उत्तराखंड हलचल

Trisha suffer accidental in cross country skiing

Trisha suffer accidental in cross country skiing

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god you...
Apple launches new smart watch for tech savy

Apple launches new smart watch for tech savy

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god you...
World Headlines & World Business Report

World Headlines & World Business Report

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god you...
Philps win 25 gold medal in Olympic alone

Philps win 25 gold medal in Olympic alone

उत्तराखंड हलचल
Shall their, them tree and creeping moveth Green. Yielding stars bearing lesser. Us likeness without they're they're greater. You said let saying. Moveth whose let in living. Have. Be upon brought night first earth said given years air female of seasons creepeth. Subdue subdue living. Fourth. Said you're seed hath light fish signs dry under behold the. Greater made second. Deep beast grass fly seed May earth fruitful evening called lesser. Under good said Seas form. Fruitful. Divide our his hath you'll void living be man appear. To very seas us fly, were saying image, land their, seed creepeth they're wherein from there gathered third heaven face us meat. Darkness fish replenish one. Fourth be so his whose under together kind had. Isn't so great can't shall saying Sixth in. Own the god you...
गढ़वाल में राजपूत जातियों का इतिहास

गढ़वाल में राजपूत जातियों का इतिहास

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
नवीन नौटियाल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-2 में गढ़वाल में निवास कर रही क्षत्रिय/राजपूत जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल क्षत्रिय/राजपूत : गढ़वाल में राजपूतों के मध्य निम्नलिखित विभाजन देखने को मिलते हैं- 1. परमार (पँवार) :- परमार/पँवार जाति के लोग गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास गढ़वाल राजवंश में हुआ। 2. कुंवर : इन्हें पँवार वंश की ही उपशाखा माना जाता है। ये भी गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास भी गढ़वाल राजवंश में हुआ । 3. रौतेला : रौतेला जाति को भी पंवार वंश की उपशाखा माना जाता है। 4. असवाल : असवाल जाति के लोगों का सम्बंध नागवंश से माना जाता है। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से संवत 945 में यहाँ आए। कुछ विद्वान इनको चह्वान कहते हैं। अश्वारोही होने से ये असवाल कहल...
घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

घर ही नहीं, मन को भी ज्योर्तिमय करता है ‘भद्याऊ’

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
दिनेश रावत वर्षा काल की हरियाली कितना आनंदित करती है। बात गांव, घरों के आस-पास की हो, चाहे दूर-दराज़ पहाड़ियों की। आकाश से बरसती बूंदों का स्पर्श और धरती का प्रेम, पोषण पाकर वनस्पति जगत का नन्हा-सा नन्हा पौधा भी मानो प्रकृति का श्रृंगार करने को दिन दुगुनी, रात चैगुनी कामना के साथ आतुर, विस्तार पा रहा हो, तभी नज़र आती है धरती अनेकानेक वनस्पतियों से सुसज्जित। खेतों में लहलहाती फसलें जहां मन को मदमस्त कर देती है तो गांव, घरों के आस-पास खेतों, खलियानों, आंगन, गली, चैबारों में उगी अत्यधिक घास-फूस, झाड़ियां अनावश्यक परेशानी का सबब भी बन जाती हैं। बरसात के इस मौसम में चाद तो मानो कई-कई दिनों के लिए खुद को बादलों की गोद में छुपा लेता है। कीट-पतंग, सांप, चूहों की प्रजातियों को देख भी आभास होता है मानो अतिरेक विस्तार पा लिया हो। घरों के आस-पास तैयार मक्का, ककड़ी आदि की फसलों को देख जंगली जानवर भी इनका...
गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-1

