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जीवन सृजन में प्रेम का चेतन पक्ष…

जीवन सृजन में प्रेम का चेतन पक्ष…

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नीलम पांडेय ‘नील’, देहरादून प्यारे युवाओं! ये जो कुछ लोग तुम्हारे लिए प्रेम कविताएं, गीत, किस्से, कहानियां लिखते हैं, जहां तुम्हें अपने लिए उनकी कोई चाहत दिखती है, ये सब तुमको बरगलाना भी हो सकता है. जरूरी नही ये प्रेम हो, हां ये प्रेम जैसा दिखता जरूर है, प्रेम जैसा महसूस जरूर होता है पर ये महज एक आकर्षण हो सकता है, तुम्हें पता होना चाहिए कि आकर्षण की उम्र बहुत छोटी होती है, वो कब तोड़ दे, टूट जाए और खत्म हो जाए कुछ नही पता. तुम अगर किसी को प्रेम करो अथवा प्रेम गीत लिखो तो पहले धरती और आकाश की गहनता को देखो, जीवन सृजन के चेतन पक्ष को देखो, उसकी सकारात्मकता को देखो, खुद के होने को समझो, जीवन कितना अनमोल है इसे समझो, इसे बेवजह किसी पर खर्च  मत करो. तुम चाहो तो जनचेतना लिखो, तुम अगर गीत सुनो तो जनचेतना को सुनो. इसलिए ध्यान रखना, जब तक तुम खुद से बेइंतहां प्रेम न करने लग जाओ, प्रकृति के कण-क...
एक पत्रकार का दर्द… खतरे में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ! 

एक पत्रकार का दर्द… खतरे में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ! 

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जंक खाये मीडिया तंत्र में न्यूज़ पोर्टल ही टारगेट पर क्यों? वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल की फेसवुक वॉल से आज अच्छा लगा बहुत सारे मीडिया के वे साथी एक प्लेटफार्म पर दिखे जो वास्तव में लोक तंत्र के चौथे स्तम्भ कहे जा सकते हैं. पहल न्यूज़ 18 के स्थानीय संपादक अनुपम त्रिवेदी ने की... शायद वे इस बात से व्यथित थे कि न्यूज़ पोर्टल की आड़ में स्टिंग व उगाहीबाज कुकुरमुत्ते की तरह इस तंत्र को चौपट करने में तुले हैं. यह व्यथा सिर्फ उन्हीं की नहीं है बल्कि उस हर पत्रकार की भी है जिसने बर्षों मीडिया संस्थानों को निष्पक्ष पत्रकारिता कर उस मीडिया हाउस को बड़ा नाम देने के लिए जी तोड़ मेहनत कर खड़ा करने में अहम् भूमिका निभाई लेकिन जब उसका नम्बर आया तो इन बनियाओं ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर किया. नई जनक्रांति आई "ऑन द स्पॉट न्यूज़" विकसित होने के विश्व भर में सोशल प्लेटफार्म तैयार हुआ. जो ...
युवा लेखकों से दूर होती हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं पर छलका युवा लेखक का दर्द, दे डाली ये सलाह

युवा लेखकों से दूर होती हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं पर छलका युवा लेखक का दर्द, दे डाली ये सलाह

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Hindi literary magazines: क्या गैंगबाज़ी, अड़ियल रवैये, सुप्रेमेसी और संवादहीनता ने हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं को दोयम दर्जे पर पहुंचा दिया है. उन्हें युवा लेखकों से दूर कर दिया है. हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं अगर लेखकों को एक-एक साल तक इंतजार करवाये और सालों तक उनके मेल का जवाब तक न दें, तो यह वाकई युवाओं के लिए चिंता का विषय है. इसका मुखरता से विरोध होना चाहिए. एक तरफ बढ़ते डिजिटल प्रभाव के कारण हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाएं वैसे ही सिमट चुकी हैं, ऊपर से रचना भेजने वाले युवाओं को अगर जवाब तक न दें, तो इससे उनका दायरा और सिमटेगा ही. पढ़िये युवा लेखक और पत्रकार ललित फुलारा (Lalit Fulara Pain for Hindi literary magazines) का हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं को लेकर छलका दर्द, जो उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है. एक वक़्त था जब हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं के प्रति...
देवलांग से रू-ब-रू करवाता दिनेश रावत द्वारा लिखित एक तथ्यात्मक गीत

