अजनबी आंगन
अथ-अनर्थ कथा- 1
डॉ. कुसुम जोशी
नवल ददा अपनी नवेली ब्योली को लेकर अभी अभी घर पहुंचे थे. बाबा, बाबू ,ताऊजी चाचा, जीजाजी, फूफाजी सब बारात से लौट कर रात भर की थकान के बाद भी खुश नजर आ रहे थे. लगता था लड़की वालों ने अच्छी खातिर की थी. नवल दा की खुशी छुपे नहीं छुप रही थी. शायद दुल्हन की हिरनी जैसी आँखों और मासूम से चेहरे की झलक दा को मिल गई हो. सिर्फ फोटो दिखा कर शादी कर लेने की नाराजगी के कोई लक्षण अब चेहरे पर नही थे. सारा गांव दुल्हन देखने को जुट आया और जिसने भी दुल्हन का मुखड़ा देखा वो तारिफ किये बिना नहीं रहा. नये नये जुमले थे "कतु स्वानी छ...आहा साक्षात लछमी छ… बड़ भाग नवलक... कतु सुन्दर घरवाली मिली छ...सीता- राम जैसी जोड़ि छ...बड़ भाग ददा बोज्यूनका..इतु सुन्दर ब्यारी"
बधाई हो ..बधाई हो...के शोर के साथ सबका ध्यान आंगन में आ चुकी अधेड़ उम्र की रानी और उसके चेले चेलियों की और चला गया....