपाल को मैंने कहा, “गोपाल तू मेरे इस कमरे में रह, जहां कही भी तूझे मजदूरी मिले, वहां मजदूरी करने चले जाया कर. यह कमरा रहने के लिए मैं तुझे देता हूं. अन्य कही कमरा लेने में किराया देना पढ़ता होगा तुझे, यहां मैं किराया नही लूगां.”नेपाल
यह सुनते ही गोपाल खुश हो गया. गोपाल प्रातः ही मजदूरी करने के लिए निकल जाता था और शाम को समय से मेरे दिए हुए कमरे में आ जाता था. एक दिन प्रातकाल के समय मैं
अपने घर के आगे की क्यारी की खुदाई कर रहा था, गोपाल अपनी मजदूरी करने जा रहा था. उसकी दृष्टी मेरे उपर पढ़ी, शीघ्र ही मेरे निकट आकर मेरे हाथ से कुदाल लेकर स्वयं खुदाई करने लग गया. मैंने कहा गोपाल तुम अपनी मजदूरी में जाओ, किन्तु गोपाल ने प्रेमवश पंद्रह मिनट में उस क्यारी को खोद दिया.नेपाल
फिर मेरे से से कहने लगा, “मालिक साब,
आज से सुबह के समय पंद्रह से बीस मिनट आपके लिए काम करुंगा. चाहे कोई भी काम हो, आप मुझे बता देना.”नेपाल
उस दिन के पश्चात गोपाल प्रातः काल के लगभग पंद्रह मिनट हमारे घर का काम करने लग गया. खेतों में खुदाई, साग-सब्जी की गुड़ाई, क्यारियों में पानी से सिंचाई या घर का
आंगन बुहार देना. हमको भी यह सब अच्छा लग रहा था. गोपाल बीच-बीच में अपने घर नेपाल भी जाते रहता था. एक बार वह अपने घर नेपाल से, अपनी पत्नी का ईलाज कराने के लिए लाया था, गोपाल अपनी पत्नी के ईलाज के लिए, किस डाक्टर को दिखाना उचित होगा, इस बारे में मेरे से सलाह लेते रहता था. गोपाल के कालेज में अध्यन करने वाले दो पुत्र, अर्जुन और प्रकाश, कालेज में अवकाश होते ही मजदूरी करने अपने पिता के पास यहां आ जाते थे. वे दोनो यहां मजदूरी करके अपनी पढ़ाई का खर्च स्वयं वहन कर लेते थे. तड़क-भड़क से दूर, उनकी सामान्य जीवन चर्या थी.नेपाल
मैंने गोपाल को कहा कि
वह मेरे परिवार के साथ ही भोजन करे, अपनी जमापूंजी राशन खरीदने में खर्च न करे, बचा कर रखे. लेकिन स्वाभिमानी गोपाल ने मुझे स्पष्ट मना कर दिया. अपनी मेहनत मजदूरी करके कमाए धन को जो उसने अपने घर ले जाने के लिए जमा किए हुए थे, अपने भोजन की व्यवस्था में खर्च करने लगा.
नेपाल
गोपाल मेरे यहां सन् 2014 में आया था. तब से उसका आशियाना मेरे यहां ही रहा. माह मार्च सन् 2020 में करोना महामारी के कारण सारे काम धंन्धे बंद हो गए थे. मजदूरों को काम
