‘विकसित भारत 2047’ हकीकत या दिवास्वप्न

Viskit Bharat 2047 AI Image

Netrapal Yadav ji

नेत्रपाल सिंह यादव
निदेशक
पॉलिसी & रिसोर्स मैनेजमेंट सेंटर

भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी के जैसे-जैस करीब पहुंच रहा है, ऐसे में यह देश एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. 2047 तक भारत को एक विकसित देश में बदलने का महत्वाकांक्षी एजेंडा, जिसे “नए भारत” के रूप में जाना जाता है. एक व्यापक खाका है जिसमें आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता शामिल है. यह आलेख एंथ्रोपोलॉजिकल लेंस से इस विज़न के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से चर्चा करता है. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास तथा सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता एवं मानव विकास के समग्रता का संपूर्णता में विश्लेषण करता है.

आधुनिक विकास के मानकों में आर्थिक विकास स्थिति की भूमिका का महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं जिसके तहत किसी भी राष्ट्र या आधुनिक राज्य (Nation & State) की वहां के नागरिक की ‘प्रति व्यक्ति आय’ (Per capita income) से जायजा लिया जा सकता है अथवा उस राष्ट्र के समावेशी विकास एवं राज्य के समग्र विकास की रणनीति एवं उपलब्धियां का भी आकलन किया जा सकता है.

निस्संदेह, आधुनिक अर्थव्यवस्था में कारोबार, व्यापार, वाणिज्य, कल कारखाने, घरेलू उत्पाद, आर्थिक आत्मनिर्भरता, आयात निर्यात की स्थिति, इत्यादि मानकों के आधार पर हम सशक्त अर्थव्यवस्था को देखते व समझते हैं तथा इन मानकों का विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है. परंतु, मानव संसाधन एवं प्राकृतिक संसाधनों का समुचित दोहन, न्यायसंगत वितरण तथा पर्यावरण संतुलन के बिना सतत विकास का सपना अधूरा रहता है. यदि प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसाधनों का समुचित उपयोग, पर्यावरणीय संतुलन तथा ठोस नीतियां और क्रियान्वयन की पारदर्शी कार्य- प्रणाली सुनिश्चित करने में असफल रहते हैं तो सतत विकास का सपना कदापि पूरा नहीं किया जा सकता है. हालांकि यह कोई ऐसी समस्याएं नहीं जिनका समाधान न हों! बशर्तें हमें सच्ची निष्ठा और इच्छा शक्ति एवं कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के तहत सामाजिक न्याय व पर्यावरण न्याय को यदि सुनिश्चित करेंगे तो अवश्य हम एक विकसित राष्ट्र का सपना सफल कर सकेंगे.

आज जरूरत है कि हमें पूर्ण जवाबदेही के साथ वर्तमान हालात एवं ज्वलंत सामाजिक मुद्दों को गंभीरता से स्वीकार करने की तथा नागरिकों में राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय कर्तव्य तथा नागरिक धर्म की मूल भावना को एहसास करने की! यह तभी संभव होगी जब हम प्रत्येक नागरिक को सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका तथा स्वरोजगार अभिप्रेरित वातावरण सृजित करेंगे साथ ही साथ प्रत्येक स्तर पर जनसमुदाय की प्रतिभागिता एवं सम्मानजनक हिस्सेदारी भी सुनिश्चित करनी होगी.

