राजू पाण्डेय
दुर्गा मैडम का स्कूल में पहला दिन था, अब गाँव के प्राइमरी स्कूल में दो अध्यापक हो गये थे, दूसरे मासाब लोहाघाट से रोज बाइक में आते थे, दुर्गा मैडम मासाब को कह रही थी,
मासाब आप तो पुराने हो यहां मुझे गांव में ही कमरा दिला दीजिये कोई.अरे मैडम! क्या आप भी, मैं रोज आता
हूँ लोहाघाट से बाइक में पीछे वाली सीट खाली रहती है आप आ जाना साथ में, वहां दिला दूँगा कमरा आपको, गांव में क्या रखा है?ज्योतिष
अरे नहीं सर मुझे गांव ही अच्छा
लगता है रोज रोज की ये दौड़ नहीं होगी मुझसे, आप छुट्टी के बाद चलियेगा मेरे साथ कोई दे देगा एक कमरा.कुछ नहीं रखा मैडम यहां बोर हो जाओगी
छुट्टी के बाद, वहां रौनक रहती है बहुत सारे स्टाफ के लोग रहते है, और एक से एक प्राइवेट स्कूल भी हैं वहां बच्चों को पढ़ाने के लिए.नहीं सर मुझे आदत है गांव की, यहीं रहूँगी.
ज्योतिष
छुट्टी के बाद मासाब के साथ गांव में ग्राम प्रधान जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाया और विचार विमर्श के बाद फैसला हुआ कि प्रधान जी के नये घर का एक कमरा
मैडम का आवास होगा, पार्वती (ग्राम प्रधान की पत्नी) मैडम को कमरा दिखाने ले गयी, उन्होंने एक नजर मैडम पर डाली, चमकदार आंखें, चेहरे में कुछ झुर्रियां, मोटे अनसुलझे बाल, न माथे में बिंदी न हाथ में चूड़ी और न ही माथे में सिंदूर.ज्योतिष
पार्वती – यो देखो मैडम कमरा, एक जने के लिए मस्त हुआ (एक आदमी के लिए बहुत है).
दुर्गा मैडम – जगह बहुत है पर मेरे साथ दो बच्चें भी होंगें.
पार्वती – अरे सिबोसीब, क्या
हुआ बच्चों के पापा के साथ, (सिंदूर और बिंदी न देखकर पार्वती नेअंदाजा लगा लिया
कि दुर्गा मैडम विधवा हैं), अभी तो आप छोटे ही दिख रहे ठहरे.दुर्गा मैडम – अरे
नहीं नहीं जैसा आप सोच रही हो ऐसा कुछ नहीं है, मैंने अभी शादी नहीं कि है वो मेरेज्योतिष
भाई के बच्चें हैं जिनको
पढ़ाने के लिए मैं अपने साथ रखूँगी.पार्वती – अरे ये कि
निकली गया मेरा मुख बठै, बुरा मत मानना हो.दोनों के चेहरे में हल्की सी मुस्कान तैर गयी.
कुछ दिनों बाद मैडम अपने
साथ दोनों बच्चों को लेकर आ गयी. दोनों बच्चों का अपने ही स्कूल में एडमिशन करा दिया, एक दूसरी में और एक तीसरी में है.ज्योतिष
जल्दी ही दुर्गा मैडम और पार्वती में दोस्ती हो गयी, पार्वती अपनी हर बात दुर्गा मैडम को बताती पर दुर्गा मैडम अभी अपने बारे में कम ही बात करती. पार्वती उसे अक्सर कुदेरने का
प्रयास करती पर दुर्गा मैडम मुस्कुराकर टाल देती.इतवार का दिन था, घनघोर बारिश
हो रही थी, पार्वती ने गौत भात बनाये थे तो सोचा थोड़े गौत मैडम को भी दे आऊँ, दुर्गा मैडम दरवाजे पे खड़ी बाहर कुछ निहारे जा रही थी, आँखें बारिश का साथ दे रही थी उन्हें पार्वती के आने का एहसास भी नहीं हुआ. पार्वती ने उनको हिलाया मानो चेतना आ गयी हो दुर्गा मैडम को.ज्योतिष
दुर्गा मैडम – अरे भाभी आप कब आये?
पार्वती – कति देर
से खड़ी हूँ, जहां होगा तुमरो ध्यान. आँखा बठै आँसू कला आ रहे थे.दुर्गा मैडम – अरे कुछ
नहीं भाभी कुछ नहीं आओ भीतर आओ.पार्वती – क्या हुआ ईजा
की याद आ रही है क्या? कुछ बताने वाली तो ठहरी नहीं. अपना मानती ही कहाँ हो तुम मुझे.ज्योतिष
दुर्गा मैडम – कसि बात कर रही हो भाभी, आप ही तो हो जो इतना प्यार और अपनापन देती है, ईजा के जाने के बाद बिल्कुल अकेली हो गयी थी मैं….