मिलना बंद हो गया था. जिस कारण परदेश में भूख से मरने से अच्छा अपने घर जाकर जो होगा वह अच्छा ही होगा की भावना से, प्रवासी मजदूर अपने घरों को ऐन-केन प्रकारेण जाने लगे. गरीब बेसहारा मजदूर अपने परिवार को साथ अपने छोटे मासूम बच्चों, बुजुर्गों सहित पैदल ही अपने घर जाने लगे. गोपाल को भी काम नही मिलने के कारण उसके पास जमापूंजी खर्च होते जा रही थी. मैंने गोपाल को कहा कि वह मेरे परिवार के साथ ही भोजन करे, अपनी जमापूंजी राशन खरीदने में खर्च न करे, बचा कर रखे. लेकिन स्वाभिमानी गोपाल ने मुझे स्पष्ट मना कर दिया. अपनी मेहनत मजदूरी करके कमाए धन को जो उसने अपने घर ले जाने के लिए जमा किए हुए थे, अपने भोजन की व्यवस्था में खर्च करने लगा.नेपाल
एक दिन गोपाल मेरे पास आया, उदास सा
होकर कहने लगा, “मालिक साब, मेरे गांव पड़ोस के इधर मजदूरी करने वाले अपने दाई-भाई कल पैदल ही अपने-अपने घर नेपाल जा रहे है. मैं भी उनके साथ जाना चाहता हूं.”नेपाल
“गोपाल परिवहन व्यवस्था बंद हैं. पुलिस
ने सड़कों में नाकेबंदी कर रखी है, पैदल भी नही जाने दे रहे है. केवल आवश्यक काम वालों को ही पास देखकर जाने दे रहे हैं. तू मेरे घर में आराम से रह, मेरे परिवार के साथ ही खाना खा, तू क्यों चिन्ता कर रहा है. झूलाधाट सीमा वाल में पुल बंद है, कैसे जाएगा?.”नेपाल
“मालिक साब, हम लोग सड़क के रास्ते नही जा रहे है, गांव के कच्चे रास्तों से हम जाएगें.” गोपाल को मैंने बहुत समझाया कि करोना के कारण लॉक डाउन चल रहा हैं. कही भी आने जाने के लिए गाड़ियां नही चल रही हैं. तू आराम से मेरे परिवार के साथ रह. किन्तु स्वाभिमानी गोपाल को मेरा प्रस्ताव रास नही आया.
क्योकि वह अपने परिश्रम के बलबूते ही भरण-पोषण चाहता था. दूसरे दिन गोपाल लगभग रात्री के तीन बजे उठा, मुझे ‘मालिक-सैप, मालिक-सैप’ कहकर हल्की सी आवाज लगाई. मैं और मेरी पत्नी तुरन्त उठे, देखा, गोपाल जाने के लिए, बैग पीठ में बांधे, तयार होकर हमसे विदा लेने आया था. गोपाल को मैंने अधिक न कहकर उसको कहा.नेपाल
”अगर नेपाल जाने के लिए रास्ते बंद हों तो वह,
अपने घर न जा सके तो बिना झिझक लौट के मेरे घर आ जाना.”नेपाल
गोपाल में सहमति में मात्र अपना सिर हिला दिया, हम सभी को प्रणाम किया, हमसे विदा लेकर प्रस्थान कर गया. मैं गहरे सोच में पढ़ गया कि, आने जाने के सभी मार्ग बंद है. पुलिस
ने सभी मार्गों में नाकेबंदी कर रखी हैं. गोपाल कैसे इन परिस्थितियों अपने घर नेपाल जा पाएगा ?. लगभग छः सप्ताह के पश्चात एक दिन मेरे मौबाईल घन्टी घनघना उठी, मैंने देखा, गोपाल फोन कर रहा था.नेपाल
“मालिक साब नमस्कार, मैं गोपाल बोल रहा हूं.”
नेपाल
“हां गोपाल सब कुशल है? तेरी
लोकेशन तो पिथौरागढ़ ही बता रही है. तू कहां है इस समय.”“अभी तक कोइ परेशानी
नही आई मालिक साब, शायद एक दो हफ्ते के बाद झूलाघाट का पुल खुल जाएगा, हम अपने घर पहुंच जायेगें. तब घर पहुंचते ही आपको फोन करुंगा.”