देवलांग से रू-ब-रू करवाता दिनेश रावत द्वारा लिखित एक तथ्यात्मक गीत

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पूर्णता एवं तथ्यात्मकता के साथ देवलांग की विशेषताओं से परिचय करवाता दिनेश रावत का यह गीत शशि मोहन रवांल्टा सीमांत जनपद उपर साहित्यकार दिनेश रावत द्वारा लिखित गीत अब तक का सबसे पूर्णता एवं तथ्यात्मकता गीत है. रवांई घाटी के सुप्रसिद्ध देवलांग उत्सव की विशेषताओं को दर्शाता यह गीत रामनवमी के अवसर पर लॉन्च किया गया. because गीत साहित्यकार दिनेश रावत ने लिखा, जिसे रवांई घाटी सुप्रसिद्ध गायिका रेश्मा शाह ने आवाज दी और राजीव नेगी ने संगीतबद्ध किया है. गाने को इस तरह से पिरोया गया है कि उसमें देवलांग के आयोजन को आसानी से समझा जा सकता है. देवलांग पर लिखे गए इस गीत को हारूल शैली में गाया व संगीतबद्ध किया गया है. हरताली गीत में देवलांग की तैयारियों से लेकर देवलांग के खड़े होने और वहां से आखिर ओल्ला को मड़केश्वर महादेव तक ले जाने की पूरी जानकारी दी गई है. देवलांग के आयोजन में एक—एक गाँव की हिस्से...
कश्मीर फाइल्स को ‘मुस्लिम विरोधी’ बताने वाले नफ़रत का बीज बोने वाले हैं

कश्मीर फाइल्स को ‘मुस्लिम विरोधी’ बताने वाले नफ़रत का बीज बोने वाले हैं

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Kashmir Files Film: फिल्म कश्मीर फाइल्स को 'मु्स्लिम विरोधी' बताने वाले असल में नफ़रत के बीच बोने वाले हैं. जबकि इस नरसंहार के चश्मदीद मुस्लिम भी यह मानते हैं कि वह अपने कश्मीरी पंडित भाइयों को बचाने में नाकाम रहे थे. घाटी के मुस्लिम परिवारों ने भी इस फिल्म के आने के बाद कश्मीरी पंडितों से माफी मांगी है. मुस्लिमों का भी कहना है कि इस फिल्म में जो दिखाया गया है, वो हकीकत है जिसे छिपाया जा सकता है, झुठलाया नहीं जा सकता. यकीन नहीं हो रहा तो इस नरसंहार के चश्मदीद जावेद वेग का कहा पढ़ लीजिए. उन्होंने तो साफ कहा है कि यह फिल्म दु्ष्प्रचार नहीं, बल्कि हकीकत है. अब दूसरी तरफ आप वामपंथी और कांग्रेस गठजोड़ वाले दरबारी कुबुद्धीजीवियों को देखिये जो पहले इसके तथ्यों को गलत बता रहे थे और बाद में जब कुछ हाथ नहीं लगा तो इस डॉक्योड्रामा को 'मु्स्लिम विरोधी' बताकर अपना एजेंडा भुनाने में लगे हैं. क्या ...
जानिए ‘मैं एक पुरुष हूं’ कहने पर क्यों ट्रोल हो रहे हैं कवि गीत चतुर्वेदी?

जानिए ‘मैं एक पुरुष हूं’ कहने पर क्यों ट्रोल हो रहे हैं कवि गीत चतुर्वेदी?

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हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली गीत चतुर्वेदी युवाओं के प्रिय कवि हैं. कवि एवं लेखक संदीप नाईक के शब्दों में कहें तो, 'उजबक किस्म के लौंडो - लपेड़ो के बीच लोकप्रिय हैं.' पर इनदिनों सोशल मीडिया पर युवा ही उनको सबसे ज्यादा ट्रोल कर रहे हैं. इसकी वजह है उनकी स्लोगननुमा कविता की चार लाइनें, जिसे लेकर उनकी ख़ूब किरकिरी हो रही है और उनको ओवर रेटिड कवि कहा जा रहा है. बढ़ेगी ये हैं कविता की चार लाइनें जिनको लेकर कहा जा रहा है- कोई मतलब नहीं? गीत चतुर्वेदी 7 जून के बाद अचानक से सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे. ट्रोल करने वालों में उसी उम्र के युवा ज्यादा हैं जिस उम्र के युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता है. धीरे-धीरे इस ट्रोलबाज़ी में गंभीर किस्म के कवि भी कूदे और कुछ कवि और कवयित्रियों ने गीत चतुर्वेदी की कविता की इन पंक्तियों पर ख़ुद की कविता बना डाली और मज़े लेने लगे. बढ़ेगी पंक्तिया जिन पर गीत ट...
जनपद पौड़ी में लोकपाल पद पर नियुक्त हुए डॉ. अरुण कुकसाल

जनपद पौड़ी में लोकपाल पद पर नियुक्त हुए डॉ. अरुण कुकसाल

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वरिष्ठ समाज विज्ञानी, प्रशिक्षक, लेखक एवं घुमक्कड़ डॉ. अरुण कुकसाल को भारत सरकार के महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी 'मनरेगा' से सम्बद्ध so शिकायतों के निवारण एवं उनके अनुश्रवण के लिए जनपद पौड़ी में लोकपाल के पद पर नियुक्त होने पर सभी क्षेत्रवासियों में खुशी की लहर है. ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना उत्‍तराखंड गढ़वाल के चामी गांव (असवालस्यूं) में 8 अक्टूबर, 1959 को जन्मे डॉ. अरुण कुकसाल ने उत्तर because प्रदेश एवं उत्तराखंड में विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दी हैं. अर्थशास्त्र में पीएच.डी. डॉ. कुकसाल हिमालयी समाज के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक मुद्दों के गहन जानकार हैं. वे विगत कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं तथा because सोशियल मीडिया में नियमित रूप से लेखन में सक्रिय हैं. उद्यमिता विकास, यात्रा, साहित्य तथा सांस्कृतिक विषयों पर उनकी 7 पुस्तकें प्रका...
वेब सीरिज: आखिर कब तक ऐसे तांडव होते रहेंगे?