विज़न इंडिया 2047: एक ‘विकसित राष्ट्र’ निर्माण की चुनौतियां

ऐतिहासिक संदर्भ से भारत के विकास की दिशा उसके औपनिवेशिक अतीत, विविध संस्कृतियों और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं द्वारा आकार लेती रही है. यदि वास्तव में हमें विकसित भारत 2047 के विजन को अर्जित करना है  विकसित भारत की गाथा को स्वर्णिम अक्षरों से अंकित करना चाह रहे हैं तो हमें अब  स्मार्ट सिटी से स्मार्ट सिटीजन की ओर यात्रा करनी होगी तभी हम स्मार्ट नेशन को बना सकते है हम सबको बड़ी ईमानदारी, दृढ़ता और संकल्प के साथ कार्य करने की नितांत आवश्यकता है और ‘बुलंद भारत’ की एक सच्ची तस्वीर प्रत्येक नागरिक के मन मस्तिष्क स्पष्ट तस्वीर या छवि रेखांकित करनी होगी जिससे न सिर्फ प्रत्येक नागरिक के एक राष्ट्रीय चरित्र व आचरण का निर्माण होगा बल्कि ‘सबका साथ, सबका विकास एवं सबका प्रयास’ को मूर्ति रूप प्राप्त होगा. इसको अमली जामा पहनाने के लिए सत्ता के विकेंद्रीकरण पर विशेष बल देना होगा अर्थात ईमानदारी से क्रियान्वयन, माइक्रो-प्लानिंग (सूक्ष्म नियोजन एवं क्रियान्वयन) को समुदाय स्तर पर या ग्राम पंचायत स्तर, जिला स्तर एवं नगर स्तर पर सुनिश्चित करना होगा विशेषकर पंचायतों तथा नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों को आर्थिक रूप से न सिर्फ सशक्त बनाना होगा बल्कि आधुनिक तरीके से इनको स्वायत्त देनी होगी.

हमें अब  ग्रामीण विकास अभिकरण को समाप्त करके अथवा डीआरडीओ  को ‘डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट ऑथोरिटी’ के  अधीन संचालित या समायोजित करना होगा तथा इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों के लिए ‘सिटी डेवलपमेंट ऑथोरिटी’ एवं इसके अंतर्गत सभी अन्य दूसरे विकास प्राधिकरणों को या फिर एकीकरण एवं बेहतर तालमेल तथा सक्रिय क्रियान्वयन हेतु समायोजन करना नितांत आवश्यक है जिससे न सिर्फ कार्यों की गुणवत्ता एवं समय बाध्यता को भी निर्धारित किया जा सकता हैं बल्कि फ़िज़ूल खर्ची, कार्यों में समरूपता, सामंजस और सभी कार्यदायी संस्थाओं जवाबदेही भी सुनिश्चित की जा सकती है जिससे विकास की गति तेज और प्रक्रिया को सरल, सुगम एवं सुदृढ किया जा सकता है.

समग्र विकास के ‘एकीकृत विकासवादी प्रक्रिया’ को अपनाना होगा इस एप्रोच के साथ जिला स्तर के सभी विभागों को एक सूत्र में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की  प्रतिबद्धता के साथ सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. तभी एकीकृत विकास मॉडल की स्पष्ट निगरानी सुनिश्चित होगी. निर्णय निर्माण की प्रक्रिया, स्मार्ट विलेज, आधुनिक कृषि, पशुपालन, बागवानी, डेरी, कुटीर उद्योग, तथा उद्यमशीलता, दक्षता कौशल विकास, क्षमता विकास के लिए तथा प्रभावशाली क्रियान्वयन के लिए ग्राम पंचायत, नगर पालिका एवं नगर निगमों को कम्युनिटी गवर्नेंस, लोकल सेल्फ गवर्नेंस, तथा कम्युनिटी लीडरशिप के लिए पंचायती राज को केंद्र बिंदु में रखना होगा.