नेपाल
“मालिक साब हम लगभग 150 नेपाली लोग को, गौड़ीहाट के इंटर कालेज में क्वांरिनटाइन के लिए, रोक रखा है. खाना और रहने का सब प्रबंध पिथौरागढ़ के प्रशासन ने कर
रखा है. चिन्ता की कोई बात नही है. नेपाल जाने के लिए झूलाघाट का पुल अभी बंद है. नेपाल सरकार से यहां की सरकार पुल खोलने के लिए बात कर रही हैं.”“चलो बहुत अच्छी बात है गोपाल,
तुने फोन करके अपनी कुशलता की सूचना दी. कोई मेरे लायक काम है तो मुझे बता!”नेपाल
“अभी तक कोइ परेशानी नही आई मालिक
साब, शायद एक दो हफ्ते के बाद झूलाघाट का पुल खुल जाएगा, हम अपने घर पहुंच जायेगें. तब घर पहुंचते ही आपको फोन करुंगा.”इतना कहकर गोपाल ने अपनी कुशलता की जानकारी दी थी. गोपाल की चिन्तामुक्त बात सुनकर ह्दय को शान्ति मिली. पिथौरागढ़ में लॉकडाउन के मध्य परोपकारी व्यक्तियों,
स्वयं सेवी संस्थाओं तथा जिला प्रशासन ने मजदूर व गरीब, बेसहारा लोगों के रहने खाने की अच्छी ब्यवस्था कर रखी थी. यह देखकर हृदय बहुत प्रसन्न हो जाता था. उस समय स्कूल कॉलेज बंद थे. प्रशासन ने उन स्कूल कॉलेजों में मजदूर व बेसहारा ब्यक्तियों के रहने खाने की व्यवस्था कर रखी थी. गोपाल को झूलाघाट के निकट गौड़ीहाट इंटर कॉलेज में अन्य नेपाली नागरिकों के साथ क्वांरनटीन में रखा हुआ था.नेपाल
लगभग दो माह बाद कुछ निश्चित समय के अंतराल के लिए झूलाघाट का पुल खोला गया, तब कुछ नेपाल के नागरिकों को सीमित संख्या में अपने देश नेपाल जाने का अवसर मिला. गोपाल भी अपने देश जाने वालों में शामिल था. नेपाली नागरिक हमारे देश भारत से अपने देश चले तो गए, लेकिन उनकों अपने देश में भी 22 दिन क्वारंनटिन में रहना
पढ़ा. गोपाल को अपने घर नेपाल के जिला बजांग पहुंचने में, करोना महामारी के कारण, लगभग तीन माह लग गए थे. जबकि अन्य दिनों गोपाल पिथौरागढ़ से अपने घर दो दिन में पहुंच जाता था.नेपाल
गोपाल को गए हुए लगभग छः माह हो गए थे. कभी-कभी उसकी बहुत याद आती थी. नेपाल के पश्चिमी अंचलों में, विशेषकर महाकाली अंचल में शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ सुविधा तथा रोजगार की स्थिति अति दयनीय है. जिस कारण नेपाल के अधिकतर नागरिक इन सुविधाओं का लाभ लेने के लिए हमारे देश की ब्यवस्थाओं में निर्भर रहते हैं.
हमारे राज्य उत्तराखण्ड में भवन निर्माण के कार्य में मजदूरी करते हुए, ट्रकों में सामान उतारना व चड़ाना, होटल या रेस्ट्रोरेन्ट में खानसामा व वेटर का काम करते हुए, गांवों में घास काटने का काम भी हमारे पड़ौसी देश नेपाल के नागरिक करते हैं. वे इन कामों को बहुत मेहनत तथा ईमानदारी से करते हुए, मजदूरी के रुप में अपने परिवार के लिए अच्छा धन अर्जित कर लेते हैं.नेपाल
204 वर्ष पूर्व पराधीन भारत की ब्रिटिश सरकार और नेपाल सरकार की काली नदी को दोनों देशों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया था. किन्तु काली नदी का उद्गम स्थल लिंपिया
धुरा है या काला पानी इस बात पर दोनों सरकारों ने ध्यान नही दिया! जबकि वास्तविकता यह है कि काला पानी मे काली नदी की मुख्य धारा बनती है. इसलिए हमारा देश काला नदी का उद्गम स्थल काला पानी को दर्शाता है और नेपाल सरकार लिंपिया धुरा को कहकर विवाद खड़ा कर देता है.
नेपाल
करोना महामारी के कारण संपूर्ण विश्व की अर्थब्यवस्था डवांडोल हो गई थी. उधोग-घन्धे सब चैपट हो गए. सबसे अधिक करोना महामारी की गाज मजदूर तबके के उपर गिरी. नेपाल के पश्चिमी अंचल महाकाली के गरीब तबके का जनमानस जो हमारे देश में आकर मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पाल रहा था. उनके पेट के उपर बहुत अधिक मार पढ़ी. इसी मध्य नेपाल सरकार ने ‘काला पानी‘ विवाद खड़ा कर दिया. नेपाल की प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा
सोशल मीडिया ने अनेक प्रकार के भारत विरोधी प्रचार आरंभ कर दिए. जिस कारण दोनों देशों का आम तबका सहम गया था, कि न जाने अब भविष्य में दोनों के मध्य संबंध कैसे होंगे? दोनों देशों की जनता के बीच के आपसी रिश्तों की मिठास क्या अब कड़वाहट में बदल जाएगी? सकारात्मक विचार कम, नकारात्मक विचार अधिक आने लग गए थे.नेपाल
204 वर्ष पूर्व पराधीन
भारत की ब्रिटिश सरकार और नेपाल सरकार की काली नदी को दोनों देशों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया था. किन्तु काली नदी का उद्गम स्थल लिंपिया धुरा है या काला पानी इस बात पर दोनों सरकारों ने ध्यान नही दिया! जबकि वास्तविकता यह है कि काला पानी मे काली नदी की मुख्य धारा बनती है. इसलिए हमारा देश काला नदी का उद्गम स्थल काला पानी को दर्शाता है और नेपाल सरकार लिंपिया धुरा को कहकर विवाद खड़ा कर देता है. इस विवाद का असर दोनों देशों की सरकार के साथ ही दोनों देशों की आम प्रजा, जिनका आपस में रोजी-रोटी के साथ-साथ बहु-बेटी का भी संबंध हैं, उनके ऊपर पड़ने लगा था.नेपाल
मैं उसको दिलासा देते रहता
था कि यह करोना बिमारी शीघ्र ही दूर होगी और शीघ्र ही झूलाघाट में पुल स्थाई तौर में खुल जाएगा. भारत और नेपाल के निवासी पूर्व की तरह एक दूसरे के देश में आवागमन कर सकंगे. गोपाल संतुष्ट हो गया था.
नेपाल
करोना महामारी के रहते हुए अगस्त माह में, मुझे व पत्नी को पिथौरागढ़ अपने घर में ताला लगाकर, अपने कनिष्ठ पुत्र दिपेन्द्र, बहु कल्याणी के पास बंगलौर जाना हुआ.
दिपेन्द्र बंगलौर में एक आई टी कंपनी में कार्यरत है. हमारे देश के प्रत्येक राज्य से अधिकतम युवा आई टी कर्मी, बंगलौर में कार्यरत हैं. बंगलौर में यह भी देखने में आया कि होटलों में तथा सुरक्षा कंपनियों में, बड़े-बड़ माल में हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के व नेपाल के लोग अधिक संख्या में कार्यरत हैं. जब कभी मुझे किसी होटल, रेस्तारां व माल में जाने का अवसर मिला तो अक्सर मैं नेपाली भाईयों से नेपाली में बात करने लग जाता था. अगर नेपाल के महाकाली अंचल का कोई निवासी मिल जाता था मुझे अपनत्व का अहसास होता था.नेपाल
हमारे बंगलौर में रहते हुए
गोपाल ने अपने घर नेपाल से दो बार मोबाइल से वार्तालाप किया था. पहली बार की बातचीत में गोपाल ने कुशलक्षेम के उपरांत दो प्रश्न मेरे से पूछे, कि यह करोना बिमारी कब दूर होगी? झूलाघाट का पुल कब स्थाई तौर खुलेगा?. क्योकि वह शीघ्र ही पिथौरागढ़ आकर कुछ काम-धन्धा करके धन कमाना चाहता था, ताकि अपने परिवार को अच्छे ढ़ग से पाल सके. मैं उसको दिलासा देते रहता था कि यह करोना बिमारी शीघ्र ही दूर होगी और शीघ्र ही झूलाघाट में पुल स्थाई तौर में खुल जाएगा. भारत और नेपाल के निवासी पूर्व की तरह एक दूसरे के देश में आवागमन कर सकंगे. गोपाल संतुष्ट हो गया था.नेपाल
बंगलौर में रहते हुए हमको तीन माह हो चुके थे.
इस मध्य मेरी पोती पूर्णिमा का जन्म हो चुका था. पूर्णिमा के जन्म के एक माह बाद हम अपने घर पिथौरागढ़ जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी गोपाल का दूसरी बार फोन आया. आपस में कुशलक्षेम का आदान-प्रदान हुआ. मैंने उसको बता दिया कि हम जल्द से जल्द पिथौरागढ़ पहुंचने वाले हैं. गोपाल ने प्रसन्नता जाहीर की.नेपाल
गोपाल गते, पक्ष, माह और वर्षभर की
गणना बिक्रम् संवत् के अनुसार करता था. क्योकि संपूर्ण नेपाल में राजकीय कार्यालयों, संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा सुरक्षा क्षेत्रों में गणना कार्य बिक्रम् संवत् के अनुसार होता है. इसलिए गोपाल आंग्ल कलैन्डर की अपेक्षा अपने देश के पंचाग के अनुसार चलता था.