वेब सीरिज: आखिर कब तक ऐसे तांडव होते रहेंगे?

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शिव तांडव करते हैं तो प्रकृति कांपने लगती है... ललित फुलारा समझ नहीं आ रहा कि सैफ़ अली ख़ान ने अभी तक वेब सीरीज़ 'तांडव' को लेकर बयान क्यों नहीं दिया? माफ़ी क्यों नहीं मागी? खेद क्यों because नहीं जताया? उन्हें धार्मिक भावनाओं को लेकर अच्छी समझ होनी चाहिए. क्योंकि मां से हिंदू और पिता से मुस्लिम संस्कार मिले होंगे. दोनों धर्मों का सम्मान और दोनों धर्मों की मान्यताओं का सम्मान because उनसे बेहतर कौन जानता है? पहली पत्नी हिंदू और दूसरी पत्नी भी हिंदू. फिर भी वह समझ नहीं पाए कि उन्होंने जाने और अनजाने क्या होने दिया और क्या कर दिया? मैं सोच रहा हूं कि अगर तांडव की स्क्रिप्ट में because इस्लाम के सच्चे रसूल पैगंबर मोहम्मद साहब की वेशभूषा में उन्हीं के नाम वाले किसी चरित्र के मुंह से अपशब्द वाले संवाद शूट हो रहे होते, तो सैफ़ की धार्मिक चेतना और धार्मिक समझ किस तरह because से रिएक...
किसान आंदोलन में फ्री में दाड़ी बनाने और बाल काटने वाले उत्तराखंड के एक शख्स की कहानी

किसान आंदोलन में फ्री में दाड़ी बनाने और बाल काटने वाले उत्तराखंड के एक शख्स की कहानी

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जो कंटेंट अच्छा होता है और जिसमें मानवीय भावनाएं, संवेदनाएं और सौहार्द के संदेश की सीख होती है, उसे वायरल होने में वक्त नहीं लगता। पिछले दिनों ऐसे ही एक वीडियो पर नज़र गई, जिसकी ऑर्गेनिक रीच 1 मिलियन से ज्यादा हो चुकी है और 5 हजार से ज्यादा टिप्पणियां और 15 हजार से ज्यादा लाइक आ चुके हैं। यह वीडियो है उत्तराखंड के एक ऐसे शख्स की कहानी का जो कि किसान आंदोलन में आंदोलनरत किसानों के फ्री में बाल काट रहा है और दाड़ी बना रहा है। इस श़ख्स की कहानी से पहले इस वीडियो को बनाने वाले पत्रकार आशुतोष पांडे की जुंबानी ' 'शौक़-ए-दीदार अगर है, तो नज़र पैदा कर'। मैं जब किसान आंदोलन में गया, तो वहां मंच माला और माइक के माध्यम से किसान नेता अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे। कहीं कुश्ती चल रही थी, तो कहीं मोदी विरोधी नारे लग रहे थे। इन सबके बीच मुझे एक शख्स दिखा, जिसका नाम शहनवाज था। जो एक कुर्सी रखकर आंदोलनकारी...
आभासी दुनिया के बेगाने परिन्दे

आभासी दुनिया के बेगाने परिन्दे

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भुवन चन्द्र पन्त जमीनी हकीकत से दूर आज हम एक ऐसे काल खण्ड में प्रवेश कर चुके हैं, जहां हमारे चारों तरफ सब कुछ है भी, और नहीं भी. बस यों समझ लीजिए कि आप दर्पण के आगे खड़े हैं, दर्पण में आपकी स्पष्ट छवि दिख रही है, आपको अपना आभास भी हो रहा है, लेकिन हकीकत ये है कि आप उसमें हैं नही. कुछ इसी तरह की हो चुकी है, हमारी सोशल मीडिया की आभासी दुनिया. फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर आपके सैंकड़ो मित्रों की लम्बी फेहरिस्त होगी, लेकिन बमुश्किल गिने-चुने ही ऐसे मित्र होंगें, जो हकीकत की दुनिया में आपकी मित्र मण्डली से ताल्लुक रखते होंगे. ऐसे बेगाने मित्रों से गुलजार दुनिया में उनका रिश्ता केवल लाइक और कमेंट्स से ज्यादा कुछ नहीं है. सोशल मीडिया की दुनिया में प्रवेश के कई रास्ते हैं- फेसबुक, व्हाट्सऐप, इन्स्टाग्राम, ट्वीटर आदि-आदि. अब तो कोरोना काल में वेबिनार, वर्क फ्रॉम होम, ऑन लाइन कक्षाएं और मन्दिरों ...