दिनेश रावत
डॉ. अशोक कुमार गुसाईं जी! शिक्षा विभाग के एक ऐसे अधिकारी रहे जिनकी प्रशासनिक एवं अकादमिक समझ जितनी गहरी है, भाव-स्वभाव, कार्य व व्यवहार उतना ही सहज-सरल. कार्य एवं दायित्वों के प्रति सजग-समर्पित तथा शिक्षक अभिभावक व जन सामान्य के लिए सदैव सुलभ. ना समय की पाबंदी, ना पद का कोई मद.
आप ना केवल स्वयं बेहतर करने के लिए पर्यत्नशील रहते थे बल्कि शिक्षकों को भी निरंतर प्रेरित—प्रोत्साहित करते रहते थे. आपकी पारखी नज़रें बहुत आसानी से काम करने और ना करने वालों को पहचान लेती थीं. फिर चाहे वह अतिदुर्गम में हों या अतिसुगम में. काम न करने वालों के खिलाफ आवश्यक कार्यवाही तथा काम करने वालों को यथोचित मान-सम्मान-सहयोग प्रदान करना आपकी विशिष्टता रही है. काम करने वाले शिक्षक-शिक्षिकाएं आपकी जुबां पर होते थे और अवसर मिलने पर उनके प्रयासों की प्रशंसा भी करते थे. आपके इन सद्प्रयासों से न केवल सबंधिंत का मनोबल बढ़ता था बल्कि अन्य भी प्रेरित होते थे.
वर्ष 2017 में आपके प्राचार्य, डायट-डायटडायट (डीडीहाट) रहते हुए पहली बार आपको सुनने-समझने का अवसर मिला. परिचय का यही पहला पायदान था. आपकी कार्यशैली एवं प्रेरक व्यक्तित्व से मैं जितना प्रभावित हुआ, उससे कई अधिक डायट के आसपास चल रही आप संबंधी चर्चाओं को सुनकर, जिनमें बदलावों का जिक्र था और डायट के कायाकल्प की उम्मीदें थी.
संयोगवश उसी वर्ष 27 मार्च को रा.प्रा.वि. /रा.उ.मा.वि.—मेतली का वार्षिकोत्सव होना था. विचार आया कि- ‘काश! आप मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम का हिस्सा बनकर सड़क, स्वास्थ्य, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस दूरस्थ ग्राम्य अंचल के नन्हें-मुन्ने बच्चों सहित हम सभी को शुभाशीष देते तो सोने में सुहागा हो जाता. ऐसी हार्दिक इच्छा भी थी पर इच्छा पर आशंका भारी पड़ रही थी. आशंका थी कि डीडीहाट से जौलजीबी, बरम होते हुए चामी तक मोटर मार्ग और चामी से 10 किमी. की सीधी खड़ी चढ़ाई चढ़कर मेतली पहुँचने का जोख़िम पता नहीं आप लेते हैं या नहीं? इस संबंध में प्रबंधन समिति के सदस्य और अन्य जनों से बात करता तो वे दृढ़ विश्वासी हो कहते— ‘अरे! मास्साब!! इतनी चढ़ाई चढ़कर साहब जी कहां मेतली आएंगे? आजतक तो (जनपद स्तर) कोई आया नहीं.’ यानी मैं आशा की जितनी किरणें समेटता उनकी बातें मुझे निराशा के उतने ही घोर अरण्य में छोड़ आती. उलझन भरी इस स्थिति में सौन मास्साब की एक बात—’जी ले होल जस ले होल ठीके होल.’ ढाढ़स बंधाती थी.
हमें कहां मालूम था कि— पगडंडियों के सहारे जीवन की शुरुआत करने वाले एक शिक्षा अधिकारी के मन में पहाड़ियों पर चढ़ने का साहस आज भी जिंदा है. जिसके दम पर वह कभी सीमांत पिथौरागढ़ के नेपाल सीमा से सटे धारचूला—मुनस्यारी के दूरस्थ क्षेत्रों में अनुश्रवण के लिए पहुंच जाते थे तो कभी पंचाचूली की पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाई नापने निकल पड़ते.
