पिथौरागढ़

राज्यपाल ने किया ललित शौर्य की पुस्तक का विमोचन

राज्यपाल ने किया ललित शौर्य की पुस्तक का विमोचन

पिथौरागढ़
हिमांतर ब्यूरो, पिथौरागढ़ महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने युवा साहित्यकार ललित शौर्य की पुस्तक द मैजिकल ग्लब्ज का विमोचन किया. कार्यक्रम लोक निर्माण विभाग के अतिथि आवास गृह में आयोजित किया गया. because शौर्य की पुस्तक का विमोचन करते हुए भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि ललित शौर्य बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं. युवाओं को अपनी ऊर्जा सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में लगानी चाहिए. अच्छा बाल साहित्य आज की आवश्यकता है. बाल साहित्य से बच्चों के भीतर मानवीय गुणों का समावेश होता चला जाता है. बच्चा कहानियां पढ़ते-पढ़ते संस्कारों का पाठ भी सीख जाता है. ललित शौर्य नई पीढ़ी को अच्छी सौगात दे रहे हैं. विज्ञान लेखन चुनौतीपूर्ण है. लेकिन वह इस कार्य को बखूबी कर रहे हैं. ज्योतिष पुस्तक के लेखक ललित शौर्य ने बताया कि यह पुस्तक उनकी हिंदी में लिखी जादुई दस्ताने का अंग्रेजी रूपांतरण है. जिसका अनुवाद ...
पिथौरागढ़ के युवा कवि इंजी. ललित शौर्य को मिलेगा राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मान

पिथौरागढ़ के युवा कवि इंजी. ललित शौर्य को मिलेगा राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मान

पिथौरागढ़
हिमांतर ब्यूरो, पिथौरागढ़ चर्चित बाल साहित्यकार इंजी. ललित शौर्य को वर्ष 2021 का सुप्रसिद्ध पंडित प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान मिलने जा रहा है. भाऊराव देवरस सेवा न्यास लखनऊ because द्वारा यह सम्मान ललित शौर्य को प्रदान किया जाएगा. राष्ट्रीय स्तर पर इस सम्मान के लिए प्रविष्ठियाँ आमंत्रित की गई थी. सैकड़ों प्रविष्ठियों में से ललित शौर्य का चयन किया गया है. भाऊराव देवरस सेवा न्यास प्रतिवर्ष 40 वर्ष से कम आयु के छः साहित्यकारों को सम्मानित करता है. छः अलग-अलग विधाओं में सम्मान प्रदान किए जाते हैं. ज्योतिष पंडित प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान 2021 के संयोजक डॉक्टर विजय कुमार कर्ण ने बताते हुए कहा कि वर्ष 2021 के लिए बाल साहित्य विधा में उत्तराखंड के युवा बाल साहित्यकार ललित शौर्य को सम्मानित किया जाएगा. इसके साथ ही काव्य विधा में छत्तीसगढ़ के विक्रम सिंह, कथा साहित्...
लाचार कौन? न डीएम काम आया और न सांसद ने फोन उठाया….बहादुर राम एंबुलेंस के अभाव में मर गया

लाचार कौन? न डीएम काम आया और न सांसद ने फोन उठाया….बहादुर राम एंबुलेंस के अभाव में मर गया

पिथौरागढ़
हिमांतर ब्‍यूरो, पिथौरागढ़ बहादुर राम अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनके भतीजे किशोर ने चाचा को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन चाचा ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. न डीएम काम आया so और न ही सांसद ने फोन उठाया, जिन अधिकारियों ने फोन उठाया बस अपनी लाचारी सुना डाली. ऐसा हाल है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिला अस्पताल का, जहां ब्रेन हेमरे बज मरीज को ले जाने के so लिए सरकारी एंबुलेंस तक नहीं मिली. ऐसे में बहादुर राम तो मर गया, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की इस लाचारी पर कई सवाल खड़े कर गया. जिस जिला अस्पताल में एंबुलेंस न हो, इलाज के लिए डॉक्टर न हो, जिस जिले का जिलाधिकारी मुसीबत के वक्त फोन न उठाये... वह जिला फिर राम भरोसे ही है..सांसद और प्रशासन के नहीं... पिथौरागढ़ बहादुर राम को पिथौरागढ़ से हल्द्वानी ले जाने के लिए एंबुलेंस (Ambulance) नहीं मिली. उनके भतीजे किशोर ...
विकास की बाट जोहते सुदूर के गाँव…