अब जरूरत ‘स्मार्ट सिटी’ से आगे बढ़ कर ‘स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर होने की नितांत आवश्यकता है सिटी चाहे जितना भव्य दिव्य अथवा गगनचुंबी इमारतें, शॉपिंग मॉल, होटल, रिसोर्ट आधुनिक पार्क, एक्सप्रेसवे,  सुपर एक्सप्रेसवे,  आधुनिक हवाई पट्टियां एवं अंतरराष्ट्रीय वायुयान के अड्डे, अत्याधुनिक रेल सवारी गाड़ी, बुलेट ट्रेन, विमानपत्तम, बंदरगाह, विकास के आधुनिक  स्मारक पार्क इत्यादि निस्संदेह हमारे स्मार्ट सिटी एवं मेट्रो तथा कॉस्मापॉलिटन सिटी का हिस्सा अवश्य हो सकते परन्तु यदि नागरिक स्मार्ट नहीं है तो ऐसे सभी नगर, शहरी बस्तियां, मेट्रो सिटी, या फिर स्मार्ट सिटी सफ़ल कदापि साबित नहीं हो सकते क्योंकि ‘स्मार्ट सिटीजन’ ही इन व्यवस्थाओं का रखरखाव व प्रबंध कर सकते हैं! स्मार्ट सिटी से अब स्मार्ट सिटीजन’ की ओर अग्रसर करना होगा तथा इस दिशा में विशेष कार्य करने की जरूरत है जिसे हम एक ‘आदर्श नागरिक संहिता’ बना सकते हैं इसके अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, सूचना प्रद्योगिकी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अहम भूमिका हो सकती हैं.

जागरूक एवं जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए कुछ मानक निर्धारित किए जा सकते है, जैसे समय पर ITR भरना, समय पर सरकारी लोन जमा करना, सिबिल स्कोर सही रखना, सदैव ड्राइविंग लाइसेंस रखना, अपने वाहन को प्रदूषण मुक्त रखना, कोई अपराधिक मामला न होना!

पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के लिए विशेष प्रयास करना! सार्वजनिक स्थलों को गंदा न करना, सड़क, पार्क पर कूड़ा करकट न फेंकना यदि ऐसी गैर जिम्मेदारना आचरण अथवा हरक़त करता देखा जाता तो जुर्माना या आर्थिक दण्ड दे न होगा.!

जो नागरिक इस प्रकार से आचरण, सदाचार व्यवहार का पालन करते हैं उनको स्मार्ट सिटीजन का स्टेटस या कार्ड दिया जा सकता है! जिसे हम सिस्टमैटिक एवं चरणबद्ध तरीके से लागू कर सकते हैं. वालंटियर एक्टिविटी साथ सामाजिक कार्यों का प्रोत्साहन एवं विस्तार करना होगा ख़ासतौर से पंचायत स्तर अथवा वार्ड स्तर पर स्वयं सेवकों चयन तथा स्वरोजगार अभिप्रेरित कार्य कर्मों बढ़ाना होगा.

एक विकसित राष्ट्र का मार्ग विज़न इंडिया 2047

आर्थिक समृद्धिकरण विज़न इंडिया 2047 एजेंडा की आधारशिला आर्थिक समृद्धि में रूपांतरण करना है. इस योजना का उद्देश्य भारत को 18,000-20,000 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलना है. इस आर्थिक छलांग के लिए मजबूत सार्वजनिक वित्त, एक लचीला वित्तीय क्षेत्र और विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है. हालाँकि, समावेशी विकास की सुनिश्चिता के आधुनिक तकनीकों एवं प्रौद्योगिकी की सहायता अवश्य लेनी होगी जिससे मूल्यांक और निगरानी से विकास कार्यों की समीक्षा, गुणवत्ता एवं पारदर्शिता लागू करना होगा . आर्थिक नीतियों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानताओं को गहराई से समझाना होगा तथा समाधान के कार्य योजना बनानी होगी, जिससे सतत विकास समाज के सभी वर्गों को लाभ मिले सके पारंपरिक आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को हाशिए पर जाने से रोकने के लिए व्यापक आर्थिक ढांचे में एकीकृत किया जाना चाहिए.