खैर! हिम्मत की. आमंत्रण आप तक पहुँचाने का साहस जुटाया. आपने सहर्ष हमारे आमंत्रण को स्वीकारा और 10 किमी. की सीधी—खड़ी पगडंडी नापते हुए वार्षिकोत्सव के लिए मेतली पहुंचे. डायट संकाय सदस्य श्री जे.बी.मिश्र व डॉ. ललितमोहन जोशी भी आपके साथ थे. अतिदुर्गम में अवस्थित विद्यालय का अब तक का पहला वार्षिकोत्सव और उसमें डायट से तीन—तीन लोगों का पहुंचना! अपने आप में एक कीर्तिमान था. ग्राम प्रधान श्री हयात सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम में धारचूला के ज्येष्ठ प्रमुख श्री सुंदर सिंह बिष्ट विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे.
सीमित संसाधनों में असीमित प्रयासों के बाद वार्षिकोत्सव सम्पन्न हुआ. आपने धीर-गंभीरता के साथ बाल प्रस्तुतियों को देखा और अंत में वर्षभर शैक्षिक तथा सह—शैक्षिक गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया. बच्चों को पुरूस्कृत करते हुए अपनी जेब में हाथ डालना और अपनी तरफ से भी नगद पुरस्कार देकर हौसला-अफ़जाई के अंदाज़ ने सभी को काफ़ी प्रभावित किया. इतना ही नहीं बच्चों से बातें करते. ठूडी पकड़कर स्नेह लुटाते. पीठ थपथपाते. खूब पढ़ाई करने को कहते. पुरस्कार के साथ ऐसा स्नेहील आशीर्वाद और लाड-प्यार पाकर बालमन कितना प्रफुल्लित व रोमांचित हुआ होगा सहज अनुमान लगाया जा सकता है.
गांव का युवा राजेन्द्र सिंह ‘राजू’ छात्रों से कहता है— ‘ते तदीक किस्मत वाला छै भुला! चार-पांच मेंई इतन ठूल अधिकारी तेरी च्यून पकड़ रेलेन, पीठ में हाथ राख भरि शाबाश कौन ले रेन. भुला हमिलेत इण्टर कर भर ले प्रधानाचार्य मुख आज तक ना देखरेख.’ राजू की इन बातों से सहसा समझा जा सकता है कि आपके आगमन से स्थानीयजन कितने आनन्दित—उत्साहित थे.
हमने विविध क्षेत्रों यथा— खेलकूद, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, सांस्कृतिक, परियोजना कार्य, वृक्षारोपण, कक्षा में सक्रियता, सर्वाधिक प्रश्न पूछने, उपस्थिति, सहपाठियों का सहयोग, गणवेश, स्वानुशासन, हस्तलेखन आदि के लिए पुरस्कृत प्रदान किए. यह अभिनवालय कााओं ित्वप्रयास काफी पसंद आया. अपने वक्तव्य में उल्लेख किया और हम से सूची प्राप्त कर जनपद के अन्य विद्यालयों में लागू करवाने हेतु लेकर गए थे. मेतली वासियों के लिए यह पहला मौका था जब कोई जनपद स्तरीय अधिकारी उनके गांव पहुंचा था.
2017 के बाद वर्ष 2019 में जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक), पिथौरागढ़ रहते हुए आप एक बार फिर से 5 अगस्त को मेतली पहुंचे. इस बार खंड शिक्षा अधिकारी, धारचूला श्री एम.आर. लोहिया और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री कन्याल जी साथ थे. अचानक से आपके आगमन की सूचना मिली तो मैं और रा.उ.मा.वि.- मेतली के हिमांशु वर्थी जी व संतोष कुमार भोजन एवं रात्रि विश्राम संबंधी व्यवस्था को लेकर चिंतित हो उठे. होटल-बाजार तो था नहीं इसलिए अपनी खाटें सरकाकर रात्रि विश्राम की जगह बनाने लगे. रूप दा और चन्द्र सिंह ने व्यवस्था बनाने में भरपूर सहयोग किया. रसोई भी उन्हीं दोनों ने संभाली. देर शाम तक आप लोग मेतली पहुंच गए थे. रूप दा ने अपने घर से चावल की रोटियां पहुंचायी. दूरस्थ ग्राम्य अंचल में विशुद्ध पहाड़ी पौष्टिक भोजन हुआ और भारी थकान के चलते विश्राम करने लगे.
