ढांटू: रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर में सिर ढकने की अनूठी परम्‍परा

  • निम्मी कुकरेती

उत्तराखंड के रवांई—जौनपुर एवं जौनसार-बावर because क्षेत्र में सिर ढकने की एक अनूठी परम्‍परा है. यहां की महिलाएं आपको अक्‍सर सिर पर एक विशेष प्रकार का स्‍कार्फ बाधे मिलेंगी, जो बहुत आकर्षक एवं मनमोहक लगता है. स्थानीय भाषा में इसे ढांटू कहते हैं. यह एक विशेष प्रकार के कपड़े पर कढ़ाई किया हुआ या प्रिंटेट होता है, जिसमें तरह—तरह की कारीगरी आपको देखने को मिलेगी. यहां की महिलाएं इसे अक्सर किसी मेले—थौले में या ​की सामूहिक कार्यक्रम में अक्सर पहनती हैं.

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 ढांटू का इतिहास

यहां के लोगों का मानना है कि वे because पांडवों के प्रत्यक्ष वंशज हैं. और ढांटू भी अत्यंत प्राचीन पहनावे में से एक है. इनके कपड़े व इन्हें पहनने का तरीका अन्य पहाड़ियों या यूं कहें कि पूरे भारत में एकदम अलग व बहुत सुंदर है. महिलाएं इसे अपनी संस्कृति और सभ्यता की पहचान के रूप में पहनती हैं. आज भी इन क्षेत्रों में पुरानी व नई पीढ़ी अपनी पहचान और अपनी धरोहर को संजोए हुए हैं, यही कारण है कि अब because अन्य क्षेत्रों के लोग भी इस पहनावे को एक फैशन के रूप में अपनाते हुए देखे जा सकते हैं. अपनी परम्परा और संस्कृति की ओर आकर्षित करने की यही विशेषता और शक्ति है, जो उन्हें विशिष्टता की भावना प्रदान करती है और अन्य को भी लुभाती है.

उत्तराखंड के पहाड़ की महिलाएं because अत्यधिक मेहनती होती हैं और खेतों में हाड़—तोड़ मेहनत करके कृषि और पशुपालन का कार्य करती हैं. ऐसे में यह ढांटू महिलाओं के सिर को गर्मियों में तेज धूप से बचाता है, सर्दियों में यह तेज ठंडी हवा से और बरसात में बारिश से सिर को बचाता है.

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ढांटू बनाने में हस्तशिल्प का काम, but ढांटू का नाप और फायदे

ढांटू उक्त क्षेत्रों की महिलाओं because द्वारा पहना जाने वाला 1 मीटर लंबा और एक मीटर चौड़ा वर्ग के आकार का रंग-बिरंगा सिर पर पहने जाने वाला एक स्पेशल दुपट्टा होता है. जैसा कि उत्तराखंड के पहाड़ की महिलाएं अत्यधिक मेहनती होती हैं और खेतों में हाड़—तोड़ मेहनत करके कृषि और पशुपालन का कार्य करती हैं. ऐसे में यह ढांटू महिलाओं के सिर को गर्मियों में तेज धूप से बचाता है, सर्दियों में यह तेज ठंडी हवा से because और बरसात में बारिश से सिर को बचाता है. जिस प्रकार भारतीय समाज में पुरुषों की टोपी को इज़्ज़त माना जाता है उसी प्रकार महिलाओं का ढांटू भी इज़्ज़त का पहनावा है. यह विभिन्न रंगों और पैटर्न में आता है. अब अनेकों कपड़े में उपलब्ध होने लगा है जैसे सूती-ऊनी मिक्स, सूती, शिफॉन, साटन, सिल्क जॉर्जेट आदि.

पारम्परिक ढांटू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह स्थानीय हस्तशिल्पियों द्वारा अपने हाथ से तैयार किये जाते थे. आज भी यह कई जगह हाथ से तैयार होते हैं किंतु अब मशीनीकरण होने के कारण कम्पनियों द्वारा भी बनाये जाने लगे हैं.

लेकिन परंपरागत तौर पर यह because ऊनी, सूती व सिल्क के कपड़े में मिलता था. पारम्परिक ढांटू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह स्थानीय हस्तशिल्पियों द्वारा अपने हाथ से तैयार किये जाते थे. आज भी यह कई जगह हाथ से तैयार होते हैं किंतु अब मशीनीकरण होने के कारण कम्पनियों द्वारा भी बनाये जाने लगे हैं.

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ढांटू पहनने so का तरीका

ढांटू को पहनना बहुत ही आसान है. because सबसे पहले इसके दो विपरीत कोने को मोड़कर इसे तिकोना कर लिया जाता है, फिर पूरे सिर को ढकते हुए दोनों कोनों को सिर के पीछे की ओर ले जाते हुए बालों की चुटिया के नीचे या ऊपर या तो गांठ मार because दी जाती है या दोनों कोनों को एक-दूसरे के ऊपर रखते हुए पलट कर मोड़ दिया जाता है जो कि पहनकर एक ओर सिर को बहुत सुकून देता है वहीं महिलाओं की सुंदरता में चार चांद लगा देता है.

ढांटू की कीमत और रखरखाव

उत्तराखंड में ढांटू बड़ी because आसानी से कपड़ों की दुकानों से मिल जाता है, लेकिन दस्तकारी वाले ढांटू के लिए आपको स्थानीय दस्तकारों या दुकानदारों से सम्पर्क करके मात्र रु0 200 से 2000 रु0 में आपकी पसंद के अलग-अलग कपड़े में मिल जाएंगे. ढांटुओं को आप because सामान्य डिटर्जेंट, साबुन आदि जैसा कपड़ा हो उसके अनुसार धोकर पहन सकते हैं.

(लेखिका उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग में सीनियर प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं.)

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