किस्से-कहानियां

अजनबी आंगन

अजनबी आंगन

किस्से-कहानियां
अथ-अनर्थ कथा- 1 डॉ. कुसुम जोशी नवल ददा अपनी नवेली ब्योली को लेकर अभी अभी घर पहुंचे थे. बाबा, बाबू ,ताऊजी चाचा, जीजाजी, फूफाजी सब बारात से लौट कर रात भर की थकान के बाद भी खुश नजर आ रहे थे. लगता था लड़की वालों ने अच्छी खातिर की थी. नवल दा की खुशी छुपे नहीं छुप रही थी. शायद दुल्हन की हिरनी जैसी आँखों और मासूम से चेहरे की झलक दा को मिल गई हो. सिर्फ फोटो दिखा कर शादी कर लेने की नाराजगी के कोई लक्षण अब चेहरे पर नही थे. सारा गांव दुल्हन देखने को जुट आया और जिसने भी दुल्हन का मुखड़ा देखा वो तारिफ किये बिना नहीं रहा. नये नये जुमले थे "कतु स्वानी छ...आहा साक्षात लछमी छ… बड़ भाग नवलक... कतु सुन्दर घरवाली मिली छ...सीता- राम जैसी जोड़ि छ...बड़ भाग ददा बोज्यूनका..इतु सुन्दर ब्यारी" बधाई हो ..बधाई हो...के शोर के साथ सबका ध्यान आंगन में आ चुकी अधेड़ उम्र की रानी और उसके चेले चेलियों की और चला गया....
परिपक्वता

परिपक्वता

किस्से-कहानियां
डॉ अमिता प्रकाश “मैडम, आज रोहिणी आ रही है." सुनीता ने मुझसे कहा तो रोहिणी की अनेकों स्मृतियाँ कौंध उठीं. शादी के एक साल बाद रोहिणी अपने घर आ रही थी. अपना घर...? वह घर जहाँ उसने जन्म लिया था. वह घर जिसके आँगन में खेलकूद कर वह बड़ी हुयी थी. वह घर जिसकी कई चीजों को उसने अपने हाथों से एक रूप दिया था. आँगन के नीचे वाले खेत में लगे कई माल्टे के पेड़ जो आज बड़े होकर उसके स्वेद के मोतियों को ही मानो फलों के रूप में धारण कर रहे थे, उसने अपने हाथों से उन्हें लगाया था. जिस उम्र में बच्चे अपने गुड्डे-गुड़ियाओं में मस्त होते हैं उस उम्र के उसके ये साथी आज उसी की तरह फलित होने लगे हैं... वह भी तो पेट से है, सोचकर चिन्ता की कई रेखाएँ मेरे चेहरे पर तैर आती हैं. उसका वही अपना घर. लेकिन अब कहाँ अपना रह गया था? शादी के दूसरे दिन ‘दोहरबाट’के लिए आयी थी. मात्र रस्म निबाहने के लिये. उसी समय उसने सोचा था कि अब म...
साईबो को पाप

साईबो को पाप

उत्तराखंड हलचल, किस्से-कहानियां
सुभाष तराण 1815 के बाद जब जौनसार-बावर और देवघार फिरंगी सरकार के अधीन आया तो उन्होने सबसे पहले पडौस की शिमला रेजीडेंसी को देहरादून से जोडने के लिये एक नए अश्व मार्ग का निर्माण किया. यह रास्ता मसूरी, यमुना पुल नागथात चकराता त्यूनी मुन्धोल से मुराच़, छाज़पुर, खड़ा पत्थर, कोटखाई होते हुए शिमला तक जाता था. कारी-किश्ते के अलावा इस रास्ते पर घोड़े पालकियों पर सफर करने वाले अंग्रेजी हाकिमों ने बरे-बेगार की जिम्मेदारी स्थानीय स्याणों को दे रखी थी. अंग्रेजी साहिबों के आवागमन के दौरान गाँव व सदर (क्षेत्र) स्याणे बड़ी मुस्तैदी के साथ अपने अपने इलाकों में उनकी खिदमत का प्रबंध करते और हारी बेगारी करवाने के लिये अपने गाँव और क्षेत्र के भोले भाले लोगों को उनकी सेवा में पठाते. बोझा ढोने को अपनी नियती मानने वाले इस क्षेत्र के लोग भी बिना किसी हिला हवाली के ईमानदारी के साथ खुद को प्रस्तुत करते और इंग्लिश बह...
वो कोचिंग वाला लड़का

वो कोचिंग वाला लड़का

किस्से-कहानियां
अनीता मैठाणी रोज सुबह हड़बड़ाहट में कोचिंग क्लास के लिए तैयार होती. पाण्ड्स ड्रीमफ्लॉवर पाउडर को हाथों में लेकर चेहरे पर ऐसे मलती कि बस जैसे उसके लगाते ही चेहरा दमकने लगेगा. पर सच में ऐसा होता था, चेहरा दमकने के साथ-साथ चमकने भी लगता था. अपनी लाल रंग की साइकिल निकालती और 5 किमी. दूर कोचिंग सेन्टर पहुँच जाती. रास्ते में आते-जाते हुए अक्सर एक साइकिल वाला लड़का दिखता जो लगभग रोज दिखता था. हालांकि मैंने कभी उसके चेहरे की तरफ नहीं देखा पर मुझे पता था कि वही एक लड़का है जो रोज दिखता है. एक दिन उसकी ब्राइट यैलो शर्ट कोचिंग सेन्टर में भी दिखी तो पता चला वो भी वहीं जाता था. वो शायद एम.ए. कर रहा था क्योंकि मैंने उसे एम.ए. वालों के रूम में जाते देखा था. किन्हीं अपिहार्य कारणों की वजह से मुझे बारहवीं की व्यक्तिगत परीक्षा देनी पड़ रही थी. अगले दिन जब मैं स्टैण्ड पर पहुँची मैं क्या देखती हूँ, आज बिन...