अल सुबह ही रूप दा ने कटकी-चाय पहुंचा दी. स्कूल खुलते ही आप भी साथ-साथ विद्यालय पहुँच गए. प्रार्थना सभा से लेकर अवकाश तक एक-एक गतिविधि का दोनों विद्यालयों में गहनता से अनुश्रवण किया. जो अच्छा लगा मुक्त कंठ से प्रशंसा की और जहाँ सुधार अपेक्षित थे, उन्हें दुरस्त करने हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश दिए. प्रबंधन समिति के सदस्यों संग बातचीत की और छात्रहित में अपने स्तर से भी यथासंभव सहयोग हेतु आश्वस्त किया. अपराह्न में आप लोग मुख्यालय के लिए निकल पड़े थे लेकिन मेतली से लगाव बराबर बना रहा.
बात 10 जून, 2020 की है. कोविड-19 का कोहराम चरम पर था. अचानक आपका फोन आया. आपने बताया कि कोविड-19 संबंधी जन जागरूकता हेतु एक पुतली नाटिका बननी है. तो मैंने आपको अपने स्थानांतरण की सूचना देते हुए बताया कि— ‘सर! मैं तो सामान समेटने में लगा हूं.’ आपने बधाई देते हुए कहा कि मेरे लायक कुछ हो तो अवश्य बताइएगा. शाम को पुन: आपसे बातचीत हुई. आपने जो आत्मीयता दिखायी ताउम्र याद रहेगी. साथ ही यह भी कहा कि कल पिथौरागढ़ से निकलते हुए मिलकर जाना. यद्यपि मुझे मिलना तो था ही लेकिन यह कहकर आपने अपना कद कई गुना बढ़ा दिया.
12 जून की सुबह मैं पिथौरागढ़ के लिए निकला ही था कि आपने फोन करके स्थिति जानी. अब आप मुझे एक अधिकारी कम अभिभावक अधिक लग रहे थे. इस दौरान मेरी एक समझ बनी कि यदि आप ईमानदारी से काम करते हैं तो आपके व्यावसायिक संबंध मात्र ही मधुर नहीं होते हैं बल्कि व्यक्ति संबंधों में भी निकटता आती है क्योंकि मेतली ग्रामवासियों से लेकर उच्चाधिकारियों तक का कभी न भुलाने वाला जो स्नेह मिल रहा था, उसकी एकमात्र वजह सीमांत में रहते हुए निष्ठापूर्वक किए गए प्रयास ही थे.
मैं जब पिथौरागढ़ पहुँचा. उस वक्त आप बोर्ड मूल्यांकन संबंधी अनुश्रवण में व्यस्त थे. उसके बाद भी समय निकालकर जिस मान—सम्मान और स्नेहील आशीर्वाद के साथ स्मृति चिह्न भेंटकर आपने पिथौरागढ़ से विदा किया वह ताउम्र याद रहकर सदैव बेहतर करने के लिए प्रेरित करता रहता है. कोविड—19 के चलते अबकी बार मैं अपने नीजि वाहन से ही सफ़र कर रहा था तो आप ने पहाड़ी मार्गों पर बहुत संभलकर चलने की सलाह देनी भी नहीं भूली. मेरे हरिद्वार पहुंचने तक आप खास—ख़बर लेते रहे. ठीक वैसे ही जैसे कोई माता—पिता या अभिभावक बच्चे के घर से निकलने पर लेते रहते हैं.
इस बीच आप भी पिथौरागढ़ से महानिदेशालय और महानिदेशालय से जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक), चम्पावत पहुँच गए. 31 जुलाई, 2023 को अधिवर्षता आयु पूर्ण करने पर चम्पावत से ही सेवानिवृत्त हुए लेकिन शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर रहते हुए आपने जो शानदार और जानदार पारियां निभायी हैं वह लम्बे समय तक याद की जाती रहेंगी. मुझे यकीन है कि आप अब भी चुपचाप नहीं बैठेंगे बल्कि अपने ज्ञान व अनुभवों से बहुतों को अभिसिंचित करते हुए कुछ नया रचने—गढ़ने में जुट जायेंगे. इसी विश्वास के साथ ईश्वर से आपके उत्तम स्वस्थ्य एवं निरोग काया तथा दीघार्यु होने की कामना के साथ पुन: हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.
(लेखक कवि, साहित्यकार एवं वर्तमान में अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं)