- मोनिका डागा ‘आनंद’, चेन्नई, तमिलनाडु
वसुंधरा कर रही आर्द्र करूण पुकार,
हे मानव ! मत करो इतना अत्याचार,
मातृभूमि, कर्मभूमि, तुम्हारी मॉं हूँ मैं,
अनुचित है तुम्हारा ये घृणित व्यवहार ।
अतिशय कर रहे हो तुम जंगलों का दहन,
अत्यधिक प्राकृतिक संपदाओं का खनन,
पर्यावरण प्रदूषण से दूषित हो रहीं हूँ मैं,
असहनीय गहन पीड़ा हो रही हैं अंतर मन ।
परिवर्तन है गहरा उथल पुथल हैं मची,
समझाऊॅं कैसे तू हो गया हठी व लालची,
तेरी महत्वाकांक्षाओं से तड़प रही हूँ मैं,
अन्य जीव जन्तु हुएं घायल बात कहूँ सच्ची ।
ईश ने “आनंद” से सृष्टि का सृजन किया,
तूने खिलवाड़ मचाया प्रेम को भंग किया,
तेरे अमानवीय कृत्यों से बहुत क्रोधित हूँ मैं,
तूने मेरी स्मिता, सुंदरता को शर्मसार किया ।
अहंकारी बन सीमाओं का तू करे उल्लंघन,
बड़ा क्रूर विनाशकारी है ये तेरा पागलपल,
भयावह कष्टों से पीड़ित हो धूंज रही हूँ मैं,
क्या कलयुग में ऐसे करते हैं मॉं का वंदन ?
देख हवा पानी आकाश कहर बरसा रहा,
मेरी चेतावनियों से भी तू नहीं मान रहा,
तापमान हुआ ज्यादा झुलस रहीं हूँ मैं,
क्यों मॉं का दुःख तुझे महसूस नहीं हो रहा ?
एक दिन ये धैर्यशील धरा हो जाएंगी राख,
बिछुड़ जाएंगे मेरे बच्चे सारे डूबेगी साख,
आएंगा प्रचण्ड प्रलय नष्ट हो जाऊंगी मैं,
समय रहते यदि नहीं खुली जो तेरी ऑंख ।