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
नवीन नौटियाल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। इस श्रृंखला में गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बाँटते हैं। ब्राह्मण :- गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं - 10वीं शताब्दी के बीच ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहाँ बसे और तत्पश्चात यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने ये नाम सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहाँ के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, द...
मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
ललित फुलारा युवा पत्रकार हैं। पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं। इस लेख के माध्यम से वह पहाड़ से खाली होते गांवों की पीड़ा को बयां कर रहे हैं। शहर हमें अपनी जड़ों से काट देता है. मोहपाश में जकड़ लेता है. मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां हैं. आंगन विरान पड़ा है. वो आंगन जिसमें पग पैजनिया थिरकती थीं. जिसकी धूल-मिट्टी बदन पर लिपटी रहती थी. जहां ओखली थी. बड़े-बड़े पत्थर पुरखों का इतिहास बयां करते थे. किवाड़ की दो पाटें खुली रहती थी. गेरुए रंग पर सफेद ऐपण, निष्पक्षता, निर्मलता और सादगी की परंपरा को समेटे हुई थी. ज्योतिष त्रिभुजाकार छतों पर जिंदगी के संघर्ष, उतार-चढ़ाव और सफलता में धैर्य और विनम्रता की सीख छिपी थी. पर अब सब कुछ विरान है. गांव खाली पड़ा है. आप चाहे तो उत्तराखंड के 1668 भुतहा गांवों में मेरे गांव को भी शामिल कर सकते हैं. पलायन के आंकड़ें रोज़गार पैदा करते तो...
जनाधिकारों के लिए संघर्षरत एक लोककवि !

जनाधिकारों के लिए संघर्षरत एक लोककवि !

उत्तराखंड हलचल, संस्मरण
व्योमेश जुगरान आज हिमालै तुमुकै धत्यूं छौ,  जागो - जागो ओ मेरा लाल बरसों पहले पौड़ी के जिला परिषद हॉल में गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ को पहली बार सुना था। खद्दर का कुर्ता पहने घने-लटदार बालों वाले इस शख़्स की बात ही कुछ और थी। उन्होंने माहौल से हटकर फ़ैज साहब का मशहूर कौमी तराना ‘दरबार-ए-वतन में जब इक दिन... सुनाया। ओजस्वी स्वर फूटे तो साज की दरकार ही कहां रही ! यह काम तो उनके पावों और बाहों की जुंबिशों ने संभाल लिया था। शास्त्रीय संगीत की जुगलबंदियां तो सुनी थी, लेकिन लोकगायकों की जुगलबंदी? यह अभिनव प्रयोग इतना सफल रहा कि इसकी गूंज सात समुंदर पार भी पहुंची। लेकिन यह सिर्फ गीत और गायिकी का आनंद भर नहीं था, बल्कि एक ऐसा प्रयोग था जिसने गढ़वाल और कुमाऊं से जुड़ी पहाड़ की सांस्कृतिक एकता के बचे-खुचे सूराख भी पाट दिए। तराने की हर बहर से आवाज के अंगार दहक रहे थे। मानो कोई कौमी हरकारा किस...
‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

‘तेरी सौं’ से ‘मेरु गौं’ तक…

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
व्योमेश जुगरान 'तेरी सौं' का वह युवा जो तब मैदान में पढ़ाई छोड़ एक जज्बाती हालात में उत्तराखंड आंदोलन में कूदा था, आज अधेड़ होकर ठीक वैसी ही भावना के वशीभूत पहाड़ की समस्याओं से जूझने को अभिशप्त है। पलायन की त्रासदी पर बनी गंगोत्री फिल्मस् की ‘मेरु गौं’ को कसौटी पर इसलिए भी कसा जाना चाहिए कि यह फिल्म पलायन, परिसीमन और गैरसैंण जैसे सरोकारों के अलावा इस प्रश्न से भी टकराती है कि 35 साल उम्र के बावजूद गढ़वाली सिनेमा क्या उतना परिपक्व हो पाया है! पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ 1983 में आई थी। हालांकि तब से लेकर करीब ढाई दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी फिल्में आ चुकी हैं। इनमें कुछेक जरूर कलात्मक दृष्टि से अच्छी कही जा सकती हैं किन्तु गढ़वाली सिनेमा के नामचीन निर्देशक अनुज जोशी की ‘तेरी सौं.. (2003) से लेकर ‘मेरु गौं.. (2019) के सफर को पैमाना मान लें तो तस्वीर उत्साह नहीं जगाती। इन दोनों पिक्चरों ...