नेपाल
अक्टूबर माह में बंगलौर से हम लोग अपने
ज्येष्ठ पुत्र तपन के पास नौयडा आ गए थे. नोएडा में रहते हुए गोपाल का मात्र एक बार मोबाइल से बात हुई थी. मैंने गोपाल को बता दिया था कि नवंबर माह के अंत तक पिथौरागढ़ आ जाएगे. गोपाल ने खुशी जाहीर करते हुए कहा, “मतलब मंगसीर माह में आप आजाएगे.”नेपाल
गोपाल गते, पक्ष, माह और वर्षभर की
गणना बिक्रम् संवत् के अनुसार करता था. क्योकि संपूर्ण नेपाल में राजकीय कार्यालयों, संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा सुरक्षा क्षेत्रों में गणना कार्य बिक्रम् संवत् के अनुसार होता है. इसलिए गोपाल आंग्ल कलैन्डर की अपेक्षा अपने देश के पंचाग के अनुसार चलता था.नेपाल
नोएडा में पत्नी की आंख का ईलाज करवाया.
ईलाज में संतुष्ट होने के लगभग एक माह नौयडा में रुकने के पश्चात 30 नवंबर के दिन हम अपने घर पिथौरागढ़ पहुंच गए.नेपाल
प्रत्येक व्यक्ति गोपाल की ईमानदारी से कार्य करने का कायल था. यही कारण था कि किसी ब्यक्ति को खेत में काम कराने के लिए, मकान निर्माण के लिए या
बाजार से गांव तक भारी बोझ लाने के लिए, आदि मजदूरी में काम कराने के लिए गोपाल को प्राथमिकता देते थे. क्योकि मेरे क्षेत्र के बच्चे से लेकर वृद्ध तक गोपाल को उसकी ईमानदारी से परिश्रम करने के बारे में परीचित थे.
नेपाल
अपने घर पहुंचने के पश्चात हम दोनों, अपने मकान को व अपने बगिचे को संवारने में लग गए थे. क्योकि लगभग चार माह मकान में ताला लगा रहा. अतः मकान व बगिचा अपना श्रृंगार चाह रहा था. पिथौरागढ़ पहुंचने के लगभग पंद्रह दिन पश्चात गोपाल अपने घर नेपाल से हमारे घर पहुंच गया. हम खुश हो गए हमसे अधिक गोपाल खुश
हो गया था. इस बार गोपाल धारचूला होते हुए पिथौरागढ़ पहुंचा था. झूलाघाट का पुल बंद था. धारचूला में कुछ समय के अंतराल के पश्चात दोनो देशों के निवासियों के आने जाने के लिए काली नदी के उपर बना पुल खोल दिया जाता हैं. इसलिए गोपाल लम्बा मार्ग तय करते हुए, अपने जिला बझांग से धारचूला होते हुए पिथौरागढ़ पहुंचा था.नेपाल
गोपाल के बारे में कि ‘गोपाल आ गया है‘, जब मेरे पड़ोसियों को व मेरे पड़ोसी गांव पुनेड़ी वालों को ज्ञात हुआ तो लोग गोपाल से मजदूरी में काम कराने के लिए स्वयं मेरे घर आकर
गोपाल से संपर्क करने लगे. प्रत्येक व्यक्ति गोपाल की ईमानदारी से कार्य करने का कायल था. यही कारण था कि किसी ब्यक्ति को खेत में काम कराने के लिए, मकान निर्माण के लिए या बाजार से गांव तक भारी बोझ लाने के लिए, आदि मजदूरी में काम कराने के लिए गोपाल को प्राथमिकता देते थे. क्योकि मेरे क्षेत्र के बच्चे से लेकर वृद्ध तक गोपाल को उसकी ईमानदारी से परिश्रम करने के बारे में परीचित थे.नेपाल
गोपाल प्रातः नास्ता करने के
उपरांत मेरे बगिचे में 15/20 मिनट काम करने के बाद मजदूरी करने के लिए चले जाता है. गोपाल मजदूरी में जाने से पहले मुंह में मास्क लगाता है और जहां भी मजदूरी करने जाता है वहां सोशल डिसटेन्स का अक्षरतः पालन करता है..नेपाल
(लेखक सेना से सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं. एक कुमाउनी काव्य संग्रह बाखली व हिंदी कहानी संग्रह गलोबंध प्रकाशित. कई राष्ट्रीय पत्र—पत्रिकाओं में कहानियां एवं लेख प्रकाशित.)