दुर्गा मैडम की आंखें फिर बहने
लगती है और होंठ बंद हो जाते है, पार्वती उसे आगोश में लेकर चुप कराती है, उसके सिर को मसारती है, कुछ देर बाद मानो दुर्गा मैडम के होंठों का बांध टूट पड़ता है.ऐसे ही बारिश हो रही थी उस रोज भी भाभी, जब ईजा ने आखिरी सांस ली थी, बिल्कुल अकेली पड़ गयी थी मैं, पिताजी चार साल पहले ही चल बसे थे. दाज्यू (बड़ा भाई) की शादी
के बाद ईजा और मुझे अलग कर दिया था, भाभी हमारे साथ नहीं रहना चाहती थी. ईजा और मैं खरक (जानवरों के रहने के लिए बनाया घर) वाले घर में रहते थे, दसवीं में पढ़ती थी मैं और ईजा मुझे पढ़ाना चाहती थी, इंटर तक का स्कूल ज्यादा दूर नही था.ज्योतिष
ईजा के हिस्से में 2 बकरियां एक गाय
और कुछ खेत आये थे, ईजा दूसरों के यहां भी काम कर आती जिससे थोड़ा आमदनी हो जाती, कभी चुपके चुपके दाज्यू भी पैसे दे जाता था. बारहवीं के पेपर दिये थे मैंने, ईजा की तबियत खराब रहने लगी थी और एक दिन….. वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था.ज्योतिष
ईजा के जाने के बाद दाज्यू मुझे भाभी के साथ रखना चाहते थे पर भाभी की इच्छा नहीं थी, दाज्यू शहर में नौकरी करते थे, गांव के लोगों और रिश्तेदारों ने दाज्यू को समझाया कि
अकेली लड़की रहे ठीक नहीं है, शादी करवा दो इसकी, पर मैं इसके लिए राजी नहीं थी. सबकी बातें अनसुनी करने का दौर आ गया था, बकरियों और गाय की जिम्मेदारी आन पड़ी थी, बारवीं के रिजल्ट में मैं पास हो गयी थी, मुझे आगे पढ़ना था पर कैसे कुछ नहीं पता?ज्योतिष
गांव के एक मासाब की सहायता से प्राइवेट से BA का फॉर्म भर लिया, दाज्यू चुपचाप पैसे भेजते थे कभी, बकरियां भी बढ़ रही थी, मेहनत भी, लोगों की बातें भी और मेरी पढ़ाई भी,
पता नहीं कहाँ से ताकत आ रही थी मेरे अंदर नहीं मालूम कभी लगता ईजा वो शक्ति दे रही हैं. जितनी मेरी आँखों में चमक बढ़ रही थी उतनी ही चेहरे में झुर्रियां बढ़ रही थी.ज्योतिष
ऊपर वाला कुछ रास्ते बंद करता है तो कुछ खोल भी देता है, BA पास होते ही कुछ सदजनो के प्रयास से बीएड में एडमिशन भी मिल गया पर जाया कैसे जाय, पर मैंने निश्चय कर
लिया था कि चाहे कुछ भी हो प्रयास जरूर करूँगी, औने पौने दाम में बकरियां और गाय बेच दी और ईजा का एक ग्लोबन्द था वो भी बेच दिया और पहुँच गयी कॉलेज.ज्योतिष
एक अलग दुनियां में आ गयी थी मैं, गाय और बकरियां भी याद आती अक्सर. एक दिन पता चला कोई मुझसे मिलने आया है, बाहर आकर देखा तो आंखों को यकीन ही नहीं हुआ,
दाज्यू के साथ भाभी भी थी, मुझे लगा ये लोगों की बातों में आकर मुझे वापस लेने आये होंगें, पर आज मैं गलत थी, भाभी ने मुझे गले लगा लिया था और उनकी आँखें बहने लगी थी, मेरे लिए इस बदलाव को हजम कर पाना मुश्किल था. पता नहीं भगवान की ऐसी क्या कृपा हो गयी थी, भाभी ने मुझसे माफी मांगते हुए मेरी हाथ में कुछ रुपये रख दिये और हर महीने मिलने और पैसे भेजने का वादा करके वो चले गये.पार्वती ने न जाने कब से दुर्गा मैडम का हाथ कस के पकड़ रखा था, आँसुओं की बाढ़ में कब दोनों के कपड़े भी तरबतर हो गये थे पता ही नहीं चला, आत्मा के शोर में बाहर की बारिश
और बादलों की गड़गड़ाहट का शोर फीका जान पड़ रहा था.
ज्योतिष
वो दिन एक सुखद स्वपन सा
प्रतीत हो रहा था, पूरी रात सो नहीं पायी थी मैं. उसके बाद अपने किये वादे से हर महीने मुझे ख़र्चा भेजने लगी थी भाभी और बीच बीच में मिलने भी आती थी, दुनियां अचानक बदल गयी थी मेरी.ज्योतिष
बीएड करने के बाद मैं वापस गांव आ गयी और भाभी के साथ ही रहने लगी, उनके दो बच्चें हो गये थे और मैं दिनभर उनके साथ ही लगी रहती, बच्चें मुझे बहुत प्यार करने लगे थे,
मैंने प्रण कर लिया था कि मैं इन बच्चों को पढ़ा लिखा बड़ा इंसान बनाऊँगी और अपना जीवन गांव गोठार की उन लड़कियों के लिए समर्पित कर दूँगी जो आगे पढ़ना चाहती हैं पर आर्थिक और सामाजिक कारणों से पढ़ नहीं पा रही हैं.ज्योतिष
पार्वती ने न जाने कब से दुर्गा मैडम का हाथ कस के पकड़ रखा था, आँसुओं की बाढ़ में कब दोनों के कपड़े भी तरबतर हो गये थे पता ही नहीं चला, आत्मा के शोर में बाहर की बारिश
और बादलों की गड़गड़ाहट का शोर फीका जान पड़ रहा था.(ग्राम- पो. बगोटी (चम्पावत) यमुना विहार- दिल्ली)