सामाजिक विकास विज़न इंडिया 2047 एजेंडे का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ है. इसका ध्यान मानव विकास, सामाजिक कल्याण और शिक्षा पर है. युवाओं को कौशल और शिक्षा के साथ सशक्त बनाना एक जानकार और सक्षम कार्यबल बनाने के लिए आवश्यक है.  मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से, इसमें भारत की आबादी की विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझना और उनका सम्मान करना शामिल है. शैक्षिक कार्यक्रम सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और समावेशी होने चाहिए, जो विविधता का जश्न मनाते हुए एकता को बढ़ावा दें. सामाजिक नीतियों का उद्देश्य असमानताओं को कम करना और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना होना चाहिए, यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक नागरिक के पास बुनियादी सुविधाओं और विकास के अवसरों तक पहुँच हो.

सांस्कृतिक उद्योगों को बढ़ावा देना और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण में योगदान दे सकता है. समावेशी नीतियों और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से बढ़ावा दिया जाने वाला सामाजिक सामंजस्य राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण है.

पर्यावरणीय स्थिरता

पर्यावरणीय स्थिरता विज़न इंडिया 2047 एजेंडे का अभिन्न अंग है. योजना हरित विकास, जलवायु कार्रवाई और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने पर जोर देती है 3. मानवशास्त्रीय रूप से, इसमें पर्यावरण के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव शामिल है.  पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और प्रथाएँ, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रही हैं, को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और आधुनिक पर्यावरण नीतियों में एकीकृत किया जाना चाहिए. पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी से अधिक टिकाऊ और प्रभावी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं. चुनौती विकास को पारिस्थितिक संरक्षण के साथ संतुलित करने में है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भावी पीढ़ियों को एक स्वस्थ ग्रह विरासत में मिले.

सांस्कृतिक गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य

मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण विज़न इंडिया 2047 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सांस्कृतिक गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य पर भी प्रकाश डालता है. भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध परंपराएँ ऐसी संपत्तियाँ हैं जो नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा दे सकती हैं. सांस्कृतिक उद्योगों को बढ़ावा देना और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण में योगदान दे सकता है. समावेशी नीतियों और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से बढ़ावा दिया जाने वाला सामाजिक सामंजस्य राष्ट्रीय एकता के लिए महत्वपूर्ण है. विकास को न्यायसंगत और टिकाऊ बनाने के लिए “नए भारत” के विज़न को “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास  (सामूहिक प्रयास, समावेशी विकास, विश्वास और भागीदारी) के सिद्धांतों पर बनाया जाना चाहिए.

विज़न इंडिया 2047 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों को एकीकृत करता है. मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से, विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता पर विचार करना आवश्यक है. समावेशी विकास, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता और सांस्कृतिक संरक्षण भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र में बदलने की कुंजी हैं.

निष्कर्ष : विज़न इंडिया 2047 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों को एकीकृत करता है. मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से, विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक गतिशीलता पर विचार करना आवश्यक है. समावेशी विकास, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता और सांस्कृतिक संरक्षण भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र में बदलने की कुंजी हैं. जैसे-जैसे राष्ट्र इस महत्वाकांक्षी यात्रा पर आगे बढ़ेगा, उसके लोगों के सामूहिक प्रयास, एक साझा दृष्टिकोण द्वारा निर्देशित, इसकी सफलता के पीछे प्रेरक शक्ति होंगे. नतीजन, तभी We the People of India की अनुभूति तथा नागरिकों के मध्य राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीयता, राष्ट्रधर्म, नागरिक धर्म एवं कर्तव्यों के बोध को स्थापित करने में कामयाब हो सकेंगे. निस्संदेह, नए राष्ट्र के निर्माण ‘विकसित भारत’ के लिए एक सृजनात्मक, रचनात्मक वातावरण देने में सक्षम होंगे अन्यथा जो हमारी चिरस्थाई समस्याएं हैं वह निरंतर फलती फूलती रहेगी और ‘विकसित भारत 2047’ एक दिवास्वप्न साबित होगा.

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