जलवायु परिवर्तन मानवजनित ही है: 99.9% अध्ययन

  • निशांत

लगभग शत-प्रतिशत शोध यह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन किसी प्राक्रतिक नियति का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी आपकी गतिविधियों का ही नतीजा है. because इस बात को सामने लायी है एक रिपोर्ट जिसने 88,125 जलवायु-संबंधी अध्ययनों के एक सर्वेक्षण में पाया कि 99.9% से अधिक अध्ययन यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव जनित ही है.

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ध्यान रहे कि साल 2013 में, 1991 और 2012 के बीच प्रकाशित अध्ययनों पर हुए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में पाया गया था कि 97% अध्ययनों ने इस विचार का समर्थन किया कि मानव because गतिविधियां पृथ्वी की जलवायु को बदल रही हैं. वर्तमान सर्वेक्षण 2012 से नवंबर 2020 तक प्रकाशित साहित्य की जांच से यह बताता है कि आंकड़ा 97% से बढ़ कर 99.9% हो गया है.

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कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एलायंस फॉर because साइंस के एक विजिटिंग फेलो एवं इस पत्र के प्रमुख लेखक मार्क लिनास ने कहा की, “हमें अब कोई शक़ नहीं है कि 99% से अधिक शोध किस ओर इशारा कर रहे हैं. अब मानव-जनित जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता के बारे में किसी भी चर्चा का कोई औचित्य ही नहीं बचा है.”

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आगे, कॉर्नेल में कृषि और जीवन विज्ञान महाविद्यालय और अध्ययन के सह-लेखक, डीन बेंजामिन हॉल्टन कहते हैं, “ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की जलवायु परिवर्तन में भूमिका है को स्वीकार because करना बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसा करने से हम तेज़ी से नए समाधान जुटा पाएंगे. वैसे भी हम पहले से ही अपने चारों ओर, व्यवसायों, मनुष्य, और अर्थव्यवस्था पर, जलवायु संबंधी आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों को देख रहे हैं.” बीती 19 अक्टूबर को एनवायरनमेंट रिसर्च नाम के जर्नल में यह शोध “ग्रेटर देन 99% कन्सेंसस ओं ह्यूमन कौज़्ड क्लाइमेट चेंज इन द पियर रिव्यूड साइंटिफिक लिटरेचर” शीर्षक से प्रकाशित हुआ है.

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हालाँकि ऐसे परिणामों के बावजूद, because जनमत सर्वेक्षणों के साथ-साथ राजनेताओं और जन प्रतिनिधियों की राय इस ओर इशारा करती है कि जलवायु परिवर्तन के सही कारणों पर वैज्ञानिकों में अभी भी एकमत नहीं है.

इसकी बानगी इस बात से मिलती है कि इस सर्वेक्षण में पाया गया कि 2016 में प्यू रिसर्च सेंटर ने पाया कि सिर्फ़ 27% अमेरिकी वयस्कों का मानना था कि “लगभग सभी” वैज्ञानिक इस बात because से सहमत थे कि जलवायु परिवर्तन मानव गतिविधियो की वजह से है. वहीँ 2021 के गैलप पोल  के अनुसार अमेरिकी राजनीति में अभी भी गहरे मतभेद है कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात से पृथ्वी तापमान जो बढ़ा है उसका कारण वाक़ई मनुष्य है.

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अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2012 because और 2020 के बीच प्रकाशित हुई 88,125 अंग्रेजी भाषा के जलवायु पत्रों के डेटासेट से 3,000 अध्ययनों के रैंडम नमूने की जांच शुरू की. उन्होंने पाया कि 3,000 में से केवल चार पेपर मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के बारे में संशय में थे.

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शोध के प्रमुख लेखक मार्क लिनास आगे कहते हैं, “यह समझने के लिए कि आम सहमति कहां मौजूद है, आपको इसकी मात्रा निर्धारित करने में सक्षम होना चाहिए. इसका मतलब है कि because सिर्फ चुने हुए कागज़ातों  के आधार पर बनी विचारधारा से बचने के लिए एक सुसंगत और गैर-मनमाने तरीके से शोध साहित्य का सर्वेक्षण करना ज़रूरी है. इस सन्दर्भ में ऐसा करने से ये पता चलता है की सार्वजनिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारणों की चर्चा में कैसे तर्कों को रखा जाये.”

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अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2012 because और 2020 के बीच प्रकाशित हुई 88,125 अंग्रेजी भाषा के जलवायु पत्रों के डेटासेट से 3,000 अध्ययनों के रैंडम नमूने की जांच शुरू की. उन्होंने पाया कि 3,000 में से केवल चार पेपर मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के बारे में संशय में थे.

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लिनास बताते हैं की, “हमें यह मालूम because था कि ऐसे जलवायु संशयवादी शोध कम हैं, लेकिन हमने यह मान के सर्वेक्षण किया कि 88000 पत्रों में अभी और कुछ मिल सकता है.”

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“अगर 2013 के because अध्ययन, जिसमें जलवायु परिवर्तन के मानव जनित होने पर 97% सहमति बनी थी, पर अभी भी किसी को कोई संदेह हो, तो मौजूदा निष्कर्ष किसी भी अनिश्चितता को दूर करने के लिए काफ़ी हैं. बल्कि यह इस चर्चा पर विराम लगाने के लिए अंतिम शब्द होना चाहिए.”

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यूनाइटेड किंगडम-आधारित सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एलायंस फॉर साइंस में स्वयंसेवक सह-लेखक साइमन पेरी, ने एक एल्गोरिथ्म बनाया, जो “सोलर”, “कॉस्मिक रेज़” because और “नैचुरल साइकिल्स” जैसे शब्दों की खोज करता था. “एल्गोरिथ्म सभी 88000 से ऊपर  पेपरों पर चलाया गया था और उस प्रोग्राम में ये व्यवस्था थी की संशयवादी नतीजे क्रम में ऊपर आयें. कुल मिलाकर, खोज में 28 पत्र मिले जो स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से संदेहास्पद थे और यह सभी शोध मामूली पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे.

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अपनी बात समाप्त करते हुए लिनास because कहते हैं, “अगर 2013 के अध्ययन, जिसमें जलवायु परिवर्तन के मानव जनित होने पर 97% सहमति बनी थी, पर अभी भी किसी को कोई संदेह हो, तो मौजूदा निष्कर्ष किसी भी अनिश्चितता को दूर करने के लिए काफ़ी हैं. बल्कि यह इस चर्चा पर विराम लगाने के लिए अंतिम शब्द होना चाहिए.”

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(लेखक लखनऊ में निवासरत हैं एवं पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों में रुचि और इन विषयों को हिन्दी पत्रकारिता के पटल पर प्रासंगिक बनाने के इरादे से इससे जुड़ी जानकारियां लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं.)

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