विकास की बाट जोहते सुदूर के गाँव…

पिथौरागढ़
उतकै-उतकै नहीं! डॉ. गिरिजा किशोर पाठक   उत्तराखंड का राज्य पक्षी यद्यपि हिमालयन मोनाल है लेकिन जनमानस का सबसे लोकप्रिय पक्षी है घूघूती. घूघूती पर यहाँ के सैकड़ों गाने, कथाएं, किवदंतियाँ है. घूघूती के बोल “के करू पोथी उतकै-उतकै” (क्या करू बेटा बस इतना सा ही और इतना ही है) यह एक कहानी से भी जुड़ा है. उतकै-उतकै माने जिसमें परिवर्तन/बृद्धि नहीं हुई है परिश्रम के वाबजूद. घूघूती के ये बोल उतकै-उतकै, उत्तराखंड के सुदूर सीमांत गांवों के विकास की यात्रा पर फिट बैठते हैं. इस बार एक लंबे अंतराल के बाद सुदूर हिमालय की तलहटी में बसे अपने सीमांत गाँव डौणू, बेरीनाग, जिला पिथौरागढ़ 1 माह के प्रवास की तैयारी के साथ पहुच गया. सोच था जिन संस्थानों और संस्थाओं को वेब स्पीच देनी होगी वहीं से दे दूंगा. कुछ जाड़े के अहसास के साथ जीने का आनंद भी आ जाएगा. 1982 की फरवरी में मेरी छोटी बहिन का ब्याह हुआ था तब जाड़...
उजाड़ बाखई के हिय की पीर

उजाड़ बाखई के हिय की पीर

पिथौरागढ़
डॉ. गिरिजा किशोर पाठक   हिमालयी संस्कृति में बखाई का मतलब होता है पूरे मकानों की एक कतार और एक साइज. आज से लगभग दो-तीन सौ साल पहले कुमायूँ के लोग बाखलियों में ही सामूहिक रूप से रहते रहे होंगे. becauseआज के शहरी डूप्लेक्स की तरह बाखई में मकानों की एक दीवार कॉमन होती थी. शायद इससे पत्थरों की लागत भी कम रहती होगी. ऐसे घर लागत और सुरक्षा के दृष्टिकोण से सुंदर रहते होंगे. 1867 स्टीवेंसन ने भी but अपनी  बेरीनाग यात्रा मे पक्के पत्थर के घरों का उल्लेख किया हैं. एटकिनसन के हिमालयन गजेटियर 1888 में भी पत्थर के घरों और बाखई का लेख हैं. मुझे लगता है की बाखई का कन्सेप्ट कत्तूरी और चंद राजाओं के काल में ही विकसित हो गया  होगा. पत्थरों के भवनों के पुरातत्वीय प्रमाण भी मिलते ही हैं. यूं कहें कि बाखई कुमाउनी संस्कृति की आधारशिला है तो गलत नहीं होगा. बाखई हम भी बाखई में रहते थे. इस बाखई में करीब 1...
एक उजड़े गाँव की दास्तां

एक उजड़े गाँव की दास्तां

पिथौरागढ़
डॉ. गिरिजा किशोर पाठक इतिहास का अवलोकन किया जाये तो देखने को मिलेगा कि कई शहर, गाँव, कस्बे कालखंड विशेष में बसते और उजड़ते रहते हैं. कई सभ्यतायें और संस्कृतियाँ इतिहास का पन्ना बन कर रह जाती हैं. मोसोपोटामियां, सिंधु घाटी से लेकर कई सभ्यतायें आज पुरातात्विक अनुसंधान के विषय हैं. हाँ,  यह सच है कि शहरों के उजड़ने और बसने के कई कारण होते हैं. उत्तराखंड के संदर्भ में बात की जाय तो बड़े चौकाने वाले तथ्य सामने आते हैं. ब्रिटिश इंडिया में जो गाँव शत-प्रतिशत आवाद थे आजादी के सात दशकों बाद आज ये वीरान और बंजर हो गए हैं. जबकि ब्रिटिश भारत का विकास व्यापारिक हितों से प्रभावित था उसमें लोक कल्याणकारी राज्य का कोई दृष्टिकोण निहित नहीं था. सन 1947 के बाद तो एक लोकतान्त्रिक, लोक कल्याणकारी और समाजवादी सरकार ने काम करना शुरू किया. फिर इतना पलायन क्यों?  यह पलायन पूरे हिमालय और पूरी सीमाओं के लिए गंभीर...