होली पर की कल्याण सिंह चौहान दो कविताएं
1. होली के रंग
रंग ले रंग ले, तन रंग ले,
तन रंग ले, तु मन रंग ले,
होली के रंग रंग ले।। रंग ले रंग ले….
रंग ले रंग ले, दुनिया के रंग ले रंग ले,
रंग ले रंग ले, दुनिया अपने रंग रंग ले,
रंग ले रंग ले, तु प्यार के रंग रंग ले।।
रंग ले रंग ले….
रंग ले रंग ले, मैं मैं ना रहे,
रंग ले रंग ले, तू तू ना रहे,
सच्चा रंग रंग ले, तू पक्का रंग रंग ले।।
रंग ले रंग ले…..
रंग ले रंग ले, तू कान्हा के रंग रंग ले,
रंग ले रंग ले, तू श्यामा के रंग रंग ले,
ऐसा रंग ले, कि रंग छूटे ना,
होली के रंग रंग ले, रंग ले रंग ले…..।।
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2. होली है
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की।
छोली जाली मठ्ठा बल, छोली जाली मठ्ठा।
पंचैती चौक, होली खेलणू, सरू गौं कठ्ठा।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की।। होली है स रा रा
रंग उडणू, उडणू अबीर गुलाल।
प्यार से रंग लगा सभ्यूं, न रौ क्वी मलाल।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की। होली है स रा रा
मिली सभी रंग खेला, भूली की सभी दुःख।
सयणों का खुटों लगा रंग, अयणौं लगा मुख।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की। बुरा न मानो होली.
ढोल बजा, दमौ बजा, बजा बाजू मसक।
बौ,स्यली की गलोड़्यू रंग लगा, न रौ क्वी कसक।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की। बुरा न मानो….
होली मा बनिबन्या लोग, बनिबन्या रंग।
नचदू गांदू रंग खेला, क्वी घोटा भंग।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की। बुरा न मानो..
रंगू मा रंग मीली, ह्वे गी एक रंग।
हंसदू खेलदू सब भूली रंगजा प्यार का रंग।
ऐगी होली फागै की, भाईचारा प्यार की। बुरा न मानो.।।।